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'मिनी क्यूबा' में तैयार हो रहे हैं करीब 1 हजार बॉक्सर, ओलंपिक में मेडल जीतना है सपना

इन दिनों भिवानी में बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी को बॉक्सिंग का जुनून सवार है. हजारों की संख्या में बच्चे मुक्केबाजी के गुर सीख रहे हैं.

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Published : May 30, 2019, 12:19 PM IST

Updated : May 30, 2019, 12:55 PM IST

भिवानी में बच्चे सीख रहे मुक्केबाजी का गुर

भिवानी: जिले में इस वक्त चार बॉक्सिंग क्लब चल रहे हैं. जिनमें एक हजार से ज्यादा बच्चे बॉक्सिंग का प्रशिक्षण ले रहे हैं. देश से ओलंपिक के लिए गए चार बॉक्सर भिवानी से संबंध रखते हैं. इन बॉक्सर की सफलता ने बच्चों में बॉक्सिंग का जुनून भर दिया.

भिवानी को मिनी क्यूबा कहा जाता है
भिवानी में बॉक्सिंग की कोचिंग देने वाले विष्णु कोच और उनके एक खिलाड़ी ने बताया कि भिवानी में छोटे बच्चे से लेकर बड़े तक सभी को बॉक्सिंग का भूत सवार है. ये बच्चे जितेंद्र कुमार, अखिल कुमार, विजेंद्र कुमार से प्रभावित हैं.

क्लिक कर वीडियो देखें

उन्होंने बताया कि इस बॉक्सिंग युग में भिवानी को छोटी काशी के साथ मिनी क्यूबा भी कहा जाने लगा है. आज भी हर रोज हजारों खिलाड़ी भिवानी के भीम स्टेडियम में बॉक्सिंग की तैयारी करते हैं. जो आगे चलकर देश का नाम रौशन करना चाहते हैं.

भिवानी: जिले में इस वक्त चार बॉक्सिंग क्लब चल रहे हैं. जिनमें एक हजार से ज्यादा बच्चे बॉक्सिंग का प्रशिक्षण ले रहे हैं. देश से ओलंपिक के लिए गए चार बॉक्सर भिवानी से संबंध रखते हैं. इन बॉक्सर की सफलता ने बच्चों में बॉक्सिंग का जुनून भर दिया.

भिवानी को मिनी क्यूबा कहा जाता है
भिवानी में बॉक्सिंग की कोचिंग देने वाले विष्णु कोच और उनके एक खिलाड़ी ने बताया कि भिवानी में छोटे बच्चे से लेकर बड़े तक सभी को बॉक्सिंग का भूत सवार है. ये बच्चे जितेंद्र कुमार, अखिल कुमार, विजेंद्र कुमार से प्रभावित हैं.

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उन्होंने बताया कि इस बॉक्सिंग युग में भिवानी को छोटी काशी के साथ मिनी क्यूबा भी कहा जाने लगा है. आज भी हर रोज हजारों खिलाड़ी भिवानी के भीम स्टेडियम में बॉक्सिंग की तैयारी करते हैं. जो आगे चलकर देश का नाम रौशन करना चाहते हैं.

Intro:बॉक्िसंग का गढ़ माना जाने वाले क्यूबा के बाद अब भिवानी का नाम लिया जाने लगा है। भिवानी में इस वक्त चार बॉक्िसंग क्लब चल रहे हैं जिनमें एक हजार से ज्यादा बच्चे बॉक्िसंग का प्रशिक्षण ले रहे हैं। देश से ओलंपिक के लिए गए चार बॉक्सर भिवानी से संबंध रखते हैं। कहना न होगा कि इनकी सफलता ने भिवानी में इन दिनों बच्चे-बच्चे में मुक्केबाजी सीखन का जुनून पैदा कर दिया है। भिवानी में बॉक्िसंग के गुर सिखाने वाले केंद्रों में सबसे प्रमुख साई हॉस्टल है। बीजिंग के चारों ओलंपियनों ने यहीं के कोच जगदीश के चेले हैं। इसके अलावा भीम स्टेडियम, वैश्य कॉलेज, हरियाणा बॉक्िसंग अकादमी व कैप्टन हवा सिंह अकादमी में भी उभरते बॉक्सरों की भीड़ देखी जा सकती है। मुक्केबाजी में भारत का नेतृत्व कर रहे भिवानी के चार मुक्केबाजों को जिस कोच ने तैयार किया है, खेल फेडरेशन ने उसे बीजिंग भेजना मुनासिब नहीं समझा। लोगों ने महसूस किया कि अगर कोच मौके पर साथ होते तो परिणाम कुछ और भी हो सकता था। उधर हरियाणा रोडवेज में चालक बिजेंद्र के पिता महिपाल बताते हैं कि उन्होंने बेटे को इस मुकाम तक पहुंचान के लिए अपनी बीस साल की नौकरी में से पंद्रह साल ओवर टाइम किया है। नौकरी के अलावा एक एकड़ जमीन में खेती और पशुपालन ही आय का जरिया हैं। एक वक्त आया जब जीतेंद्र परिवार और कॅरियर में एक को ही चुन सकता था। 2004 में पिता को ब्रेन ट्यूमर हो गया। चूंकि, भाई सुरेंद्र बाहर नौकरी कर रहा था इसलिए पिता की देखभाल के लिए एक का घर रहना जरूरी था। जीतेंद्र को कॉमनवेल्थ खेलों के लिए मेलबर्न जाना था। ऐसे में सुरेंद्र ने नौकरी से इस्तीफा दे पिता को संभाला।


Body:भिवानी में बॉक्सिंग की कोचिंग देने वाले विष्णु कोच व उनके एक खिलाड़ी ने बताया कि भिवानी में छोटे बच्चे से लेकर बड़े तक बॉक्सिंग का भूत सवार है इसके चलते यहां से यानी भिवानी की बॉक्सिंग अकेडमी होने इंटरनेशनल बॉक्सर को जन्म दिया है और ओलंपिक जैसे खेलों में मेडल लाने का भी काम किया है इस तरह से प्रचलित बॉक्सिंग युग में भिवानी को छोटी काशी के साथ मिनी कूपर भी कहा जाने लगा आज भी हर रोज हजारों खिलाड़ी भिवानी के भीम स्टेडियम में बॉक्सिंग की तैयारी करते हैं और आगे भी भारत के लिए सम्मान का काम करते रहेंगे ।


Conclusion:
Last Updated : May 30, 2019, 12:55 PM IST
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