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Liver Cancer Drugs: एस्ट्राजेनेका की लिवर कैंसर की दवा को सीडीएससीओ ने भारत में दी मंजूरी

देश में हर साल 12-13 लाख लोगों में कैंसर की पहचान हो पाती है. वहीं 8 लाख के करीब लोगों की इससे मौतें हो जाती है. इसी बीच भारत के केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन ने कैंसर की नई दवा को मंजूरी दे दी है. पढ़ें पूरी खबर..

Liver Cancer Drugs
लिवर कैंसर की दवा
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Published : Jun 2, 2023, 8:09 AM IST

नई दिल्ली : केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने एस्ट्राजेनेका फार्मा इंडिया की लिवर कैंसर की दवा ट्रेमेलीमुमैब कॉन्सेंट्रेट को अंत:शिरा में दिए जाने की मंजूरी दे दी है. कंपनी ने गुरुवार को यह जानकारी दी. डुरवालुमैब के संयोजन में ट्रेमेलिमुमैब के लिए अनुमोदन तीसरे चरण के नैदानिक परीक्षण के परिणामों पर आधारित है और इसे अनरेक्टेबल हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा के रोगियों के उपचार के लिए संकेत दिया गया है.

Liver Cancer Drugs
आंकड़ों में कैंसर

कंपनी ने एक बयान में कहा कि भारत, अमेरिका और कनाडा सहित 16 देशों में किए गए परीक्षण ने ट्रेमेलिमुमैब और डुरवालुमैब बनाम सोराफेनीब के संयोजन के लिए समग्र अस्तित्व के लिए सकारात्मक और महत्वपूर्ण लाभ दिखाया. एस्ट्राजेनेका इंडिया के नियामक डॉ. अनिल कुकरेजा ने एक बयान में कहा, अनपेक्टेबल लिवर कैंसर वाले रोगियों का पूवार्नुमान अक्सर सीमित होता है और निदान में काफी देरी होती है, अधिकांश मामलों में एक उन्नत और अनपेक्षित चरण में निदान किया जाता है. इसलिए, दीर्घकालिक अस्तित्व में सुधार के लिए अच्छे उपचार विकल्प सर्वोपरि हो जाते हैं.

Liver Cancer Drugs
कैंसर पर ग्लोबोकॉन इंडिया 2020 की रिपोर्ट

तीसरे चरण के परीक्षण में ट्रेमेलिमुमैब 300 मिलीग्राम की एकल प्राइमिंग खुराक शामिल थी, जिसमें ड्यूरवालुमैब 1500 मिलीग्राम जोड़ा गया था, इसके बाद हर चार सप्ताह में डुरवालुमैब बनाम सॉराफेनीब का इस्तेमाल किया गया. इस परीक्षण में कुल 1,324 मरीज शामिल थे, जिनमें अनपेक्टेबल, उन्नत एचसीसी थे, जिनका पूर्व प्रणालीगत उपचार के साथ इलाज नहीं किया गया था और वे स्थानीय चिकित्सा (यकृत और आसपास के ऊतकों के लिए स्थानीयकृत उपचार) के लिए पात्र नहीं थे.

ग्लोबोकॉन इंडिया 2020 की रिपोर्ट में हर साल हेपैटोसेलुलर कार्सिनोमा (एचसीसी) के 30,000 से अधिक नए स्थानीय मामलों का निदान किया जाता है, जो इसे भारत में कैंसर का 10वां सबसे आम कारण बनाता है. इसकी उच्च मृत्यु दर इसे देश में कैंसर से होने वाली मौतों का आठवां सबसे आम कारण बनाती है. भारत में एचसीसी के सामान्य कारणों और जोखिम कारकों में सिरोसिस, हेपेटाइटिस बी और सी संक्रमण, शराब, धूम्रपान, मधुमेह और गैर-अल्कोहल फैटी लिवर रोग शामिल हैं. एचसीसी के लिए 5 साल की जीवित रहने की दर लगभग 18 प्रतिशत है; स्थानीयकृत, क्षेत्रीय और मेटास्टैटिक एचसीसी में क्रमश: 33 प्रतिशत, 10 प्रतिशत और 2 प्रतिशत का 5 साल का समग्र अस्तित्व है.
(आईएएनएस)

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नई दिल्ली : केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने एस्ट्राजेनेका फार्मा इंडिया की लिवर कैंसर की दवा ट्रेमेलीमुमैब कॉन्सेंट्रेट को अंत:शिरा में दिए जाने की मंजूरी दे दी है. कंपनी ने गुरुवार को यह जानकारी दी. डुरवालुमैब के संयोजन में ट्रेमेलिमुमैब के लिए अनुमोदन तीसरे चरण के नैदानिक परीक्षण के परिणामों पर आधारित है और इसे अनरेक्टेबल हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा के रोगियों के उपचार के लिए संकेत दिया गया है.

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आंकड़ों में कैंसर

कंपनी ने एक बयान में कहा कि भारत, अमेरिका और कनाडा सहित 16 देशों में किए गए परीक्षण ने ट्रेमेलिमुमैब और डुरवालुमैब बनाम सोराफेनीब के संयोजन के लिए समग्र अस्तित्व के लिए सकारात्मक और महत्वपूर्ण लाभ दिखाया. एस्ट्राजेनेका इंडिया के नियामक डॉ. अनिल कुकरेजा ने एक बयान में कहा, अनपेक्टेबल लिवर कैंसर वाले रोगियों का पूवार्नुमान अक्सर सीमित होता है और निदान में काफी देरी होती है, अधिकांश मामलों में एक उन्नत और अनपेक्षित चरण में निदान किया जाता है. इसलिए, दीर्घकालिक अस्तित्व में सुधार के लिए अच्छे उपचार विकल्प सर्वोपरि हो जाते हैं.

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कैंसर पर ग्लोबोकॉन इंडिया 2020 की रिपोर्ट

तीसरे चरण के परीक्षण में ट्रेमेलिमुमैब 300 मिलीग्राम की एकल प्राइमिंग खुराक शामिल थी, जिसमें ड्यूरवालुमैब 1500 मिलीग्राम जोड़ा गया था, इसके बाद हर चार सप्ताह में डुरवालुमैब बनाम सॉराफेनीब का इस्तेमाल किया गया. इस परीक्षण में कुल 1,324 मरीज शामिल थे, जिनमें अनपेक्टेबल, उन्नत एचसीसी थे, जिनका पूर्व प्रणालीगत उपचार के साथ इलाज नहीं किया गया था और वे स्थानीय चिकित्सा (यकृत और आसपास के ऊतकों के लिए स्थानीयकृत उपचार) के लिए पात्र नहीं थे.

ग्लोबोकॉन इंडिया 2020 की रिपोर्ट में हर साल हेपैटोसेलुलर कार्सिनोमा (एचसीसी) के 30,000 से अधिक नए स्थानीय मामलों का निदान किया जाता है, जो इसे भारत में कैंसर का 10वां सबसे आम कारण बनाता है. इसकी उच्च मृत्यु दर इसे देश में कैंसर से होने वाली मौतों का आठवां सबसे आम कारण बनाती है. भारत में एचसीसी के सामान्य कारणों और जोखिम कारकों में सिरोसिस, हेपेटाइटिस बी और सी संक्रमण, शराब, धूम्रपान, मधुमेह और गैर-अल्कोहल फैटी लिवर रोग शामिल हैं. एचसीसी के लिए 5 साल की जीवित रहने की दर लगभग 18 प्रतिशत है; स्थानीयकृत, क्षेत्रीय और मेटास्टैटिक एचसीसी में क्रमश: 33 प्रतिशत, 10 प्रतिशत और 2 प्रतिशत का 5 साल का समग्र अस्तित्व है.
(आईएएनएस)

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