चंडीगढ़: पंजाब एवं हरियाणा हाइकोर्ट (punjab haryana highcourt) में एक मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि किसी के द्वारा छोड़े गए सुसाइड नोट में नाम लिखे जाने से किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान यह भी कहा कि ऐसे मामलों में मृतक की लिखाई की जांच की जानी जरूरी है. कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे मामले की जांच करने वाले अधिकारी को ऐसे मामलों में हस्त लेखन विशेषज्ञ की रिपोर्ट के बाद ही कोई फैसला लेना चाहिए ना कि सिर्फ पत्र में नाम के आधार पर कार्रवाई करनी चाहिए.
दरअसल हाइकोर्ट के जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर ने यह आदेश हरियाणा के सोनीपत के रवि भारती की याचिका पर सुनवाई (Ravi Bharti of Sonipat Plea Hearing) पर सुनवाई करते हुए दिए हैं. इस मामले में अपील दाखिल करने वाले ने सोनीपत की लोवर कोर्ट के 2 मई, 2022 को पारित आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. इस मामले में अपील हाइकोर्ट में दाखिल करने वाले को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले (cases of abetment to suicide) में पांच साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी.
सुसाइड के एक मामले में मिले सुसाइड नोट के आधार पर अपील दाखिल करने वाले को दोषी ठहराया गया था. इस मामले में आत्महत्या करने वाले की मौत किसी जहरीले पदार्थ को खाने से हुई थी. वही जो इस मामले में दोषी पाई के शख्स ने हाईकोर्ट में अपील लगाई तो कोर्ट ने माना कि सिर्फ सुसाइड नोट में नाम हो ना ही किसी पर केस के लिए काफी नहीं है. इसके साथ कई अन्य तथ्यों को देखना बेहद जरूरी है.
यानि कोर्ट का साफ कहना था कि सुसाइड नोट दोषी साबित करने का पूर्ण आधार नहीं हो (Suicide Note Not Enough To Held Accused Guilty) सकता. इसके साथ में आत्महत्या करने वाले को उकसाने की वजह, मकसद और आरोपी का घटना से रिश्ता साबित करना जरूरी होता है. वहीं हाइकोर्ट ने इस मामले में जिला अदालत के आदेश को रद्द करते हुए अपील दाखिल करने वाले को रिहा करने के आदेश जारी किए.
किसी को दोषी ठहराने के लिए सुसाइड नोट में नाम होना ही नहीं है काफी - पंजाब एवं हरियाणा हाइकोर्ट
आत्महत्या के मामले पर पंजाब एवं हरियाणा हाइकोर्ट (Punjab and Haryana Highcourt) ने बड़ा महत्वपूर्ण फैसला दिया है. हाइकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि केवल सुसाइड नोट में नाम होने को आधार बनाकर किसी को आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी नहीं माना जा सकता.
चंडीगढ़: पंजाब एवं हरियाणा हाइकोर्ट (punjab haryana highcourt) में एक मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि किसी के द्वारा छोड़े गए सुसाइड नोट में नाम लिखे जाने से किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान यह भी कहा कि ऐसे मामलों में मृतक की लिखाई की जांच की जानी जरूरी है. कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे मामले की जांच करने वाले अधिकारी को ऐसे मामलों में हस्त लेखन विशेषज्ञ की रिपोर्ट के बाद ही कोई फैसला लेना चाहिए ना कि सिर्फ पत्र में नाम के आधार पर कार्रवाई करनी चाहिए.
दरअसल हाइकोर्ट के जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर ने यह आदेश हरियाणा के सोनीपत के रवि भारती की याचिका पर सुनवाई (Ravi Bharti of Sonipat Plea Hearing) पर सुनवाई करते हुए दिए हैं. इस मामले में अपील दाखिल करने वाले ने सोनीपत की लोवर कोर्ट के 2 मई, 2022 को पारित आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. इस मामले में अपील हाइकोर्ट में दाखिल करने वाले को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले (cases of abetment to suicide) में पांच साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी.
सुसाइड के एक मामले में मिले सुसाइड नोट के आधार पर अपील दाखिल करने वाले को दोषी ठहराया गया था. इस मामले में आत्महत्या करने वाले की मौत किसी जहरीले पदार्थ को खाने से हुई थी. वही जो इस मामले में दोषी पाई के शख्स ने हाईकोर्ट में अपील लगाई तो कोर्ट ने माना कि सिर्फ सुसाइड नोट में नाम हो ना ही किसी पर केस के लिए काफी नहीं है. इसके साथ कई अन्य तथ्यों को देखना बेहद जरूरी है.
यानि कोर्ट का साफ कहना था कि सुसाइड नोट दोषी साबित करने का पूर्ण आधार नहीं हो (Suicide Note Not Enough To Held Accused Guilty) सकता. इसके साथ में आत्महत्या करने वाले को उकसाने की वजह, मकसद और आरोपी का घटना से रिश्ता साबित करना जरूरी होता है. वहीं हाइकोर्ट ने इस मामले में जिला अदालत के आदेश को रद्द करते हुए अपील दाखिल करने वाले को रिहा करने के आदेश जारी किए.