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जानलेवा हो सकती है डायबुलिमिया

डायबुलिमिया मधुमेह टाइप 1 से पीड़ित लोगों के व्यवहार से संबंधित एक विकार है, जो उनके वजन के साथ ग्रस्त है. यह एक खान पान तथा मानसिक डिसऑर्डर है, जो कई तरह के विकारों के लिए जिम्मेदार होता है. पीड़ित अपने खानपान में पोषक तत्वों और व्यायाम को शामिल कर इस डिसऑर्डर से छुटकारा पा सकतें है.

diabulimia
डायबुलिमिया
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Published : Aug 11, 2020, 12:27 PM IST

Updated : Aug 12, 2020, 9:31 AM IST

टाइप 1 मधुमेह के चलते जब व्यक्ति को नियमित तौर पर इंसुलिन लेना पड़ता है, तो उसके शरीर में बहुत से बदलाव आते हैं. अब ये बदलाव मानसिक भी होते हैं और शारीरिक भी. कई लोग इन बदलावों को झेल जाते हैं, जो नहीं झेल पाते वो जाने अनजाने ऐसी जीवन शैली को अपना लेते है, जो शरीर में और भी बहुत से विकारों को जन्म दे देती है. ऐसा ही एक विकार है डायबुलिमिया. जो वैसे तो खान पान संबंधी डिसऑर्डर कहलाता है, लेकिन चिकित्सक इसे मानसिक तथा व्यवहार परक बीमारी की श्रेणी में रखते हैं. कई बार यह अवस्था जानलेवा भी साबित हो सकता है. डायबुलिमिया के बारे में न्यूट्रिशीयन तथा मधुमेह सलाहकार दिव्या गुप्ता ने ETV भारत सुखीभव की टीम को विस्तार से जानकारी दी.

इटिंग डिसॉर्डर है डायबुलिमिया

दिव्या गुप्ता बताती हैं कि डायबुलिमिया शब्द डायबिटीज तथा बुलिमिया शब्द से मिलकर बना है. इस अवस्था का असर पीड़ित व्यक्ति के शरीर के साथ उसकी मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है. कई जानकार व चिकित्सक इसे व्यावहारिक अस्वस्थता भी कहते हैं. दरअसल बुलिमिया एक इटिंग डिसॉर्डर है, जिसमें व्यक्ति वजन कम करने के लिए बहुत सख्त डाइट अपना लेता है. डायबुलिमिया शब्द उन मधुमेह टाइप 1 मरीजों के लिए इस्तेमाल में आता है, जो इंसुलिन के चलते अपने बढ़ते वजन को कम करने के लिए अपनी इंसुलिन खुराक ही छोड़ देते हैं या कम कर देते है. यही नहीं वे तनाव का शिकार होकर खाना पीना भी कम कर देते है. इस अवस्था की शिकार ज्यादातर महिलाएं होती है, क्योंकि वह अपने वजन को लेकर ज्यादा सचेत रहना पसंद करती हैं. लेकिन ऐसा नहीं है की पुरुषों में यह बीमारी देखने में नहीं आती है. दरअसल इंसुलिन से शरीर का वजन बढ़ता है. वहीं कई बार तनाव या किसी अन्य बीमारी के चलते भी मधुमेह रोगी इंसुलिन कम करने के साथ खाना भी कम कर देते है, जिससे उनके शरीर में रक्त शर्करा कम हो जाती है, शरीर में केटॉन्स बनने लगते है. जिससे शरीर में केटोएसिडोसिस होने की आशंका बढ़ जाती है, जो मरीज को गंभीर अवस्था में भी पहुंचा सकता है.

डायबुलिमिया के लक्षण और प्रभाव

दिव्या गुप्ता बताती हैं की अचानक वजन कम हो जाना, लगातार पेशाब जाना, मासिक धर्म में अनियमितता, थकान महसूस होना, गला सुखना, ब्लड शुगर रिकोर्ड का हीमग्लोबिन एआईसी रीडिंग से मेल ना खाना, अवसाद, बाल झड़ना,अपने आप में रहना, बार-बार अपनी बुराई करना या अपने शरीर को लेकर नकारात्मक सोच रखना तथा हद से ज्यादा वजन कम करने वाली दवाई खाना आदि इसके प्रमुख लक्षणों में से एक हैं. डायबुलिमिया के फलस्वरूप लोगों में हाइपरग्लाइसीमिया, ग्लाइकोसुरिया यानि पेशाब में ज्यादा शर्करा, व्यवहार में असमंजसता, पेट खराब होना, डायबिटिक केटोएसिडोसिस, रेटिनोपैथी, न्यूरोपैथी, उच्च कोलेस्ट्रॉल, दिल की बीमारी, सोडियम तथा पोटैशियम स्तर में कमी तथा लिवर व किडनी संबंधी बीमारियां हो सकती हैं. वही कई बार इंसान की जान पर खतरा भी बन जाता है.

क्या करें

दरअसल हमारे यहां यदि किसी व्यक्ति को मधुमेह है, उसको खाने पीने में इतने गैरजरूरी परहेज भी बता दिए जाते है, जो बिल्कुल जरूरी नहीं होते और जिनके बारे में सुनते ही आदमी पहले ही बीमार महसूस करने लगता है. सबसे पहले जरूरी है, अपने आस पास के लोगों की बात मानने की बजाय अपने चिकित्सक से सलाह लें और अपना डाइट चार्ट बनाएं. और हमेशा मन भरकर और पेट भरकर खाना खाएं. इंसुलिन की खुराक के साथ कभी भी समझौता ना करें और चिकित्सक द्वारा निर्देशित मात्रा में उसका सेवन करें. दिव्या बताती हैं की चूंकि डायबुलिमिया को व्यवहारपरक मानसिक बीमारी भी कहा जाता है. इसलिए जरूरी है की चिकित्सीय सलाह लें, संज्ञानात्मक व्यवहारपरक चिकित्सा, ऐंगज़ाइटी डिसऑर्डर, मेडिटेशन तथा योग की मदद लें. इसके अलावा कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन से भरपूर भोजन लें. हरी सब्जियों और फलों को अपनी नियमित खुराक में शामिल करें और प्रोसेस किया गया भोजन तथा शर्करा से भरपूर चीजों से परहेज करें, और स्वस्थ जीवन शैली जियें.

टाइप 1 मधुमेह के चलते जब व्यक्ति को नियमित तौर पर इंसुलिन लेना पड़ता है, तो उसके शरीर में बहुत से बदलाव आते हैं. अब ये बदलाव मानसिक भी होते हैं और शारीरिक भी. कई लोग इन बदलावों को झेल जाते हैं, जो नहीं झेल पाते वो जाने अनजाने ऐसी जीवन शैली को अपना लेते है, जो शरीर में और भी बहुत से विकारों को जन्म दे देती है. ऐसा ही एक विकार है डायबुलिमिया. जो वैसे तो खान पान संबंधी डिसऑर्डर कहलाता है, लेकिन चिकित्सक इसे मानसिक तथा व्यवहार परक बीमारी की श्रेणी में रखते हैं. कई बार यह अवस्था जानलेवा भी साबित हो सकता है. डायबुलिमिया के बारे में न्यूट्रिशीयन तथा मधुमेह सलाहकार दिव्या गुप्ता ने ETV भारत सुखीभव की टीम को विस्तार से जानकारी दी.

इटिंग डिसॉर्डर है डायबुलिमिया

दिव्या गुप्ता बताती हैं कि डायबुलिमिया शब्द डायबिटीज तथा बुलिमिया शब्द से मिलकर बना है. इस अवस्था का असर पीड़ित व्यक्ति के शरीर के साथ उसकी मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है. कई जानकार व चिकित्सक इसे व्यावहारिक अस्वस्थता भी कहते हैं. दरअसल बुलिमिया एक इटिंग डिसॉर्डर है, जिसमें व्यक्ति वजन कम करने के लिए बहुत सख्त डाइट अपना लेता है. डायबुलिमिया शब्द उन मधुमेह टाइप 1 मरीजों के लिए इस्तेमाल में आता है, जो इंसुलिन के चलते अपने बढ़ते वजन को कम करने के लिए अपनी इंसुलिन खुराक ही छोड़ देते हैं या कम कर देते है. यही नहीं वे तनाव का शिकार होकर खाना पीना भी कम कर देते है. इस अवस्था की शिकार ज्यादातर महिलाएं होती है, क्योंकि वह अपने वजन को लेकर ज्यादा सचेत रहना पसंद करती हैं. लेकिन ऐसा नहीं है की पुरुषों में यह बीमारी देखने में नहीं आती है. दरअसल इंसुलिन से शरीर का वजन बढ़ता है. वहीं कई बार तनाव या किसी अन्य बीमारी के चलते भी मधुमेह रोगी इंसुलिन कम करने के साथ खाना भी कम कर देते है, जिससे उनके शरीर में रक्त शर्करा कम हो जाती है, शरीर में केटॉन्स बनने लगते है. जिससे शरीर में केटोएसिडोसिस होने की आशंका बढ़ जाती है, जो मरीज को गंभीर अवस्था में भी पहुंचा सकता है.

डायबुलिमिया के लक्षण और प्रभाव

दिव्या गुप्ता बताती हैं की अचानक वजन कम हो जाना, लगातार पेशाब जाना, मासिक धर्म में अनियमितता, थकान महसूस होना, गला सुखना, ब्लड शुगर रिकोर्ड का हीमग्लोबिन एआईसी रीडिंग से मेल ना खाना, अवसाद, बाल झड़ना,अपने आप में रहना, बार-बार अपनी बुराई करना या अपने शरीर को लेकर नकारात्मक सोच रखना तथा हद से ज्यादा वजन कम करने वाली दवाई खाना आदि इसके प्रमुख लक्षणों में से एक हैं. डायबुलिमिया के फलस्वरूप लोगों में हाइपरग्लाइसीमिया, ग्लाइकोसुरिया यानि पेशाब में ज्यादा शर्करा, व्यवहार में असमंजसता, पेट खराब होना, डायबिटिक केटोएसिडोसिस, रेटिनोपैथी, न्यूरोपैथी, उच्च कोलेस्ट्रॉल, दिल की बीमारी, सोडियम तथा पोटैशियम स्तर में कमी तथा लिवर व किडनी संबंधी बीमारियां हो सकती हैं. वही कई बार इंसान की जान पर खतरा भी बन जाता है.

क्या करें

दरअसल हमारे यहां यदि किसी व्यक्ति को मधुमेह है, उसको खाने पीने में इतने गैरजरूरी परहेज भी बता दिए जाते है, जो बिल्कुल जरूरी नहीं होते और जिनके बारे में सुनते ही आदमी पहले ही बीमार महसूस करने लगता है. सबसे पहले जरूरी है, अपने आस पास के लोगों की बात मानने की बजाय अपने चिकित्सक से सलाह लें और अपना डाइट चार्ट बनाएं. और हमेशा मन भरकर और पेट भरकर खाना खाएं. इंसुलिन की खुराक के साथ कभी भी समझौता ना करें और चिकित्सक द्वारा निर्देशित मात्रा में उसका सेवन करें. दिव्या बताती हैं की चूंकि डायबुलिमिया को व्यवहारपरक मानसिक बीमारी भी कहा जाता है. इसलिए जरूरी है की चिकित्सीय सलाह लें, संज्ञानात्मक व्यवहारपरक चिकित्सा, ऐंगज़ाइटी डिसऑर्डर, मेडिटेशन तथा योग की मदद लें. इसके अलावा कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन से भरपूर भोजन लें. हरी सब्जियों और फलों को अपनी नियमित खुराक में शामिल करें और प्रोसेस किया गया भोजन तथा शर्करा से भरपूर चीजों से परहेज करें, और स्वस्थ जीवन शैली जियें.

Last Updated : Aug 12, 2020, 9:31 AM IST
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