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Restless Leg Syndrome : आम जीवन को प्रभावित कर सकते हैं रेस्टलेस लेग सिंड्रोम के प्रभाव - रेस्टलेस लेग सिंड्रोम का कारण

रेस्टलेस लेग सिंड्रोम या विलिस-एकबॉम डिजीज एक ऐसा सिंड्रोम है जिसमें पीड़ित जाने-अनजाने अपने पांव हिलाने लगता है. वैसे तो यह एक आम समस्या है तथा ज्यादातर गंभीर प्रभाव नहीं देती हैं. लेकिन समस्या बढ़ने पर यह जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित जरूर कर सकती है. पढ़ें पूरी खबर..

Restless Leg Syndrome
रेस्टलेस लेग सिंड्रोम
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Published : Jul 15, 2023, 12:03 AM IST

हैदराबाद : हम कई बार लोगों को पैरों को एक के ऊपर एक रखकर हिलाते हुए देखते हैं. वहीं कई लोगों में पैरों की मांसपेशियों में अकड़न या झुंझुनाहट होना आम बात होती है. देखने-सुनने में यह एक आम हरकत लगती हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऐसा एक सिंड्रोम के कारण हो सकता है? जानकारों की मानें तो रेस्टलेस लेग सिंड्रोम या विलिस-एक बॉम डिजीज के नाम से जानी जाने वाली इस अवस्था के लिए कई कारण जिम्मेदार हो सकते हैं. वहीं यह समस्या इतनी आम है कि हर 10 में से एक व्यक्ति अपने जीवन के कभी ना कभी इस सिंड्रोम से प्रभावित होता ही है.

रेस्टलेस लेग सिंड्रोम के लक्षण
नवी मुंबई के कंसल्टेंट फिजीशियन डॉ अवधेश भारती बताते हैं कि रेस्टलेस लेग सिंड्रोम या आरएलएस के लिए कई कारण जिम्मेदार हो सकते हैं. जिनमें शरीर में कुछ खास प्रकार के पोषक तत्वों की कमी से लेकर , हार्मोन्स में उतार चढ़ाव तो कई बार कुछ शारीरिक समस्याएं शामिल हैं.

इस सिंड्रोम से प्रभावित लोगों में अपने पैर हिलाने की तीव्र इच्छा पैदा होने लगती है. दरअसल इस सिंड्रोम के प्रभाव के चलते पीड़ित को पांव, पिंडली या जांघों की मांसपेशियों में खिंचाव, खुजली, दर्द, कंपन, बैचेनी, ऐंठन ,जलन, कुछ रेंगता हुआ सा महसूस होना तथा सनसनाहट महसूस होने लगती है. जिसके फलस्वरूप वे पैरों को तेजी से हिलाने लगते हैं. हालांकि ज्यादातर मामलों में यह एक गंभीर समस्या नहीं होती है. लेकिन समस्या बढ़ने पर इसके प्रभाव आम दिनचर्या को प्रभावित कर सकते हैं. जैसे कई लोगों में इस सिंड्रोम के लक्षण बढ़ने पर पैरों में दर्द या चलने में समस्या जैसी कई परेशानियां देखने में आने लगती हैं. वहीं कई लोगों की नींद की गुणवत्ता भी इस सिंड्रोम के चलते प्रभावित होती है, जिसके कारण कभी-कभी पीड़ित को नींद संबंधी विकारों तथा एकाग्रता में कमी जैसी समस्याओं का सामना भी करना पड़ जाता है.

वह बताते हैं है कि कारणों के आधार पर रेस्टलेस लेग सिंड्रोम के दो प्रकार के माने जाते हैं , प्राथमिक या इडियोपैथिक आरएलएस तथा माध्यमिक आरएलएस.

क्या है कारण
डॉ अवधेश भारती बताते हैं कि अलग-अलग लोगों में रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम के कारण अलग- अलग हो सकते हैं. जैसे कुछ में इसके लिए हाई ब्लड प्रेशर जिम्मेदार हो सकता है, वहीं कुछ लोगों में इसके लिए शरीर में आयरन, विटामिन बी-12, विटामिन डी, फोलिक एसिड तथा कैल्शियम की कमी भी जिम्मेदार हो सकते है.

कुछ लोगों में इस समस्या के लिए शरीर में पाए जाने वाले डोपामाइन हार्मोन के स्तर में कमी भी कारण हो सकती हैं. दरअसल डोपामाइन मांसपेशियों में होने वाली गतिविधियों को नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभाता है.

इसके अलावा कुछ क्रोनिक बीमारियां जैसे किडनी से जुड़ी बीमारी, रयूमेटाइड अर्थराइटिस, मधुमेह, अंडरएक्टिव थायराइड ग्रन्थि या फाइब्रोमायल्जिया, पार्किसंस जैसी बीमारियां तथा मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिकाओं की गड़बड़ी भी इस सिंड्रोम के लिए जिम्मेदार हो सकती है. रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम कुछ लोगों में आनुवंशिक कारणों से भी हो सकता है.

वहीं महिलाओं में गर्भावस्था के आखिरी तीन महीनों में यह समस्या आमतौर पर देखने में आती है. जो बच्चे के जन्म के बाद आमतौर पर समय के साथ अपने आप ठीक भी हो जाती है.

प्रभाव
वह बताते हैं कि रेस्टलेस लेग सिंड्रोम एक बहुत ही आम समस्या या अवस्था है जिसके आमतौर पर बहुत गंभीर प्रभाव नहीं होते हैं. लेकिन समस्या बढ़ने पर ज्यादातर लोगों में शाम या रात के समय पैरों में समस्या या दर्द महसूस होना, कमर के निचले हिस्से में कम या ज्यादा दर्द होना, लंबे समय पर बैठने में परेशानी होना, नींद विकार होना, इम्यूनिटी में कमी आना , एकाग्रता में कमी आना तथा गुस्सा, चिंता व अवसाद जैसी व्यवहार संबंधी व मानसिक समस्याएं नजर आ सकती हैं. कई लोगों को समस्या बढ़ने पर चलने में भी दर्द व परेशानी भी महसूस होने लगती है.

वह बताते हैं यह समस्या पुरुषों की तुलना में महिलाओ में ज्यादा नजर आती है तथा इस समस्या से प्रभावित लोगों में इसके लक्षण तथा प्रभाव उम्र के बढ़ने के साथ-साथ बढ़ सकते हैं. आमतौर पर 40 वर्ष के बाद इस समस्या के प्रभाव पीड़ित में ज्यादा देखने में आते हैं.

रेस्टलेस लेग सिंड्रोम से बचाव
डॉ अवधेश भारती बताते हैं कि यदि किसी व्यक्ति में रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम के लक्षण ज्यादा तीव्र रूप में नजर आने लगते हैं तो बहुत जरूरी है कि इसे हल्के में ना ले या अनदेखा ना करें, तथा समस्या की समय से जांच तथा इलाज करवाएं. क्योंकि कई बार इस समस्या के लिए जिम्मेदार कारण कुछ अन्य समस्याओं के लक्षण या कारण भी हो सकते हैं. इसके अलावा कुछ बातों तथा सावधानियों का ध्यान रख कर रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम से बचा जा सकता है. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.

  1. शरीर में आयरन, विटामिन बी 12 तथा अन्य जरूरी पोषक तत्वों की कमी ना होने दें. इसके लिए अपने आहार में हरी पत्तेदार तथा मौसमी सब्जियों, फलों, अंडा, चिकन, डेयरी उत्पादों तथा अन्य ऐसे आहार को शामिल करें जिनमें जरूरी पोषक तत्व भरपूर मात्रा में हों.
  2. मधुमेह, उच्च रक्तचाप तथा थाइराइड रोगी अपनी नियमित जांच करवाएं. तथा इस सिंड्रोम के लक्षणों की शुरुआत होते ही चिकित्सक से संपर्क करें.
  3. शराब तथा धूम्रपान से परहेज करें .
  4. लंबे समय तक एक स्थान पर ना बैठे रहें.
  5. ज्यादा मात्रा में कैफीन या मीठे पेय पदार्थों के सेवन से बचें.
  6. स्लीप हाइजीन का ध्यान रखें तथा समय से सोएं तथा प्रतिदिन जरूरी मात्रा में सोएं.
  7. अपने वजन को नियंत्रित रखें.
  8. सक्रिय जीवनशैली जियें तथा नियमित व्यायाम करें.

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हैदराबाद : हम कई बार लोगों को पैरों को एक के ऊपर एक रखकर हिलाते हुए देखते हैं. वहीं कई लोगों में पैरों की मांसपेशियों में अकड़न या झुंझुनाहट होना आम बात होती है. देखने-सुनने में यह एक आम हरकत लगती हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऐसा एक सिंड्रोम के कारण हो सकता है? जानकारों की मानें तो रेस्टलेस लेग सिंड्रोम या विलिस-एक बॉम डिजीज के नाम से जानी जाने वाली इस अवस्था के लिए कई कारण जिम्मेदार हो सकते हैं. वहीं यह समस्या इतनी आम है कि हर 10 में से एक व्यक्ति अपने जीवन के कभी ना कभी इस सिंड्रोम से प्रभावित होता ही है.

रेस्टलेस लेग सिंड्रोम के लक्षण
नवी मुंबई के कंसल्टेंट फिजीशियन डॉ अवधेश भारती बताते हैं कि रेस्टलेस लेग सिंड्रोम या आरएलएस के लिए कई कारण जिम्मेदार हो सकते हैं. जिनमें शरीर में कुछ खास प्रकार के पोषक तत्वों की कमी से लेकर , हार्मोन्स में उतार चढ़ाव तो कई बार कुछ शारीरिक समस्याएं शामिल हैं.

इस सिंड्रोम से प्रभावित लोगों में अपने पैर हिलाने की तीव्र इच्छा पैदा होने लगती है. दरअसल इस सिंड्रोम के प्रभाव के चलते पीड़ित को पांव, पिंडली या जांघों की मांसपेशियों में खिंचाव, खुजली, दर्द, कंपन, बैचेनी, ऐंठन ,जलन, कुछ रेंगता हुआ सा महसूस होना तथा सनसनाहट महसूस होने लगती है. जिसके फलस्वरूप वे पैरों को तेजी से हिलाने लगते हैं. हालांकि ज्यादातर मामलों में यह एक गंभीर समस्या नहीं होती है. लेकिन समस्या बढ़ने पर इसके प्रभाव आम दिनचर्या को प्रभावित कर सकते हैं. जैसे कई लोगों में इस सिंड्रोम के लक्षण बढ़ने पर पैरों में दर्द या चलने में समस्या जैसी कई परेशानियां देखने में आने लगती हैं. वहीं कई लोगों की नींद की गुणवत्ता भी इस सिंड्रोम के चलते प्रभावित होती है, जिसके कारण कभी-कभी पीड़ित को नींद संबंधी विकारों तथा एकाग्रता में कमी जैसी समस्याओं का सामना भी करना पड़ जाता है.

वह बताते हैं है कि कारणों के आधार पर रेस्टलेस लेग सिंड्रोम के दो प्रकार के माने जाते हैं , प्राथमिक या इडियोपैथिक आरएलएस तथा माध्यमिक आरएलएस.

क्या है कारण
डॉ अवधेश भारती बताते हैं कि अलग-अलग लोगों में रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम के कारण अलग- अलग हो सकते हैं. जैसे कुछ में इसके लिए हाई ब्लड प्रेशर जिम्मेदार हो सकता है, वहीं कुछ लोगों में इसके लिए शरीर में आयरन, विटामिन बी-12, विटामिन डी, फोलिक एसिड तथा कैल्शियम की कमी भी जिम्मेदार हो सकते है.

कुछ लोगों में इस समस्या के लिए शरीर में पाए जाने वाले डोपामाइन हार्मोन के स्तर में कमी भी कारण हो सकती हैं. दरअसल डोपामाइन मांसपेशियों में होने वाली गतिविधियों को नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभाता है.

इसके अलावा कुछ क्रोनिक बीमारियां जैसे किडनी से जुड़ी बीमारी, रयूमेटाइड अर्थराइटिस, मधुमेह, अंडरएक्टिव थायराइड ग्रन्थि या फाइब्रोमायल्जिया, पार्किसंस जैसी बीमारियां तथा मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिकाओं की गड़बड़ी भी इस सिंड्रोम के लिए जिम्मेदार हो सकती है. रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम कुछ लोगों में आनुवंशिक कारणों से भी हो सकता है.

वहीं महिलाओं में गर्भावस्था के आखिरी तीन महीनों में यह समस्या आमतौर पर देखने में आती है. जो बच्चे के जन्म के बाद आमतौर पर समय के साथ अपने आप ठीक भी हो जाती है.

प्रभाव
वह बताते हैं कि रेस्टलेस लेग सिंड्रोम एक बहुत ही आम समस्या या अवस्था है जिसके आमतौर पर बहुत गंभीर प्रभाव नहीं होते हैं. लेकिन समस्या बढ़ने पर ज्यादातर लोगों में शाम या रात के समय पैरों में समस्या या दर्द महसूस होना, कमर के निचले हिस्से में कम या ज्यादा दर्द होना, लंबे समय पर बैठने में परेशानी होना, नींद विकार होना, इम्यूनिटी में कमी आना , एकाग्रता में कमी आना तथा गुस्सा, चिंता व अवसाद जैसी व्यवहार संबंधी व मानसिक समस्याएं नजर आ सकती हैं. कई लोगों को समस्या बढ़ने पर चलने में भी दर्द व परेशानी भी महसूस होने लगती है.

वह बताते हैं यह समस्या पुरुषों की तुलना में महिलाओ में ज्यादा नजर आती है तथा इस समस्या से प्रभावित लोगों में इसके लक्षण तथा प्रभाव उम्र के बढ़ने के साथ-साथ बढ़ सकते हैं. आमतौर पर 40 वर्ष के बाद इस समस्या के प्रभाव पीड़ित में ज्यादा देखने में आते हैं.

रेस्टलेस लेग सिंड्रोम से बचाव
डॉ अवधेश भारती बताते हैं कि यदि किसी व्यक्ति में रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम के लक्षण ज्यादा तीव्र रूप में नजर आने लगते हैं तो बहुत जरूरी है कि इसे हल्के में ना ले या अनदेखा ना करें, तथा समस्या की समय से जांच तथा इलाज करवाएं. क्योंकि कई बार इस समस्या के लिए जिम्मेदार कारण कुछ अन्य समस्याओं के लक्षण या कारण भी हो सकते हैं. इसके अलावा कुछ बातों तथा सावधानियों का ध्यान रख कर रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम से बचा जा सकता है. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.

  1. शरीर में आयरन, विटामिन बी 12 तथा अन्य जरूरी पोषक तत्वों की कमी ना होने दें. इसके लिए अपने आहार में हरी पत्तेदार तथा मौसमी सब्जियों, फलों, अंडा, चिकन, डेयरी उत्पादों तथा अन्य ऐसे आहार को शामिल करें जिनमें जरूरी पोषक तत्व भरपूर मात्रा में हों.
  2. मधुमेह, उच्च रक्तचाप तथा थाइराइड रोगी अपनी नियमित जांच करवाएं. तथा इस सिंड्रोम के लक्षणों की शुरुआत होते ही चिकित्सक से संपर्क करें.
  3. शराब तथा धूम्रपान से परहेज करें .
  4. लंबे समय तक एक स्थान पर ना बैठे रहें.
  5. ज्यादा मात्रा में कैफीन या मीठे पेय पदार्थों के सेवन से बचें.
  6. स्लीप हाइजीन का ध्यान रखें तथा समय से सोएं तथा प्रतिदिन जरूरी मात्रा में सोएं.
  7. अपने वजन को नियंत्रित रखें.
  8. सक्रिय जीवनशैली जियें तथा नियमित व्यायाम करें.

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