लखीमपुर खीरी के एक गांव में एक गरीब दलित परिवार में आपस में जुड़ी हुई जुड़वा बच्चियों के जन्म से ना सिर्फ परिवार में खुशहाली आई है, बल्कि आर्थिक परेशानी की समस्या भी आन पड़ी है. ऐसे में बच्ची के माता-पिता ने मददगारों से आर्थिक सहायता की अपील की, जिससे नवजात शिशुओं की सर्जरी हो सके और उनका शरीर अलग हो सके. डंडूरी गांव में रहने वाले जुड़वा बच्चियों के पिता राम कुमार गौतम दिहाड़ी मजदूर हैं.
वहीं दूसरी ओर लखीमपुर खीरी में डॉक्टर इस बात को लेकर आश्चर्यचकित थे कि गुरुवार को जन्मी जुड़वा बच्चियों की डिलीवरी घर पर सुरक्षित रूप से हुई. डॉ. एसके सचान ने कहा, 'हम आश्चर्यचकित हैं कि होम डिलीवरी में संयुक्त जुड़वा बच्चे बच गए, जो ऐसे मामलों में संभावित कई जटिलताओं को देखते हुए दुर्लभ है.'
जुड़वां बच्चियां ओम्फालोपैगस होते हैं, उनका पेट आपस में मिला होता है. चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसे मामलों में नवजात के जीवित रहने की दर सिर्फ 5 से 25 प्रतिशत है. इस तरह के जुड़वा आमतौर पर एक लिवर के साथ पैदा होते हैं, लेकिन कई बार कुछ मामले अलग भी होते हैं, जिनमें छोटी आंत और पेट का निचला हिस्सा जुड़ा रहता है.
आमतौर पर संयुक्त शिशुओं को उनकी शारीरिक रचना के कारण सीजेरियन सेक्शन डिलीवरी की आवश्यकता होती है, लेकिन इस मामले में वे घर पर एक सामान्य प्रसव के माध्यम से पैदा हुई.
नवजातों को शुक्रवार सुबह उनके पिता सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए, जहां कर्मचारियों ने कहा कि वे स्वस्थ हैं. वहां से जुड़वा बच्चों को मेडिकल परीक्षण के लिए लखनऊ के एक अस्पताल में भेजा गया है.
मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ. मनोज अग्रवाल ने संवाददाताओं से कहा कि संयुक्त जुड़वा बच्चों की मृत्युदर बहुत अधिक है और उस पर लड़कियों के जन्म पर जीवित रहने की संभावना और कम हो जाती है. उन्होंने कहा, 'हम शिशुओं के इलाज की संभावना की जांच करेंगे.'