रोग चाहे जो भी हो अस्पताल से ठीक हो कर घर जाने के उपरांत रोगी की सही तरीके से देखभाल बहुत जरूरी है, अन्यथा व्यक्ति के स्वास्थ्य तथा उसके पूरी तरह से ठीक होने की रफ्तार पर असर पड सकता है । विशेषतौर पर यदि कोविड-19 से ठीक हो चुके मरीजों के बारे में भी बात की जाय तो बहुत जरूरी है कि अस्पताल से ठीक हो कर घर आने के उपरांत भी उनकी सही देखभाल की जाए अन्यथा उन्हे विभिन्न प्रकार के संक्रमण तथा समस्याओं का खतरा हो सकता है। यहीं नही ऐसा ना करने से न सिर्फ उनकी रिकवरी में देरी आती है बल्कि उनके स्वास्थ्य पर दूरगामी असर भी नजर आ सकते हैं।
अस्पताल से घर आने के उपरांत कोरोना के मरीजों की देखभाल किस प्रकार से की जानी चाहिए, इस बारे में ज्यादा जानकारी लेने के लिए ETV भारत सुखीभवा ने रिनयू क्लिनिक हैदराबाद के विशेषज्ञ तथा फिजीशियन डॉ राजेश वुक्काला से बात की।
क्यों जरूरी है देखभाल
- हाइपॉक्सेमिया तथा हाइपोग्लाइसीमिया का खतरा
डॉक्टर वुक्काला बताते हैं कि मरीज के अस्पताल से घर आने के बाद भी नियमित रूप से उसके ऑक्सीजन के स्तर की जांच करते रहना बहुत जरूरी है। यही नही यदि जरूरत महसूस हो तो चिकित्सक की सलाह पर फेफड़ों से संबंधित व्यायामों के लिए फिजियोथैरेपिस्ट की मदद भइ लि जा सकती है। पीडित के स्वास्थ्य की सही देखभाल न होने पर कई बार मरीज में हाइपॉक्सेमिया की समस्या विकसित हो सकती है। हाइपॉक्सेमिया एक ऐसी समस्या है जिसमें व्यक्ति के मस्तिष्क के कार्य भी प्रभावित हो सकते हैं । जिनके चलते उन्हे लगातार नींद आने , बेहोशी या नींद में बड़बड़ाने तथा विभ्रम जैसी समस्या हो सकती है।
आमतौर पर अस्पताल से घर पहुंचने के बाद भी कई लोगों को चिकित्सक ऑक्सीजन सिलेंडर या कंसंट्रेटर साथ रखने की सलाह देते हैं। लेकिन घर पहुंचने के बाद आमतौर पर व्यक्ति सामान्य रूप से चलना फिरना शुरु कर देते हैं और कम मात्रा में ऑक्सीजन सिलेंडर या कंसंट्रेटर का उपयोग करते हैं। दरअसल जब व्यक्ति चलने फिरने लगता है तो उसके शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा पर असर पड़ता है। कई बार यह स्थिति भी हाइपॉक्सेमिया का कारण बन सकती है।
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इस बारे में अब लगभग सभी लोग वाकिफ हैं कि मधुमेह जैसी समस्या में कोविड-19 का असर ज्यादा घातक हो सकता है। वहीं शरीर में रक्त शर्करा का स्तर कोविड-19 से ठीक होने की रफ्तार को भी काफी प्रभावित करता है और विभिन्न प्रकार के संक्रमणों की निमंत्रण देता है । शरीर में रक्त शर्करा का स्तर में ज्यादा कमी या बढ़ोतरी दोनों ही मस्तिष्क पर असर डालती है।
वही कोविड-19 के इलाज के दौरान मधुमेह से पीड़ित व्यक्तियों को स्टेरॉयड की अतिरिक्त डोज भी दी जाती है, जिसका शरीर पर चिंतनीय असर हो सकता है। इसके कारण कई बार पीड़ित को हाइपोग्लाइसीमिया होने का खतरा हो सकता है। कोविड-19 से ठीक हो चुके लोगों में मधुमेह के लक्षण नजर आने की आशंका भी काफी ज्यादा होती है, ऐसे में यदि समय पर व्यक्ति में मधुमेह होने का पता नही चलता है तो भी व्यक्ति में हाइपोग्लाइसीमिया के विकसित होने की आशंका बढ़ जाती है। यह समस्या भी मस्तिष्क के कार्य को प्रभावित कर सकता है। इस परिस्थिति में मस्तिष्क में उत्पन्न इलेक्ट्रोलाइट विरोध मस्तिष्क को प्रभावित कर सकता हैं। अनियंत्रित हाइपोग्लाइसीमिया कई बार ब्रेन स्ट्रोक का कारण भी बन सकता है।
डॉक्टर वुक्काला बताते हैं कि बहुत जरूरी है कि अस्पताल से घर आने के उपरांत व्यक्ति के शरीर के सोडियम के स्तर को भी नियमित तौर पर जांचा जाए। आमतौर पर इन परिस्थितियों में दवाइयों तथा रोग के शरीर, विशेषकर मस्तिष्क पर विपरीत प्रभाव के चलते व्यक्ति के शरीर में सोडियम का स्तर कम हो जाता है। आमतौर पर यह समस्या उन लोगों में ज्यादा सामने आती है जो विभिन्न प्रकार की कोमोरबिडिटी से पीड़ित हो जैसे उच्च रक्तचाप, मिर्गी या न्यूरोपैथी और जिनके लिए व्यक्ति लंबे समय से दवाइयों का सेवन भी कर रहा हो।
ऐसे भी बहुत जरूरी हो जाता है कि जब पीड़ित को अस्पताल से छुट्टी दी जाए तो चिकित्सक इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए पीड़ित को निर्देशित करें कि उसे क्या सावधानीयां बरतनी है तथा कौन सी दवाई कैसे और कब लेनी है।
आवाज की देखभाल के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से भी कुछ निर्देश जारी किए गए हैं जो इस प्रकार हैं:
- वोकल कॉर्ड्स पर असर
डॉक्टर वुक्काला बताते हैं कि इलाज के दौरान यदि किसी व्यक्ति को वेंटिलेटर पर रखा जाता है तो उसके मुंह में ट्यूब डाली जाती है। जिससे व्यक्ति की वोकल कॉर्ड्स पर असर पड़ता है। आमतौर पर ऐसे लोगों में इलाज के उपरांत आवाज के साथ कुछ परेशानियां देखने में आती हैं जो समय के साथ ठीक भी हो सकती है। लेकिन यदि आवाज के सामान्य होने में देरी हो रही हो या फिर कुछ अन्य समस्याएं महसूस हो रही हो तो पीड़ित को तत्काल विशेषज्ञ की सहायता लेनी चाहिए। वोकल कॉर्ड्स में ज्यादा समस्या महसूस होने पर स्पीच थैरेपिस्ट की भी मदद दी जा सकती है। इंटेंसिव स्पायरोमेट्री तथा मुंह से भाप लेने से हमारी वोकल कॉर्ड्स को मजबूती मिलती है। जिससे व्यक्ति जल्द ही अपनी सामान्य आवाज वापस पा लेता हैं। डॉक्टर वुक्काला बताते हैं कि अस्पताल से घर आने के बाद बहुत जरूरी है कि व्यक्ति अपने शरीर और दिमाग को ज्यादा तनाव ना दें। चिकित्सक आमतौर पर व्यक्ति को 6 हफ्ते तक ऐसे कार्य ना करने की सलाह देते हैं जिससे उनकी सांसों की गति या क्षमता पर असर पड़ता है।
अस्पताल से छुट्टी के समय पीड़ित को निर्देशित करें चिकित्सक
डॉक्टर वुक्काला बताते हैं कि बहुत जरूरी है कि जिस समय पीड़ित को अस्पताल से छुट्टी दी जाए तो ना सिर्फ संक्रमण के दौरान उसके शरीर की स्थिति, बल्कि संक्रमण से पूर्व उसकी शारीरिक अवस्था तथा उसके अनुसार दी जाने वाली नियमित दवाइयों को ध्यान में रखते हुए चिकित्सक पीड़ित को उसके लिए जरूरी दिनचर्या, सावधानियाँ, नियमित दवाइयों की मात्रा तथा उनको लेने का तरीके के बारें में निर्देशित करें। ऐसी अवस्था में रोगी के लिए आदर्श भोजन, आदर्श दिनचर्या तथा किन बातों से उसे पूरी तरह से परहेज करन है इस बारे में उसे विस्तृत रूप से जानकारी देनी चाहिए।
घर आने के बाद कुछ बातों का ध्यान रखें कोरोना पीड़ित
डॉक्टर वुक्काला बताते हैं कि बहुत जरूरी है कि कुछ स्वस्थ आदतों को अस्पताल से आने के बाद पीड़ित अपनी दिनचर्या तथा जीवन शैली में शामिल करें। जो इस प्रकार हैं।
- नियमित रूप से जरूरी मात्रा में आराम करें।
- 1 दिन में कम से कम 7 से 8 घंटे की नींद लें, उदाहरण के लिए रात 10:00 से 11:00 बजे से लेकर सुबह 6:00 बजे तक की नींद अवश्य ले। शरीर में पूरे दिन के लिए ऊर्जा बनाए रखने तथा सभी नियमित गतिविधियां सही तरीके से करने के लिए ऐसा करना बहुत जरूरी है।
- हल्का-फुल्का ऐसा व्यायाम करना चाहिए जिससे सांस ना भूलें। जरूरत से ज्यादा समय तक तथा कठिन व्यायाम करने से पीड़ित को सांस लेने में तकलीफ हो सकती है।
- बहुत जरूरी है कि शरीर में पानी का स्तर सही रखा जाए। इसलिए दिन में कम से कम 2 से 3 लीटर पानी अवश्य पीना चाहिए।
- पीड़ितों को अच्छी मात्रा में ऐसा नाश्ता करना चाहिए जो प्रोटीन से भरपूर हो लेकिन उसमें वसा और कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम हो। कोविड-19 होने के उपरांत हमारा भोजन कैसा हो यदि इसके लिए किसी पोषण विशेषज्ञ की मदद ले ली जाए तो ज्यादा बेहतर होता है।
- शरीर में जिंक और विटामिन सी की आपूर्ति के लिए सप्लीमेंट की बजाए अपने भोजन में इनके प्राकृतिक स्रोतों का उपयोग ज्यादा से ज्यादा मात्रा में करना चाहिए।
- हमेशा बैठे रहने की बजाय थोड़ा बहुत चलना पीड़ित के लिए फायदेमंद होता है।
इस संबंध में ज्यादा जानकारी के लिए डॉक्टर राजेश शुक्ला से vukkala@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।