जानिए क्या है निलाद्री विजय और रसगुल्ले का रहस्य - JAI JAGANNATH
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महाप्रभु जगन्नाथ, बलभद्र जी और देवी सुभद्रा को 'अधर पणा' अर्पित करने के एक दिन बाद, 12वें दिन श्रीमंदिर के गर्भगृह में देवताओं के प्रवेश को नीलाद्री विजय कहा जाता है. नीलाद्री विजय रथ यात्रा का समापन अनुष्ठान है, जिसके दौरान भगवान को 'पहांडी' समारोह से पहले सेवकों द्वारा रसगुल्ला चढ़ाया जाता है. महाप्रभु जगन्नाथ, बलभद्र जी और देवी सुभद्रा को 'गोटी पहांडी' जुलूस में 'संध्या धूप' के बाद श्रीमंदिर ले जाया जाता है. गोटी पहांडी जुलूस में भगवान एक के बाद एक चलते हैं. इसका मतलब यह है कि पहले भगवान के गंतव्य तक पहुंचने के बाद ही दूसरे भगवान आगे बढ़ते है. मुख्य मंदिर में प्रवेश करने से पहले महाप्रभु जगन्नाथ और महालक्ष्मी के सेवकों के बीच एक पारंपरिक समारोह मंदिर के मुख्य द्वार पर आयोजित किया जाता है. इसका नाम जय विजय द्वार है. महाप्रभु जगन्नाथ की पत्नी देवी महालक्ष्मी क्रोधित थीं क्योंकि उन्हें मुख्य मंदिर में छोड़ दिया गया था और वह गुंडिचा मंदिर की यात्रा का हिस्सा नहीं थीं. वह महाप्रभु जगन्नाथ के पहुंचने पर मंदिर के द्वार को बंद कर देती हैं और केवल बलभद्र जी, देवी सुभद्रा और सुदर्शन जी को मंदिर में आने देती हैं. महालक्ष्मी को प्रसन्न करने और मंदिर में प्रवेश के लिए महाप्रभु जगन्नाथ उन्हें रसगुल्ला भेंट कर क्षमा करने का अनुरोध करते हैं. काफी मनाने के बाद महालक्ष्मी मंदिर का द्वार खोल देती हैं और भगवान जगन्नाथ को अंदर आने देती हैं. इसके बाद जगन्नाथ जी को महालक्ष्मी के पास बैठाया जाता है और पुनर्मिलन की रस्म निभाई जाती है. अंत में महाप्रभु जगन्नाथ रत्न सिंघासन पर चढ़ते हैं और फिर से अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ हो जाते हैं. भगवान के घर वापसी समारोह को 'निलाद्री विजय' या 'नीलाद्रि बीजे' के रूप में जाना जाता है. इस तरह ऐतिहासिक रथ यात्रा समाप्त होती है.