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इन तीन तरह के बाबाओं में से किसे चुनेंगे आप ? कुछ की करतूत तो तोड़ देगी आपका विश्वास - बाबाओं की दुनिया

महंत नरेंद्र गिरि की सुसाइड केस के बाद समाज में बाबाओं और साधू, संतों को लेकर बहस छिड़ गई है. इस मामले में कई ऐसी बातें सामने आ रही है जो एक बार फिर कई लोगों के विश्वास को चोट पहुंचा रही है. ऐसे ही मामले बाबाओं में लोगों का विश्वास कम करते हैं. वैसे ये पहली बार नहीं हुआ है इससे पहले भी ढोंगी बाबाओं की एक लंबी फेहरिस्त है जिनके आडंबर ने लोगों को छला है. लेकिन कुछ ऐसे बाबा भी हैं जो मॉडर्न दुनिया के साथ कदमताल मिला रहे हैं. पढ़िये बाबाओं की कैटेगरी के बारे में और आप इनमें से किसको चुनेंगे ?

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Published : Sep 26, 2021, 8:30 PM IST

हैदराबाद: अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि सुसाइड केस की गुत्थियां सुलझाने का काम सीबीआई कर रही है. लेकिन नरेंद्र गिरी की मौत के बाद जो घिनौने राज सामने आ रहे हैं, वो एक बार फिर से आस्था और विश्वास पर गहरी चोट दे रहे हैं. नरेंद्र गिरि की मौत के बाद उनके तथाकथित राज़ हों या शिष्य आनंद गिरी की अय्याशी वाली तस्वीरें, इस सबने एक बार फिर धर्म, आध्यात्म और सत्संग की आड़ में ऐसे तथा कथित बाबाओं के अधर्म, जुर्म और काली घिनौनी करतूतों पर फिर से बहस शुरू कर दी है.

ये देश साधु संतों और महात्माओं का देश रहा है लेकिन बीते सालों में कई ऐसे चेहरे भी बेपर्दा हुए हैं जो साधु का चोला ओढ़ अय्याश और जुर्म के पर्याय थे. हालांकि इन्हीं साधु संतों में कुछ ऐसे भी हैं जो आज के मॉर्डन जमाने से ताल मिलाकर ज्ञान और आध्यात्म की ज्योत को जलाए हुए हैं. ऐसे तीन तरह के बाबाओं के बारे में आपको बताएंगे, जिनमें से किसी के बारे में जानकर आपका विश्वास घायल होगा तो कोई उस विश्वास की डोर को आज भी थामे हुए हैं. बिल्कुल आम भाषा में हम इन साधु संतों और बाबाओं को तीन अलग-अलग वर्गों में बांटते हैं.

बाबाओं में आस्था कम होने की कई वजह हैं ?
बाबाओं में आस्था कम होने की कई वजह हैं ?

बाबाओं की कैटेगरी

1) साधु-संन्यासी बाबा - बाबाओं की कैटेगरी में इन्हें सर्वश्रेष्ठ कहा जा सकता है. कहा जाता है कि परिवार समेत हर मोह, सुख को त्यागकर ये संन्यासी जंगलों, गुफाओं और पहाड़ों पर चले जाते हैं. कहते हैं कि ये साधु वहां तपस्या करते हैं, सिद्धि प्राप्त करते हैं. कुंभ या अर्धकुंभ जैसे धार्मिक आयोजनों में आने वाले कई साधु संन्यासी ऐसे होते हैं जो सिर्फ और सिर्फ ऐसे ही धार्मिक आयोजनों में नजर आते हैं. ऐसे आयोजन से पहले और बाद ये कहां चले जाते हैं, कोई इसकी सटीक जानकारी नहीं दे सकता. इनमें से कुछ साधु होते हैं जो भिक्षा के सहारे अपना जीवन गुजारते हैं.

ऐसे अधिकतर साधुओं के जीवन का एक बड़ा हिस्सा समाज या लोगों से दूर एकांतवास में गुजरता है. परिवार, पैसा सब कुछ छोड़कर वो संन्यास को चुनते हैं और संन्यासी कहलाते हैं. उन्हें शिक्षा, धन, बल, मोह जैसी चीजों से कुछ लेना-देना नहीं होता.

समाज, परिवार, मोह सब त्यागने वाले होते हैं संन्यासी
समाज, परिवार, मोह सब त्यागने वाले होते हैं संन्यासी

2) मठाधीश बाबा- जहां जंगल और पहाड़ों में रहने वाले साधु-संन्यासी ज्यादातर लोगों और समाज से दूर रहते हैं. वहीं मठाधीश बाबा हमारे और आपके बीच रहते हैं. कई संगठन और मठ भी आज साधु, संन्यासियों और बाबाओं की देखरेख में चल रहे हैं. इनके हजारों लाखों भक्त होते हैं, जिन्हें ये आध्यात्म और धर्म का ज्ञान देते हैं. बड़े-बड़े पांडाल लगाकर कथा वाचन या सत्संग करना भी इनकी कार्यशैली का हिस्सा होता है. कुछ बाबा भक्तों की भीड़ के सहारे अपना नाम और बिजनेस भी चमकाते हैं.

ऐसे ज्यादातर बाबा किसी संगठन या मठ विशेष के पद पर तैनात होते हैं. हो सकता है कि इस तरह का संगठन या पद उन्होंने खुद ही सृजित किया हो. ऐसे कई बाबा होते हैं जिनका शिक्षा से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं लेकिन वो मठाधीश बने बैठे होते हैं. साधु संन्यासियों से अलग ऐसे बाबाओं में कई ऐसे उदाहरण भी देखने को मिलते हैं जिन्हें धन, बल, मोह और हर तरह के सांसारिक सुखों की लालसा होती है. भक्तों के सहारे कई बाबा धन, बल और ख्याति के चरम पर पहुंच जाते हैं. जहां सियासत से लेकर खेल और फिल्म समेत हर क्षेत्र के लोग इनके आगे नतमस्तक होते हैं. लेकिन इसी धन, बल और अपने ढोंग की आड़ में कुछ बाबा जुर्म की अंधेरी राहों तक भी पहुंच जाते हैं.

सिर्फ कुंभ स्नान जैसे आयोजनों में ही दिखते हैं कुछ साधु संन्यासी
सिर्फ कुंभ स्नान जैसे आयोजनों में ही दिखते हैं कुछ साधु संन्यासी

3) ज्ञानी बाबा- ये नए जमाने के बाबाओं की नई कैटेगरी है. जो धर्म और आध्यात्म की बात मॉर्डन यानि आज के तरीके से करते हैं. आज की सोच के साथ चलने के हिमायती ऐसे बाबा आध्यात्म के साथ शिक्षा, तकनीक और समसामयिक मुद्दों की बात करते हैं. इसी वजह से ऐसे बाबा आज के युवाओं की पहली पसंद हैं. ऐसे बाबा किसी स्कॉलर की तरह भाषण देते हैं और इनके भक्त देश ही नहीं विदेशों में भी हैं.

इस तरह के बाबा पढ़े-लिखे होते हैं और अंग्रेजी तक बोलते हैं. दुनिया के कई देशों में प्रवचन और ज्ञान देते हैं. समाज के निर्माण में भी ये अपनी भूमिका निभाते हैं.

ऐसे बाबाओं की वजह से टूटता है लोगों का विश्वास ?

आसाराम- आशुमल सिरुमलानी हरपलानी अपने भक्तों के बीच आसाराम बापू के नाम से जाना जाता था. देश और दुनिया में उसके 400 से ज्यादा आश्रम थे. साल 2018 में नाबालिग से दुष्कर्म, हत्या, अवैध कब्जे जैसे कई आरोप लगे, जिसके बाद कोर्ट ने रेप के मामले में दोषी करार दिया और उम्रकैद की सजा सुनाई.

नारायण साईं- ये आसाराम का बेटा है जो अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए लोगों को आध्यात्म के नाम पर बेवकूफ बनाना था. जब कानून के हाथ इन दोनों की गर्दन तक पहुंचे तो इनके काले चिट्ठे बेपर्दा हो गए. रेप के मामले में अपने पिता के साथ ये भी उम्रकैद की सजा भुगत रहा है. गुजरात पुलिस के मुताबिक नारायण साईं के पास करीब 5,000 करोड़ की संपत्ति थी.

राम रहीम- लोगों को आस्था के नाम पर लूटने वालों में राम रहीम का नाम भी शुमार है. हरियाणा के सिरसा में डेरा सच्चा सौदा के नाम से राम रहीम ने एक अलग ही दुनिया बसा रखी थी. राम रहीम ने फिल्में भी बनाई जिसमें वो खुद हीरो बना था. राम रहीम पर रेप से लेकर हत्या समेत कई मामले दर्ज हुई. कोर्ट ने जब उसे दोषी करार दिया तो पंचकूला में हुई हिंसा में भी कई लोग मारे गए. इस हिंसा में भी राम रहीम और उसके करीबियों का हाथ माना गया. वो फिलहाल रेप और हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहा है.

ढोंगी बाबाओं की टोली जिन्होंने आस्था से किया खिलवाड़
ढोंगी बाबाओं की टोली जिन्होंने आस्था से किया खिलवाड़

निर्मल बाबा- निर्मलजीत सिंह नाम का ये शख्स निर्मल बाबा बनकर टीवी पर आता था. इसके कार्यक्रम में जाने वाले लोगों को बकायदा हजारों रुपये की टिकट खरीदनी पड़ती थी. ये अपने कार्यक्रम में आए लोगों को दुख हरने का दावा करते थे. दुखों के निवारण का इलाज के लिए ये जो नुस्खे बताता था उसे सुनकर किसी की भी हंसी छूट जाए. ये कभी भक्तों को समोसे के साथ हरी चटनी खाने की सलाह देता तो कभी महंगा पर्स खरीदने की और कभी फटी हुई जेब सिलने की सलाह देता था. निर्मल बाबा का ये कार्यक्रम रोजाना प्रसारित होता था.

राधे मां- खुद को राधे मां के रूप में प्रचारित करने वाली इस महिला का नाम सुखविंदर कौर है. खुद को दुर्गा का अवतार बताने वाली राधे मां के भक्तों की भी अच्छी खासी संख्या हैं. इनमें कुछ बॉलवुड हस्तियां भी शामिल हैं. भक्तों को दर्शन देने से लेकर चौकी का आयोजन करने तक के लिए भक्तों से मोटी रकम वसूली जाती है. मिनी स्कर्ट और ब्रांडेड कपडों में नाचते हुए उनकी कई तस्वीरें सोशल मीडिया पर मौजूद हैं. एक्ट्रेस डॉली बिंद्रा और एक बिजनेसमैन ने उसपर जान से मारने के आरोप भी लगाए थे.

ऐसे कुछ स्वयंभू बाबा होते हैं जो ढोंग का लबादा ओढ़कर लोगों को गुमराह करते हैं. इनका मकसद सिर्फ और सिर्फ धन, बल अर्जित कर अय्याशी करना है. रेप से लेकर कत्ल और संपत्ति कब्जाने जैसे कई संगीन जुर्म करने वाले ऐसे बाबाओं के कारनामे उन भक्तों के विश्वास को तोड़ती हैं जो तन, मन, धन से इनकी शरण में पहुंचते हैं लेकिन आध्यात्म और सत्संग की आड़ में ऐसे बाबा जुर्म की अलग ही कहानी लिखते हैं.

ऐसे ढोंगी बाबाओं की फेहरिस्त बहुत लंबी है. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने ही साल 2017 में 14 फर्जी बाबाओं की सूची जारी की थी. इसमें आसाराम, राधे मां, सचिदानंद गिरी उर्फ सचिन दत्ता, गुरमीत राम रहीम, ओम बाबा, निर्मल बाबा, इच्छाधारी भीमानंद, स्वामी असीमानंद, ओम नम: शिवाय बाबा, नारायण साईँ, रामपाल, खुशि मुनि, बृहस्पति गिरि और मलकान गिरि का नाम शामिल था. अखाड़ा परिषद ने संत की उपधि देने के लिए एक प्रक्रिया तय करने का फैसला भी लिया था. ये वो बाबा होते हैं जिन्होंने कितनी पढ़ाई की है. या पढ़े भी हैं या नहीं, ये कोई नहीं जानता.

आज अखाड़ा परिषद ही सवालों में हैं

कभी बाबाओं को संत देने का सर्टिफिकेट देने और छीनने वाला अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद आज खुद सवालों में है. परिषद के अध्यक्ष रहे महंत नरेंद्र गिरि ने खुदकुशी के बाद उनकी हत्या की आशंका जताई जा रही है. सीबीआई मामले की जांच कर रही है. सुसाइड नोट में जिस शिष्य का नाम नरेंद्र गिरि ने लिखा है उस आनंद गिरि की ठाठ-बाट और अय्याशी की तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही हैं, खुद महंत नरेंद्र गिरि के तथाकथित घिनौने राज की सीडी की बात भी सामने आ रही है.

महंत नरेंद्र गिरि (बाएं) ने सुसाइड नोट में आनंद गिरि का लिखा है नाम
महंत नरेंद्र गिरि (बाएं) ने सुसाइड नोट में आनंद गिरि का लिखा है नाम

नरेंद्र गिरि के सुसाइड नोट मिलने के बाद सवाल उनके पढ़े लिखे होने पर भी उठ रहे हैं. कोई उन्हें अनपढ़ बता रहा है तो कोई 10वीं फेल. उनके शिष्यों या जिन्हें ऐसे धार्मिक संगठनों के बड़े-बड़े पदों पर बिठाया जाता है या जिन्हें उपाधियां दी जाती है. वो भी अधिक पढ़े-लिके नहीं होते. दरअसल शिक्षा के क्षेत्र में असफल होने पर कुछ लोग धर्म का लबादा ओढ़कर इस क्षेत्र में आते हैं और बाबा बनकर ढोंग के सहारे नाम और शोहरत कमाते हैं और अपनी इच्छाएं पूरी करते हैं. और यही इच्छाएं एक वक्त बाद जुर्म की अंधेरी गलियों में चली जाती हैं.

पहले भी विवादों में रहा है अखाड़ा परिषद

अखाड़ों को मान्यता देने को लेकर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद पर कई बार सवाल उठाए गए हैं. अखाड़ों में बढ़ते पैसे के वर्चस्व की बात भी सामने आती रही है. अखाड़ों से जुड़े कुछ लोगों की मानें तो संन्यासी संप्रदाय से जुड़े अखाड़ों में महामंडलेश्वर पद के लिए लाखों और करोड़ों रुपये तक खर्च किए जाते हैं.

जब सचिन दत्ता को बनाया था महामंडलेश्वर
जब सचिन दत्ता को बनाया था महामंडलेश्वर

साल 2015 में नोएडा के एक शराब कारोबारी सचिन दत्ता को निरंजनी अखाड़े का महामंडलेश्वर घोषित कर दिया गया था. सचिन दत्ता का नाम रखा गया सच्चिदानंद गिरी. जब सचिन दत्ता के कारनामे का खुलासा हुआ तो महामंडलेश्वर की पदवी छीन ली गई. सचिन दत्ता बियर बार और डिस्को चलाने के साथ रियल एस्टेट का बिजनेस करता था. इसी वजह से सचिन दत्ता 'बियर बाबा' और 'बिल्डर बाबा' के नाम से भी मशहूर था और उसपर फर्जीवाड़े और धोखाधड़ी का केस भी दर्ज था.

आजकल के मॉडर्न बाबा दिखा रहे हैं नई राह

श्री श्री रविशंकर- आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन के संस्थापक श्री श्री रविशंकर आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. पद्म विभूषण श्री श्री रविशंकर साइंस ग्रेजुएट हैं और दुनिया के कई देशों में जाकर लोगों को आर्ट ऑफ लिविंग यानि जीने की कला, आध्यात्म और योग का ज्ञान दे चुके हैं.

जग्गी वासुदेव- पद्म विभूषण जग्गी वासुदेव एक योग गुरु और लेखक हैं. ईशा फाउंडेशन की नींव रखने वाले जग्गी वासुदेव अंग्रेजी में ग्रेजुएट हैं. उनकी संस्था आध्यात्मक से लेकर शिक्षा और पर्यावरण के क्षेत्र में काम करती है. साल 2017 में नदियों को बचाने के लिए जागरुकता अभियान चलाया था और देशभर में यात्रा निकाली थी. कई किताबें लिख चुके जग्गी वासुदेव ब्रिटिश संसद से लेकर वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम समेत कई देशों में आध्यात्मक से लेकर योग और शिक्षा से लेकर पर्यावरण संबंध में ज्ञान बांट चुके हैं.

गौर गोपाल दास- इस्कॉन के सदस्य गौर गोपाल दास एक मोटिवेशनल स्पीकर हैं. इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिग्री और डिप्लोमा के बाद इन्हें अमेरिका की मशहूर आईटी कंपनी एचपी में नौकरी मिल गई लेकिन इन्होंने साल 1996 में नौकरी छोड़कर इस्कॉन को ज्वाइन कर लिया. साल 2018 में इन्होंने ए किताब लिखी Life's Amazing Secrets, इन्हें ओडिशा के कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल टैक्नॉलजी से डॉक्ट्रेट की मानद उपाधि भी मिली है. वो पिछले दो दशक से बारत से लेकर दुनिया के कई देशों के कॉलेजों में मोटिवेशनल स्पीच दे चुके हैं. इन्फोसिस, बार्कलेज, बैंक ऑफ अमेरिका, फोर्ड जैसी अंतरराष्ट्रीय कंपनियां इन्हें अपने कर्मचारियों के मार्गदर्शन और मोटिवेशन के लिए आमंत्रित करती है.

मॉडर्न युग के बाबा जग्गी वासुदेव (बाएं) गौर गोपाल दास (बीच में) श्री श्री रवि शंकर (दाएं)
मॉडर्न युग के बाबा जग्गी वासुदेव (बाएं) गौर गोपाल दास (बीच में) श्री श्री रवि शंकर (दाएं)

इसके अलावा महर्षि अरविंद, जे कृष्णमूर्ति और चिन्मयानंद स्वामी जैसे कुछ और भी शख्सियतें इस देश में हुई जो भले आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनका दिया ज्ञान आज भी लोगों को राह दिखा रहा है. उन्होंने कभी अंधभक्ति या धर्म का अधूरा ज्ञान नहीं दिया बल्कि इनके प्रवचन तर्कसंगत और प्रेरणादायी होते थे. ये वो लोग थे जिन्होंने आज से कई दशक पहले देख लिया था कि धर्म के नाम पर भ्रांतियां फैलाई जा रही है और फिर इन्होंने धर्म से जुड़ी भ्रांतियों और अंधविश्वासों को दूर करने के लिए जो लौ जलाई वो आगे चलकर मशाल बनी.

इस तरह के बाबाओं की संख्या बहुत कम है लेकिन ये पढ़े-लिखे बाबा आध्यात्म और धर्म के साथ-साथ मौजूदा परिपेक्ष्य में अपने विचार रखने के अलावा अंधविश्वास और ढोंग से भी दूर रहने की सलाह देते हैं.

ये भी पढ़ें: "पिछले 4 सालों में 42 साधु-संतों की हत्या, अब तक किसी को नहीं मिला न्याय"

हैदराबाद: अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि सुसाइड केस की गुत्थियां सुलझाने का काम सीबीआई कर रही है. लेकिन नरेंद्र गिरी की मौत के बाद जो घिनौने राज सामने आ रहे हैं, वो एक बार फिर से आस्था और विश्वास पर गहरी चोट दे रहे हैं. नरेंद्र गिरि की मौत के बाद उनके तथाकथित राज़ हों या शिष्य आनंद गिरी की अय्याशी वाली तस्वीरें, इस सबने एक बार फिर धर्म, आध्यात्म और सत्संग की आड़ में ऐसे तथा कथित बाबाओं के अधर्म, जुर्म और काली घिनौनी करतूतों पर फिर से बहस शुरू कर दी है.

ये देश साधु संतों और महात्माओं का देश रहा है लेकिन बीते सालों में कई ऐसे चेहरे भी बेपर्दा हुए हैं जो साधु का चोला ओढ़ अय्याश और जुर्म के पर्याय थे. हालांकि इन्हीं साधु संतों में कुछ ऐसे भी हैं जो आज के मॉर्डन जमाने से ताल मिलाकर ज्ञान और आध्यात्म की ज्योत को जलाए हुए हैं. ऐसे तीन तरह के बाबाओं के बारे में आपको बताएंगे, जिनमें से किसी के बारे में जानकर आपका विश्वास घायल होगा तो कोई उस विश्वास की डोर को आज भी थामे हुए हैं. बिल्कुल आम भाषा में हम इन साधु संतों और बाबाओं को तीन अलग-अलग वर्गों में बांटते हैं.

बाबाओं में आस्था कम होने की कई वजह हैं ?
बाबाओं में आस्था कम होने की कई वजह हैं ?

बाबाओं की कैटेगरी

1) साधु-संन्यासी बाबा - बाबाओं की कैटेगरी में इन्हें सर्वश्रेष्ठ कहा जा सकता है. कहा जाता है कि परिवार समेत हर मोह, सुख को त्यागकर ये संन्यासी जंगलों, गुफाओं और पहाड़ों पर चले जाते हैं. कहते हैं कि ये साधु वहां तपस्या करते हैं, सिद्धि प्राप्त करते हैं. कुंभ या अर्धकुंभ जैसे धार्मिक आयोजनों में आने वाले कई साधु संन्यासी ऐसे होते हैं जो सिर्फ और सिर्फ ऐसे ही धार्मिक आयोजनों में नजर आते हैं. ऐसे आयोजन से पहले और बाद ये कहां चले जाते हैं, कोई इसकी सटीक जानकारी नहीं दे सकता. इनमें से कुछ साधु होते हैं जो भिक्षा के सहारे अपना जीवन गुजारते हैं.

ऐसे अधिकतर साधुओं के जीवन का एक बड़ा हिस्सा समाज या लोगों से दूर एकांतवास में गुजरता है. परिवार, पैसा सब कुछ छोड़कर वो संन्यास को चुनते हैं और संन्यासी कहलाते हैं. उन्हें शिक्षा, धन, बल, मोह जैसी चीजों से कुछ लेना-देना नहीं होता.

समाज, परिवार, मोह सब त्यागने वाले होते हैं संन्यासी
समाज, परिवार, मोह सब त्यागने वाले होते हैं संन्यासी

2) मठाधीश बाबा- जहां जंगल और पहाड़ों में रहने वाले साधु-संन्यासी ज्यादातर लोगों और समाज से दूर रहते हैं. वहीं मठाधीश बाबा हमारे और आपके बीच रहते हैं. कई संगठन और मठ भी आज साधु, संन्यासियों और बाबाओं की देखरेख में चल रहे हैं. इनके हजारों लाखों भक्त होते हैं, जिन्हें ये आध्यात्म और धर्म का ज्ञान देते हैं. बड़े-बड़े पांडाल लगाकर कथा वाचन या सत्संग करना भी इनकी कार्यशैली का हिस्सा होता है. कुछ बाबा भक्तों की भीड़ के सहारे अपना नाम और बिजनेस भी चमकाते हैं.

ऐसे ज्यादातर बाबा किसी संगठन या मठ विशेष के पद पर तैनात होते हैं. हो सकता है कि इस तरह का संगठन या पद उन्होंने खुद ही सृजित किया हो. ऐसे कई बाबा होते हैं जिनका शिक्षा से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं लेकिन वो मठाधीश बने बैठे होते हैं. साधु संन्यासियों से अलग ऐसे बाबाओं में कई ऐसे उदाहरण भी देखने को मिलते हैं जिन्हें धन, बल, मोह और हर तरह के सांसारिक सुखों की लालसा होती है. भक्तों के सहारे कई बाबा धन, बल और ख्याति के चरम पर पहुंच जाते हैं. जहां सियासत से लेकर खेल और फिल्म समेत हर क्षेत्र के लोग इनके आगे नतमस्तक होते हैं. लेकिन इसी धन, बल और अपने ढोंग की आड़ में कुछ बाबा जुर्म की अंधेरी राहों तक भी पहुंच जाते हैं.

सिर्फ कुंभ स्नान जैसे आयोजनों में ही दिखते हैं कुछ साधु संन्यासी
सिर्फ कुंभ स्नान जैसे आयोजनों में ही दिखते हैं कुछ साधु संन्यासी

3) ज्ञानी बाबा- ये नए जमाने के बाबाओं की नई कैटेगरी है. जो धर्म और आध्यात्म की बात मॉर्डन यानि आज के तरीके से करते हैं. आज की सोच के साथ चलने के हिमायती ऐसे बाबा आध्यात्म के साथ शिक्षा, तकनीक और समसामयिक मुद्दों की बात करते हैं. इसी वजह से ऐसे बाबा आज के युवाओं की पहली पसंद हैं. ऐसे बाबा किसी स्कॉलर की तरह भाषण देते हैं और इनके भक्त देश ही नहीं विदेशों में भी हैं.

इस तरह के बाबा पढ़े-लिखे होते हैं और अंग्रेजी तक बोलते हैं. दुनिया के कई देशों में प्रवचन और ज्ञान देते हैं. समाज के निर्माण में भी ये अपनी भूमिका निभाते हैं.

ऐसे बाबाओं की वजह से टूटता है लोगों का विश्वास ?

आसाराम- आशुमल सिरुमलानी हरपलानी अपने भक्तों के बीच आसाराम बापू के नाम से जाना जाता था. देश और दुनिया में उसके 400 से ज्यादा आश्रम थे. साल 2018 में नाबालिग से दुष्कर्म, हत्या, अवैध कब्जे जैसे कई आरोप लगे, जिसके बाद कोर्ट ने रेप के मामले में दोषी करार दिया और उम्रकैद की सजा सुनाई.

नारायण साईं- ये आसाराम का बेटा है जो अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए लोगों को आध्यात्म के नाम पर बेवकूफ बनाना था. जब कानून के हाथ इन दोनों की गर्दन तक पहुंचे तो इनके काले चिट्ठे बेपर्दा हो गए. रेप के मामले में अपने पिता के साथ ये भी उम्रकैद की सजा भुगत रहा है. गुजरात पुलिस के मुताबिक नारायण साईं के पास करीब 5,000 करोड़ की संपत्ति थी.

राम रहीम- लोगों को आस्था के नाम पर लूटने वालों में राम रहीम का नाम भी शुमार है. हरियाणा के सिरसा में डेरा सच्चा सौदा के नाम से राम रहीम ने एक अलग ही दुनिया बसा रखी थी. राम रहीम ने फिल्में भी बनाई जिसमें वो खुद हीरो बना था. राम रहीम पर रेप से लेकर हत्या समेत कई मामले दर्ज हुई. कोर्ट ने जब उसे दोषी करार दिया तो पंचकूला में हुई हिंसा में भी कई लोग मारे गए. इस हिंसा में भी राम रहीम और उसके करीबियों का हाथ माना गया. वो फिलहाल रेप और हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहा है.

ढोंगी बाबाओं की टोली जिन्होंने आस्था से किया खिलवाड़
ढोंगी बाबाओं की टोली जिन्होंने आस्था से किया खिलवाड़

निर्मल बाबा- निर्मलजीत सिंह नाम का ये शख्स निर्मल बाबा बनकर टीवी पर आता था. इसके कार्यक्रम में जाने वाले लोगों को बकायदा हजारों रुपये की टिकट खरीदनी पड़ती थी. ये अपने कार्यक्रम में आए लोगों को दुख हरने का दावा करते थे. दुखों के निवारण का इलाज के लिए ये जो नुस्खे बताता था उसे सुनकर किसी की भी हंसी छूट जाए. ये कभी भक्तों को समोसे के साथ हरी चटनी खाने की सलाह देता तो कभी महंगा पर्स खरीदने की और कभी फटी हुई जेब सिलने की सलाह देता था. निर्मल बाबा का ये कार्यक्रम रोजाना प्रसारित होता था.

राधे मां- खुद को राधे मां के रूप में प्रचारित करने वाली इस महिला का नाम सुखविंदर कौर है. खुद को दुर्गा का अवतार बताने वाली राधे मां के भक्तों की भी अच्छी खासी संख्या हैं. इनमें कुछ बॉलवुड हस्तियां भी शामिल हैं. भक्तों को दर्शन देने से लेकर चौकी का आयोजन करने तक के लिए भक्तों से मोटी रकम वसूली जाती है. मिनी स्कर्ट और ब्रांडेड कपडों में नाचते हुए उनकी कई तस्वीरें सोशल मीडिया पर मौजूद हैं. एक्ट्रेस डॉली बिंद्रा और एक बिजनेसमैन ने उसपर जान से मारने के आरोप भी लगाए थे.

ऐसे कुछ स्वयंभू बाबा होते हैं जो ढोंग का लबादा ओढ़कर लोगों को गुमराह करते हैं. इनका मकसद सिर्फ और सिर्फ धन, बल अर्जित कर अय्याशी करना है. रेप से लेकर कत्ल और संपत्ति कब्जाने जैसे कई संगीन जुर्म करने वाले ऐसे बाबाओं के कारनामे उन भक्तों के विश्वास को तोड़ती हैं जो तन, मन, धन से इनकी शरण में पहुंचते हैं लेकिन आध्यात्म और सत्संग की आड़ में ऐसे बाबा जुर्म की अलग ही कहानी लिखते हैं.

ऐसे ढोंगी बाबाओं की फेहरिस्त बहुत लंबी है. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने ही साल 2017 में 14 फर्जी बाबाओं की सूची जारी की थी. इसमें आसाराम, राधे मां, सचिदानंद गिरी उर्फ सचिन दत्ता, गुरमीत राम रहीम, ओम बाबा, निर्मल बाबा, इच्छाधारी भीमानंद, स्वामी असीमानंद, ओम नम: शिवाय बाबा, नारायण साईँ, रामपाल, खुशि मुनि, बृहस्पति गिरि और मलकान गिरि का नाम शामिल था. अखाड़ा परिषद ने संत की उपधि देने के लिए एक प्रक्रिया तय करने का फैसला भी लिया था. ये वो बाबा होते हैं जिन्होंने कितनी पढ़ाई की है. या पढ़े भी हैं या नहीं, ये कोई नहीं जानता.

आज अखाड़ा परिषद ही सवालों में हैं

कभी बाबाओं को संत देने का सर्टिफिकेट देने और छीनने वाला अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद आज खुद सवालों में है. परिषद के अध्यक्ष रहे महंत नरेंद्र गिरि ने खुदकुशी के बाद उनकी हत्या की आशंका जताई जा रही है. सीबीआई मामले की जांच कर रही है. सुसाइड नोट में जिस शिष्य का नाम नरेंद्र गिरि ने लिखा है उस आनंद गिरि की ठाठ-बाट और अय्याशी की तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही हैं, खुद महंत नरेंद्र गिरि के तथाकथित घिनौने राज की सीडी की बात भी सामने आ रही है.

महंत नरेंद्र गिरि (बाएं) ने सुसाइड नोट में आनंद गिरि का लिखा है नाम
महंत नरेंद्र गिरि (बाएं) ने सुसाइड नोट में आनंद गिरि का लिखा है नाम

नरेंद्र गिरि के सुसाइड नोट मिलने के बाद सवाल उनके पढ़े लिखे होने पर भी उठ रहे हैं. कोई उन्हें अनपढ़ बता रहा है तो कोई 10वीं फेल. उनके शिष्यों या जिन्हें ऐसे धार्मिक संगठनों के बड़े-बड़े पदों पर बिठाया जाता है या जिन्हें उपाधियां दी जाती है. वो भी अधिक पढ़े-लिके नहीं होते. दरअसल शिक्षा के क्षेत्र में असफल होने पर कुछ लोग धर्म का लबादा ओढ़कर इस क्षेत्र में आते हैं और बाबा बनकर ढोंग के सहारे नाम और शोहरत कमाते हैं और अपनी इच्छाएं पूरी करते हैं. और यही इच्छाएं एक वक्त बाद जुर्म की अंधेरी गलियों में चली जाती हैं.

पहले भी विवादों में रहा है अखाड़ा परिषद

अखाड़ों को मान्यता देने को लेकर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद पर कई बार सवाल उठाए गए हैं. अखाड़ों में बढ़ते पैसे के वर्चस्व की बात भी सामने आती रही है. अखाड़ों से जुड़े कुछ लोगों की मानें तो संन्यासी संप्रदाय से जुड़े अखाड़ों में महामंडलेश्वर पद के लिए लाखों और करोड़ों रुपये तक खर्च किए जाते हैं.

जब सचिन दत्ता को बनाया था महामंडलेश्वर
जब सचिन दत्ता को बनाया था महामंडलेश्वर

साल 2015 में नोएडा के एक शराब कारोबारी सचिन दत्ता को निरंजनी अखाड़े का महामंडलेश्वर घोषित कर दिया गया था. सचिन दत्ता का नाम रखा गया सच्चिदानंद गिरी. जब सचिन दत्ता के कारनामे का खुलासा हुआ तो महामंडलेश्वर की पदवी छीन ली गई. सचिन दत्ता बियर बार और डिस्को चलाने के साथ रियल एस्टेट का बिजनेस करता था. इसी वजह से सचिन दत्ता 'बियर बाबा' और 'बिल्डर बाबा' के नाम से भी मशहूर था और उसपर फर्जीवाड़े और धोखाधड़ी का केस भी दर्ज था.

आजकल के मॉडर्न बाबा दिखा रहे हैं नई राह

श्री श्री रविशंकर- आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन के संस्थापक श्री श्री रविशंकर आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. पद्म विभूषण श्री श्री रविशंकर साइंस ग्रेजुएट हैं और दुनिया के कई देशों में जाकर लोगों को आर्ट ऑफ लिविंग यानि जीने की कला, आध्यात्म और योग का ज्ञान दे चुके हैं.

जग्गी वासुदेव- पद्म विभूषण जग्गी वासुदेव एक योग गुरु और लेखक हैं. ईशा फाउंडेशन की नींव रखने वाले जग्गी वासुदेव अंग्रेजी में ग्रेजुएट हैं. उनकी संस्था आध्यात्मक से लेकर शिक्षा और पर्यावरण के क्षेत्र में काम करती है. साल 2017 में नदियों को बचाने के लिए जागरुकता अभियान चलाया था और देशभर में यात्रा निकाली थी. कई किताबें लिख चुके जग्गी वासुदेव ब्रिटिश संसद से लेकर वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम समेत कई देशों में आध्यात्मक से लेकर योग और शिक्षा से लेकर पर्यावरण संबंध में ज्ञान बांट चुके हैं.

गौर गोपाल दास- इस्कॉन के सदस्य गौर गोपाल दास एक मोटिवेशनल स्पीकर हैं. इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिग्री और डिप्लोमा के बाद इन्हें अमेरिका की मशहूर आईटी कंपनी एचपी में नौकरी मिल गई लेकिन इन्होंने साल 1996 में नौकरी छोड़कर इस्कॉन को ज्वाइन कर लिया. साल 2018 में इन्होंने ए किताब लिखी Life's Amazing Secrets, इन्हें ओडिशा के कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल टैक्नॉलजी से डॉक्ट्रेट की मानद उपाधि भी मिली है. वो पिछले दो दशक से बारत से लेकर दुनिया के कई देशों के कॉलेजों में मोटिवेशनल स्पीच दे चुके हैं. इन्फोसिस, बार्कलेज, बैंक ऑफ अमेरिका, फोर्ड जैसी अंतरराष्ट्रीय कंपनियां इन्हें अपने कर्मचारियों के मार्गदर्शन और मोटिवेशन के लिए आमंत्रित करती है.

मॉडर्न युग के बाबा जग्गी वासुदेव (बाएं) गौर गोपाल दास (बीच में) श्री श्री रवि शंकर (दाएं)
मॉडर्न युग के बाबा जग्गी वासुदेव (बाएं) गौर गोपाल दास (बीच में) श्री श्री रवि शंकर (दाएं)

इसके अलावा महर्षि अरविंद, जे कृष्णमूर्ति और चिन्मयानंद स्वामी जैसे कुछ और भी शख्सियतें इस देश में हुई जो भले आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनका दिया ज्ञान आज भी लोगों को राह दिखा रहा है. उन्होंने कभी अंधभक्ति या धर्म का अधूरा ज्ञान नहीं दिया बल्कि इनके प्रवचन तर्कसंगत और प्रेरणादायी होते थे. ये वो लोग थे जिन्होंने आज से कई दशक पहले देख लिया था कि धर्म के नाम पर भ्रांतियां फैलाई जा रही है और फिर इन्होंने धर्म से जुड़ी भ्रांतियों और अंधविश्वासों को दूर करने के लिए जो लौ जलाई वो आगे चलकर मशाल बनी.

इस तरह के बाबाओं की संख्या बहुत कम है लेकिन ये पढ़े-लिखे बाबा आध्यात्म और धर्म के साथ-साथ मौजूदा परिपेक्ष्य में अपने विचार रखने के अलावा अंधविश्वास और ढोंग से भी दूर रहने की सलाह देते हैं.

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