चंडीगढ़: साल 2019 में जींद विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो रहा था. इस चुनाव में कांग्रेस ने राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले अपने राष्ट्रीय महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला को मैदान में उतारा. रणदीप सुरजेवाला को टिकट देने के बाद प्रदेश में कांग्रेस के विरोधी दल खुश थे. बीजेपी के बड़े नेता रामबिलास शर्मा ने एक मुलाकात के दौरान पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा से चुटकी लेते हुए कहा कि आपका कांटा निकल गया. ये बात राजनीतिक गलियारे में चर्चा का विषय बन गई कि आखिर विरोधी पार्टी के उम्मीदवार से बीजेपी नेता क्यों खुश हैं. इसका खुलासा भी जल्द हो गया.
रामबिलास शर्मा के इस 'कांटा निकलने' के बयान को जींद उपचुनाव में सुरजेवाला की उम्मीदवारी से जोड़कर देखा गया. इस बात को राजनीतिक जानकारों ने ऐसे समझा कि भूपेंद्र हुड्डा ने ही सुरजेवाला को हराने के लिए जींद उपचुनाव में टिकट दिलवाया है. ताकि उनके हारने से आलाकमान की नजर में पार्टी के अंदर सुरजेवाला के कद को छोटा किया जा सके. जब जींद उपचुनाव में कांग्रेस ने रणदीप सुरजेवाला को टिकट दिया तो उस समय सुरजेवाला कैथल से भी विधायक थे. एक विधायक को दूसरे उपचुनाव में टिकट देने का फैसला किसी के भी समझ से परे था.
राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा पुरानी है कि हरियाणा में कांग्रेस के अंदर रणदीप सुरजेवाला और पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज भूपेंद्र सिंह हुड्डा (bhupinder singh hooda) के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं. माना जाता है कि सुरजेवाला प्रदेश में इकलौते नेता हैं जिनकी दिल्ली तक चलती है. उनका आलाकमान के साथ भी संपर्क अच्छा है और राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं. साथ ही भूपेंद्र सिंह हुड्डा के जाट समुदाय से भी आते हैं. सुरजेवाला ही हैं जो हरियाणा में भूपेंद्र हुड्डा को चुनौती दे सकते हैं.
जींद उपचुनाव का नतीजा आया तो वही हुआ जो बीजेपी नेता रामबिलास शर्मा ने कहा था. सुरजेवाला ये चुनाव बुरी तरह से हार गये. वो हारे ही नहीं बल्कि तीसरे नंबर पर रहे और किसी तरह महज 932 वोट से जमानत बचाने में सफल हुए. जींद उपचुनाव के प्रचार में भी कांग्रेस का भितरघात दिख गया था. सुरजेवाला के पक्ष में प्रचार के लिए भूपेंद्र सिंह हुड्डा समेत उनके खेमे का कोई भी नेता बहुत उत्साहित नजर नहीं आया.
इसी कांटा निकलने के प्रसंग से जुड़ा एक वाकया और भी है. जब 2019 के लोकसभा चुनाव हुए तो सोनीपत सीट से कांग्रेस ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा को टिकट दे दिया. पार्टी के अंदरूनी सूत्रों और जानकारों की मानें तो भूपेंद्र हुड्डा लोकसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे. लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें सोनीपत से मैदान में उतरने का फैसला सुनाया. सोनीपत भूपेंद्र सिंह हुड्डा का गढ़ माना जाता है. सोनीपत में हुड्डा का ससुराल भी है. इसके बावजूद हुड्डा 1 लाख 64 हजार से ज्यादा वोटों से चुनाव हार गये. हुड्डा की इस हार के बाद फिर हरियाणा की सियासत में ये चर्चा शुरू हो गई कि सुरजेवाला ने भी अपना कांटा निकाल दिया. यानि इस हार से भूपेंद्र हुड्डा का भी कद छोटा हो गया. इस हार की भी सबसे बड़ी वजह रही कांग्रेस की गुटबाजी.
कुलदीप बिश्नोई के समर्थन में कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव रणदीप सुरजेवाला (randeep Surjewala) का हालिया बयान एक बार फिर चर्चा में है. जिसमें उन्होंने कुलदीप बिश्नोई को उदयभान की जगह बेहतर अध्यक्ष साबित होने की बात कही है. इस बयान को भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ उसी सियासी टकराव का हिस्सा माना जा रहा है जो लंबे समय से चला आ रहा है. क्योंकि पूर्व विधायक उदय भान को गुड्डा गुट का नेता माना जाता है. ये कहा जा रहा है कि हुड्डा की सिफारिश पर ही उदय भान को हरियाणा कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया है. इससे हुड्डा खेमे को हरियाणा में नई ताकत मिलेगी और उनके विरोधी किनारे किये जा सकेंगे. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि रणदीप सुरजेवाला हुड्डा के इसी बढ़ते कद से खुश नहीं हैं.
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हरियाणा में अध्यक्ष पद की दौड़ में पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई (kuldeep bishnoi) भी शामिल थे. लगातार दिल्ली जाकर वो अपनी पैरवी करने में लगे थे. कांग्रेस संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल से मिलकर कुलदीप बिश्नोई को ये भरोसा था कि उन्हें अध्यक्ष बनाया जा सकता है. लेकिन आखिरकार आलाकमान ने उदय भान को अध्यक्ष बनाने का फैसला सुना दिया. जिसके बाद कुलदीप बिश्नोई ने सोशल मीडिया पर नाराजगी भी जाहिर की थी. कुलदीप बिश्नोई भी भूपेंद्र सिंह हुड्डा गुट के खिलाफ माने जाते हैं. इसीलिए अब सुरजेवाला भी कुलदीब बिश्नोई की पैरवी करके इस जंग में कूद पड़े हैं.
कांग्रेस ने उदयभान को अध्यक्ष बनाने के साथ चार कार्यकारी अध्यक्ष भी नियुक्त किए हैं. राजनीतिक मामलों के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार प्रोफेसर गुरमीत सिंह कहते हैं कि कांग्रेस पार्टी की नई सूची यह बताने के लिए काफी है कि वह आने वाले दिनों में किस तरीके से आगे बढ़ने जा रही हैं. इससे यह बात तो साफ है कि अब पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की तो चलेगी ही, वहीं हाईकमान ने हुड्डा के दबाव को कम करने के लिए सभी गुटों को तरजीह देकर यह भी संदेश दे दिया है कि वे सभी को साथ लेकर चलेंगे. हालांकि जिस तरीके से अध्यक्ष चुना गया है उसे देखते हुए इसमें कोई शक नहीं कि पार्टी में हुड्डा एक मजबूत नेता के तौर पर बने रहेंगे
नये पार्टी अध्यक्ष को शुभकामनाएं. मैं व्यक्तिगत तौर पर ये मानता हूं कि कुलदीप बिश्नोई जी बहुत लायक, बहुत काबिल, बहुत सभ्य नेता हैं. कांग्रेस पार्टी को कुलदीप बिश्नोई सरीखे नेताओं की आवश्यकता है. मुझे विश्वास है कि कांग्रेस नेतृत्व उनसे बात करेगा और उनको बेहतरीन संगठनात्मक जगह देगी. रणदीप सुरजेवाला, राष्ट्रीय प्रवक्ता, कांग्रेस
सुरजेवाला का बयान ऐसे समय में आया है जब कांग्रेस हरियाणा में गुटबाजी की गंभीर समस्या से लड़ रही है. पिछले करीब तीन साल में तीन अध्यक्ष बदले जा चुके हैं. पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर तो इसी नाराजगी के चलते पार्टी भी छोड़ चुके हैं. उनके बाद अध्यक्ष बनाई गई पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा भी अब हटाई जा चुकी हैं. गुटबाजी के चलते प्रदेश अध्यक्ष और बाकी नेताओं में तालमेल नहीं बन रहा है जिसके चलते पार्टी का जमीनी आधार खत्म हो रहा है.
कई साल तक पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे अशोक तंवर के किसी भी कार्यक्रम में कभी हुड्डा समर्थक नेता यहां तक कि विधायक तक नहीं पहुंचे. यही हाल कुमारी सैलजा के कार्यकाल में भी रहा. कांग्रेस पार्टी के कार्यक्रम भी सभी नेता अलग-अलग करते रहे. पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की बहू किरण चौधरी अपनी अलग राह पर चलती रहीं. हाल ही में फरीदाबाद में हुए विपक्ष आपके समक्ष कार्यक्रम में भी कुलदीप बिश्नोई, श्रुति चौधरी, कुमारी सैलजा, किरण चौधरी और रणदीप सिंह सुरजेवाला जैसे बड़े नेता नहीं पहुंचे. कांग्रेस सरकार के खिलाफ 'विपक्ष आपके समक्ष' कार्यक्रम कर रही है लेकिन सबसे बड़ा विपक्ष कांग्रेस के अंदर ही खड़ा दिख रहा है.
हरियाणा में यह बात हमेशा होती थी कि प्रदेश में सिर्फ अध्यक्ष थे, तो पार्टी का संगठन नहीं था. इसलिए यह जो 5 गुट हरियाणा में नजर आते थे उनका कोई भी आदमी संगठन में जगह नहीं पा सका. जिस तरीके से पार्टी ने चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाए हैं. उसके साथ ही सभी गुटों को एक साथ लाने के लिए काम किया गया है. ऐसे में आगे संगठन में इन सभी ग्रुपों के लोगों को शामिल किया जाएगा. डॉ सुरेंद्र धीमान, राजनीतिक मामलों के जानकार
गुटबाजी का आलम ये है कि हरियाणा में कांग्रेस पार्टी लंबे समय से अपने संगठन का विस्तार नहीं कर पाई है. करीब 9 सालों से पार्टी संगठन हरियाणा में नहीं बन पाया है. अंदरूनी लड़ाई के चलते जिला इकाई भंग पड़ी है. इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह जो मानी जाती रही है वह हरियाणा में पार्टी के कई धड़ों में बंटा होना है. काफी लंबे समय से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा गुट पहले पार्टी अध्यक्ष रहे अशोक तंवर पर भारी रहा. यही स्थिति कुमारी सैलजा के साथ भी बनी रही. वो भी अपने अध्यक्ष कार्यकाल में संगठन को खड़ा नहीं कर पाईं.
2019 विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अशोक तंवर (Ashok Tanwar) से हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष का पद छीन लिया गया और कुमारी सैलजा को कमान सौंपी गई. वहीं किरण चौधरी से सीएलपी का पद छीनकर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को दे दिया गया. कांग्रेस में कलह का हाल ये रहा कि प्रदेश अध्यक्ष होने के बावजूद अशोक तंवर की मीटिंग में कोई विधायक नहीं पहुंचता था. ना ही भूपेंद्र हुड्डा कभी अशोक तंवर के साथ एक मंच पर दिखाई दिए.
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. सुरेंद्र धीमान कहते हैं कि हमेशा से ही कांग्रेस में दो गुट रहे हैं, कई बार तो ये भी कहा गया कि ये कांग्रेस की रणनीति है, जो जातीय समीकरण साधने के लिए तैयार की जाती है. लेकिन अक्सर ये रणनीति से ज्यादा गुटबाजी ही नजर आई. इसीलिए 2014 के बाद से भजनलाल, राव इंद्रजीत, चौधरी बीरेंद्र सिंह और प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर जैसे बड़े नेताओं के साथ करीब 38 नेताओं ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया. संगठन का कमजोर होना राजनीतिक विश्लेषक डॉ. सुरेंद्र धीमान के मुताबिक हरियाणा में संगठन स्तर पर कांग्रेस की हालत क्या ये समझने के लिए बस इतना काफी है कि 2014 से अब तक पार्टी जिला कार्यकारिणी नहीं बना पाई है.
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो इस वक्त हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा ही ऐसे लीडर दिखाई पड़ते हैं जो कांग्रेस की डूबती नैया के खेवनहार बन सकते हैं. यही वजह है कि 2019 के चुनाव से ठीक पहले बगावती तेवर दिखाने वाले हुड्डा को कांग्रेस ने अशोक तंवर के ऊपर तरजीह दी और चुनाव की कमान सौंपी. जिसमें उन्होंने कुछ हद तक अपने हाईकमान को संतुष्ट भी किया. और बीजेपी को दोबारा बहुमत में आने से रोकने में कांग्रेस सफल रही. और 2014 की 15 सीटों के मुकाबले कांग्रेस 31 सीट पर जीत हासिल की. लेकिन नया अध्यक्ष बनने के साथ ही जिस तरह से रणदीप सुरजेवाला और कुलदीप बिश्नोई का रवैय्या दिखाई दे रहा है उससे साफ है कि कांग्रेस की राह अभी भी आसान नहीं है. और ना ही पार्टी के अंदर की गुटबाजी पर लगाम लगती दिख रही है.
हरियाणा कांग्रेस के नये अध्य उदय भान (udai bhan) दलित समुदाय से आते हैं. हरियाणा में दलित समुदाय का बड़ा वोट बैंक है. कांग्रेस आलाकमान ने वोट बैंक के चलते भी उनके नाम पर मुहर लगाई. इससे पहले हरियाणा कांग्रेस की अध्यक्ष रह चुकी कुमारी सैलजा और अशोक तंवर भी दलित समुदाय से अध्यक्ष बनाये गये थे. माना जा रहा है कि इसी वजह से भूपेंद्र हुड्डा ने उदय भान के जरिए दो मकसद एक साथ पूरे कर लिए. पहला ये कि वो उनके खेमे हैं पार्टी के फैसले लेने में आसानी होगी. और दूसरा ये कि वो दलित समुदाय से भी जिसके चलते विरोधी गुट को सवाल उठाने का मौका नहीं मिलेगा.
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