आमतौर पर सुनने में आता है कि ब्रेस्ट कैंसर के उपरांत महिलाओं में बांझपन जैसी समस्या उत्पन्न होने लगती है। लेकिन जानकार बताते हैं कि ब्रेस्ट कैंसर की सर्जरी के कारण नहीं बल्कि सर्जरी के उपरांत ली जाने वाली कीमोथेरेपी तथा अन्य उपचार पद्धतियों के कारण महिलाओं में बांझपन की समस्या उत्पन्न होती है। यही नहीं इस कारण से महिलाओं में आमतौर पर मेनोपॉज भी समय से पहले हो जाता है। स्तन कैंसर के उपचार के कारण महिलाओं की प्रजनन क्षमता पर पड़ने वाले प्रभावों तथा भविष्य में मां बनने की संभावनाओं को बरकरार रखने के लिए अंडों के संरक्षण जैसे उपायों के बारे में केआईएमएस फर्टिलिटी सेंटर, हैदराबाद की फर्टिलिटी विशेषज्ञ तथा विभागाध्यक्ष, रीप्रोडक्टिव तथा मदर फर्टिलिटी में निदेशक डॉक्टर वैजयंथी ने ETV भारत सुखीभवा को जानकारी दी।
कीमोथेरेपी के प्रजनन क्षमता पर पड़ने वाले असर
डॉ. वैजयंथी बताती हैं कीमोथेरेपी के दौरान दी जाने वाली कुछ दवाइयां महिलाओं की ओवरी को नुकसान पहुंचा सकती हैं। जिसका असर उनकी गर्भ धारण करने की क्षमता पर भी पड़ता है। आमतौर पर कम आयु वाली महिलाओं का शरीर, कैंसर के इलाज के चलते शरीर पर पड़ने वाले पार्श्व प्रभावों को झेल लेता है और अपेक्षाकृत जल्दी ठीक भी हो जाता है। साथ ही प्राकृतिक रूप से उनके गर्भ धारण करने की उम्मीद भी बनी रहती है। लेकिन यदि महिला की उम्र ज्यादा हो, तो उसके लिए भविष्य में मां बनने की संभावनाएं बनी रहे इसके लिए अंडे या भ्रूण को सुरक्षित करवाना जरूरी हो जाता है। कीमोथेरेपी के उपरांत गर्भ धारण करने की संभावनाएं कई कारकों पर निर्भर करता है। जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं;
- कीमोथेरेपी लेने वाले मरीज की आयु तथा इलाज को लेकर उसके शरीर की प्रतिक्रिया।
- कीमोथेरेपी से पहले महिला द्वारा अपने भ्रूण या अंडे का सुरक्षित करवाया जाना ।
कीमोथेरेपी से पहले कैसे रखे प्रजनन क्षमता को सुरक्षित
डॉ. वैजयंथी बताती हैं की यह जरूरी नहीं की जितनी भी महिलायें अपने अंडे संरक्षित करवाती है, उपचार के बाद उन अंडों के उपयोग से आराम से गर्भ धारण कर लें। उपचार के उपरांत मां बनने की संभावना काफी हद तक संरक्षित करवाए गए अंडों की गुणवत्ता पर निर्भर करती है। आमतौर पर 20 से 30 साल की आयु में महिलाओं के अंडों की गुणवत्ता अच्छी मानी जाती है, इसलिए वे महिलायें जिन्होंने समय से अंडे संरक्षित कराएं है, कैंसर के उपचार के बाद इन अंडों के उपयोग से उनके मां बनने की संभावनाएं अपेक्षाकृत ज्यादा रहती है। वहीं वे महिलायें जिनके संरक्षित किए गए अंडों की संख्या कम तथा गुणवत्ता कमजोर हैं, उन्हें उपचार के उपरांत गर्भ धारण करने में समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
चिकित्सा क्षेत्र में पिछले कुछ सालों में काफी प्रगति हुई है और फिलहाल देश के सभी बड़े-छोटे शहरों में बड़ी संख्या में फर्टिलिटी सेंटरों में आईवीएफ सरीखे विभिन्न उपचारों का फायदा लिया जा सकता है तथा कुछ खास केंद्रों में अंडों को भी संरक्षित करवाया जा सकता है। जहां स्तन कैंसर या किसी अन्य प्रकार के कैंसर का पता चलने पर चिकित्सक के निर्देशों का पालन करते हुए महिलाये कैंसर का उपचार शुरू करने से पहले भविष्य के लिए अपने अंडों को संरक्षित करवा सकती है।
डॉ. वैजयंथी बताती हैं, ऐसी महिलायें जिनके परिवार में स्तन कैंसर का इतिहास रहा हो, उन्हें भी भविष्य में किसी भी प्रकार की आशंका के मद्देनजर पहले ही सुरक्षा कदम उठा लेने चाहिए। कीमोथेरेपी के उपरांत गर्भ धारण को इच्छुक महिलायें दो प्रकार की तकनीकों का उपयोग कर सकती है;
- कीमोथेरेपी से पहले शादीशुदा जोड़े अपने गेमटेस अंडों या एम्ब्रीओ को सुरक्षित करवा सकते हैं।
- अविवाहित महिलाये एग क्रायोप्रिजर्वेशन तथा एम्ब्रियो क्रायोप्रिजर्वेशन तकनीक की मदद से फर्टिलाइज्ड एग या भ्रूण को सुरक्षित करवा सकती हैं।
डॉ. वैजयंती बताती हैं कि अंडों तथा भ्रूण संरक्षण, दोनों ही तकनीकों में ओवरी स्टिमुलेशन तथा हार्मोन थेरेपी की मदद से संरक्षण के लिए अंडों की संख्या बढ़ाने का प्रयास किया जाता है. जिसके उपरांत स्वस्थ और अच्छी गुणवत्ता वाले अंडों को संरक्षित किया जाता है। एंब्रयो क्रायोप्रीजर्वेशन यानी भ्रूण संरक्षण प्रक्रिया में अंडो के संरक्षण के उपरांत विट्रो फर्टिलाइजेशन तकनीक की मदद से भ्रूण का निर्माण किया जाता है, जिन्हें भविष्य के लिए सुरक्षित कर दिया जाता है।
इसके अतिरिक कुछ चुनिंदा फर्टिलिटी केंद्रों में भविष्य में गर्भ धारण की संभावनाएं बनाए रखने के लिए ओवेरियन टिशू क्रायोप्रिजर्वेशन तकनीक भी उपलब्ध कराई जाती है, जिसमें लेप्रोस्कोपी की मदद से ओवरी का टिशू निकाल कर उससे संरक्षित किया जाता है। जिससे बाद में जब गर्भ धारण करना हो, तो उसका उपयोग किया जा सके।
स्तन कैंसर में दी जाने वाली हार्मोन थेरेपी का प्रजनन क्षमता पर असर
यूं तो हार्मोन थेरेपी का सीधे-सीधे महिलाओं की प्रजनन क्षमता पर असर नहीं पड़ता है, लेकिन हार्मोन थेरेपी लिये जाने के दौरान तथा उसके कुछ समय बाद तक महिलाओं को गर्भ धरण ना करने की सलाह दी जाती है।
वैज्ञानिक आंकडे बताते हैं की वे महिलाये, जो स्तन कैंसर का उपचार करवाने के बाद गर्भवती होती है तथा बच्चे को जन्म देती हैं, उनमें कैंसर के वापस आने तथा इस रोग के कारण जान गंवाने की आशंका काफी कम रहती है।
कैंसर का उपचार पूर्ण होने तथा गर्भधारण के बीच कितना समय अंतराल जरूरी
कैंसर के उपचार के शरीर पर पड़ने वाले पार्श्व प्रभावों के चलते चिकित्सक उपचार पूरा होने के तत्काल बाद गर्भधारण के लिए प्रयास करने के लिए मना करते है। चिकित्सकों का मानना है की हार्मोन थेरेपी पूरी होने के कुछ अंतराल बाद ही महिलाओं को गर्भ धारण के लिए प्रयास करना चाहिए।
डॉ. वैजयंती बताती हैं कि कैंसर होने की जानकारी मिलते ही महिलाये तथा उनके परिजन उपचार व विभिन्न थेरेपी तथा उनके शरीर पर असर के बारे में तो जानकारी लेते है. लेकिन इस उपचार के चलते प्रजनन क्षमता पर पड़ने वाले असर के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं लेते हैं, जबकि यह बहुत जरूरी है। पीड़ित की आयु के आधार पर कैंसर की पुष्टि होते ही भविष्य में गर्भधारण के संभावनाओं के मद्देनजर रोगी को चिकित्सक से खुल कर बात करनी चाहिए और यदि संभव हो तो शीघ्र-अतिशीघ्र अंडों या भ्रूण के संरक्षण जैसी पद्धतियों को अपनाना चाहिए।
इस संबंध में अधिक जानकारी के लिए डॉ. वैजयंती से svvjayanthi99@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।