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नेत्रदान की राह रोकते मिथक और गलतफहमियां : नेत्रदान पखवाड़ा विशेष - चिकित्सीय मिथक

नेत्रदान को लेकर लोगों में कई मिथक है, जिसकी वजह से लोग इसके लिए आगे नहीं आते. लोगों की इन्हीं गलतफहफियों के कारण ही दुनिया में कई जरूरतमंद लोग अंधेपन के साथ अपनी जिंदगी गुजार देते हैं. नेत्रदान के प्रति जागरूक करने और प्रेरित करने के उद्देश्य से हर साल नेत्रदान पखवाड़ा मनाया जाता है, ताकि समाज में फैले इस मिथक को दूर किया जा सके.

eye donation fortnight
नेत्रदान पखवाड़ा
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Published : Aug 28, 2020, 1:28 PM IST

नेत्रदान को महादान की संज्ञा दी जाती है. मृत्यु के बाद किसी और व्यक्ति को दुनिया देखने का मौका देने से बड़ा और क्या परोपकार होगा. लेकिन हमारे देश में नेत्रदान को लेकर इतने सामाजिक और धार्मिक मिथक फैले हुए है की लोग नेत्रदान करने से घबराते है. यहीं नहीं नेत्रदान को लेकर लोगों में जागरूकता का भी काफी अभाव है, जैसे कौन नेत्रदान कर सकता है, कैसे कर सकता है तथा इसकी प्रक्रिया क्या होती है, ज्यादातर लोग नहीं जानते इसलिए नेत्रदान की शपथ लेने से घबराते हैं. नेत्रदान को लेकर हमारे समाज में फैले कुछ मिथकों को हम यहां साझा कर रहें है.

नेत्रदान के बारे में मिथक

  • चिकित्सीय मिथक

ऐसा माना जाता है की जिन लोगों को पहले ग्लूकोमा या मोतियाबिंद जैसी आंखों की बीमारियां रही हो, वे नेत्रदान के लिए उपयुक्त नहीं होते है. यह एक बहुत बड़ी गलतफहमी है. सिर्फ ऐसे लोगों की कार्निया का प्रत्यारोपण नहीं किया जा सकता है, जिनकी मृत्यु एड्स, सेप्टीसीमिया, रेबीज, वायरल इन्सेफेलाइटिस, रेटिनोब्लास्टोमा, लिम्फोमा, ल्यूकेमिया जैसे चिकित्सा कारणों से हुई हो.

वहीं कई लोग ऐसा मानते है की नेत्रदान में पूरी आंख शरीर से बाहर निकाल ली जाती है, जो बिल्कुल गलत है. नेत्रदान प्रक्रिया में केवल आंखों की कॉर्निया को प्रत्यारोपण के लिए निकाला जाता है. आंखें शरीर के साथ ही जुड़ी होती है.

दरअसल कॉर्निया नेत्रगोलक का बाहरी भाग होता है, जो पारदर्शी होता है. यह प्रकाश को आंख तक पहुंचाता है और आंख के ऊपर एक सुरक्षात्मक चादर की तरह होता है. आंख का यही भाग है, जो दान किया जाता है. चूंकि कॉर्निया रक्त की सीमित आपूर्ति प्राप्त करता है और रक्तप्रवाह के बजाय हवा से ऑक्सीजन प्राप्त करता है. यहां यह जानना जरूरी है की कॉर्निया रक्त के प्रकार के मिलान से संबंधित समस्याओं का समाधान नहीं करता है. इसके अलावा, कॉर्निया में रक्त वाहिकाएं नहीं होती हैं. यह इसे प्रत्यारोपित करने के लिए एक आदर्श अंग बनाता है. नेत्रदान से केवल कॉर्नियल ब्लाइंडनेस का इलाज किया जा सकता है.

  • दानकर्ता की आयु को लेकर गलतफहमी

नेत्रदान के लिए सही आयु को लेकर भी लोगों के मन में काफी संशय है. एक मिथक है की बुजुर्ग व्यक्ति की आंखे नेत्रदान के लायक नहीं होती है. यह एक गलतफहमी है. एक छोटे से बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक सभी की आंखे नेत्रदान के लिए उपयुक्त होती है. नेत्रदान के लिए उम्र या मानसिक स्थिति कोई मापदंड नहीं है. इतना जरूर है की छोटे बच्चों के नेत्रदान तथा ऐसे लोगों, जिन्होंने पहले नेत्रदान के लिए शपथ पत्र ना भरा हो उसके परिजनों की अनुमति प्रत्यारोपण प्रक्रिया के संचालन के लिए जरूरी होती है.

  • प्रक्रिया की लंबाई

यह एक सदाबहार मिथक है कि नेत्रदान एक लंबी तथा थकाऊ प्रक्रिया है. जबकि हकीकत यह है की कॉर्निया को आंखों से निकलने की प्रक्रिया में केवल 15 से 20 मिनट लगते हैं. जिससे दानकर्ता के अंतिम संस्कार में विलंब नहीं होता है.

  • समयावधि में बंधी प्रत्यारोपण प्रक्रिया

मृत्यु के बाद दान किए जाने वाले प्रत्येक अंग को एक निर्धारित समय तक ही संरक्षित रखा जा सकता है. दानकर्ता के शरीर से निकाले जाने के बाद आंखों की कॉर्निया को भी केवल छह से आठ घंटे तक ही संरक्षित रखा जा सकता है. इसके बाद कॉर्निया प्रत्यारोपण के लायक नहीं रहती है.

नेत्रदान को महादान की संज्ञा दी जाती है. मृत्यु के बाद किसी और व्यक्ति को दुनिया देखने का मौका देने से बड़ा और क्या परोपकार होगा. लेकिन हमारे देश में नेत्रदान को लेकर इतने सामाजिक और धार्मिक मिथक फैले हुए है की लोग नेत्रदान करने से घबराते है. यहीं नहीं नेत्रदान को लेकर लोगों में जागरूकता का भी काफी अभाव है, जैसे कौन नेत्रदान कर सकता है, कैसे कर सकता है तथा इसकी प्रक्रिया क्या होती है, ज्यादातर लोग नहीं जानते इसलिए नेत्रदान की शपथ लेने से घबराते हैं. नेत्रदान को लेकर हमारे समाज में फैले कुछ मिथकों को हम यहां साझा कर रहें है.

नेत्रदान के बारे में मिथक

  • चिकित्सीय मिथक

ऐसा माना जाता है की जिन लोगों को पहले ग्लूकोमा या मोतियाबिंद जैसी आंखों की बीमारियां रही हो, वे नेत्रदान के लिए उपयुक्त नहीं होते है. यह एक बहुत बड़ी गलतफहमी है. सिर्फ ऐसे लोगों की कार्निया का प्रत्यारोपण नहीं किया जा सकता है, जिनकी मृत्यु एड्स, सेप्टीसीमिया, रेबीज, वायरल इन्सेफेलाइटिस, रेटिनोब्लास्टोमा, लिम्फोमा, ल्यूकेमिया जैसे चिकित्सा कारणों से हुई हो.

वहीं कई लोग ऐसा मानते है की नेत्रदान में पूरी आंख शरीर से बाहर निकाल ली जाती है, जो बिल्कुल गलत है. नेत्रदान प्रक्रिया में केवल आंखों की कॉर्निया को प्रत्यारोपण के लिए निकाला जाता है. आंखें शरीर के साथ ही जुड़ी होती है.

दरअसल कॉर्निया नेत्रगोलक का बाहरी भाग होता है, जो पारदर्शी होता है. यह प्रकाश को आंख तक पहुंचाता है और आंख के ऊपर एक सुरक्षात्मक चादर की तरह होता है. आंख का यही भाग है, जो दान किया जाता है. चूंकि कॉर्निया रक्त की सीमित आपूर्ति प्राप्त करता है और रक्तप्रवाह के बजाय हवा से ऑक्सीजन प्राप्त करता है. यहां यह जानना जरूरी है की कॉर्निया रक्त के प्रकार के मिलान से संबंधित समस्याओं का समाधान नहीं करता है. इसके अलावा, कॉर्निया में रक्त वाहिकाएं नहीं होती हैं. यह इसे प्रत्यारोपित करने के लिए एक आदर्श अंग बनाता है. नेत्रदान से केवल कॉर्नियल ब्लाइंडनेस का इलाज किया जा सकता है.

  • दानकर्ता की आयु को लेकर गलतफहमी

नेत्रदान के लिए सही आयु को लेकर भी लोगों के मन में काफी संशय है. एक मिथक है की बुजुर्ग व्यक्ति की आंखे नेत्रदान के लायक नहीं होती है. यह एक गलतफहमी है. एक छोटे से बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक सभी की आंखे नेत्रदान के लिए उपयुक्त होती है. नेत्रदान के लिए उम्र या मानसिक स्थिति कोई मापदंड नहीं है. इतना जरूर है की छोटे बच्चों के नेत्रदान तथा ऐसे लोगों, जिन्होंने पहले नेत्रदान के लिए शपथ पत्र ना भरा हो उसके परिजनों की अनुमति प्रत्यारोपण प्रक्रिया के संचालन के लिए जरूरी होती है.

  • प्रक्रिया की लंबाई

यह एक सदाबहार मिथक है कि नेत्रदान एक लंबी तथा थकाऊ प्रक्रिया है. जबकि हकीकत यह है की कॉर्निया को आंखों से निकलने की प्रक्रिया में केवल 15 से 20 मिनट लगते हैं. जिससे दानकर्ता के अंतिम संस्कार में विलंब नहीं होता है.

  • समयावधि में बंधी प्रत्यारोपण प्रक्रिया

मृत्यु के बाद दान किए जाने वाले प्रत्येक अंग को एक निर्धारित समय तक ही संरक्षित रखा जा सकता है. दानकर्ता के शरीर से निकाले जाने के बाद आंखों की कॉर्निया को भी केवल छह से आठ घंटे तक ही संरक्षित रखा जा सकता है. इसके बाद कॉर्निया प्रत्यारोपण के लायक नहीं रहती है.

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