आज की प्रेरणा - हनुमान भजन
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जो नष्ट होते हुए सम्पूर्ण प्राणियों में परमात्मा को नाश रहित और समरूप से स्थित देखता है, वही वास्तव में सही देखता है. जो व्यक्ति परमात्मा को सर्वत्र तथा प्रत्येक जीव में समान रूप से विद्यमान देखता है, वह अपने मन के द्वारा अपने आपको भ्रष्ट नहीं करता. इस प्रकार वह दिव्य गन्तव्य को प्राप्त करता है. जो सम्पूर्ण क्रियाओं को सब प्रकार से प्रकृति के द्वारा ही की जाती हुई देखता है और अपने-आपको अकर्ता अनुभव करता है, वही यथार्थ देखता है. जिस काल में साधक प्राणियों के अलग-अलग भावों को एक ही परमात्मा में स्थित देखता है और उस परमात्मा से ही उन सबका विस्तार देखता है, उस काल में वह ब्रह्म को प्राप्त हो जाता है. जैसे आकाश सर्वव्यापी है, किन्तु अपनी सूक्ष्म प्रकृति के कारण, किसी वस्तु से लिप्त नहीं होता. इसी तरह ब्रह्मदृष्टि में स्थित आत्मा, शरीर में स्थित रहते हुए भी, शरीर से लिप्त नहीं होता. जिस प्रकार सूर्य अकेले इस सारे ब्रह्माण्ड को प्रकाशित करता है, उसी प्रकार शरीर के भीतर स्थित एक आत्मा सारे शरीर को चेतना से प्रकाशित करता है.