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Groundwater Leval In India : जलवायु परिवर्तन से भारत में भूजल गिरावट की दर तीन गुना हो जाएगी : अध्ययन से खुलासा

आने वाले समय में भारत में जल संकट और भी गहरा हो सकता है. ताजा शोध के आधार पर वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि भूजल गिरावट की दर तीन गुना हो जाएगी. पढ़ें पूरी खबर..

Groundwater Leval In India
भूजल गिरावट की दर
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 1, 2023, 10:52 PM IST

न्यूयॉर्क : बढ़ते तापमान के कारण 2080 तक भारत में भूजल के नुकसान की दर तीन गुना हो सकती है, जिससे देश की खाद्य और जल सुरक्षा को और खतरा हो सकता है. साइंस एडवांसेज जर्नल में ऑनलाइन प्रकाशित अध्ययन से पता चला है कि भारत में किसानों ने सिंचाई के लिए उपयोग किए जाने वाले भूजल की निकासी को तेज करके बढ़ते तापमान को अनुकूलित कर लिया है.

यदि यही ट्रेंड जारी रहा तो भूजल गिरावट की दर तीन गुना हो सकती है. भूजल की कमी और जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में पानी की उपलब्धता में कमी से देश के 1.4 अरब निवासियों में से एक तिहाई से अधिक की आजीविका को खतरा हो सकता है. मिशिगन यूनिवर्सिटी के स्कूल फॉर एनवायरनमेंट एंड सस्टेनेबिलिटी में सहायक प्रोफेसर मेहा जैन ने कहा कि हमने पाया है कि किसान पहले से ही बढ़ते तापमान के जवाब में सिंचाई का उपयोग बढ़ा रहे हैं, एक अनुकूलन रणनीति जिसे भारत में भूजल की कमी के पिछले अनुमानों में शामिल नहीं किया गया है.

भारत दुनिया में भूजल का सबसे बड़ा उपभोक्ता है और क्षेत्रीय और वैश्विक खाद्य आपूर्ति के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन है.यह देखते हुए यह चिंता का विषय है.भारत चावल और गेहूं सहित सामान्य अनाज का दूसरा सबसे बड़ा वैश्विक उत्पादक है. अध्ययन में वार्मिंग के कारण निकासी दरों में हाल के बदलावों को देखने के लिए भूजल स्तर, जलवायु और फसल जल तनाव पर ऐतिहासिक डेटा का विश्लेषण किया गया.

शोधकर्ताओं ने पूरे भारत में भूजल हानि की भविष्य की दरों का अनुमान लगाने के लिए 10 जलवायु मॉडलों के तापमान और वर्षा अनुमानों का भी उपयोग किया. नए अध्ययन में इस तथ्य को भी ध्यान में रखा गया है कि वार्मर तापमान से तनावग्रस्त फसलों के लिए पानी की मांग बढ़ सकती है, जिसके कारण किसानों को सिंचाई में वृद्धि करनी पड़ सकती है.

पिछले अध्ययनों से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन से सदी के मध्य तक प्रमुख भारतीय फसलों की उपज में 20 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है. साथ ही, देश का भूजल चिंताजनक दर से कम हो रहा है, जिसका मुख्य कारण सिंचाई के लिए पानी की निकासी है.अनुसंधान दल ने यह भी पाया कि तापमान में वृद्धि के साथ-साथ शीतकालीन वर्षा में गिरावट के कारण मानसूनी वर्षा में वृद्धि से भूजल पुनर्भरण में वृद्धि हुई, जिसके परिणामस्वरूप भूजल में तेजी से गिरावट आई.

विभिन्न जलवायु परिवर्तन सिनेरियो में 2041 और 2080 के बीच भूजल-स्तर में गिरावट का उनका अनुमान औसतन वर्तमान कमी दर से तीन गुना अधिक था. ओक्लाहोमा विश्वविद्यालय में भूगोल और पर्यावरण स्थिरता विभाग के प्रमुख लेखक निशान भट्टाराई ने कहा कि अपने मॉडल अनुमानों का उपयोग करते हुए, हम अनुमान लगाते हैं कि सामान्य व्यवसाय सिनेरियो के तहत, बढ़ता तापमान भविष्य में भूजल की कमी की दर को तीन गुना कर सकता है. दक्षिण और मध्य भारत को शामिल करने के लिए भूजल की कमी वाले हॉटस्पॉट का विस्तार कर सकता है. उन्होंने भूजल संरक्षण के लिए मजबूत नीतियों और हस्तक्षेपों का सुझाव दिया है.
(आईएएनएस).

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न्यूयॉर्क : बढ़ते तापमान के कारण 2080 तक भारत में भूजल के नुकसान की दर तीन गुना हो सकती है, जिससे देश की खाद्य और जल सुरक्षा को और खतरा हो सकता है. साइंस एडवांसेज जर्नल में ऑनलाइन प्रकाशित अध्ययन से पता चला है कि भारत में किसानों ने सिंचाई के लिए उपयोग किए जाने वाले भूजल की निकासी को तेज करके बढ़ते तापमान को अनुकूलित कर लिया है.

यदि यही ट्रेंड जारी रहा तो भूजल गिरावट की दर तीन गुना हो सकती है. भूजल की कमी और जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में पानी की उपलब्धता में कमी से देश के 1.4 अरब निवासियों में से एक तिहाई से अधिक की आजीविका को खतरा हो सकता है. मिशिगन यूनिवर्सिटी के स्कूल फॉर एनवायरनमेंट एंड सस्टेनेबिलिटी में सहायक प्रोफेसर मेहा जैन ने कहा कि हमने पाया है कि किसान पहले से ही बढ़ते तापमान के जवाब में सिंचाई का उपयोग बढ़ा रहे हैं, एक अनुकूलन रणनीति जिसे भारत में भूजल की कमी के पिछले अनुमानों में शामिल नहीं किया गया है.

भारत दुनिया में भूजल का सबसे बड़ा उपभोक्ता है और क्षेत्रीय और वैश्विक खाद्य आपूर्ति के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन है.यह देखते हुए यह चिंता का विषय है.भारत चावल और गेहूं सहित सामान्य अनाज का दूसरा सबसे बड़ा वैश्विक उत्पादक है. अध्ययन में वार्मिंग के कारण निकासी दरों में हाल के बदलावों को देखने के लिए भूजल स्तर, जलवायु और फसल जल तनाव पर ऐतिहासिक डेटा का विश्लेषण किया गया.

शोधकर्ताओं ने पूरे भारत में भूजल हानि की भविष्य की दरों का अनुमान लगाने के लिए 10 जलवायु मॉडलों के तापमान और वर्षा अनुमानों का भी उपयोग किया. नए अध्ययन में इस तथ्य को भी ध्यान में रखा गया है कि वार्मर तापमान से तनावग्रस्त फसलों के लिए पानी की मांग बढ़ सकती है, जिसके कारण किसानों को सिंचाई में वृद्धि करनी पड़ सकती है.

पिछले अध्ययनों से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन से सदी के मध्य तक प्रमुख भारतीय फसलों की उपज में 20 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है. साथ ही, देश का भूजल चिंताजनक दर से कम हो रहा है, जिसका मुख्य कारण सिंचाई के लिए पानी की निकासी है.अनुसंधान दल ने यह भी पाया कि तापमान में वृद्धि के साथ-साथ शीतकालीन वर्षा में गिरावट के कारण मानसूनी वर्षा में वृद्धि से भूजल पुनर्भरण में वृद्धि हुई, जिसके परिणामस्वरूप भूजल में तेजी से गिरावट आई.

विभिन्न जलवायु परिवर्तन सिनेरियो में 2041 और 2080 के बीच भूजल-स्तर में गिरावट का उनका अनुमान औसतन वर्तमान कमी दर से तीन गुना अधिक था. ओक्लाहोमा विश्वविद्यालय में भूगोल और पर्यावरण स्थिरता विभाग के प्रमुख लेखक निशान भट्टाराई ने कहा कि अपने मॉडल अनुमानों का उपयोग करते हुए, हम अनुमान लगाते हैं कि सामान्य व्यवसाय सिनेरियो के तहत, बढ़ता तापमान भविष्य में भूजल की कमी की दर को तीन गुना कर सकता है. दक्षिण और मध्य भारत को शामिल करने के लिए भूजल की कमी वाले हॉटस्पॉट का विस्तार कर सकता है. उन्होंने भूजल संरक्षण के लिए मजबूत नीतियों और हस्तक्षेपों का सुझाव दिया है.
(आईएएनएस).

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