हमारे शरीर के सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिए रीढ़ की हड्डी का स्वस्थ होना बहुत जरूरी है. दरअसल हमारी रीढ़ की हड्डी ना सिर्फ हमारे शरीर का आधार होती है, बल्कि हमारे मस्तिष्क से भी जुड़ी होती है, और मस्तिष्क से ही हमारे शरीर की सारी गतिविधियां नियंत्रित होती है. इसलिए रीढ़ की हड्डी में किसी प्रकार की समस्या ना सिर्फ हमारे चलने फिरने को प्रभावित करती है, बल्कि अन्य समस्याएं भी उत्पन्न करती है. लेकिन चिकित्सा क्षेत्र में लगातार हो रहे शोधों और आविष्कारों का नतीजा है की वर्तमान में रीढ़ की हड्डी से संबंधित ज्यादा से ज्यादा बीमारियों का इलाज बगैर सर्जरी के संभव है. और यदि सर्जरी करनी जरूरी भी हो, तो ज्यादातर मामलों में चिकित्सक मिनिमल इन्वेसिव विधियों या कीहोल सर्जरी को प्राथमिकता देते है. ETV भारत सुखीभवा की टीम के साथ चर्चा करते हुए हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. हेम जोशी ने मिनिमल इन्वेसिव विधियों के बारे में विस्तार से जानकारी दी.
मिनिमल इन्वेसिव सर्जरी
डॉ. हेम जोशी बताते हैं की मिनिमल इन्वेसिव सर्जरी के दौर से पहले स्पाइन यानि रीढ़ की हड्डी की सर्जरी को बेहद कष्टकारी माना जाता था और चिकित्सक उसे तब तक नहीं करते थे, जब तक पीड़ित की स्तिथि अति विकट नहीं हो जाती थी. वहीं सर्जरी कराने वाला व्यक्ति भी कमर की सर्जरी के नाम पर एक अलग ट्रॉमा का शिकार हो जाता था, क्योंकि सर्जरी का मतलब बड़ा ऑपरेशन और लंबे समय तक अस्पताल में रहने की मजबूरी. वर्तमान समय में चिकित्सा तकनीक में प्रगति और आधुनिक एंडोस्कोप्स, माइक्रोस्कोप तथा नेविगेशन तकनीक के आ जाने से स्पाइनल सर्जरी का स्वरूप काफी बदल गया है. मिनीमल इंवेसीव सर्जरी के कारण चिकित्सकों की चिंता और परेशानी काफी हद तक समाप्त हो गई है. वहीं अधिकांश मामलों में मरीज सर्जरी के चंद घंटों बाद अपने पांव पर चल कर घर जाता है.
ओपन सर्जरी से बेहतर
मिनिमल इन्वेसिव विधियों या कीहोल सर्जरी के जरिए स्पाइन सर्जरी के तरीकों में काफी बदलाव आया है. मिनिमली स्पाइन सर्जरी यानि एमआईएसएस में अधिक चीड़फाड़ नहीं करनी पड़ती है और पुरानी स्पाइनल सर्जरी की तुलना में इसके अनेक फायदे हैं. इस सर्जरी में कमर में एक छोटा सा चीरा लगाकर विशेष अत्याधुनिक उपकरण को रीढ़ की हड्डी तक पहुंचाया जाता है और कैमरे की मदद से समस्या को लेप्रोस्कोपिक तरीके से दूर कर दिया जाता है.
डॉ. जोशी बताते है की ओपन सर्जरी में सबसे बड़ी परेशानी रक्तस्राव की होती है, लेकिन इस विधि में मांसपेशियों, उत्तकों व धमनियों को अधिक क्षति नहीं पहुंचती है तथा सर्जरी में संक्रमण और ऑपरेशन के बाद दर्द की संभावना भी कम रहती है. साथ ही अधिक रक्तस्राव भी नहीं होता है. वहीं इसकी रिकॉवेरी तेजी से होती है और सर्जरी के बाद दर्द निवारक दवाओं पर रोगी की निर्भरता भी कम हो जाती है.
सर्जरी से पहले पूरी जानकारी लें
डॉ. हेम जोशी कहते हैं की सर्जरी चाहे किसी भी प्रकार की हो, बहुत जरूरी है की किसी अनुभवी चिकित्सक के दिशा निर्देशन में ही सम्पन्न हो. इसके अतिरिक्त सर्जरी के बाद कुछ समय तक उठने, बैठने और खाने पीने का विशेष ध्यान रखना पड़ता है, इसलिए बहुत जरूरी है की सर्जरी से पहले अपने सर्जन के बारे में पूरी जानकारी लें और उनसे खुल कर बात करें, और इस बात की जानकारी लें की सर्जरी के बाद क्या करना है और क्या नहीं.
इसके अतिरिक्त सर्जरी के उपरांत नियमित रूप से अपनी जांच करवाते रहें और बगैर चिकित्सक की सलाह के दवाइयां बंद ना करें.