चंडीगढ़: करीब 38 सालों से गरीब और भूखे लोगों कि खाने का इंतजाम करने वाले जगदीश आहूजा को देश के प्रतिष्ठित पदम अवार्ड के लिए चुना गया है. जिसमें अवॉर्ड की लिस्ट जारी हुई उस समय भी आहूजा लंगर लगाने में जुटे हुए थे. 85 साल के आहूजा लंगर बाबा के नाम से जाने जाते हैं. जिंदगी की सारी कमाई उन्होंने गरीब लोगों को खाना खिलाने के लिए लगा दी.
करोड़ों की संपत्ति बेच कर गरीबों को खाना खिलाया
ऐसे हालात भी आए जब उनके पास लोगों को खाना खिलाने के लिए पैसे नहीं बचे. तब उन्होंने अपनी करोड़ों की संपत्ति, यहां तक कि अपने पत्नी के नाम की जमीन भी बेचनी पड़ी, लेकिन इन्होंने लंगर लगाना 1 दिन के लिए भी बंद नहीं किया.
ईटीवी भारत से की खास बातचीत
ईटीवी भारत ने पद्मश्री जगदीश लाल अहूजा से खास बातचीत की. जब उनसे इस अवार्ड के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उनको बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि सरकार उन्हें ये सम्मान देगी. उन्होंने कहा कि वो तो एक गरीब रेहड़ी लगाने वाले इंसान हैं, उनको इतना बड़ा सम्मान दिया जा रहा है जिससे वो सरकार का धन्यवाद करते हैं.
415 रुपये जेब में लेकर चंडीगढ़ आये थे
उन्होंने कहा कि वे बचपन में घर से झगड़ा करके चंडीगढ़ आ गए थे. उस समय उनकी जेब में 415 रुपये थे. 400 उन्होंने इधर उधर घूमने फिरने में खर्च कर दिए और बाकी के 15 रुपये से उन्होंने चंडीगढ़ में कोई काम करने की सोची. उन 15 रुपयों से उन्होंने केले बेचने का काम शुरू किया.
'चंडीगढ़ में लोगों को कच्चे केले को पकाना नहीं आता था'
जगदीश लाल ने कहा कि जब उन्होंने केले का काम शुरू किया तब चंडीगढ़ में लोगों को कच्चे केले को पकाना नहीं आता था, मगर उन्हें ये काम करना आता था तो उन्होंने कच्चे केलों को खरीदकर उन्हें पकाकर बेचना शुरू किया और उनका ये काम चल निकला.
जब देश में आपातकाल लगाया गया तब उनकी दुकान को सेक्टर-26 की मंडी में शिफ्ट कर दिया गया. सब्जी मंडी में उनका काम और तेजी से चल पड़ा और धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा. जिस जगह अच्छे खासे पैसे कमाने लगे.
80 के दशक में किया भंडारे लगाना शुरू
जगदीश लाल ने बताया कि उन्होंने 80 के दशक में अपने दुकान के बाहर भंडारा लगाना शुरू किया था और अगले काफी सालों तक वहीं पर लोगों को खाना खिलाते रहे और उसके बाद उन्होंने पीजीआई के बाहर लोगों को खाना खिलाना शुरू किया.
उन्होंने बताया कि धीरे-धीरे लोगों की संख्या बढ़ती गई, लेकिन उन्होंने किसी को खाली पेट नहीं जाने दिया, जबसे उन्होंने भंडारा शुरू किया है तब से लेकर आज तक भंडारा लगातार जारी है. गर्मी , सर्दी, बारिश, आंधी तूफान में भी किसी भी दिन भंडारे को एक भी दिन के लिए बंद नहीं किया गया. अब से लेकर अब तक भंडारा लगातार जारी है.
'भगवान ने जो दिया मानवता की सेवा में लगा कर उसे वापस कर दिया'
जगदीश लाल से जब पूछा गया कि उन्होंने भंडारा लगाने के लिए अपनी सारी संपत्ति और अपनी सारी जमा पूंजी को खर्च कर दिया, तो उन्होंने कहा कि वो तो सिर्फ 415 रुपये लेकर चंडीगढ़ आए थे. यहां आकर उन्होंने जितना भी कमाया वो सब भगवान ने ही उन्हें दिया था और उन्होंने मानवता की सेवा करते हुए वो सब कुछ भगवान को वापस लौटा दिया. वे कहते हैं कि मेरा तो कुछ था ही नहीं जो भगवान का था. वही भगवान को वापस किया है. मैं तो एक गरीब रेहड़ी चलाने वाला इंसान हूं.
आपको बता दें कि जगदीश लाल ने भंडारा चलाने के लिए ना सिर्फ अपनी करोड़ों की जमा पूंजी बल्कि नारायणगढ़ में 36 एकड़ जमीन , पंचकूला और चंडीगढ़ में कई कोठियां, मणिमाजरा में दो शोरूम और चंडीगढ़ में भी एक शोरूम को बेचकर ये भंडारा जारी रखा. इतना ही नहीं उन्होंने अपनी पत्नी की हिस्से की जमीन को बेचकर भी सारा पैसा भंडारा चलाने में लगा दिया, लेकिन कभी किसी से एक पैसा नहीं मांगा.
कैंसर होने के बावजूद भी कमजोर नहीं हुए इरादे
कई साल पहले जगदीश लाल को कैंसर हो गया और इस समय भी वो कैंसर से पीड़ित हैं, लेकिन इसके बावजूद उनके इरादों में कमी नहीं आई है. कैंसर के मरीज होने के बावजूद भी वे आज भी भंडारा लगाते हैं और हजारों लोगों को हर रोज खाना खिलाते हैं.
'सरकार टैक्स माफ कर दे तो शांति से इस दुनिया को अलविदा कह सकूंगा'
सरकार से अपील करते हुए लंगर बाबा कहते हैं कि उन्हें कई लाख रुपयों का टैक्स हर साल भरना पड़ता है. अगर सरकार उनका टैक्स माफ कर देगी तो वे उस पैसे को भी लोगों को खाना खिलाने में इस्तेमाल कर सकेंगे और उनके इस दुनिया से जाने के बाद भी वो पैसा लोगों के लिए भंडारा लगाने में काम आएगा. अगर सरकार उनका टैक्स माफ कर दें तो वे शांति से इस दुनिया को अलविदा कह सकेंगे.
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