वैसे तो हमें नींद के विषय में अधिक सोच विचार करने की आवश्यकता नहीं पड़नी चाहिए, क्योंकि नींद हमारी दिनचर्या का एक अभिन्न अंग है. लेकिन आजकल नींद की कमी बच्चों और किशोरों में एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आ रही है. ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस के द्वारा हाल ही में किये गए एक शोध से पता चला है ही भारत के शहरों में 22 प्रतिशत बच्चे नींद की कमी से ग्रस्त हैं, वहीं गावों के 35 प्रतिशत बच्चों को यह समस्या है.
इस विषय में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए हमने एक मनोविज्ञान के विशेषज्ञ से बात चीत की. कलकत्ता विश्वविद्यालय की मनोविज्ञान की अध्यापिका, डॉ. चांदना आदित्य कहती हैं की यदि आपकी आयु 18 वर्ष से अधिक है, तो आपके लिए 6-8 घंटे की नींद अति आवश्यक है. लेकिन गौर करने वाली बात यह है की अधिकतर किशोर इस अनिवार्य निद्रा अवधि की पूर्ती नहीं कर पाते. डॉ. आदित्य मानती हैं की आज कल युवाओं को नींद की कमी कई कारणों से हो सकती है. जिनमें प्रमुख हैं देर रात मोबाइल फोन का प्रयोग करना ,सोने का कोई तय समय ना होना, काम या निजी जीवन से सम्बंधित स्ट्रेस या एंग्जायटी होना और डिप्रेशन जैसी मानसिक बीमारी होना. इसके अलावा नींद आने में परेशानी कुछ शारीरिक कारणों से भी हो सकती है जैसे, हॉर्मोनल बदलाव, मोटापा, कमजोर इम्यून और नर्वस सिस्टम, हृदय रोग इत्यादि.
तथा एक लम्बे समय तक नींद की कमी होने से आपको अनिद्रा जैसी बीमारी होने की भी सम्भावना हो सकती है. यहां यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है की नींद की कमी एक अस्थायी अवस्था है और अनिद्रा एक रोग. दरअसल अनिद्रा एक अस्थिर जीवन शैली का फल भी है और कई अन्य बीमारियों का स्त्रोत भी. चिंताजनक विषय यह है की एक लम्बे समय तक नींद की कमी से ग्रस्त होना आपके मानसिक एवं भावनात्मक अवस्था पर गहन प्रभाव डाल सकता है, जिससे कई मानसिक रोगों का जन्म संभव है.
डॉ. आदित्य बताती हैं कि यदि आपको निरंतर तीन सप्ताह सोने में और शुप्त रहने में परेशानी हो रही है तो, इसका सबसे पहला असर शारीरिक और मानसिक थकान हो सकता है. अर्थात, सो कर उठने के बाद भी आप क्लांत और कमजोरी महसूस करेंगे. यहां तक की अपनी दिनचर्या का छोटे से छोटा काम भी आपको कठिन लगेगा. यह स्थिति अगर बरकरार रही, तो आगे चल कर आपको स्मृति लोप यानि भूलने की बीमारी भी हो सकती है. चिड़चिड़ापन, उदासीनता, क्रोध, आवेग, इत्यादि, अनिद्रा के फल हैं. गौर करने वाली बात यह भी है की जैसे ही आपकी मानसिक स्थिति में परिवर्तन आने लगेंगे, आपकी जीवन शैली भी बदलने लगेगी. आपके खान पान के पैटर्न में बदलाव आने लगेंगे, संभव है की आप बहुत अधिक या बहुत कम भोजन का सेवन करने लगे. रोजमर्रा के कामों में आपकी दिलचस्पी कम होने लग सकती हैं और आगे चल कर यदि इस स्थिति की वृद्धि होती रही, तो आपको डिप्रेशन की समस्या भी हो सकती है.
आपके आचरण और व्यवहार में आने वाले इन बदलावों से आपके व्यवसायिक जीवन और निजी जीवन में परेशानियों का जन्म होना स्वाभाविक है, जो आपके मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को और अधिक हानि पहुंचने का काम करेगी. जिससे पता चलता है की अनिद्रा और मानसिक अवसाद एक साइकिल की तरह काम करते हैं.
परन्तु डॉ. आदित्य के अनुसार ऐसी कुछ चीजें हैं, जिनका सोने से पहले ध्यान रखा जाये तो आप नींद से जुड़ी परेशानियों से दूर रह सकते हैं. जिनमें से प्रमुख है सोने का तय समय होना, साथ ही अपने बेडरूम में व्यावसायिक काम ना करना और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जैसे मोबाइल लैपटॉप इत्यादि को सोने से पहले स्विच ऑफ कर देना. देर रात भोजन ना करना, अपने बेडरूम को साफ सुथरा रखना, एंग्जायटी और स्ट्रेस को कम करने के लिए गुनगुने पानी में सोने से पहले स्नान करना भी आपको निद्रालु करने में मदद करेंगे.
और अंत में, किशोरों को ये बात ध्यान में अवश्य रखनी चाहिए की देर रात सोशल मीडिया का उपयोग ना करना, लैपटॉप से दूर रहना, बेहतर निद्रा की प्राप्ति के तरफ आपका सबसे बड़ा कदम है.