सोशल मीडिया के विभिन्न पटलों पर किसी भी पोस्ट पर लाइक या शेयर की संख्या, न सिर्फ पोस्ट करने वाले बल्कि उस पोस्ट की प्रसिद्धि का भी प्रतीक मने जाते हैं। लेकिन वर्तमान समय में इन पटलों पर भाषाई प्रदूषण का चलन बढ़ने लगा है, यानी लोग अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिये अभद्र या क्रोध भरी भाषा का प्रयोग ज्यादा करने लगे हैं, इसका एक कारण यह भी है की ऐसी भाषा का प्रयोग करने वालों को "लाइक" और "शेयर" ज्यादा मिलते हैं।
येल विश्वविद्यालय के एक नए अध्ययन से पता चलता है कि ट्विटर जैसे सोशल मीडिया पटल, लोगों में नैतिक आक्रोश की अभिव्यक्ति को बढ़ाते हैं, क्योंकि ऐसा करने पर उपयोगकर्ताओं को “लाइक” और “शेयर” की अधिक संख्या से पुरस्कृत किया जाता है।
इस अध्धयन में येल विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर (मनोविज्ञान) शोधकर्ता और लेखक विलियम ब्रैडी बताते हैं की “सोशल मीडिया उत्तेजनाएं हमारे राजनीतिक वार्तालापों के स्वर को ऑनलाइन बदलने में सक्षम होती है।” गौरतलब है यह शोध विलियम ब्रैडी तथा उनके सहयोगी प्रोफेसर मौली क्रॉकेट के नेतृत्व में किया गया था।
इस शोध के दौरान शोधकर्ताओं ने वास्तविक जीवन में विवादास्पद घटनाओं के दौरान ट्विटर पर नैतिक आक्रोश की अभिव्यक्ति को मापा। साथ ही सोशल मीडिया तंत्र का परीक्षण करने के लिए डिज़ाइन किए गए नियंत्रण प्रयोगों में विषयों के उस व्यवहार की जांच की जो यूजर को सोशल नेटवर्किंग साइट पर सामग्री पोस्ट करने के लिए पुरस्कृत करते हैं।
अध्धयन के नतीजों में ब्रैडी बताते हैं की, “यह इस बात का सबूत है कि कुछ लोग समय के साथ अधिक क्रोध व्यक्त करना सीखते हैं क्योंकि उन्हें सोशल मीडिया पर इस तरह का व्यवहार दिखाने के लिये पुरस्कृत किया जाता है।”
शोधकर्ता बताते हैं की इस प्रकार का नैतिक आक्रोश सामाजिक भलाई के लिए एक शक्तिशाली शक्ति भी बन सकता है जो नैतिक अपराधों के लिए सजा को प्रोत्साहित कर सकता है और सामाजिक सहयोग को बढ़ावा दे सकता है। लेकिन इस चलन का एक स्याह पक्ष भी है, जो अल्पसंख्यक समूहों के उत्पीड़न, गलत सूचना के प्रसार और राजनीतिक ध्रुवीकरण में योगदान देता है।
गौरतलब है की फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल मीडिया साइटों का तर्क है कि वे किसी भी प्रकार की बातचीत के लिए एक तटस्थ मंच प्रदान करते हैं। लेकिन कई लोग इस विचारधारा को मानते हैं की सोशल मीडिया पर यह आचरण लोगों में गुस्से की प्रवत्ति को हवा दे रहा है। लेकिन शोधकर्ता मानते हैं की नैतिक आक्रोश जैसी जटिल सामाजिक अभिव्यक्तियों को सटीक रूप से मापना एक तकनीकी चुनौती है।
इस अध्धयन के तहत डेटा एकत्रित करने के लिये ब्रैडी और क्रॉकेट की टीम ने एक मशीन लर्निंग सॉफ़्टवेयर विकसित किया था, जो ट्विटर पोस्ट पर नैतिक आक्रोश पर नज़र रखता है, और जिसके तहत 7,331 ट्विटर उपयोगकर्ताओं के 12.7 मिलियन ट्वीट्स की निगरानी की गई और जानने का प्रयास किया की क्या उपयोगकर्ताओं ने समय के साथ अधिक क्रोध व्यक्त किया, यदि हां, तो क्यों।
इस शोध में टीम ने पाया कि ट्विटर जैसी सोशल मीडिया साइटों के प्रोत्साहन वास्तव में लोगों के पोस्ट करने के तरीके को बदल रहे हैं। जो उपयोगकर्ता अधिक “लाइक” और “रीट्वीट” प्राप्त करते हैं, उनके ट्वीट में और बाद के पोस्ट में क्रोध व्यक्त करने की अधिक संभावना होती है। इन निष्कर्षों का समर्थन करने के लिए, शोधकर्ताओं ने नियंत्रित व्यवहार को लेकर भी परीक्षण किए और नतीजों के आधार पर प्रदर्शित किया कि क्रोध व्यक्त करने के लिए पुरस्कृत उपयोगकर्ताओं ने समय के साथ क्रोध की अभिव्यक्ति को बढ़ाया।
यह परिणाम राजनीतिक ध्रुवीकरण में सोशल मीडिया की भूमिका के बारे में सवाल उत्पन्न करते हैं। अध्ध्यन के नतीजों के आधार पर शोधकर्ता बताते हैं की राजनीतिक रूप से सक्रिय नेटवर्क के सदस्यों की तुलना में सोशल मीडिया साइटों पर राजनीतिक रूप से उदार नेटवर्क के सदस्यों द्वारा अधिक क्रोध व्यक्त किया।
क्रॉकेट बताते हैं की “हमारे अध्ययन से पता चलता है कि राजनीतिक रूप से उदारवादी मित्र और अनुयायी लोग सामाजिक टिप्पणियों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, जो उनके गुस्से वाले भावों को पुष्ट करते हैं”।
हालांकि क्रॉकेट यह भी कहते हैं की यह अध्ययन इस बात का संकेत नहीं देता है कि नैतिक आक्रोश में वृद्धि समाज के लिए अच्छी है या बुरी। लेकिन इन निष्कर्षों पर नेताओं और नीति निर्माताओं द्वारा विचार किया जा रहा है जो उन्हें प्रतिबंधित करने के लिए साइटों का उपयोग करते हैं। “नैतिक आक्रोश बढ़ाना सोशल मीडिया के व्यापार मॉडल का एक स्पष्ट परिणाम है, जो उपयोगकर्ता जुड़ाव के लिए अनुकूल है”। साथ ही “नैतिक आक्रोश सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हमें इस बात से अवगत होना चाहिए कि प्रौद्योगिकी कंपनियां, अपनी साइटों के डिजाइन के माध्यम से, सामूहिक आंदोलनों की सफलता या विफलता को प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं।”