साइटिका एक ऐसी समस्या है जो कि वर्तमान समय में सिर्फ बुजुर्गों में ही नहीं बल्कि अधेड़ उम्र के लोगों तथा युवाओं में भी काफी ज्यादा आम होने लगी है। इसके लिए आमतौर पर सिर्फ स्वास्थ्य समस्याओं ही नहीं कि हमारी जीवन शैली तथा कार्य करने के तरीके को भी जिम्मेदार माना जाता है। फिजियोथेरेपी क्षेत्र से जुड़े जानकारों का मानना है कि इस चिकित्सा पद्धति के माध्यम से साइटिका की समस्या को काफी हद तक ठीक किया जा सकता है। इस तथ्य की पुष्टि के लिए ETV भारत सुखीभवा ने वैकल्पिक चिकित्सक तथा फिजियोथैरेपिस्ट व योग प्रशिक्षक डॉ जहान्वी कथरानी से बात की।
क्या होती है साइटिका
डॉक्टर जहान्वी बताती है फिजियो थेरेपी द्वारा साइटिका के प्रबंधन के बारे में जानने से पहले बहुत जरूरी है कि यह जाना जाय की साइटिका आखिर होता क्या है और किस तरह से पीड़ित को प्रभावित करता है।
- साइटिका एक ऐसी अवस्था है जो हमारी कमर के निचले हिस्से में तंत्रिकाओं में समस्या तथा दबाव होने पर उत्पन्न होती है। मुख्य रूप से सायटिक नर्व जो कि हमारे कमर के निचले हिस्से से शुरू होकर जांघो के अंदरूनी हिस्सों तथा घुटने के जोड़ों से होते हुए पाँव के सबसे निचले हिस्से तक जाती है, के प्रभावित होने से साइटिका की समस्या होती है।
- सायटिक तंत्रिका एक काफी बड़ी तंत्रिका होती है जो लगभग हमारे अंगूठे के आकार की होती है और हमारी कई मांसपेशियों तथा हड्डियों से सट कर गुजरती है। सायटिक नर्व के आसपास मांसपेशियों में किसी भी प्रकार का तनाव इस नर्व पर दबाव बना सकता है जिसके चलते हमारी रीढ़ की हड्डी से लेकर नीचे की तरफ जाती हुई नसों में अजीब सा दर्द जो कि कई बार असहनीय भी हो जाता है, महसूस होता है।
साइटिका दर्द होने की अवस्था में लोगों को अपने पांव में कई बार सुन्नता, लगातार झन्नाहट तथा कई बार मध्यम दर्जे का या तीव्र दर्द महसूस हो सकता है। समस्या ज्यादा गंभीर होने पर व्यक्ति को खड़े होने में, बैठने में तथा लेटने में भी समस्या हो सकती है
- कुछ मामलों में पीड़ित को पलंग पर पीठ के बल सीधा लेटने में काफी ज्यादा समस्या और दर्द का सामना करना पड़ता है । दरअसल सीधा लेटने से हमारे कमर के निचले हिस्से की मांसपेशियों तथा प्रभावित नसों पर दबाव पड़ता है जो कि दर्द को काफी ज्यादा बढ़ा देते हैं।
साइटिका की समस्या में फिजियोथेरेपी से कैसे संभव है उपचार
डॉक्टर जहान्वी बताती हैं कि आम तौर पर साइटिका में फिजियोथेरेपी काफी असरदार रहती है। लेकिन यदि यह समस्या हद से ज्यादा गंभीर हो जाय ऐसे में लोगों को सर्जरी की मदद लेनी पड़ती है। लेकिन सर्जरी के उपरांत भी सही तरीके से हीलिंग तथा स्वास्थ्य के प्रबंधन के लिए चिकित्सक विशेषकर सर्जन फिजियोथैरेपी कराने की सलाह देते हैं। फिजियोथैरेपी निम्नलिखित तरीकों से पीड़ित की मदद कर सकती है।
मजबूती: फिजियोंथेरेपिस्ट के दिशा निर्देशन में मांसपेशियों की क्षमताओं को बढ़ाने तथा उन्हें मजबूत बनाने वाले व्यायामों का नियमित अभ्यास, कमर के निचले हिस्से की मांसपेशियों विशेष लोअर लिंब स्ट्रक्चर को मजबूत बनाती हैं। जिससे तंत्रिकाओं से जुड़े किसी भी प्रकार के रोग तथा समस्याओं विशेषकर साइटिका जैसी समस्या में काफी आराम मिलता है।
नर्व टिशु मोबिलाइजेशन : इस तकनीक के तहत फिजियोंथैरेपिस्ट हमारी कमर के निचले हिस्से में टिश्यू यानी उत्तको के सही प्रबंधन के लिए प्रयास करते हैं जिससे उनके कारण नसों पर बन रहे दबाव को कम या पूरी तरह से समाप्त किया जा सके। इस प्रक्रिया के तहत जड से समस्या के निवारण का प्रयास किया जाता है।
मांसपेशियों को आराम दिलाने वाली तकनीक : यह एक ऐसी तकनीक है जिसके लिए हमेशा किसी फिजियोथैरेपिस्ट की मदद की आवश्यकता नहीं होती है। एक बार फिजियोथैरेपिस्ट से सीखने के बाद मरीज स्वयं इस प्रक्रिया का अभ्यास कर सकता है। इस तकनीक की मदद से साइटिका नर्व से जुड़ी किसी भी मांसपेशी में अकड़न, ऐंठन तथा तनाव को कम किया जाता है। इस तकनीक में आमतौर पर टेनिस बॉल, तौलिए या किसी ऐसी वस्तु की मदद ली जा सकती है जो हमारे आस पास बहुत सरलता से उपलब्ध होती है।
जीवन शैली प्रबंधन : आमतौर पर देखने में आता है कि हमारे घर तथा कार्य क्षेत्र की दिनचर्या तथा हमारे शरीर की पोशचर संबंधी आदतें हमारे शरीर के निचले हिस्से पर दबाव तथा समस्या का कारण बनती है। ऐसी अवस्था में फिजियोथेरेपिस्ट की मदद से समस्या का कारण जानकर उसके निवारण के लिए प्रयास किया जा सकता है।
ट्रिगर प्वाइंट /ट्रिगर बैंड रिलीज : मांसपेशियों तथा नसों से जुड़ी समस्याओं को दूर करने तथा उन पर विभिन्न कारणों से पड़ने वाले दबाव में राहत दिलाने में यह तरीका काफी मददगार साबित होता है।
हाथों द्वारा प्रबंधन (मैनुअल मोबिलाइजेशन ): कई बार प्रशिक्षित विशेषज्ञों द्वारा नसों तथा जोड़ों पर पड़ने वाले दबावों को दूर करने में यह तकनीक काफी मददगार साबित होती है। इस तकनीक की मदद से लिंगामैंट्स तथा टेंडन्स मैं भी काफी राहत मिलती है।
डॉ जहान्वी बताती है की कुछ विशेष प्रकार के विटामिंस जैसे बी12 तथा अन्य माइक्रोन्यूट्रिएंट्स हमारी नसों के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। ऐसे भी नसों में कमजोरी या किसी प्रकार की समस्या होने पर चिकित्सीय सलाह पर इन सप्लीमेंट का इस्तेमाल किया जा सकता है।
इस संबंध में ज्यादा जानकारी के लिए डॉ जहान्वी कथरानी से jk.swasthya108@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।