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आयुर्वेद से रखें अपने बुढ़ापे का ख्याल - स्वास्थ्य

बढ़ती उम्र के साथ व्यक्ति के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य में कई बदलाव होते है। परिणाम स्वरूप हम कई बीमारियों से घिरे नजर आते है। बुढ़ापे में होने वाली समस्याओं से बचाव के लिए आयुर्वेद में खास उपाय है। इसके बारे में आयुर्वेदाचार्य डॉ. रंगनायकूलू ने ETV भारत सुखीभवा को जानकारी सांझा की हैं।

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स्वस्थ बुढ़ापे के लिए अपनाएं आयुर्वेद
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Published : Mar 4, 2021, 3:26 PM IST

Updated : Mar 4, 2021, 5:16 PM IST

हम जैसे-जैसे उम्र का पड़ाव पार करते हैं, हमारे अंदर कई शारीरिक और मानसिक बदलाव आते हैं, यह बदलाव हमारे स्वास्थ्य को भी प्रभावित करते हैं, इसलिए आयुर्वेद ने उम्र के अनुसार लोगों का स्वास्थ्य परिक्षण शुरू किया जिसे-वय परीक्षण भी कहा जाता हैं।

आयुर्वेद के अनुसार जीवनकाल को कई हिस्सों या चरणों में बांटा गया हैं। पहला चरण है, जन्म से लेकर 30 साल तक का समय। दूसरा 30 साल से लेकर 60 साल तक का मध्य चरण, जो मनुष्य जीवन में सबसे अहम और भाग दौड़ वाला माना गया हैं और सबसे अंतिम चरण, जो कि 60 साल के उपर हैं-जिसे हम बुढ़ापा या वृद्ध अवस्था भी कहते हैं।

आयुर्वेद के अनुसार पहले चरण में (जन्म से 30 साल तक) कफ प्रवृति प्रबल होती हैं, वहीं मध्यम या दूसरे चरण में पित्त प्रवृति और अंतिम चरण यानि बुढ़ापे में वात दोष की प्रबलता होती है। इस प्रकार कफ, वात,और पित्त प्रवृतियों के अनुसार, दोषों यानि की बीमारियों की प्रबलता शरीर में बनी रहती है। समय के साथ-साथ शरीर की कर्म इंद्रियां (उठना-बैठना) और ज्ञानेंद्रियां (स्मरण शक्तियां) भी कमजोर हो जाती हैं।

वृद्धावस्था या बुढ़ापे में लोगों को किस प्रकार की बीमारियां का सामना करना पड़ता हैं। डॉ. रंगनायुकुलु के अनुसार अगर हम युवावस्था से ही अपने पाचन प्रक्रिया और रक्त संचारण पर ध्यान देते हैं, तो बुढ़ापें में हमें अस्पताल का रास्ता नहीं नापना पड़ेंगा। आयुर्वेद के अनुसार वह कौनसे नुस्खे हैं, जो आपको बुढ़ापे तक तंदुरूस्त रखेंगे, आइये जानते हैं।

खाना निगलने में परेशानी, कमजोर पाचन प्रक्रिया, भूख में कमी, पेट में जलन, अमलपित्त, कब्ज और मतली, यह आम पाचन संबंधी समस्याएं हैं, जो अक्सर लोगों को बुढ़ापे में परेशान करती हैं। हम यहां पर इन समस्याओं का समाधान बता रहें हैं।

  • हमेशा ताजा और गरम खाना खाएं।
  • दोपहर के भोजन से कम से कम 1 घंटे पहले एक छोटा चम्मच गाय का घी खाएं।
  • जहां तक हो सके गुनगुना पानी पिएं।
  • खाने के पहले 5 ग्राम हींगाष्टक चूर्ण 100 मि.ली. गुनगुने पानी के साथ लेने से खाना पचने में आसानी होती है।
  • पेट संबंधी बीमारी जैसे मतली या अतिसार (डायरिया) से परेशान है तो, 5 ग्राम दाडिमाष्टक चूर्ण 100 मि.ली. पतली छांछ के साथ लें।
  • कब्ज़ के लिए 10 ग्राम त्रिफला चूर्ण या पंचसकारा चूर्ण गुनगुने पानी के साथ लें।

हृदय संबंधी बीमारियां आजकल वृद्ध लोगों में बहुत ज्यादा देखी जा रही हैं। जैसे कि सीने में जलन, रक्त वाहिनियों में रुकावट, खून की कमी, अनियमित धड़कनें, आइये जानते है कि आयुर्वेद में इन सबके लिए कौनसे उपाय हैं।

  1. खाने के बाद दिन में एक बार 5 ग्राम अर्जुन चूर्ण या अर्जुन रसायन गुनगुने दूध के साथ लें।
  2. रोज सुबह कम से कम 3 महीने तक च्यवनप्राश लेह्यं लें।

पढ़े : आयुर्वेद से करें जेटलैग का इलाज

इसके अलावा नियमित अंतराल में यह टेस्ट अवश्य करवाएं;

  • ब्लड प्रेशर या रक्तचाप की जांच हर महीने करवाएं।
  • फीकल ऑकल्ट बल्ड टेस्टिंग।
  • सिग्मोइडोस्कोपी 5 साल में एक बार और कोलोनोस्कोपी 10 साल में एक बार।
  • हर 6 महीने में एक बार ई.सी.जी टेस्ट करवाएं।

हम जैसे-जैसे उम्र का पड़ाव पार करते हैं, हमारे अंदर कई शारीरिक और मानसिक बदलाव आते हैं, यह बदलाव हमारे स्वास्थ्य को भी प्रभावित करते हैं, इसलिए आयुर्वेद ने उम्र के अनुसार लोगों का स्वास्थ्य परिक्षण शुरू किया जिसे-वय परीक्षण भी कहा जाता हैं।

आयुर्वेद के अनुसार जीवनकाल को कई हिस्सों या चरणों में बांटा गया हैं। पहला चरण है, जन्म से लेकर 30 साल तक का समय। दूसरा 30 साल से लेकर 60 साल तक का मध्य चरण, जो मनुष्य जीवन में सबसे अहम और भाग दौड़ वाला माना गया हैं और सबसे अंतिम चरण, जो कि 60 साल के उपर हैं-जिसे हम बुढ़ापा या वृद्ध अवस्था भी कहते हैं।

आयुर्वेद के अनुसार पहले चरण में (जन्म से 30 साल तक) कफ प्रवृति प्रबल होती हैं, वहीं मध्यम या दूसरे चरण में पित्त प्रवृति और अंतिम चरण यानि बुढ़ापे में वात दोष की प्रबलता होती है। इस प्रकार कफ, वात,और पित्त प्रवृतियों के अनुसार, दोषों यानि की बीमारियों की प्रबलता शरीर में बनी रहती है। समय के साथ-साथ शरीर की कर्म इंद्रियां (उठना-बैठना) और ज्ञानेंद्रियां (स्मरण शक्तियां) भी कमजोर हो जाती हैं।

वृद्धावस्था या बुढ़ापे में लोगों को किस प्रकार की बीमारियां का सामना करना पड़ता हैं। डॉ. रंगनायुकुलु के अनुसार अगर हम युवावस्था से ही अपने पाचन प्रक्रिया और रक्त संचारण पर ध्यान देते हैं, तो बुढ़ापें में हमें अस्पताल का रास्ता नहीं नापना पड़ेंगा। आयुर्वेद के अनुसार वह कौनसे नुस्खे हैं, जो आपको बुढ़ापे तक तंदुरूस्त रखेंगे, आइये जानते हैं।

खाना निगलने में परेशानी, कमजोर पाचन प्रक्रिया, भूख में कमी, पेट में जलन, अमलपित्त, कब्ज और मतली, यह आम पाचन संबंधी समस्याएं हैं, जो अक्सर लोगों को बुढ़ापे में परेशान करती हैं। हम यहां पर इन समस्याओं का समाधान बता रहें हैं।

  • हमेशा ताजा और गरम खाना खाएं।
  • दोपहर के भोजन से कम से कम 1 घंटे पहले एक छोटा चम्मच गाय का घी खाएं।
  • जहां तक हो सके गुनगुना पानी पिएं।
  • खाने के पहले 5 ग्राम हींगाष्टक चूर्ण 100 मि.ली. गुनगुने पानी के साथ लेने से खाना पचने में आसानी होती है।
  • पेट संबंधी बीमारी जैसे मतली या अतिसार (डायरिया) से परेशान है तो, 5 ग्राम दाडिमाष्टक चूर्ण 100 मि.ली. पतली छांछ के साथ लें।
  • कब्ज़ के लिए 10 ग्राम त्रिफला चूर्ण या पंचसकारा चूर्ण गुनगुने पानी के साथ लें।

हृदय संबंधी बीमारियां आजकल वृद्ध लोगों में बहुत ज्यादा देखी जा रही हैं। जैसे कि सीने में जलन, रक्त वाहिनियों में रुकावट, खून की कमी, अनियमित धड़कनें, आइये जानते है कि आयुर्वेद में इन सबके लिए कौनसे उपाय हैं।

  1. खाने के बाद दिन में एक बार 5 ग्राम अर्जुन चूर्ण या अर्जुन रसायन गुनगुने दूध के साथ लें।
  2. रोज सुबह कम से कम 3 महीने तक च्यवनप्राश लेह्यं लें।

पढ़े : आयुर्वेद से करें जेटलैग का इलाज

इसके अलावा नियमित अंतराल में यह टेस्ट अवश्य करवाएं;

  • ब्लड प्रेशर या रक्तचाप की जांच हर महीने करवाएं।
  • फीकल ऑकल्ट बल्ड टेस्टिंग।
  • सिग्मोइडोस्कोपी 5 साल में एक बार और कोलोनोस्कोपी 10 साल में एक बार।
  • हर 6 महीने में एक बार ई.सी.जी टेस्ट करवाएं।
Last Updated : Mar 4, 2021, 5:16 PM IST
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