आज की प्रेरणा

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जो आशा रहित है तथा जिसने चित्त और आत्मा को संयमित किया है, जिसने सब परिग्रहों का त्याग किया है, वो मनुष्य शारीरिक कर्म करते हुए भी पाप को नहीं प्राप्त होता है. जो स्वतः होने वाले लाभ से संतुष्ट रहता है, जो द्वन्द से मुक्त है और ईर्ष्या नहीं करता, जो सफलता तथा असफलता दोनों में स्थिर रहता है, वह कर्म करता हुआ भी कभी नहीं बंधता. जो मनुष्य आसक्तिरहित और मुक्त है, जिसका चित्त ज्ञान में स्थित है, यज्ञ के लिये आचरण करने वाले ऐसे मनुष्य के समस्त कर्म लीन हो जाते हैं. जो मन तथा इन्द्रियों को वश में करके आत्म-साक्षात्कार करना चाहते हैं, वो सम्पूर्ण इन्द्रियों तथा प्राणवायु के कार्यों को संयमित मन रूपी अग्नि में आहुति कर देते हैं. कुछ साधक द्रव्ययज्ञ, तपयज्ञ और योगयज्ञ करने वाले होते हैं, और दूसरे कठिन व्रत करने वाले स्वाध्याय और ज्ञानयज्ञ करने वाले योगीजन होते हैं. कुछ योगीजन अपानवायु में प्राणवायु को हवन करते हैं, तथा प्राण में अपान की आहुति देते हैं, प्राण और अपान की गति को रोककर, वे प्राणायाम के ही समलक्ष्य समझने वाले होते हैं. जो समाधि में रहने के लिए रहते हैं प्राणायाम (श्वास रोकना) करते हैं . वे अपान में प्राण को और प्राण में अपान को रोकने का अभ्यास करते हैं और अन्त में प्राण-अपान को रोककर समाधि में रहते हैं. नियमित आहार करने वाले कुछ साधक जन प्राणों को प्राणों में ही हवन करते हैं. ये सभी यज्ञ को जानने वाले हैं, इनके पाप यज्ञ के द्वारा नष्ट हो चुके हैं. यज्ञ करने वाले यज्ञों का अर्थ जानने के कारण पापकर्मों से मुक्त हो जाते हैं और यज्ञों के फल रूपी अमृत को चखकर परम दिव्य आकाश की ओर बढ़ते जाते हैं. यज्ञ के बिना मनुष्य इस लोक में या इस जीवन में ही सुखपूर्वक नहीं रह सकता, तो फिर अगले जन्म में कैसे रह सकेगा! विभिन्न प्रकार के यज्ञ वेद सम्मत हैं और ये सभी विभिन्न प्रकार के कर्मों से उत्पन्न हैं . इस प्रकार जानकर यज्ञ करने से व्यक्ति कर्म बन्धन से मुक्त हो जाएगा. यहां आपको हर रोज मोटिवेशनल सुविचार पढ़ने को मिलेंगे. जिनसे आपको प्रेरणा मिलेगी.

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