टेक्सास एएंडएम यूनिवर्सिटी (TAMU) के कॉलेज स्टेशन में आयोजित हुए एक अध्ययन से पता चलता है कि पालक की सब्जी शरीर में नॉनजेनेटिक या जेनेटिक कोलन कैंसर वाले लोगों में पॉलीप वृद्धि को रोकने में सक्षम है. शोध में यह भी सामने आया कि पालक के इस्तेमाल के चलते नजर आने वाले एंटी-पॉलीप प्रभाव, चयापचय अंतःक्रियाओं से उत्पन्न होते हैं . शोध के नतीजों के अनुसार पालक, कोलन पॉलीप्स के विकास को रोकता है, जिससे कोलोरेक्टल कैंसर में कोलन कैंसर और रेक्टल कैंसर का जोखिम काफी हद तक कम हो सकता है .
गौरतलब है कि कोलोरेक्टल कैंसर दुनिया भर में सबसे प्रचलित कैंसर की श्रंखला में तीसरे नंबर पर आता है. इसके कारणों की बात करें तो आमतौर पर मात्र 10 से 15 प्रतिशत में वंशानुगत यानी आनुवंशिक -पारिवारिक कारणों को जिम्मेदार माना जाता हैं, इसके अलावा, केवल 5-10% कोलोरेक्टल कैंसर पॉलीप्स की वृद्धि के कारण होते हैं.
टीएएमयू हेल्थ साइंस सेंटर के इस अध्ययन में पालक के कैंसर विरोधी गुणों की पुष्टि करने के साथ इस बात का भी अध्धयन किए गया था कि पालक, लाभकारी प्रभावों के लिये आंत के बैक्टीरिया और आनुवंशिकी के साथ कैसे कार्य करता है.
अध्ययन पत्रिका गट माइक्रोब्स में प्रकाशित इस शोध में शोधकर्ताओं ने 26 सप्ताह तक पारिवारिक एडिनोमेटस पॉलीपोसिस वाले चूहों को फ्रीज कर सूखा पालक खिलाया था. अध्ययन में इन चूहों के शरीर में पॉलीप के विकास में देरी देखी गई. इस अध्ययन में यह समझने के लिए कि पॉलीप विकास को धीमा करने में पालक इतना प्रभावी क्यों था, शोधकर्ताओं ने मल्टी-ओमिक्स नामक डेटा-संचालित पद्धति का उपयोग किया, था. गौरतलब है की मल्टी-ओमिक्स शरीर में विभिन्न प्रणालियों के डेटा का विश्लेषण करता है और ऐसे संघों की तलाश करता है जो अनुसंधान के संभावित क्षेत्रों का सुझाव दे सकें.
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने तीन प्रणालियों के नमूनों का विश्लेषण किया:
- माइक्रोबायोम — लाभकारी और हानिकारक आंत रोगाणु
- प्रतिलेख - आरएनए और एमआरएनए का संग्रह जो कोशिकाओं या ऊतक व्यक्त करते हैं
- उपापचयी — उपापचयी क्रिया के दौरान कोशिकाएं जो उपापचयी पदार्थ उत्पन्न करती हैं
शोध में टीएएमयू के इंटीग्रेटेड मेटाबोलॉमिक्स एनालिसिस कोर ने शोध के दौरान तथा उपरांत चूहों की मेटाबॉलिक क्षमता का विश्लेषण किया था. जिसके नतीजों में शोधकर्ताओं ने चूहों में पॉलीप्स के विकास को दबाने के लिए पालक की क्षमता की पुष्टि की थी.
शोध के वरिष्ठ अन्वेषक डॉ. रोडरिक डैशवुड ने शोध के विश्लेषण तथा परिणामों के बारें में जानकारी देते हुए बताया कि शोध में क्लोरोफिल की भूमिका का अध्धयन एक अहम बिन्दु था, क्योंकि क्लोरोफिल में एंटीकैंसर प्रभाव पाए जाते हैं, लेकिन शोध में इसके अतिरिक्त बहु-ओमिक्स दृष्टिकोण ने शोध के नतीजों को काफी प्रेरित किया.
गौरतलब है कि शोधकर्ताओं ने अपने पशु मॉडल में लिनोलिक एसिड मेटाबोलाइट्स और शॉर्ट-चेन फैटी एसिड के एंटीकैंसर गुणों की और जांच करने की योजना बनाई थी, जिसके नतीजों में विशेषकर मेटाबॉलिक डेटा में सामने आया कि फैटी एसिड और लिनोलिक एसिड डेरिवेटिव काफी लाभकारी प्रभाव पैदा कर सकते हैं.