हमारे शरीर की सबसे बड़ी जरूरत क्या है! अन्न या आहार लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया भर में बड़ी संख्या में ऐसे लोग है जिन्हे रोजाना पेट भर अन्न नहीं मिल पाता है. यूं तो कुपोषण के खिलाफ संघर्ष तथा हर व्यक्ति की स्वस्थ आहार की जरूरत को पूरा करने का प्रयास दुनिया के लगभग सभी देशों में सरकारी तथा निजी, दोनों स्तरों पर किया जाता है, लेकिन फिर भी बड़ी संख्या में लोगों को अलग-अलग कारणों से जरूरी मात्रा में भोजन की आपूर्ति नहीं हो पाती है. भुखमरी सूचकांक (GHI) वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर भूख को व्यापक रूप से मापने और ट्रैक करने का एक पैमाना है. भुखमरी सूचकांक स्कोर चार घटक संकेतकों (Undernutrition child stunting child thinning child mortality) के मूल्यों पर आधारित होते हैं- अल्पपोषण, बाल स्टंटिंग, बाल दुबलापन और बाल मृत्यु दर. GHI स्कोर की गणना 100 अंकों के पैमाने पर की जाती है जो भूख की गंभीरता को दर्शाता है, जहां शून्य सबसे अच्छा स्कोर है (भूख नहीं) और 100 सबसे खराब है. Global hunger index में भारत का 29.1 का स्कोर इसे 'गंभीर' श्रेणी में रखता है.
भारत श्रीलंका (64), नेपाल (81), बांग्लादेश (84), और पाकिस्तान (99) से भी नीचे है. अफगानिस्तान (109) दक्षिण एशिया का एकमात्र देश है जो सूचकांक में भारत से भी खराब स्थिति में है. चीन सामूहिक रूप से 1 और 17 के बीच रैंक वाले देशों में से है, जिसका स्कोर पांच से कम है. भारत में बच्चों के दुबले होने की दर (ऊंचाई के लिए कम वजन), 19.3% पर, 2014 (15.1%) और यहां तक कि 2000 (17.15%) में दर्ज किए गए स्तरों से भी बदतर है. यह दुनिया के किसी भी देश के लिए सबसे अधिक है. इसकी एक वजह भारत की विशाल जनसंख्या के कारण औसत भी हो सकती है.
हर भूखे तथा जरुरतमन्द व्यक्ति को पेट भर स्वस्थ आहार मिले, आहार की बर्बादी कम हो तथा आहार के उत्पादन तथा कृषि को बड़े व छोटे स्तर पर बढ़ावा मिले और इस दिशा में प्रयास बढ़ें, इसी उद्देश्य से वैश्विक जागरूकता और कार्रवाई को बढ़ावा देने के लिए हर साल हर साल 16 अक्टूबर को विश्व खाद्य दिवस मनाया जाता है. इस वर्ष यह दिवस 'लीव नो वन बिहाइंड थीम' (Leave No One Behind) पर मनाया जा रहा है.
इतिहास: सर्वप्रथम संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization) ने 1979 में 16 अक्टूबर को वैश्विक भूख से निपटने और दुनिया भर में भूख को मिटाने का प्रयास करने के उद्देश्य से विश्व खाद्य दिवस मनाए जाने की शुरुआत की थी. गौरतलब है कि इससे पहले संयुक्त राष्ट्र (United Nations) द्वारा भोजन को एक आम अधिकार के रूप में मान्यता दी गई थी. लेकिन हर व्यक्ति के लिए पेट भर स्वस्थ आहार की जरूरत को मानते हुए वर्ष 1945 में United Nations ने भोजन को एक सभी के लिए एक विशेष अधिकार (Food is special right) के रूप में मान्यता प्रदान की .
इस दिवस को मनाए जाने का उद्देश्य सिर्फ हर व्यक्ति के लिए पेट भर भोजन की उपलब्धता के लिए प्रयास करना ही नहीं है, बल्कि सुरक्षित भोजन के उत्पादन और उसके इस्तेमाल को लेकर भी लोगों में जागरूकता बढ़ाना है. इसके अलावा इस दिवस पर आहार उत्पादन, विपणन तथा उसके आयात-निर्यात को लेकर संभावनाओं पर चर्चा व प्रयास करना भी है जिससे दुनिया के कई देशों की अर्थव्यवस्था को भी लाभ मिलेगा.
क्या कहते हैं आंकड़े : हमारा देश खाद्य उत्पादन में दुनिया में दूसरे स्थान पर आता है, वहीं दाल, चावल, गेहूं, मछली, दूध तथा सब्जी के उत्पादन में भारत दुनिया में पहले स्थान पर आता हैं. लेकिन फिर भी हमारे देश में एक बड़ी आबादी कुपोषण का शिकार है. आंकड़ों की माने तो वर्ष 2021 में दुनिया के 76.8 करोड़ लोग कुपोषण का शिकार पाए गए. जिनमें से 22.4 करोड़ यानी लगभग 29% भारतीय थे. संयुक्त राष्ट्र की 'द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड 2022' रिपोर्ट में प्रकाशित इन आंकड़ों के अनुसार भारत में 97 करोड़ से ज्यादा लोग यानी देश की आबादी का लगभग 71 प्रतिशत हिस्सा पौष्टिक खाने का खर्च उठा पाने में असमर्थ हैं. यहां यह बताना भी जरूरी है कि इस रिपोर्ट के नतीजों को लेकर लोगों में कुछ मतभेद भी रहे हैं. लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि दुनिया के कई देशों में बड़ी संख्या में लोगों तक पौष्टिक आहार उपलब्ध नहीं हो पाता है.
संयुक्त राष्ट्र कि इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 70.5% भारतीय ही नहीं बल्कि नेपाल के 84% और पाकिस्तान के 83.5 % लोग स्वस्थ आहार लेने में असमर्थ हैं. इस रिपोर्ट में कुछ अन्य देशों के आँकड़े भी दिए गए थे जिनके अनुसार चीन के लगभग 12%, ब्राजील के 19 % तथा श्रीलंका के 49 % लोग स्वस्थ आहार ग्रहण नहीं कर पाते हैं.
इसी विषय पर एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया था कि दुनिया भर के कुपोषित लोगों में से 99% लोग विकासशील देशों में रहते हैं. वहीं हर साल लगभग 20 मिलियन बच्चे कम वजन के साथ पैदा होते हैं, जिनमें से लगभग 96.5% विकासशील देशों से होते हैं. महिलाओं तथा बच्चों में कुपोषण के मामले ज्यादा सुनने में आते हैं. यहां तक कि जन्म के समय तथा कम उम्र (5 साल से कम) में बच्चों की मृत्यु के कुल मामलों में से 50% के लिए कुपोषण को जिम्मेदार माना जाता है. वहीं दुनिया भर में लगभग 60% महिलाएं कुपोषण का शिकार होती है.
जानकार मानते हैं कि आमजन के लिए स्वस्थ आहार की आपूर्ति एक वैश्विक समस्या है जिसे दुनिया के कई देश झेल रहें है. इस समस्या के लिए आहार उत्पादन में कमी मुख्य कारण नहीं है बल्कि महंगाई, गरीबी, सामाजिक असमानता, वातावरण में परिवर्तन, महामारी तथा युद्ध जैसी स्थिति सहित कई प्रकार के कारण जिम्मेदार हैं.
कैसे मनाए विश्व खाद्य दिवस
हर साल वैश्विक स्तर पर विश्व खाद्य दिवस के अवसर पर असुरक्षित भोजन से जुड़े स्वास्थ्य संबंधी खतरों के बारे में जागरूकता फैलाने , आर्थिक समृद्धि तथा कृषि के क्षेत्र में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए कई प्रकार के जागरूकता कार्यक्रम तथा अभियान आयोजित किए जाते हैं. जैसे स्थानीय स्तर पर जरूरतमंदों को भोजन उपलब्ध कराने वाले खाद्य बैंकों तथा ऐसी सरकारी तथा निजी योजनाओं को लेकर जो जरूरतमंदों को भोजन उपलब्ध करती हो, के बारें में जागरूकता फैलाने, फूड वेस्ट जैसे बचे हुए आहार या सब्जियों व फलों के छिलकों से अच्छी खाद बनाने , बड़े ही नहीं छोटे स्तर पर भी खेती का समर्थन करने, अपने घरों में स्थान की उपलब्धता के अनुसार जमीन या गमलों में ही किचन गार्डन बनाने के लिए प्रेरित करने , तथा ऐसे लोगों के लिए आर्थिक मदद जुटाने जो आर्थिक रूप से समर्थ नहीं हैं और जरूरत अनुसार भोजन खरीदने में सक्षम नहीं हैं, आदि.
खाद्य संबंधी उपलब्ध आंकड़ों की माने तो हमारे ग्रह पर इतना भोजन उत्पादित होता है कि सभी व्यक्तियों तथा जीवों का पेट भर सके . लेकिन दुनिया भर में अलग अलग कारणों से साल भर में 1.3 बिलियन टन भोजन बर्बाद होता है, जो कि कुल उत्पादित भोजन का लगभग 20% होता है. यदि लोग ध्यान से भोजन का उपयोग करें और उसकी बर्बादी से बचें तो भूखे सोने वाले लोगों की संख्या को काफी कम हो सकती है. विश्व खाद्य दिवस एक मौका है जो भोजन की बर्बादी को कम करने और खाद्य उत्पादन के क्षेत्र में लोगों के लिए जीविका उत्पन्न करने तथा उन्हे प्रोत्साहन देने का कार्य कर सकता है.
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