आज की प्रेरणा : कर्तव्य समझकर किया जाने वाला दान होता है सात्विक

🎬 Watch Now: Feature Video

thumbnail
भौतिक लाभ की इच्छा नहीं करने वाले तथा केवल परमेश्वर में प्रवृत्त मनुष्यों द्वारा दिव्य श्रद्धा से संपन्न यह तीन प्रकार की तपस्या सात्विक तपस्या कहलाती है. जो तपस्या दंभ पूर्वक तथा सम्मान, सत्कार एवं पूजा कराने के लिए संपन्न की जाती है, वह राजसी कहलाती है. यह न तो स्थाई होती है न शाश्वत. मूर्खता वश आत्म-उत्पीड़न के लिए या अन्य को विनष्ट करने या हानि पहुंचाने के लिए जो तपस्या की जाती है, वह तामसी कहलाती है. सतोगुणी व्यक्ति देवताओं को पूजते हैं, रजोगुणी यक्षों व राक्षसों की पूजा करते हैं और तमोगुणी व्यक्ति भूत-प्रेतों को पूजते हैं. योगीजन ब्रह्म की प्राप्ति के लिए शास्त्रीय विधि के अनुसार यज्ञ, दान तथा तप की समस्त क्रियाओं का शुभारम्भ सदैव ओम से करते हैं. जो दान कर्तव्य समझकर, किसी प्रत्युपकार की आशा के बिना, समुचित काल तथा स्थान में और योग्य व्यक्ति को दिया जाता है, वह सात्विक माना जाता है. जो दान प्रत्युपकार की भावना से या कर्म फल की इच्छा से या अनिच्छा पूर्वक किया जाता है, वह रजोगुणी कहलाता है. जो दान किसी अपवित्र स्थान पर, अनुचित समय में, किसी अयोग्य व्यक्ति को या बिना समुचित ध्यान तथा आदर से दिया जाता है, वह तामसी कहलाता है. श्रद्धा के बिना यज्ञ, दान या तप के रूप में जो भी किया जाता है, वह नश्वर है. वह असत कहलाता है और इस जन्म तथा अगले जन्म में भी व्यर्थ जाता है. यज्ञों में वही यज्ञ सात्त्विक होता है, जो शास्त्र के निर्देशानुसार कर्तव्य समझ कर उन लोगों द्वारा किया जाता है, जो फल की इच्छा नहीं करते. जो यज्ञ किसी भौतिक लाभ के लिए गर्ववश किया जाता है, वह राजसी होता है.

ABOUT THE AUTHOR

author-img

...view details

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.