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“अंगदान है महादान” : विश्व अंगदान दिवस 2021 - heart

चिकित्सा क्षेत्र में प्रगति का नतीजा है कि आज एक व्यक्ति द्वारा दान किया अंग दूसरे व्यक्ति के लिए जीवन जीने का कारण बन जाता है। हालांकि यह एक जटिल प्रक्रिया है लेकिन दुनियाभर में इस पद्धति के बारे में जन जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल 13 अगस्त को विश्व अंगदान दिवस मनाया जाता है ताकि स्वास्थ्य कारणों से जीवन जीने की उम्मीद हार चुके लोगों को जीवन जीने का एक और मौका मिल पाए।

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अंगदान
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Published : Aug 13, 2021, 11:11 AM IST

कहते हैं दुनिया में सबसे बड़ा दान अंग का दान करना है, क्योंकि उससे किसी व्यक्ति को एक नया जीवन मिल सकता है। दुनिया भर में हर साल बहुत से लोग स्वयं को अंगदान के लिए पंजीकृत करवाते हैं, लेकिन हमारे देश भारत में यह आंकड़ा बहुत ही कम है। ना सिर्फ भारत बल्कि दुनियाभर में लोगों को जनहित में अंगदान के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से हर साल 13 अगस्त को विश्व अंगदान दिवस मनाया जाता है।

क्या है अंगदान?

अंगदान वह प्रक्रिया है जिसमें एक जीवित या मृत व्यक्ति अपने स्वस्थ अंग का किसी दूसरे व्यक्ति के स्वास्थ्य हित में दान करता है। अंग प्रत्यारोपण के माध्यम से अंग को दाता के शरीर से निकालकर प्राप्तकर्ता के शरीर में प्रत्यारोपित किया जाता है। आमतौर पर शरीर के ज्यादातर अंगों का प्रत्यारोपण दाता व्यक्ति की मृत्यु के बाद एक सीमित अवधि तक ही संभव हो पाता हैं। वहीं कुछ अंगों या अंगों के हिस्सों को जीवित व्यक्ति भी दान कर सकते है।

एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में हर साल लगभग 500,000 लोग अंगों की अनुपलब्धता के कारण मृत्यु से हार हो जाते हैं। इनमें लगभग 200,000 लोग लीवर की बीमारी से और 50,000 लोग हृदय रोग के कारण मृत्यु का शिकार बन जाते हैं। इसके अलावा हर वर्ष लगभग 150,000 लोग गुर्दा प्रत्यारोपण के लिये दानकर्ता की प्रतीक्षा करते हैं, लेकिन दान कर्ताओं के अभाव में केवल मात्र 5,000 लोगों के लिये ही यह प्रत्यारोपण संभव हो पाता है। 2015 तक भारत के सांख्यिकीय डेटा से पता चलता है कि 1.75 लाख गुर्दा प्रत्यारोपण की मांग के जवाब में, केवल 5000 प्रत्यारोपण ही संभव हो पाए थे।

दिल और फेफड़ों जैसे अंगों के लिए ये आंकड़े और भी चिंताजनक हैं। भारत में अंग दान की दर बेहद कम , मात्र 0.01 प्रतिशत है, जो क्रोएशिया (36.5 प्रतिशत) और स्पेन (35.3%) जैसे देशों की तुलना में एक बहुत ही छोटा आंकड़ा है।

भारत में अंग प्रत्यारोपण को नियंत्रित करने वाले कानून और नियम

भारत में अंग दान और प्रत्यारोपण से संबंधित प्राथमिक कानून, “मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम”, 1994 में पारित किया गया था। जिसका उद्देश्य चिकित्सीय उद्देश्यों से अंग प्रत्यारोपण के लिये नियमों और नीतियों का निर्धारण करना था। साथ ही यह भी सुनिश्चित करना था की कहीं मानव अंग तस्करी या अन्य अवैध उद्देश्य के लिए इस प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो सके। इसके बाद वर्ष 2011 अधिनियम में संशोधन किया गया था। इस अधिनियम संबंधित नियमों को 2014 में अधिसूचित किया गया था।

2019 में, भारत सरकार ने मृत अंग दान को बढ़ावा देने के लिए ₹149.5 करोड़ (यूएस डॉलर) के बजट के साथ राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम लागू किया। इस अधिनियम के तहत अंगदान करने के लिए निर्धारित नियम इस प्रकार हैं:

• किसी भी उम्र, जाति, धर्म या समुदाय का व्यक्ति अंगदान के लिये स्वयं को पंजीकृत करवा सकता है।

• प्राकृतिक मृत्यु के मामले में कॉर्निया, हृदय वाल्व, त्वचा और हड्डी जैसे ऊतकों का दान किया जा सकता है, लेकिन हृदय, यकृत, गुर्दे, आंत, फेफड़े और अग्न्याशय जैसे महत्वपूर्ण अंग केवल 'मस्तिष्क मृत्यु' के मामले में ही दान किए जा सकते हैं।

• 18 वर्ष से कम उम्र के किसी भी व्यक्ति को दाता बनने के लिए पंजीकरण करने हेतु माता-पिता या अभिभावक की सहमति की आवश्यकता होती है।

• सक्रिय रूप से फैलने वाले कैंसर, एचआईवी, मधुमेह, गुर्दे की बीमारी, या हृदय रोग जैसी गंभीर स्थिति होने पर आपको जीवित दाता के रूप में दान करने से रोका जा सकता है।

अंगदान के प्रकार

  • जीवित संबंधी दान: यह तब होता है जब एक जीवित व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को प्रत्यारोपण के लिए एक अंग या अंग का हिस्सा दान करता है। जीवित दाता परिवार का सदस्य हो सकता है, जैसे माता-पिता, बच्चे, भाई या बहन, दादा-दादी या पोते।
  • जीवित असंबंधी दान: जीवित अवस्था में अंग का दान ऐसे व्यक्ति भी कर सकते हैं जो पीड़ित के दोस्त, रिश्तेदार, पड़ोसी या ससुराल वाले यानी जो प्राप्तकर्ता से भावनात्मक रूप से संबंधित हो ।
  • मृतक अंग दान: इसके लिये रोगी को प्रत्यारोपण कराने वाले अस्पताल में पंजीकरण कराना होता है, जिसके बाद उसे वेटिंग लिस्ट में रखा जाता है। जब भी उपयुक्त मृत दाता (ब्रेन डेथ) का अंग उपलब्ध होता है रोगी को सूचित के उसके शरीर में दान किए गए अंग को प्रत्यारोपित कर दिया जाता है।

पढ़ें: कोरोना से ठीक हो चुके लोगों में बढ़ते ह्रदय रोग के मामले, क्या है कारण?

कहते हैं दुनिया में सबसे बड़ा दान अंग का दान करना है, क्योंकि उससे किसी व्यक्ति को एक नया जीवन मिल सकता है। दुनिया भर में हर साल बहुत से लोग स्वयं को अंगदान के लिए पंजीकृत करवाते हैं, लेकिन हमारे देश भारत में यह आंकड़ा बहुत ही कम है। ना सिर्फ भारत बल्कि दुनियाभर में लोगों को जनहित में अंगदान के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से हर साल 13 अगस्त को विश्व अंगदान दिवस मनाया जाता है।

क्या है अंगदान?

अंगदान वह प्रक्रिया है जिसमें एक जीवित या मृत व्यक्ति अपने स्वस्थ अंग का किसी दूसरे व्यक्ति के स्वास्थ्य हित में दान करता है। अंग प्रत्यारोपण के माध्यम से अंग को दाता के शरीर से निकालकर प्राप्तकर्ता के शरीर में प्रत्यारोपित किया जाता है। आमतौर पर शरीर के ज्यादातर अंगों का प्रत्यारोपण दाता व्यक्ति की मृत्यु के बाद एक सीमित अवधि तक ही संभव हो पाता हैं। वहीं कुछ अंगों या अंगों के हिस्सों को जीवित व्यक्ति भी दान कर सकते है।

एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में हर साल लगभग 500,000 लोग अंगों की अनुपलब्धता के कारण मृत्यु से हार हो जाते हैं। इनमें लगभग 200,000 लोग लीवर की बीमारी से और 50,000 लोग हृदय रोग के कारण मृत्यु का शिकार बन जाते हैं। इसके अलावा हर वर्ष लगभग 150,000 लोग गुर्दा प्रत्यारोपण के लिये दानकर्ता की प्रतीक्षा करते हैं, लेकिन दान कर्ताओं के अभाव में केवल मात्र 5,000 लोगों के लिये ही यह प्रत्यारोपण संभव हो पाता है। 2015 तक भारत के सांख्यिकीय डेटा से पता चलता है कि 1.75 लाख गुर्दा प्रत्यारोपण की मांग के जवाब में, केवल 5000 प्रत्यारोपण ही संभव हो पाए थे।

दिल और फेफड़ों जैसे अंगों के लिए ये आंकड़े और भी चिंताजनक हैं। भारत में अंग दान की दर बेहद कम , मात्र 0.01 प्रतिशत है, जो क्रोएशिया (36.5 प्रतिशत) और स्पेन (35.3%) जैसे देशों की तुलना में एक बहुत ही छोटा आंकड़ा है।

भारत में अंग प्रत्यारोपण को नियंत्रित करने वाले कानून और नियम

भारत में अंग दान और प्रत्यारोपण से संबंधित प्राथमिक कानून, “मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम”, 1994 में पारित किया गया था। जिसका उद्देश्य चिकित्सीय उद्देश्यों से अंग प्रत्यारोपण के लिये नियमों और नीतियों का निर्धारण करना था। साथ ही यह भी सुनिश्चित करना था की कहीं मानव अंग तस्करी या अन्य अवैध उद्देश्य के लिए इस प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो सके। इसके बाद वर्ष 2011 अधिनियम में संशोधन किया गया था। इस अधिनियम संबंधित नियमों को 2014 में अधिसूचित किया गया था।

2019 में, भारत सरकार ने मृत अंग दान को बढ़ावा देने के लिए ₹149.5 करोड़ (यूएस डॉलर) के बजट के साथ राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम लागू किया। इस अधिनियम के तहत अंगदान करने के लिए निर्धारित नियम इस प्रकार हैं:

• किसी भी उम्र, जाति, धर्म या समुदाय का व्यक्ति अंगदान के लिये स्वयं को पंजीकृत करवा सकता है।

• प्राकृतिक मृत्यु के मामले में कॉर्निया, हृदय वाल्व, त्वचा और हड्डी जैसे ऊतकों का दान किया जा सकता है, लेकिन हृदय, यकृत, गुर्दे, आंत, फेफड़े और अग्न्याशय जैसे महत्वपूर्ण अंग केवल 'मस्तिष्क मृत्यु' के मामले में ही दान किए जा सकते हैं।

• 18 वर्ष से कम उम्र के किसी भी व्यक्ति को दाता बनने के लिए पंजीकरण करने हेतु माता-पिता या अभिभावक की सहमति की आवश्यकता होती है।

• सक्रिय रूप से फैलने वाले कैंसर, एचआईवी, मधुमेह, गुर्दे की बीमारी, या हृदय रोग जैसी गंभीर स्थिति होने पर आपको जीवित दाता के रूप में दान करने से रोका जा सकता है।

अंगदान के प्रकार

  • जीवित संबंधी दान: यह तब होता है जब एक जीवित व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को प्रत्यारोपण के लिए एक अंग या अंग का हिस्सा दान करता है। जीवित दाता परिवार का सदस्य हो सकता है, जैसे माता-पिता, बच्चे, भाई या बहन, दादा-दादी या पोते।
  • जीवित असंबंधी दान: जीवित अवस्था में अंग का दान ऐसे व्यक्ति भी कर सकते हैं जो पीड़ित के दोस्त, रिश्तेदार, पड़ोसी या ससुराल वाले यानी जो प्राप्तकर्ता से भावनात्मक रूप से संबंधित हो ।
  • मृतक अंग दान: इसके लिये रोगी को प्रत्यारोपण कराने वाले अस्पताल में पंजीकरण कराना होता है, जिसके बाद उसे वेटिंग लिस्ट में रखा जाता है। जब भी उपयुक्त मृत दाता (ब्रेन डेथ) का अंग उपलब्ध होता है रोगी को सूचित के उसके शरीर में दान किए गए अंग को प्रत्यारोपित कर दिया जाता है।

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