हमारे देश में प्राचीन काल से ही आयुर्वेद तथा प्राकृतिक चिकित्सा में माना जाता है कि जो लोग बचपन में ज्यादा समय प्रकृति के सानिध्य में तथा प्राकृतिक संसाधनों के साथ खेलते हुए बिताते हैं बड़े होने पर उनका ना सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है. हाल ही में ब्लू हेल्थ इंटरनेशनल सर्वे (Blue Health International Survey report) में यूरोप के 14 देशों और चार अन्य देश हाँगकाँग, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और कैलिफोर्निया के 15 हजार लोगों पर हुए एक सर्वे/ शोध में माना गया है कि जो बच्चे ज्यादा समय प्रकृति की गोद में मिट्टी, बालू या कीचड़ में खेलते हुए बिताते हैं, वे शारीरिक व मानसिक रूप से (children who spend more time in nature are healthier) ज्यादा स्वस्थ होते है. वैसे तो प्रकृति और स्वास्थ्य के बीच के संबंध को लेकर सालों से कई शोध किए जाते रहे हैं जिनमें से ज्यादातर के नतीजों में माना गया है कि ऐसा करना सेहत को काफी सकारात्मक व दूरगामी नतीजे देता है. लेकिन हमारे आयुर्वेद तथा प्राकृतिक चिकित्सा में तो इस तथ्य को हमेशा से ही मान्यता दी जाती रही है. यहां तक कि इन दोनों ही चिकित्सा प्रणालियों का आधार ही प्रकृति व प्राकृतिक संसाधन हैं. Children brought up in natural surroundings are more healthy research . Research shows time spend in nature good for health .
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क्या कहती है ब्लू हेल्थ इंटरनेशनल सर्वे (Blue Health International Survey report) की रिपोर्ट
गौरतलब है कि Blue Health International Survey में ऐसे लोगों पर शोध किया गया था जिन्होंने 16 साल की उम्र तक समुद्र या हरियाली के बीच ज्यादा समय गुजारा था. शोध के नतीजों में शोधकर्ताओं तथा इटली के University of Palermo के neuropsychiatrists and psychotherapists एलिसिया फ्रैंको तथा डेविड रैबसन ने बताया है कि मिट्टी तथा बालू में मौजूद माइक्रोऑर्गेनिज़्म या सूक्ष्म जीव बच्चों की इम्यून शक्ति को बढ़ाते हैं. इसके अलावा प्राकृतिक वातावरण जैसे मिट्टी, कीचड़ और बालू में खेलने से ना सिर्फ बच्चों की ज्ञानेन्द्रियों का विकास होता है बल्कि यह उनके लिए एक थेरेपी का काम करता है. जो न केवल बीमारियों का इलाज करती है बल्कि उन्हें बीमार पड़ने से बचाती भी है. साथ ही इस तरह की गतिविधि का हिस्सा बनने से उनका शरीर और दिमाग दोनों को तरोताजा रहते हैं और वे ज्यादा ऊर्जावान महसूस करने लगते हैं.
क्या कहते हैं अन्य शोध : यह अपनी तरह का पहला शोध नहीं है. इससे पहले भी दुनिया भर में इस विषय पर कई शोध किए जाते रहे हैं जिनमें से ज्यादातर में इस बात की पुष्टि हुई कि ज्यादा समय प्रकृति के सानिध्य में बिताने तथा साफ वातावरण में धूल मिट्टी के बीच खेलने से बच्चे कई तरह की मौसम तथा वातावरण जनित एलर्जी तथा संक्रमण को लेकर ज्यादा संवेदनशील नहीं बनते हैं. तथा उन्हें इस कारण से होने वाले रोग भी अपेक्षाकृत कम होते हैं.इनमें से कुछ शोध की जानकारी इस प्रकार है.
अप्रैल 2021 में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायरनमेंटल रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ (International Journal of Environmental Research and Public Health) में प्रकाशित एक अध्ययन में भी प्रकृति और स्वास्थ्य के संपर्क के बीच संबंध पर प्रकाश डाला गया था. इस शोध में प्रयोगात्मक और अवलोकन संबंधी अध्ययनों से प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर माना गया था कि प्रकृति के संपर्क में ज्यादा समय बिताने से ना सिर्फ बच्चों बल्कि बड़ों की भी संज्ञानात्मक कार्य करने की क्षमता बेहतर होती है, मस्तिष्क गतिविधि व मानसिक स्वास्थ्य दुरुस्त रहता हैं, नींद या रक्तचाप संबंधी समस्याओं सहित कई अन्य समस्याओं में भी राहत मिलती है और उनकी शारीरिक गतिविधि भी बेहतर होती है.
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वहीं 2021 में ही प्रकाशित एक अन्य शोध में कहा गया था कि आज के दौर में ज्यादातर लोग कम स्वस्थ हैं, जिसका कारण उनका पर्यावरण व पृथ्वी से अलग होना हैं. अध्ययन में कहा गया था कि पृथ्वी के साथ जुड़ना शारीरिक व मानसिक कल्याण को बढ़ावा देता हैं. जैसे जब हम हरी घास पर आप नंगे पैर चलते हैं, तो रिफ्लेक्सोलॉजी का सिद्धांत (Principle of reflexology) काम करता हैं. इससे तलवों के अलग-अलग बिंदुओं पर जोर पड़ने से कई अन्य अंगों की कार्यप्रणाली नियंत्रित हो जाती है. जिससे शरीर को कई लाभ मिलते हैं.
इससे पूर्व जून वर्ष 2013 में “The Natural Environment in Development and Well Being“ विशेषज्ञों द्वारा लिखे गए एक आलेख “वर्ल्ड विजन” में कहा गया था कि स्वस्थ व प्रभावी प्राकृतिक वातावरण के अभाव में बाल कल्याण को बनाए रखना बहुत मुश्किल है. बच्चों की भलाई उनके आस-पास के वातावरण पर निर्भर करती है. प्राकृतिक वातावरण में समय बिताने से तथा प्रकृति द्वारा प्रदान भोजन ग्रहण करने से मिलने वाले पोषण से शरीर मजबूत होता है, उसकी रोग से प्रतिरक्षा होती है तथा ज्यादा बेहतर तरीके से शारीरिक और मानसिक विकास होता है. यही नहीं बच्चे का व्यवहार भी सकारात्मक रूप में बेहतर होता है.
क्या कहता है आयुर्वेद : भारत के प्राचीन चिकित्सा शास्त्र आयुर्वेद तथा प्राकृतिक चिकित्सा में हमेशा से यही माना जाता है ना सिर्फ बचपन बल्कि वयस्क होने पर भी जितना समय प्रकृति के सानिध्य में बिताया जाता है वह स्वास्थ्य को दीर्घकाल में उतना ही फायदा देता है. भोपाल के आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ राजेश शर्मा (Dr Rajesh Sharma) बताते हैं कि हमारी संस्कृति में प्राचीन काल में गुरुकुल परंपरा का पालन किया जाता था. गुरुकुल ज्यादातर ऐसे स्थानों पर होते थे जो जल, मिट्टी, पर्वत, खेत तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों से घिरे होते थे. ऐसे में वहां रहने वाले विद्यार्थी खुले वातावरण में हर मौसम तथा परिस्थिति का सामना करते थे और मिट्टी, कीचड़ तथा जल में ही खेलते थे. इस तरह कि परिस्थितियों का सामना करने से ना सिर्फ उनका शरीर मजबूत होता था, उनके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती थी तथा किसी प्रकार की एलर्जी या मौसम जनित बीमारियों का प्रभाव भी उन पर कम होता था.
Dr Rajesh Sharma बताते हैं कि हालांकि आज के दौर में वातावरण में प्रदूषण, तथा गंदगी के कारण कुछ सावधानियों को बरतना जरूरी होता है, लेकिन यह भी सत्य है कि यदि बच्चा बचपन से खुले वातावरण में रहेगा तथा उसका सामना करेगा तो उसका शरीर स्वयं ही इन समस्याओं के चलते होने वाले रोगों को लेकर खास इम्यूनिटी तैयार कर लेगा. Ayurvedic doctor Rajesh Sharma बताते हैं कि लेकिन जिन बच्चों को मौसम तथा वातावरण के प्रभाव से ज्यादा बचाकर रखने के प्रयास किया जाता है वे अपेक्षाकृत ज्यादा बीमार रहते हैं. प्राकृतिक चिकित्सक भी इस बात की पुष्टि करते हैं लेकिन यहां यह जानना भी जरूरी है खुले वातावरण या प्रकृति के पास रहने से चिकित्सकों का तात्पर्य यह नहीं है कि बच्चे पूरा दिन घर के बाहर मिट्टी में खेलते रहें. वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए जरूरी है कि बच्चे को खेलने, पढ़ने व समय बिताने के लिए ऐसा माहौल दिया जाय जहां जरूरी सफाई और हाईजीन तो हो लेकिन उससे प्राकृतिक वातावरण प्रभावित ना हो.
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