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Published : Jan 10, 2022, 4:04 AM IST

जो नष्ट होते हुए सम्पूर्ण प्राणियों में परमात्मा को नाशरहित और समरूप से स्थित देखता है, वही वास्तव में सही देखता है. जो व्यक्ति परमात्मा को सर्वत्र तथा प्रत्येक जीव में समान रूप से वर्तमान देखता है, वह अपने मन के द्वारा अपने आपको भ्रष्ट नहीं करता. इस प्रकार वह दिव्य गन्तव्य को प्राप्त करता है. जो सम्पूर्ण क्रियाओं को सब प्रकार से प्रकृति के द्वारा ही की जाती हुई देखता है और अपने-आपको अकर्ता अनुभव करता है, वही यथार्थ देखता है. जिस काल में साधक प्राणियों के अलग-अलग भावों को एक ही परमात्मा में स्थित देखता है और उस परमात्मा से ही उन सबका विस्तार देखता है, उस काल में वह ब्रह्म को प्राप्त हो जाता है. जैसे आकाश सर्वव्यापी है किन्तु अपनी सूक्ष्म प्रकृति के कारण किसी वस्तु से लिप्त नहीं होता. इसी तरह ब्रह्मदृष्टि में स्थित आत्मा, शरीर में स्थित रहते हुए भी शरीर से लिप्त नहीं होता. जिस प्रकार सूर्य अकेले इस सारे ब्रह्माण्ड को प्रकाशित करता है, उसी प्रकार शरीर के भीतर स्थित एक आत्मा सारे शरीर को चेतना से प्रकाशित करता है. जो लोग अपने मन को परमात्मा में एकाग्र करते हैं और अत्यन्त श्रद्धा पूर्वक परमात्मा की पूजा करने में सदैव लगे रहते हैं, वे परम सिद्ध माने जाते हैं. जिससे किसी को कष्ट नहीं पहुंचता तथा जो अन्य किसी के द्वारा विचलित नहीं किया जाता, जो सुख-दुख में, भय तथा चिन्ता में समभाव रहता है, वह ईश्वर को अत्यंत प्रिय है. जो इन्द्रियों की अनुभूति के परे है, सर्वव्यापी है, अकल्पनीय है, अपरिवर्तनीय है, अचल तथा ध्रुव है, वे समस्त लोगों के कल्याण में संलग्न रहकर अंततः परमात्मा को प्राप्त करते हैं. जो लोग ज्ञान के चक्षुओं से शरीर तथा शरीर के ज्ञाता के अंतर को देखते हैं और गीता में बताई गई जीवन शैली की विधि को भी जानते हैं, वे परमात्मा को प्राप्त हो जाते हैं. जो भक्तजन परमात्मा को परम लक्ष्य समझते हुए सब कर्मों को अर्पण करके, परमात्मा का ध्यान करते हैं, जिनका चित्त परमात्मा में ही स्थिर हुआ है ऐसे भक्तों का शीघ्र ही संसार सागर से उद्धार होता है.

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