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बदलते मौसम में रखें त्वचा का ख्याल

मौसमी बदलाव हमारी त्वचा पर गहरा प्रभाव डालता है। गर्मी के मौसम की शुरूआत के साथ ही रूखापन, मुंहासे, तैलीय त्वचा नजर आने लगते है। ऐसे में उचित स्किनकेयर रूटीन और उत्पादों में बदलाव कर त्वचा के स्वास्थ्य को बरकरार रखें।

The effect of the changing weather on the skin
बदलते मौसम का त्वचा पर असर
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Published : Mar 26, 2021, 1:48 PM IST

मौसम में बदलाव के साथ ही हमारी त्वचा टेक्सचर और आकार में भी बदलाव दिखाई देता हैं। शुष्क से तैलीय त्वचा में बदलाव, चमक में वृद्धि और मुंहासे आम बात हैं।

नई दिल्ली के मेडलिंक्स के त्वचा विशेषज्ञ डॉ. पंकज चतुर्वेदी बताते हैं कि मौसमी बदलाव अपने साथ कई पर्यावरणीय बदलाव भी लाते हैं। तापमान में बदलाव के साथ-साथ नमी के स्तर में भी उतार-चढ़ाव होता है। वातावरण में प्रदूषण या एलर्जी तत्वों के प्रकार बदलते हैं, और सूक्ष्मजीव भी। इन सभी परिवर्तनों का त्वचा पर भी प्रभाव पड़ता है, विशेष रूप से संवेदनशील त्वचा पर।

गर्मियों में कुछ लोगों को त्वचा में जलन होती है और मुंहासे निकल आते है, जिसके कारण है अधिक पसीना निकलना, बैक्टीरिया और संवेदनशील क्षेत्रों में दुर्गंध और चकत्ते की समस्या।

डॉ. चतुर्वेदी कहते हैं कि कभी-कभी, तापमान और नमी में वृद्धि होने के बावजूद, हम हल्के गैर-कॉमेडोजेनिक स्किनकेयर उत्पादों को बदलने की आवश्यकता को अनदेखा करते हैं। जिसके परिणामस्वरूप त्वचा पर दाने और मुंहासे निकलना शुरू हो जाते है। कुछ लोग एक्जिमा या सोरायसिस जैसे त्वचा की स्थिति का भी सामना करते हैं। सर्दियों में हीटिंग उपकरणों का उपयोग घर के अंदर की हवा से सभी नमी को सोख लेता है, जो त्वचा का रूखापन और संबंधित स्थितियों को बढ़ाता है।

ब्रिटिश जर्नल ऑफ डर्मेटोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन के निष्कर्षो के अनुसार मौसम का बदलाव ना केवल पर्यावरणीय परिस्थितियों को बदलता है, बल्कि त्वचा के सेलुलर स्तर पर परिवर्तन को भी प्रेरित करता है। अध्ययन में पाया गया कि मौसमी बदलाव फिलाग्रेगिन नामक प्रोटीन जो धूल, गंदगी आदि को त्वचा के अंदर जाने नहीं देता, इसके साथ ही कॉर्नोसाइट्स त्वचा की बाहरी परत बनाती हैं। जब फिलाग्रेगिन के इस कार्य में बाधा आती है, तो त्वचा जलन और क्षति के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती है।

विशेषज्ञ का कहना है कि मौसम में बदलाव होने के साथ ही हमारा स्किनकेयर रूटीन भी बदलने की जरूरत होती है। उसके लिए यहां कुछ सुझाव दिए गए हैं:

अपना स्किनकेयर रूटीन बदलें

हमेशा एक अच्छी क्लींजिंग, टोनिंग और मॉइस्चराइजिंग रुटीन का पालन करें, ध्यान रहे कि अपने स्किनकेयर उत्पादों को मौसम के अनुसार चुनें। इसलिए, गर्मियों में गैर-कॉमेडोजेनिक उत्पादों में बदलाव करना बहुत जरूरी हो जाता हैं। यदि आप एक क्रीम-बेस्ड फेसवॉश या मॉइस्चराइजर का उपयोग कर रहे हैं, तो अब वॉटर-बेस्ड हल्के फार्मूलों पर स्विच कर लें।

त्वचा संबंधी क्लीनिकल प्रोसीजर पर विचार करें

यदि आप त्वचा संबंधी क्लीनिकल प्रोसीजर का विचार कर रहे हैं, तो मौसमी बदलाव शायद इसे शुरू करने का उपयुक्त समय है। यह ना केवल एक त्वचा विशेषज्ञ से संपर्क करने के लिए प्रेरित करेगा, बल्कि यह आपकी त्वचा को मौसमी परिवर्तन के अचानक आघात के खिलाफ बेहतर तरीके से तैयार करने में भी मदद करेगा।

पढ़े: ये 5 टिप्स फॉलो कर दुल्हे भी पा सकते है अपना परफेक्ट लुक

त्वचा विशेषज्ञ आपकी त्वचा की गहराई से जांच करेगा और आपको आवश्यकता के अनुसार उचित त्वचा संबंधी क्लीनिकल प्रोसीजर लेने में मदद करेगा। यदि आपकी त्वचा में रूखापन, चंचलता महसूस हो रहा है और उम्र बढ़ने के संकेत आपको परेशान कर रहे हैं, तो आप एक हायल्यूरोनिक एसिड-आधारित उपचार जैसे प्रोफिलो पर विचार कर सकते हैं। इसी तरह, यदि आप तैलीय और बंद छिद्रों का अनुभव कर रहे हैं, तो एक्सफोलीएटिंग और डीप क्लींजिंग प्रक्रियाएं जैसे कि हाइड्रैडरमाब्रेशन और कार्बन पील्स फायदेमंद हो सकते हैं।

मौसम में बदलाव के साथ ही हमारी त्वचा टेक्सचर और आकार में भी बदलाव दिखाई देता हैं। शुष्क से तैलीय त्वचा में बदलाव, चमक में वृद्धि और मुंहासे आम बात हैं।

नई दिल्ली के मेडलिंक्स के त्वचा विशेषज्ञ डॉ. पंकज चतुर्वेदी बताते हैं कि मौसमी बदलाव अपने साथ कई पर्यावरणीय बदलाव भी लाते हैं। तापमान में बदलाव के साथ-साथ नमी के स्तर में भी उतार-चढ़ाव होता है। वातावरण में प्रदूषण या एलर्जी तत्वों के प्रकार बदलते हैं, और सूक्ष्मजीव भी। इन सभी परिवर्तनों का त्वचा पर भी प्रभाव पड़ता है, विशेष रूप से संवेदनशील त्वचा पर।

गर्मियों में कुछ लोगों को त्वचा में जलन होती है और मुंहासे निकल आते है, जिसके कारण है अधिक पसीना निकलना, बैक्टीरिया और संवेदनशील क्षेत्रों में दुर्गंध और चकत्ते की समस्या।

डॉ. चतुर्वेदी कहते हैं कि कभी-कभी, तापमान और नमी में वृद्धि होने के बावजूद, हम हल्के गैर-कॉमेडोजेनिक स्किनकेयर उत्पादों को बदलने की आवश्यकता को अनदेखा करते हैं। जिसके परिणामस्वरूप त्वचा पर दाने और मुंहासे निकलना शुरू हो जाते है। कुछ लोग एक्जिमा या सोरायसिस जैसे त्वचा की स्थिति का भी सामना करते हैं। सर्दियों में हीटिंग उपकरणों का उपयोग घर के अंदर की हवा से सभी नमी को सोख लेता है, जो त्वचा का रूखापन और संबंधित स्थितियों को बढ़ाता है।

ब्रिटिश जर्नल ऑफ डर्मेटोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन के निष्कर्षो के अनुसार मौसम का बदलाव ना केवल पर्यावरणीय परिस्थितियों को बदलता है, बल्कि त्वचा के सेलुलर स्तर पर परिवर्तन को भी प्रेरित करता है। अध्ययन में पाया गया कि मौसमी बदलाव फिलाग्रेगिन नामक प्रोटीन जो धूल, गंदगी आदि को त्वचा के अंदर जाने नहीं देता, इसके साथ ही कॉर्नोसाइट्स त्वचा की बाहरी परत बनाती हैं। जब फिलाग्रेगिन के इस कार्य में बाधा आती है, तो त्वचा जलन और क्षति के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती है।

विशेषज्ञ का कहना है कि मौसम में बदलाव होने के साथ ही हमारा स्किनकेयर रूटीन भी बदलने की जरूरत होती है। उसके लिए यहां कुछ सुझाव दिए गए हैं:

अपना स्किनकेयर रूटीन बदलें

हमेशा एक अच्छी क्लींजिंग, टोनिंग और मॉइस्चराइजिंग रुटीन का पालन करें, ध्यान रहे कि अपने स्किनकेयर उत्पादों को मौसम के अनुसार चुनें। इसलिए, गर्मियों में गैर-कॉमेडोजेनिक उत्पादों में बदलाव करना बहुत जरूरी हो जाता हैं। यदि आप एक क्रीम-बेस्ड फेसवॉश या मॉइस्चराइजर का उपयोग कर रहे हैं, तो अब वॉटर-बेस्ड हल्के फार्मूलों पर स्विच कर लें।

त्वचा संबंधी क्लीनिकल प्रोसीजर पर विचार करें

यदि आप त्वचा संबंधी क्लीनिकल प्रोसीजर का विचार कर रहे हैं, तो मौसमी बदलाव शायद इसे शुरू करने का उपयुक्त समय है। यह ना केवल एक त्वचा विशेषज्ञ से संपर्क करने के लिए प्रेरित करेगा, बल्कि यह आपकी त्वचा को मौसमी परिवर्तन के अचानक आघात के खिलाफ बेहतर तरीके से तैयार करने में भी मदद करेगा।

पढ़े: ये 5 टिप्स फॉलो कर दुल्हे भी पा सकते है अपना परफेक्ट लुक

त्वचा विशेषज्ञ आपकी त्वचा की गहराई से जांच करेगा और आपको आवश्यकता के अनुसार उचित त्वचा संबंधी क्लीनिकल प्रोसीजर लेने में मदद करेगा। यदि आपकी त्वचा में रूखापन, चंचलता महसूस हो रहा है और उम्र बढ़ने के संकेत आपको परेशान कर रहे हैं, तो आप एक हायल्यूरोनिक एसिड-आधारित उपचार जैसे प्रोफिलो पर विचार कर सकते हैं। इसी तरह, यदि आप तैलीय और बंद छिद्रों का अनुभव कर रहे हैं, तो एक्सफोलीएटिंग और डीप क्लींजिंग प्रक्रियाएं जैसे कि हाइड्रैडरमाब्रेशन और कार्बन पील्स फायदेमंद हो सकते हैं।

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