आज की प्रेरणा - हनुमान भजन
🎬 Watch Now: Feature Video
विधि-विधान से किये हुए परधर्म से गुणरहित किन्तु स्वभाव से नियत अपना धर्म श्रेष्ठ है. जो सभी प्राणियों का उद्गम है और सर्वव्यापी है, उस भगवान की उपासना करके मनुष्य अपना कर्म करते हुए पूर्णता प्राप्त कर सकता है. जो बुद्धि, प्रवृत्ति, निवृत्ति को, कर्तव्य और अकर्तव्य को, भय और अभय तथा बन्धन और मोक्ष को जानती है, वह बुद्धि सतोगुणी है. जो बुद्धि धर्म तथा अधर्म, करणीय तथा अकरणीय कर्म में भेद नहीं कर पाती, वह राजसी है. जो बुद्धि मोह तथा अहंकार के वशीभूत होकर अधर्म को धर्म तथा धर्म को अधर्म मानती है और सदैव विपरीत दिशा में प्रयत्न करती है, वह तामसी है. जिस धारण शक्ति से मनुष्य धर्म, अर्थ तथा काम के फलों में लिप्त रहता है, वह धृति राजसी है. जो धृति स्वप्न, भय, शोक, विषाद तथा मोह के परे नहीं जाती, ऐसी दुर्बुद्धि पूर्ण धृति तामसी है. जो अटूट है, जिसे योगाभ्यास द्वारा अचल रहकर धारण किया जाता है और जो मन, प्राण तथा इन्द्रियों के कार्यकलापों को वश में रखती है, वह धृति सात्विक है. जो प्रारम्भ में विष जैसा लगता है, लेकिन अंत में अमृत के समान है और जो मनुष्य में आत्म-साक्षात्कार जगाता है, वह सात्विक सुख कहलाता है. जो सुख इन्द्रियों द्वारा उनके विषयों के संसर्ग से प्राप्त होता है और प्रारम्भ में अमृत तुल्य तथा अन्त में विष तुल्य लगता है, वह रजोगुणी कहलाता है. जो सुख प्रारम्भ से लेकर अन्त तक मोहकारक है और जो निद्रा, आलस्य तथा मोह से उत्पन्न होता है, वह तामसी कहलाता है. यहां आपको हर रोज मोटिवेशनल सुविचार पढ़ने को मिलेंगे. जिनसे आपको प्रेरणा मिलेगी.