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ना-ना करते 'प्यार' उन्हीं से कर बैठे, करना था इनकार मगर इकरार कर बैठे !

जननायक जनता पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी को समर्थन देकर सरकार में रहने का फैसला लिया है. जिसके बाद जेजेपी में विरोध भी शुरू हो गया है. और सवाल उठने लगे हैं कि क्या दुष्यंत चौटाला का ये फैसला सही है.

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Published : Oct 26, 2019, 5:18 PM IST

चंडीगढ़ः हरियाणा में नई सरकार का फॉर्मूला तय हो गया है. मनोहर लाल खट्टर एक बार फिर मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं और दुष्यंत चौटाला उप मुख्यमंत्री बनेंगे. लेकिन दुष्यंत चौटाला के इस फैसले का उनकी ही पार्टी में विरोध हो रहा है.

दुष्यंत के फैसला के जेजेपी में विरोध
दुष्यंत चौटाला ने भारतीय जनता पार्टी को समर्थन देने का फैसला किया तो पार्टी में ही विरोध के स्वर उठने लगे. मुख्यमंत्री मनोहर लाल के सामने जेजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले पूर्व बीएसएफ जवान तेजबहादुर यादव ने पार्टी छोड़ दी है. कई जगहों पर जेजेपी समर्थकों ने पार्टी के झंडे जलाकर विरोध किया है.

ना-ना करते 'प्यार' उन्हीं से कर बैठे, करना था इनकार मगर इकरार कर बैठे !

तेजबहादुर ने पार्टी छोड़ते वक्त क्या कहा ?
तेजबहादुर यादव ने जेजेपी छोड़ने का ऐलान करते हुए कहा कि जननायक जनता पार्टी ने हरियाणा की जनता के साथ धोखा किया है. इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि हरियाणा की जनता के साथ उन्होंने गद्दारी की है. क्योंकि जेजेपी ने बीजेपी को जनता द्वारा नकारे जाने के बाद भी समर्थन दिया. तेजबहादुर यादव ने कहा कि जब निर्दलीय विधायक बीजेपी को समर्थन कर चुके थे तो दुष्यंत चौटाला को उनके पास जाकर समर्थन देने की क्या जरूरत थी. ये पूरे प्रदेश के साथ एक धोखा है. उन्होंने अपने समर्थकों से अपील की कि वो जेजेपी का विरोध करें.

क्या बीजेपी के साथ जाने से दुष्यंत को होगा फायदा ?
दुष्यंत चौटाला ने अगर भारतीय जनता पार्टी की सरकार में शामिल होने का फैसला लिया है तो कुछ सोच समझकर ही लिया होगा. उनकी पार्टी अभी मात्र 10 महीने पहले ही बनी है. जमीन पर पार्टी खड़ी करने के लिए वक्त और पैसा दोनों चाहिए जिसके लिए सरकार में हिस्सेदारी किसी भी पार्टी के लिए संजीवनी साबित हो सकती है. शायद इसीलिए दुष्यंत चौटाला ने निर्दलीयों का समर्थन मिलने के बाद भी खुद जाकर समर्थन की पेशकश की. और इसे फल कहिए या कुछ और आज ही उनके पिता फरलो पर बाहर आ रहे हैं. जो उनके लिए सोने पर सुहागा है. सरकार में शामिल होने के बाद अब दुष्यंत चौटाला को संगठन मजबूत करने के लिए न सिर्फ वक्त मिलेगा बल्कि वित्तीय सहायता भी होगी. जो उन्हें इस वक्त सबसे ज्यादा जरूरी लगी. हालांकि उन्होंने समर्थन देते वक्त कहा कि हम हरियाणा के युवाओं के लिए सरकार को समर्थन दे रहे हैं.

क्या बीजेपी के साथ जाने से दुष्यंत को होगा नुकसान ?
दुष्यंत चौटाला के बीजेपी को समर्थन करने के बाद उनकी पार्टी में ही विरोध शुरू हो गया है. विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि जिस बीजेपी के खिलाफ जनता ने हमें वोट किया. उसी के साथ सरकार बनाकर हम उनके साथ छल कर रहे हैं. दुष्यंत चौटाला को इन सवालों का भविष्य में भी सामना करना पड़ेगा. बार-बार विपक्ष द्वारा उन्हें मौका परस्त कहा जाएगा. जिन सवालों को लेकर अब तक वो दूसरों पर हमलावर होते थे अब उन्हें खुद उन सवालों का सामना करना पड़ेगा.

ये भी पढ़ेंः दिवाली के दिन सीएम पद की शपथ लेंगे मनोहर लाल, डिप्टी सीएम बनेंगे दुष्यंत चौटाला

ये तथ्य भी अहम हैं
जेजेपी को ज्यादातर जाट वर्ग का वोट मिला है जो बीजेपी से नाराज था. यही वजह है कि उन्होंने या तो इनेलो की सीट कब्जाई है या बीजेपी की सीट पर जीत हासिल की है. बीजेपी के कई बड़े नेताओं को जेजेपी के नेताओं ने ही हराया है. जिसका मतलब है कि जेजेपी को ज्यादातर वही वोट मिला है जो बीजेपी से नाराज था.

हरियाणा में छोटी पार्टियों का इतिहास ऐसा रहा है
हरियाणा में समय-समय पर नई पार्टियां बनती रही हैं और उन्हें कामयाबी भी मिलती रही है लेकिन बहुत लंबे वक्त तक वो पार्टियां चल नहीं पाईं. उदाहरण के तौर पर बंसीलाल की हरियाणा विकास पार्टी, राव बीरेंद्र की विशाल हरियाणा पार्टी और हाल ही में कांग्रेस में विलय करने वाली हरियाणा जनहित कांग्रेस पार्टी. याद कीजिए 2009 में हरियाणा में यही स्थिति भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में कांग्रेस को 40 सीटें मिली थीं. और कांग्रेस ने निर्दलीयों के साथ मिलकर सरकार बनाई थी और बाद में हजकां के विधायक कांग्रेस में जा मिले थे जो मामला कोर्ट तक गया था. इसीलिए हरियाणा के इतिहास में भविष्य के इशारे छिपे हैं. और भविष्य क्या होगा ये तो भविष्य ही बताएगा.

चंडीगढ़ः हरियाणा में नई सरकार का फॉर्मूला तय हो गया है. मनोहर लाल खट्टर एक बार फिर मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं और दुष्यंत चौटाला उप मुख्यमंत्री बनेंगे. लेकिन दुष्यंत चौटाला के इस फैसले का उनकी ही पार्टी में विरोध हो रहा है.

दुष्यंत के फैसला के जेजेपी में विरोध
दुष्यंत चौटाला ने भारतीय जनता पार्टी को समर्थन देने का फैसला किया तो पार्टी में ही विरोध के स्वर उठने लगे. मुख्यमंत्री मनोहर लाल के सामने जेजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले पूर्व बीएसएफ जवान तेजबहादुर यादव ने पार्टी छोड़ दी है. कई जगहों पर जेजेपी समर्थकों ने पार्टी के झंडे जलाकर विरोध किया है.

ना-ना करते 'प्यार' उन्हीं से कर बैठे, करना था इनकार मगर इकरार कर बैठे !

तेजबहादुर ने पार्टी छोड़ते वक्त क्या कहा ?
तेजबहादुर यादव ने जेजेपी छोड़ने का ऐलान करते हुए कहा कि जननायक जनता पार्टी ने हरियाणा की जनता के साथ धोखा किया है. इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि हरियाणा की जनता के साथ उन्होंने गद्दारी की है. क्योंकि जेजेपी ने बीजेपी को जनता द्वारा नकारे जाने के बाद भी समर्थन दिया. तेजबहादुर यादव ने कहा कि जब निर्दलीय विधायक बीजेपी को समर्थन कर चुके थे तो दुष्यंत चौटाला को उनके पास जाकर समर्थन देने की क्या जरूरत थी. ये पूरे प्रदेश के साथ एक धोखा है. उन्होंने अपने समर्थकों से अपील की कि वो जेजेपी का विरोध करें.

क्या बीजेपी के साथ जाने से दुष्यंत को होगा फायदा ?
दुष्यंत चौटाला ने अगर भारतीय जनता पार्टी की सरकार में शामिल होने का फैसला लिया है तो कुछ सोच समझकर ही लिया होगा. उनकी पार्टी अभी मात्र 10 महीने पहले ही बनी है. जमीन पर पार्टी खड़ी करने के लिए वक्त और पैसा दोनों चाहिए जिसके लिए सरकार में हिस्सेदारी किसी भी पार्टी के लिए संजीवनी साबित हो सकती है. शायद इसीलिए दुष्यंत चौटाला ने निर्दलीयों का समर्थन मिलने के बाद भी खुद जाकर समर्थन की पेशकश की. और इसे फल कहिए या कुछ और आज ही उनके पिता फरलो पर बाहर आ रहे हैं. जो उनके लिए सोने पर सुहागा है. सरकार में शामिल होने के बाद अब दुष्यंत चौटाला को संगठन मजबूत करने के लिए न सिर्फ वक्त मिलेगा बल्कि वित्तीय सहायता भी होगी. जो उन्हें इस वक्त सबसे ज्यादा जरूरी लगी. हालांकि उन्होंने समर्थन देते वक्त कहा कि हम हरियाणा के युवाओं के लिए सरकार को समर्थन दे रहे हैं.

क्या बीजेपी के साथ जाने से दुष्यंत को होगा नुकसान ?
दुष्यंत चौटाला के बीजेपी को समर्थन करने के बाद उनकी पार्टी में ही विरोध शुरू हो गया है. विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि जिस बीजेपी के खिलाफ जनता ने हमें वोट किया. उसी के साथ सरकार बनाकर हम उनके साथ छल कर रहे हैं. दुष्यंत चौटाला को इन सवालों का भविष्य में भी सामना करना पड़ेगा. बार-बार विपक्ष द्वारा उन्हें मौका परस्त कहा जाएगा. जिन सवालों को लेकर अब तक वो दूसरों पर हमलावर होते थे अब उन्हें खुद उन सवालों का सामना करना पड़ेगा.

ये भी पढ़ेंः दिवाली के दिन सीएम पद की शपथ लेंगे मनोहर लाल, डिप्टी सीएम बनेंगे दुष्यंत चौटाला

ये तथ्य भी अहम हैं
जेजेपी को ज्यादातर जाट वर्ग का वोट मिला है जो बीजेपी से नाराज था. यही वजह है कि उन्होंने या तो इनेलो की सीट कब्जाई है या बीजेपी की सीट पर जीत हासिल की है. बीजेपी के कई बड़े नेताओं को जेजेपी के नेताओं ने ही हराया है. जिसका मतलब है कि जेजेपी को ज्यादातर वही वोट मिला है जो बीजेपी से नाराज था.

हरियाणा में छोटी पार्टियों का इतिहास ऐसा रहा है
हरियाणा में समय-समय पर नई पार्टियां बनती रही हैं और उन्हें कामयाबी भी मिलती रही है लेकिन बहुत लंबे वक्त तक वो पार्टियां चल नहीं पाईं. उदाहरण के तौर पर बंसीलाल की हरियाणा विकास पार्टी, राव बीरेंद्र की विशाल हरियाणा पार्टी और हाल ही में कांग्रेस में विलय करने वाली हरियाणा जनहित कांग्रेस पार्टी. याद कीजिए 2009 में हरियाणा में यही स्थिति भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में कांग्रेस को 40 सीटें मिली थीं. और कांग्रेस ने निर्दलीयों के साथ मिलकर सरकार बनाई थी और बाद में हजकां के विधायक कांग्रेस में जा मिले थे जो मामला कोर्ट तक गया था. इसीलिए हरियाणा के इतिहास में भविष्य के इशारे छिपे हैं. और भविष्य क्या होगा ये तो भविष्य ही बताएगा.

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future of alliance of Jan nayak janta Party and Bharatiya Janta Party

 


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