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हरियाणा का वो मुख्यमंत्री जिसने प्रधानमंत्री को झुका दिया, लेकिन उसके अपने ही ले डूबे!

हरियाणा का अहिर मुख्यमंत्री ऐसा भी था, जिसने सूबे की राजनीति में जबरदस्त उठापटक का दंश झेला. वो प्रदेश का दूसरा मुख्यमंत्री बना, लेकिन जिनके सहारे वो कुर्सी पर पहुंचा वो सहारे ही रेत के टीले की तरह ढह गए. राव बीरेंद्र सिंह महज 8 महीने कुर्सी का स्वाद चख पाए, लेकिन उन्होंने प्रदेश की सियासत में ऐसी कहानियां गढ़ीं जिनकी चर्चाएं आज भी की जाती हैं.

राव बीरेंद्र सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री, हरियाणा
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Published : Sep 27, 2019, 10:34 AM IST

Updated : Sep 27, 2019, 10:45 AM IST

चंडीगढ़: बेशक हरियाणा क्षेत्रफल के लिहाज से छोटा सा राज्य है, मगर शुरू से ही यहां की राजनीति की धाक केंद्र तक रही है. यहां की राजनीति में जबरदस्त उठा-पटक शुरुआत से ही रही है. आज हम बात उस दौर की कर रहे हैं, जब हरियाणा के पहले मुख्यमंत्री पंडित भगवत दयाल शर्मा दल बदलने वाले नेताओं के भंवर में फंस कर अपनी कुर्सी गवां चुके थे. सिर्फ कुर्सी ही नहीं पूरी की पूरी सरकार ही गिर गई थी, ये साल था सन् 1967...

ये वो दौर था जब अहीरवाल के दिग्गज राव बीरेंद्र सिंह के सितारे चमक रहे थे. पंडित भगवत दयाल शर्मा की सरकार गिरने के बाद राव बीरेंद्र सिंह कुर्सी पर बैठे. 24 मार्च 1967 से 2 नवंबर 67 तक 224 दिन संयुक्त विधायक दल के बल पर बीरेंद्र सिंह हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे थे. ये वही दौर था जब बीरेंद्र सिंह की कांग्रेस से अनबन हुई और उन्होंने विशाल हरियाणा पार्टी बना ली.

मगर दलबदलू इन्हें भी ले डूबे
1967 में दल-बदलुओं की हरकतों के कारण हरियाणा की सरकार में आश्चर्यजनक रूप से बदलाव हुए. विशाल हरियाणा पार्टी की तरफ से मुख्यमंत्री बने राव बीरेंद्र सिंह की भी सरकार गिरी और विधानसभा के तमाम सदस्यों को 8 माह के भीतर ही सदस्यता गंवानी पड़ी. ऐसा विधानसभा के 81 सदस्यों में से 44 सदस्यों द्वारा दल-बदल किए जाने के कारण हुआ था.

ये पढ़ें- विधानसभा चुनाव स्पेशल: जानिए हरियाणा के पहले सीएम के बारे में जिन्हें दलबदल नेता ले डूबे!

बीरेंद्र की सरकार में दबदलुओं ने बनाया था रिकॉर्ड!
सरकार के गठन के 8 महीने में दल-बदल की इतनी घटनाएं हुईं कि सरकार ढह गई और हरियाणा में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा. हरियाणा में दल-बदल करने वालों में आजाद विधायकों के अलावा विशाल हरियाणा पार्टी और कांग्रेस के विधायक भी शामिल थे. इनमें से एक विधायक ने 5 बार, 2 विधायकों ने 4 बार, 3 विधायकों ने 3 बार और 34 विधायकों ने एक बार पार्टी बदली. उस वक्त कुल 64 बार दल-बदल हुआ. हर महीने औसतन दल-बदल के 8 मामले सामने आए. करीब 5 महीने तक प्रदेश में राष्ट्रपति शासन रहा. फिर दोबारा चुनाव हुए, कांग्रेस को 48 सीटें हासिल हुईं और 22 मई 1968 को बंसीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री बने.

ये थे बीरेंद्र सिंह के वो किस्से जो हरियाणा राजनीति में उन्हें अमर रखते हैं...

जब इंदिरा भी नहीं रोक पाई थी बीरेंद्र सिंह की लहर
साल 1971 के लोकसभा चुनाव में हरियाणा में कांग्रेस की तूती बोल रही थी, लेकिन राव ने कुछ वर्ष पूर्व अस्तित्व में आई अपनी विशाल हरियाणा पार्टी के टिकट पर कांग्रेस को हरा दिया था. राव की हार सुनिश्चित करने के लिए खुद इंदिरा गांधी रेवाड़ी आई थी, लेकिन इंदिरा भी राव की जीत नहीं रोक पाईं.

नारनौल में बीरेंद्र सिंह ने इंदिरा गांधी को हराया था!
राव बीरेंद्र सिंह बेशक 8 महीने के लिए सीएम रहे, लेकिन उन्होंने खुद की पार्टी बनाकर देश की राजनीति में अपने प्रभाव का जलवा दिखा दिया था. वो कैसे...? इस बात को प्रमाणित करने के लिए राव बीरेंद्र सिंह और तब के हरियाणा विकास पार्टी के कार्यकर्ता एक किस्सा सुनाते हैं.

ये पढ़ें- बज गया चुनावी बिगुल, यहां समझिए रेवाड़ी जिले का पूरा चुनावी गणित

कहा जाता है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी हरियाणा के नारनौल में राव निहाल सिंह के पक्ष में चुनाव प्रचार के लिए आई थी. इंदिरा को देखने के लिए नारनौल रोड़ पर कई गांवों के लोग सड़कों के किनारे आकर खड़े हो गए थे. खूब हुजूम था. इंदिरा गांधी ने हाथ हिलाकर ग्रामीणों का अभिवादन स्वीकार कर रही थीं. वहीं दूसरी तरफ राव बीरेंद्र सिंह पैदल चलकर लोगों से वोट मांग रहे थे.
जनता को शायद ये सादगी पसंद आई. बीरेंद्र सिंह ने कांग्रेस के राव निहाल सिंह को 1899 वोट से हराकर चुनाव में जीत दर्ज की थी. इंदिरा गांधी का प्रचार भी उन्हें हरा नहीं पाया था. हालांकि आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी की मौजूदगी में राव ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया था.

करियर:

  • वह मार्च 1967 से नवंबर 1967 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे.
  • 1966 में पंजाब से अलग होकर बने हरियाणा राज्य के वह दूसरे मुख्यमंत्री थे.
  • पहले वह पंजाब सरकार में मंत्री भी रह चुके थे.
  • साल 1980-84 के बीच वह कृषि, ग्रामीण विकास और खाद्य एवं आपूर्ति विभाग में केंद्रीय मंत्री रहे.
  • वह लोकसभा के लिए तीन बार 1971, 1980 और 1984 में चुने गए थे.
  • 30 नवंबर 2009 को 88 साल की उम्र में गुरुग्राम उनका हार्ट अटैक की वजह से निधन हो गया.

चंडीगढ़: बेशक हरियाणा क्षेत्रफल के लिहाज से छोटा सा राज्य है, मगर शुरू से ही यहां की राजनीति की धाक केंद्र तक रही है. यहां की राजनीति में जबरदस्त उठा-पटक शुरुआत से ही रही है. आज हम बात उस दौर की कर रहे हैं, जब हरियाणा के पहले मुख्यमंत्री पंडित भगवत दयाल शर्मा दल बदलने वाले नेताओं के भंवर में फंस कर अपनी कुर्सी गवां चुके थे. सिर्फ कुर्सी ही नहीं पूरी की पूरी सरकार ही गिर गई थी, ये साल था सन् 1967...

ये वो दौर था जब अहीरवाल के दिग्गज राव बीरेंद्र सिंह के सितारे चमक रहे थे. पंडित भगवत दयाल शर्मा की सरकार गिरने के बाद राव बीरेंद्र सिंह कुर्सी पर बैठे. 24 मार्च 1967 से 2 नवंबर 67 तक 224 दिन संयुक्त विधायक दल के बल पर बीरेंद्र सिंह हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे थे. ये वही दौर था जब बीरेंद्र सिंह की कांग्रेस से अनबन हुई और उन्होंने विशाल हरियाणा पार्टी बना ली.

मगर दलबदलू इन्हें भी ले डूबे
1967 में दल-बदलुओं की हरकतों के कारण हरियाणा की सरकार में आश्चर्यजनक रूप से बदलाव हुए. विशाल हरियाणा पार्टी की तरफ से मुख्यमंत्री बने राव बीरेंद्र सिंह की भी सरकार गिरी और विधानसभा के तमाम सदस्यों को 8 माह के भीतर ही सदस्यता गंवानी पड़ी. ऐसा विधानसभा के 81 सदस्यों में से 44 सदस्यों द्वारा दल-बदल किए जाने के कारण हुआ था.

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बीरेंद्र की सरकार में दबदलुओं ने बनाया था रिकॉर्ड!
सरकार के गठन के 8 महीने में दल-बदल की इतनी घटनाएं हुईं कि सरकार ढह गई और हरियाणा में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा. हरियाणा में दल-बदल करने वालों में आजाद विधायकों के अलावा विशाल हरियाणा पार्टी और कांग्रेस के विधायक भी शामिल थे. इनमें से एक विधायक ने 5 बार, 2 विधायकों ने 4 बार, 3 विधायकों ने 3 बार और 34 विधायकों ने एक बार पार्टी बदली. उस वक्त कुल 64 बार दल-बदल हुआ. हर महीने औसतन दल-बदल के 8 मामले सामने आए. करीब 5 महीने तक प्रदेश में राष्ट्रपति शासन रहा. फिर दोबारा चुनाव हुए, कांग्रेस को 48 सीटें हासिल हुईं और 22 मई 1968 को बंसीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री बने.

ये थे बीरेंद्र सिंह के वो किस्से जो हरियाणा राजनीति में उन्हें अमर रखते हैं...

जब इंदिरा भी नहीं रोक पाई थी बीरेंद्र सिंह की लहर
साल 1971 के लोकसभा चुनाव में हरियाणा में कांग्रेस की तूती बोल रही थी, लेकिन राव ने कुछ वर्ष पूर्व अस्तित्व में आई अपनी विशाल हरियाणा पार्टी के टिकट पर कांग्रेस को हरा दिया था. राव की हार सुनिश्चित करने के लिए खुद इंदिरा गांधी रेवाड़ी आई थी, लेकिन इंदिरा भी राव की जीत नहीं रोक पाईं.

नारनौल में बीरेंद्र सिंह ने इंदिरा गांधी को हराया था!
राव बीरेंद्र सिंह बेशक 8 महीने के लिए सीएम रहे, लेकिन उन्होंने खुद की पार्टी बनाकर देश की राजनीति में अपने प्रभाव का जलवा दिखा दिया था. वो कैसे...? इस बात को प्रमाणित करने के लिए राव बीरेंद्र सिंह और तब के हरियाणा विकास पार्टी के कार्यकर्ता एक किस्सा सुनाते हैं.

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कहा जाता है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी हरियाणा के नारनौल में राव निहाल सिंह के पक्ष में चुनाव प्रचार के लिए आई थी. इंदिरा को देखने के लिए नारनौल रोड़ पर कई गांवों के लोग सड़कों के किनारे आकर खड़े हो गए थे. खूब हुजूम था. इंदिरा गांधी ने हाथ हिलाकर ग्रामीणों का अभिवादन स्वीकार कर रही थीं. वहीं दूसरी तरफ राव बीरेंद्र सिंह पैदल चलकर लोगों से वोट मांग रहे थे.
जनता को शायद ये सादगी पसंद आई. बीरेंद्र सिंह ने कांग्रेस के राव निहाल सिंह को 1899 वोट से हराकर चुनाव में जीत दर्ज की थी. इंदिरा गांधी का प्रचार भी उन्हें हरा नहीं पाया था. हालांकि आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी की मौजूदगी में राव ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया था.

करियर:

  • वह मार्च 1967 से नवंबर 1967 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे.
  • 1966 में पंजाब से अलग होकर बने हरियाणा राज्य के वह दूसरे मुख्यमंत्री थे.
  • पहले वह पंजाब सरकार में मंत्री भी रह चुके थे.
  • साल 1980-84 के बीच वह कृषि, ग्रामीण विकास और खाद्य एवं आपूर्ति विभाग में केंद्रीय मंत्री रहे.
  • वह लोकसभा के लिए तीन बार 1971, 1980 और 1984 में चुने गए थे.
  • 30 नवंबर 2009 को 88 साल की उम्र में गुरुग्राम उनका हार्ट अटैक की वजह से निधन हो गया.
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second chief minister of haryana rao birender singh


Conclusion:
Last Updated : Sep 27, 2019, 10:45 AM IST
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