पेल्विक ऑर्गन प्रोलैप्स एक ऐसी समस्या हैं, जो आमतौर पर महिलाओं में नजर आती है, लेकिन बावजूद इसके ज्यादातर महिलाओं में इसे लेकर जानकारी का अभाव रहता है। जानकारों की माने तो, लगभग 10 प्रतिशत युवा महिलाओं को और 50 प्रतिशत मध्य आयु की महिलाओं को प्रोलैप्स से जूझना पड़ सकता है। पेल्विक ऑर्गन प्रोलेप्स क्या है तथा इस समस्या के चलते महिलाओं को किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता हैं, इस बारे में वैकल्पिक चिकित्सा थेरेपिस्ट आरती गवात्रे ने ETV भारत सुखीभवा को विस्तार से जानकारी दी।
क्या हैं पेल्विक ऑर्गन प्रोलैप्स?
आरती गवात्रे जानकारी देती हैं की इंटरनेशनल गायनेकोलॉजी एसोसिएशन के अनुसार पेल्विक ऑर्गन प्रोलैप्स, जो की चिकित्सा जगत में 'पीओपी' नाम से प्रसिद्ध है, वह अवस्था है जब महिला के पेट के निचले हिस्से की मांसपेशियों में कमजोरी आने या अन्य कारणों से उसके पेल्विक अंग खिसक कर नीचे की तरफ आने लगते है। ऐसी अवस्था में महिला को महसूस होता है कि उसके पेल्विक यानी श्रोणि के अंग योनि की तरफ सरक रहें है। अलग-अलग महिलाओं में यह अवस्था अलग-अलग चरणों में आती है, जो कि उनके पेल्विक अंगों विशेषकर गर्भाशय की संरचना यानी एनाटॉमिकल स्थिति पर निर्भर करती है। दरअसल महिला के श्रोणि में गर्भाशय, मूत्राशय, मलाशय और योनी जैसे अंग आते हैं| ये सभी अंग श्रोणि की मांसपेशियों और स्नायुबंधन द्वारा अपनी-अपनी जगहों पर डटे रहते हैं| इन अंगों को श्रोणि के तल यानि निचली जमीन से भी काफी सहारा मिलता हैं, जिससे वे हिलते नहीं हैं| लेकिन किसी कारणवश यदि मांसपेशियां और स्नायुबंधन खिंच जाते हैं या फट जाते हैं, तब वे श्रोणि के अंगों को पहले जैसा सहारा नहीं दे पाते|
पेल्विक ऑर्गन प्रोलैप्स के चरणों तथा उनके लक्षणों के बारे में जानकारी देते हुए आरती गवात्रेआरती गवात्रे बताती हैं की 'पीओपी' के प्रथम तथा दूसरे चरण में आमतौर पर महिलाओं को कुछ भी लक्षण नजर नहीं आते हैं तथा श्रोणि के अंगों में असहजता महसूस नहीं होती हैं। लेकिन 'पीओपी' के तीसरे और चौथे चरण में जब तक कि श्रोणि के अंगों खासकर गर्भाशय का स्थान परिवर्तन होने जैसी स्थिति प्रारंभ होने लगती है, तो महिलाओं को दर्द तथा पेट के निचले हिस्से में असहजता महसूस होने लगती है। यह स्थिति महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डालती है, क्योंकि इस अवस्था में महिला को लगता है कि उसका गर्भाशय तथा श्रोणि के अन्य अंग शरीर से बाहर आ जाएंगे। जिससे कई बार महिलायें गंभीर तनाव का शिकार बन जाती हैं। हालांकि वास्तविकता में आमतौर पर यह समस्या ज्यादा गंभीर नहीं होती है, लेकिन पीड़ित का मानसिक स्वास्थ्य बना रहे इसके लिए जरूरी हैं की उसे विश्वास दिलाया जाए कि उनके शरीर का कोई भी अंग शरीर से बाहर नहीं आ सकता है।
पेल्विक ऑर्गन प्रोलैप्स के कारण
प्रोलैप्स यानी गर्भाशय तथा श्रोणि के अन्य अंगों का स्थान परिवर्तन करना एक अचानक से होने वाली परिस्थिति नहीं है। महिलाओं में यह अवस्था उत्पन्न होने के कारण इस प्रकार हैं;
- ऐसी महिलाएं जो कई बार गर्भवती हुई हो।
- जो लंबे समय से कब्ज की मरीज हो।
- मेनोपॉज के चलते शरीर में मांसपेशियों को मजबूत बनाने वाले एस्ट्रोजन हॉर्मोन यानी फीमेल हार्मोन की मात्रा की कमी।
- मोटापे के बढ़ने से शरीर भारी होता है, जिसके कारण पेट, श्रोणि के अंगों पर ज्यादा दबाव डालने लगता है।
- ऐसी महिलाएं, जो ऐसे व्यवसाय से जुड़ी हो जहां उन्हें नियमित तौर पर भारी सामान को उठाना या सरकाना पड़ता हो।
- ऐसी महिलाएं जिनकी छाती में किसी भी कारण से नियमित तौर पर दर्द रहता है।
- कनेक्टिव टिशु विकार या न्यूरोलॉजिकल या फिर बढ़ती उम्र।
- यह एक अनुवांशिक समस्या भी हो सकती है। परिवार में यदि किसी को पहले पीओपी की समस्या रही है, तो इस रोग को होने की आशंका बढ़ जाती है।
'पीओपी' के लक्षण
आरती गवात्रे बताती हैं की प्रोलैप्स होने पर आमतौर पर महिलाओं को योनि में भारीपन या ऐसा महसूस होता है कि उनके योनि में सूजन है या कुछ भरा हुआ है। प्रोलैप्स होने पर कुछ अन्य लक्षण जो पीड़ित को महसूस हो सकते है, इस प्रकार हैं;
- पेट के निचले हिस्से और योनी पर किसी चीज का भारी दबाव महसूस होना।
- योनी से कुछ उभर कर बाहर निकलना।
- यौन संबंध के वक्त परेशानी होना।
- पूरी तरह से मूत्राशय को खाली ना कर पाना और बार-बार पेशाब आना।
- मूत्रविसर्जन या मलोत्सर्ग में दिक्कतें आना।
- हंसने पर, खांसने पर या छींकने पर हल्का सा पेशाब का निकल जाना।
उपचार
'पीओपी' की समस्या गंभीर होने पर आमतौर पर महिला रोग विशेषज्ञ या यूरो गाइनेकोलॉजिस्ट महिलाओं को योनी के माध्यम से पेस्सरीज लगवाने की सलाह देती हैं। रबर या सिलिकॉन से बना हुआ यह उपकरण श्रोणि के अंगों को सहारा देता है और उन्हें जगह पर डटे रहने में मदद करता है।
इसके अतिरिक्त महिलाओं के शरीर में एस्ट्रोजन की मात्रा बढ़ाने के लिए गोलियां भी दी जाती हैं, जो कि उनकी योनि की दीवारों तथा मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करती हैं। वहीं यदि अवस्था ज्यादा गंभीर हो, तो चिकित्सक सर्जरी के लिए भी सलाह देते हैं।
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ऑक्यूपेशनल थेरेपी हो सकती है मददगार
आरती गवात्रे बताती हैं की 'पीओपी' की समस्या में वैकल्पिक थेरेपी भी मददगार हो सकती हैं। वे यह समस्या होने पर महिलाओं को निम्नलिखित थैरेपीज को अपनाने की सलाह देती हैं।
- व्यवहार में परिवर्तन
- जीवन शैली में बदलाव
- पेल्विक फ्लोर व्यायाम
- शौचालय का उपयोग करते समय बैठने की सही मुद्रा का ध्यान रखना ।
- ब्लैडर के स्वास्थ्य को बनाए रखना तथा बाउल हैबिट यानी नियमित रूप से और सही तरीके से मल त्यागने की आदत बनाए रखना।
- किसी भी सामान को उठाने की सही तकनीकों को उपयोग में लाना, जिससे पेट पर कम दबाव पड़े।
- जिंदगी की गुणवत्ता को बेहतर करने के लिए माइंडफुलनेस तकनीकों को उपयोग में लाना।