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स्वस्थ और सुरक्षित जीवन के लिए जरूरी है प्रीमेच्योर बच्चों की ज्यादा देखभाल

समय पूर्व जन्‍मे शिशुओं की उचित देखभाल को लेकर लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से हर साल 17 नवंबर को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा विश्व प्रीमेच्योरिटी दिवस मनाया जाता है.

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विश्व प्रीमेच्योरिटी दिवस 2021
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Published : Nov 17, 2021, 1:19 PM IST

समय से पूर्व जन्म लेने वाले बच्चों की देखभाल में जरा सी कोताही उनकी जान पर भारी पड़ सकती है. यहीं नही यदि प्रीमेच्योर बच्चों की देखभाल में जरा सी भी कमी रह जाय तो वे गंभीर रोगों का शिकार भी बन सकते हैं. उदारहण के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में रेटिनोपैथी ऑफ़ प्रीमेच्योरिटी (ROP/आर.ओ.पी.) के कारण प्रत्येक वर्ष लगभग 5 लाख बच्चों की आँखों की रोशनी प्रभावित होती है एवं उपचार के अभाव में 50 हजार से अधिक बच्चे एडवांस आर.ओ.पी. के कारण हमेशा के लिए अंधपन का शिकार बन जाते हैं. सिर्फ आर.ओ.पी. ही नही और भी बहुत सी समस्याएं हैं जो प्रीमेच्योर बच्चों के लिए खतरनाक साबित हो सकती हैं.

समय से पूर्व जन्मे बच्चों में होने वाले रोगों , समस्याओं तथा ऐसे बच्चों की देखभाल से जुड़ी जरूरी बातों को लेकर दुनियाभर में लोगों को अवगत व जागरूक करने के उद्देश्य से विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के तत्वावधान में हर वर्ष 17 नवंबर को विश्व प्रीमेच्योरिटी दिवस (World Prematurity Day) मनाया जाता है. इस दिवस को मनाए जाने जाने का मूल उद्देश्य यह है की ज्यादा से ज्यादा संख्या में प्रीमेच्योर बच्चों को रोग मुक्त तथा सुरक्षित जीवन मिल सके.

बीमारियों को लेकर संवेदनशील होते हैं प्रीमेच्योर बच्चें

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार विश्वभर में प्रत्येक दिन 3 लाख 60 हजार बच्चे जन्म लेते हैं. जिनमें से लगभग 10 प्रतिशत बच्चे प्रीमेच्योर होते है. समय से पूर्व जन्में ये बच्चे कई बीमारियों को लेकर संवेदनशील होते हैं, यहाँ तक की यदि इनकी सही देखभाल ना हो तो इनका जीवन बचाना भी मुश्किल हो जाता है.

गर्भावस्था के नौ महीनों की अवधि में जिन शिशुओं का जन्म 36 सप्ताह से पहले हो जाता है, उन्हें प्रीमेच्योर यानी समय से पूर्व जन्मे बच्चे कहा जाता है. चूंकि माता के गर्भ में पूरी तरह से विकसित होने से पहले ही इन बच्चों का जन्म हो जाता है, ऐसे में ये बच्चे शारीरिक रूप से काफी कमजोर होते हैं. समय से पहले जन्में नवजात शिशुओं की देखभाल में जरा सी भी लापरवाही बरतना, उनकी जान के लिए खतरनाक हो सकती है. इसलिए आमतौर पर ऐसे बच्चे , जन्म के उपरांत भी लंबे समय तक अस्पताल में इंडयूबेटर में चिकित्सकों की निगरानी में रहते हैं. लेकिन घर आने के बाद भी शुरुआती दिनों में इनकी देखभाल बहुत ज्यादा जरूरी होती है.

कैसे रखे समय से पहले जन्में बच्चों का ध्यान

सुरक्षा के मद्देनजर अस्पताल से घर आने के बाद भी प्रीमेच्योर बच्चों की देखभाल काफी सावधानी से करनी चाहिए तथा उनके आसपास साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए. इसके अतिरिक्त भी कुछ अन्य बातों को ध्यान में रखना बहुत जरूरी हो जाता है, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं।

  • संक्रमण से बचाएं
    समय से पूर्व जन्मे बच्चों में संक्रमण का खतरा काफी ज्यादा होता है. ऐसे में बच्चे को घर लाने के बाद घर और बाहरी लोगों के सीधे संपर्क में आने से बचाना चाहिए.
  • ज्यादा देर तक माता के पास ही रहें बच्चा
    कंगारू केयर के नियमों के तहत प्रीमेच्योर बच्चों को माता को अधिकांश समय अपने शरीर के पास ही रखना चाहिए. इससे बच्चे के शरीर में गर्मी बनी रहेगी साथ ही माता से स्पर्श से वह ज्यादा सुरक्षित भी महसूस करेगा. साथ ही उसका विकास भी जल्दी होगा।
  • नियमित चिकित्सीय जांच जरूरी
    प्रीमेच्योर बच्चों की देखभाल चिकित्सकों के दिशानिर्देशों के अनुसार ही होनी चाहिए. इसके अलावा जरा से समस्या नजर आने पर तत्काल चिकित्सक से परामर्श जरूरी होता है. ऐसे बच्चे को सांस और आंखों से संबंधित रोग व समस्याएं अधिक होते हैं, ऐसे में नियमित रूप से चेकअप कराने से आपको पता चलता रहेगा कि उसका विकास ठीक तरीके से हो रहा है या नहीं

पढ़ें: कैसे करें बच्चे में खानपान की सही आदतों का विकास

समय से पूर्व जन्म लेने वाले बच्चों की देखभाल में जरा सी कोताही उनकी जान पर भारी पड़ सकती है. यहीं नही यदि प्रीमेच्योर बच्चों की देखभाल में जरा सी भी कमी रह जाय तो वे गंभीर रोगों का शिकार भी बन सकते हैं. उदारहण के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में रेटिनोपैथी ऑफ़ प्रीमेच्योरिटी (ROP/आर.ओ.पी.) के कारण प्रत्येक वर्ष लगभग 5 लाख बच्चों की आँखों की रोशनी प्रभावित होती है एवं उपचार के अभाव में 50 हजार से अधिक बच्चे एडवांस आर.ओ.पी. के कारण हमेशा के लिए अंधपन का शिकार बन जाते हैं. सिर्फ आर.ओ.पी. ही नही और भी बहुत सी समस्याएं हैं जो प्रीमेच्योर बच्चों के लिए खतरनाक साबित हो सकती हैं.

समय से पूर्व जन्मे बच्चों में होने वाले रोगों , समस्याओं तथा ऐसे बच्चों की देखभाल से जुड़ी जरूरी बातों को लेकर दुनियाभर में लोगों को अवगत व जागरूक करने के उद्देश्य से विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के तत्वावधान में हर वर्ष 17 नवंबर को विश्व प्रीमेच्योरिटी दिवस (World Prematurity Day) मनाया जाता है. इस दिवस को मनाए जाने जाने का मूल उद्देश्य यह है की ज्यादा से ज्यादा संख्या में प्रीमेच्योर बच्चों को रोग मुक्त तथा सुरक्षित जीवन मिल सके.

बीमारियों को लेकर संवेदनशील होते हैं प्रीमेच्योर बच्चें

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार विश्वभर में प्रत्येक दिन 3 लाख 60 हजार बच्चे जन्म लेते हैं. जिनमें से लगभग 10 प्रतिशत बच्चे प्रीमेच्योर होते है. समय से पूर्व जन्में ये बच्चे कई बीमारियों को लेकर संवेदनशील होते हैं, यहाँ तक की यदि इनकी सही देखभाल ना हो तो इनका जीवन बचाना भी मुश्किल हो जाता है.

गर्भावस्था के नौ महीनों की अवधि में जिन शिशुओं का जन्म 36 सप्ताह से पहले हो जाता है, उन्हें प्रीमेच्योर यानी समय से पूर्व जन्मे बच्चे कहा जाता है. चूंकि माता के गर्भ में पूरी तरह से विकसित होने से पहले ही इन बच्चों का जन्म हो जाता है, ऐसे में ये बच्चे शारीरिक रूप से काफी कमजोर होते हैं. समय से पहले जन्में नवजात शिशुओं की देखभाल में जरा सी भी लापरवाही बरतना, उनकी जान के लिए खतरनाक हो सकती है. इसलिए आमतौर पर ऐसे बच्चे , जन्म के उपरांत भी लंबे समय तक अस्पताल में इंडयूबेटर में चिकित्सकों की निगरानी में रहते हैं. लेकिन घर आने के बाद भी शुरुआती दिनों में इनकी देखभाल बहुत ज्यादा जरूरी होती है.

कैसे रखे समय से पहले जन्में बच्चों का ध्यान

सुरक्षा के मद्देनजर अस्पताल से घर आने के बाद भी प्रीमेच्योर बच्चों की देखभाल काफी सावधानी से करनी चाहिए तथा उनके आसपास साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए. इसके अतिरिक्त भी कुछ अन्य बातों को ध्यान में रखना बहुत जरूरी हो जाता है, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं।

  • संक्रमण से बचाएं
    समय से पूर्व जन्मे बच्चों में संक्रमण का खतरा काफी ज्यादा होता है. ऐसे में बच्चे को घर लाने के बाद घर और बाहरी लोगों के सीधे संपर्क में आने से बचाना चाहिए.
  • ज्यादा देर तक माता के पास ही रहें बच्चा
    कंगारू केयर के नियमों के तहत प्रीमेच्योर बच्चों को माता को अधिकांश समय अपने शरीर के पास ही रखना चाहिए. इससे बच्चे के शरीर में गर्मी बनी रहेगी साथ ही माता से स्पर्श से वह ज्यादा सुरक्षित भी महसूस करेगा. साथ ही उसका विकास भी जल्दी होगा।
  • नियमित चिकित्सीय जांच जरूरी
    प्रीमेच्योर बच्चों की देखभाल चिकित्सकों के दिशानिर्देशों के अनुसार ही होनी चाहिए. इसके अलावा जरा से समस्या नजर आने पर तत्काल चिकित्सक से परामर्श जरूरी होता है. ऐसे बच्चे को सांस और आंखों से संबंधित रोग व समस्याएं अधिक होते हैं, ऐसे में नियमित रूप से चेकअप कराने से आपको पता चलता रहेगा कि उसका विकास ठीक तरीके से हो रहा है या नहीं

पढ़ें: कैसे करें बच्चे में खानपान की सही आदतों का विकास

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