नई दिल्ली : डॉक्टरों का कहना है कि कोई खास लक्षण दिखाई न देने और जटिलताएं पैदा होने तक पता लगाना मुश्किल होने के कारण बल्ड प्रेशर (बीपी) एक साइलेंट किलर है. यह तेजी से भारतीय युवाओं और बुजुर्गों को प्रभावित कर रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का अनुमान है कि भारत में कम से कम चार में से एक वयस्क को हाई ब्लड प्रेशर है, लेकिन उनमें से केवल 12 प्रतिशत का ब्लड प्रेशर नियंत्रण में है. जून में आईसीएमआर-इंडिया डायबिटीज (आईसीएमआर-इंडियाबी) अध्ययन से पता चला कि भारत में 31.5 करोड़ (315 मिलियन) लोग हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित हैं.
1,13,043 लोगों के सर्वेक्षण पर आधारित अध्ययन में पाया गया कि शहरी क्षेत्रों और पूरे देश में हाई ब्लड प्रेशर (उच्च रक्तचाप) अत्यधिक प्रचलित है. फोर्टिस अस्पताल नोएडा के कार्डियोलॉजी निदेशक डॉ. संजीव गेरा ने न्यूज एजेंसी को बताया कि हम अक्सर कहते हैं कि बीपी एक साइलेंट किलर है. इसके पीछे मुख्य कारण है कि लोग इससे अनजान हैं कि बीपी के कारण उन्हें किस समस्या का सामना करना पड़ेगा और वास्तव में, यह कहना गलत नहीं है कि उन्हें पता ही नहीं है कि उन्हें हाई ब्लड प्रेशर है.
लोगों को किसी भी लक्षण का अनुभव नहीं हो सकता है, या कभी-कभी यह हल्का हो सकता है और आसानी से नजरअंदाज किया जा सकता है. परिणामस्वरूप, लोग अपने ब्लड प्रेशर को मैनेज करने और जटिलताओं को रोकने के जरूरी कदम नहीं उठा सकते हैं. अनियंत्रित ब्लड प्रेशर दिल के दौरे और स्ट्रोक जैसी हृदय संबंधी बीमारियों (सीवीडी) के लिए मुख्य जोखिम कारकों में से एक है, और भारत में कुल मौतों में से एक तिहाई के लिए जिम्मेदार है.
मणिपाल हॉस्पिटल्स गुरुग्राम के कंसल्टेंट, इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. दीक्षित गर्ग ने न्यूज एजेंसी को बताया कि हाई बीपी एक साइलेंट किलर है क्योंकि इसमें अक्सर कोई ध्यान देने योग्य लक्षण दिखाई नहीं देते हैं, जिससे जटिलताएं उत्पन्न होने तक इसका पता लगाना मुश्किल हो जाता है. इसकी क्रमिक प्रगति चुपचाप धमनियों और अंगों को नुकसान पहुंचाती है, जिससे हृदय रोग, स्ट्रोक और गुर्दे की समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है.
आगे कहा कि यदि उपचार न किया जाए, तो बढ़े हुए ब्लड प्रेशर से हृदय की मांसपेशियां मोटी हो जाती हैं एवं समय के साथ हृदय चौड़ा हो जाता है, और इसकी कार्यक्षमता तथा कार्यप्रणाली कम हो जाती है, जिससे हृदय गति रुक जाती है.
डॉ. गर्ग ने कहा कि नमक के अधिक सेवन को अक्सर हाई ब्लड प्रेशर के लिए दोषी ठहराया जाता है. वहीं शराब, तंबाकू, फास्ट फूड और पैकेज्ड फूड का बढ़ता सेवन, जिसमें नमक छिपा होता है, भी हाई ब्लड प्रेशर के बोझ को बढ़ा रहा है। आनुवंशिकी, मोटापा, शारीरिक गतिविधि की कमी, शराब का सेवन और तनाव जैसे अन्य कारक भी हाई ब्लड प्रेशर के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
मोटापे की दर में भी वृद्धि हुई है, जिससे हाई ब्लड प्रेशर का खतरा बढ़ गया है. इसके अलावा, कुछ क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल तक सीमित पहुंच और ब्लड प्रेशर मैनेज (प्रबंधन) के बारे में जागरूकता की कमी ने समस्या को बढ़ा दिया है. भारत में हाई ब्लड प्रेशर से निपटने के लिए जीवनशैली में बदलाव, बेहतर स्वास्थ्य देखभाल पहुंच और जागरूकता अभियानों के माध्यम से इन कारकों को संबोधित करना महत्वपूर्ण है.
इस बीच, भारत ने 2025 तक हाई ब्लड प्रेशर की व्यापकता में 25 प्रतिशत सापेक्ष कमी का लक्ष्य रखा है. इसे हासिल करने के लिए सरकार ने नवंबर 2017 में इंडिया हाइपरटेंशन कंट्रोल इनिशिएटिव (आईएचसीआई) लॉन्च किया है. आईएचसीआई को 23 राज्यों के 138 जिलों में लागू किया जा रहा है. हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित 34 लाख से अधिक लोग सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं में इलाज करा रहे हैं.
(आईएएनएस)