आज की प्रेरणा
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सम्पूर्ण कर्म परमात्मा को अर्पण करके, उम्मीद, ममता और संताप रहित होकर मनुष्य को अपने कर्त्तव्यों का पालन करना चाहिए. ऐसा परमात्मा का आदेश है. जो परमात्मा के आदेशों की उपेक्षा करते हैं और इनका पालन नहीं करते वो समस्त ज्ञान से रहित, दिग्भ्रमित तथा नष्ट-भ्रष्ट हो जाएंगे. जो मनुष्य दोष-दृष्टि से रहित होकर परमात्मा के आदेशों के अनुसार अपना कर्तव्य करते रहते हैं, इस उपदेश का श्रद्धा पूर्वक पालन करते हैं, वे सकाम कर्मों के बन्धन से मुक्त हो जाते हैं. सहसा ही अपने नियत कर्म त्यागकर तथाकथित योगी या कृत्रिम अध्यात्मवादी नहीं बन जाना चाहिए. बल्कि हठ त्यागकर, यथास्थिति में ही, श्रेष्ठ प्रशिक्षण के अन्तर्गत कर्मयोग का प्रयत्न करना चाहिए. अपने नियत कर्मों को दोषपूर्ण ढंग से सम्पन्न करना भी अन्य के कर्मों को भलीभाँति करने से श्रेयस्कर है. स्वधर्म के लिए मरना कल्याण कारक है किन्तु परधर्म का अनुसरण भयावह होता है. इन्द्रियों के विषय के प्रति मन में रागद्वेष रहते हैं, उनको व्यवस्थित करने के नियम होते हैं. मनुष्य को चाहिये कि वह उन के वश में न हो, क्योंकि वे आत्म-साक्षात्कार के मार्ग में अवरोधक हैं. रजोगुण के कारण काम उत्पन्न होता है, जो बाद में क्रोध का रूप धारण करता है और फिर मनुष्य पापकर्मों के लिए प्रेरित होता है, यह संसार का सर्वभक्षी पापी शत्रु है. जैसे धुएं से अग्नि और धूल से दर्पण ढक जाता है तथा जैसे भ्रूण गर्भाशय से ढका रहता है, वैसे ही काम के द्वारा यह ज्ञान छिप जाता है. अग्नि के समान कभी तृप्त न होने वाले और विवेकियों के नित्य शत्रु इस काम के द्वारा मनुष्य का विवेक ढका होता है. इन्द्रियां, मन तथा बुद्धि इस काम के निवास स्थान हैं. इनके द्वारा यह काम जीवात्मा के वास्तविक ज्ञान को ढक कर उसे मोहित कर लेता है. मनुष्य को शीघ्रातिशीघ्र इन्द्रियों को वश में करके पाप के प्रतीक, आत्म-साक्षात्कार के विनाशकर्ता इस काम का वध कर देना चाहिए.