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भारत में मधुमेह, कैंसर के रोगियों के लिए कोविड-19 दोहरा झटका : शोध - कोविड-19 का प्रभाव अधिक

सिडनी में यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स (यूएनएसडब्ल्यू) द्वारा किये गये एक शोध में गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) वाले लोगों पर कोविड-19 के पड़ने वाले प्रभावों की समीक्षा की गई. शोध में खुलासा हुआ है कि एनसीडी रोगियों के लिए कोविड़-19 का खतरा दोगुना बढ़ गया है, वहीं इसकी वजह से जान गंवाने के लिए रोगी अधिक संवेदनशील हैं.

NCD patients risk of covid-19
एनसीडी रोगियों को कोविड-19 का खतरा
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Published : Oct 26, 2020, 1:30 PM IST

Updated : Oct 27, 2020, 1:25 PM IST

शोधकर्ताओं ने खुलासा किया है कि कोविड-19 महामारी भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देशों में गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) जैसे मधुमेह, कैंसर, श्वसन संबंधी समस्याओं या हृदय संबंधी दिक्कतों वाले लोगों के लिए दोहरा आघात बनकर आई है. 'फ्रंटियर इन पब्लिक हेल्थ' नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि एनसीडी वाले लोग कोविड-19 की चपेट में आने और इसकी वजह से जान गंवाने के लिए अधिक संवेदनशील हैं. इसके साथ ही महामारी के दौरान ऐसे रोगों से पीड़ित व्यक्ति अगर स्वास्थ्य के लिए सही नहीं मानी जानी वाले आहार लेता है, तो उसके लिए महामारी और भी भयावह हो सकती है.

शोधकर्ताओं ने माना कि कोविड-19 की वजह से आवश्यक सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं भी बाधित हुई, जिससे इस तरह के रोगों का सामना कर रहे लोगों ने अपनी स्वास्थ्य स्थिति का पता लगाने और इसका पर्याप्त इलाज कराने में भी ढिलाई बरती है.

शोध के लिए ब्राजील, भारत, बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान और नाइजीरिया जैसे निम्न और मध्यम आय वाले देशों में एनसीडी वाले लोगों पर कोविड-19 के पड़ने वाले प्रभावों की समीक्षा की गई. सिडनी में यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स (यूएनएसडब्ल्यू) और नेपाल, बांग्लादेश एवं भारत के सार्वजनिक स्वास्थ्य शोधकर्ताओं के बीच एक सहयोग के तौर पर यह शोध किया गया.

यूएनएसडब्ल्यू के अध्ययन के प्रमुख लेखक उदय यादव ने कहा कि एनसीडी और कोविड-19 के बीच संबंध और असर पर अध्ययन करना महत्वपूर्ण था, क्योंकि वैश्विक आंकड़ों से पता चलता है कि कोविड-19 से संबंधित मौतें एनसीडी वाले लोगों में असमान रूप से अधिक पाई गई हैं.

उन्होंने कहा, 'वैसे लोग कोविड-19 महामारी से परिचित हैं, लेकिन हमने एनसीडी के साथ लोगों पर कोविड-19 और भविष्य की महामारी दोनों के प्रभाव को निर्धारित करने के लिए एक सिंडेमिक लेंस के माध्यम से इसका विश्लेषण किया.'

शोधकर्ताओं के मुताबिक, ऐसे रोगों से लड़ रहे लोगों के लिए कोविड-19 का प्रभाव कहीं अधिक होगा.

उन्होंने कहा, 'एनसीडी अनुवांशिक, शारीरिक, पर्यावरण और व्यवहार संबंधी कारकों के संयोजन का परिणाम होते हैं और इसका कोई जल्द इलाज नहीं है, जैसे कि वैक्सीन या अन्य इलाज.'

शोधकर्ताओं ने खुलासा किया है कि कोविड-19 महामारी भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देशों में गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) जैसे मधुमेह, कैंसर, श्वसन संबंधी समस्याओं या हृदय संबंधी दिक्कतों वाले लोगों के लिए दोहरा आघात बनकर आई है. 'फ्रंटियर इन पब्लिक हेल्थ' नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि एनसीडी वाले लोग कोविड-19 की चपेट में आने और इसकी वजह से जान गंवाने के लिए अधिक संवेदनशील हैं. इसके साथ ही महामारी के दौरान ऐसे रोगों से पीड़ित व्यक्ति अगर स्वास्थ्य के लिए सही नहीं मानी जानी वाले आहार लेता है, तो उसके लिए महामारी और भी भयावह हो सकती है.

शोधकर्ताओं ने माना कि कोविड-19 की वजह से आवश्यक सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं भी बाधित हुई, जिससे इस तरह के रोगों का सामना कर रहे लोगों ने अपनी स्वास्थ्य स्थिति का पता लगाने और इसका पर्याप्त इलाज कराने में भी ढिलाई बरती है.

शोध के लिए ब्राजील, भारत, बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान और नाइजीरिया जैसे निम्न और मध्यम आय वाले देशों में एनसीडी वाले लोगों पर कोविड-19 के पड़ने वाले प्रभावों की समीक्षा की गई. सिडनी में यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स (यूएनएसडब्ल्यू) और नेपाल, बांग्लादेश एवं भारत के सार्वजनिक स्वास्थ्य शोधकर्ताओं के बीच एक सहयोग के तौर पर यह शोध किया गया.

यूएनएसडब्ल्यू के अध्ययन के प्रमुख लेखक उदय यादव ने कहा कि एनसीडी और कोविड-19 के बीच संबंध और असर पर अध्ययन करना महत्वपूर्ण था, क्योंकि वैश्विक आंकड़ों से पता चलता है कि कोविड-19 से संबंधित मौतें एनसीडी वाले लोगों में असमान रूप से अधिक पाई गई हैं.

उन्होंने कहा, 'वैसे लोग कोविड-19 महामारी से परिचित हैं, लेकिन हमने एनसीडी के साथ लोगों पर कोविड-19 और भविष्य की महामारी दोनों के प्रभाव को निर्धारित करने के लिए एक सिंडेमिक लेंस के माध्यम से इसका विश्लेषण किया.'

शोधकर्ताओं के मुताबिक, ऐसे रोगों से लड़ रहे लोगों के लिए कोविड-19 का प्रभाव कहीं अधिक होगा.

उन्होंने कहा, 'एनसीडी अनुवांशिक, शारीरिक, पर्यावरण और व्यवहार संबंधी कारकों के संयोजन का परिणाम होते हैं और इसका कोई जल्द इलाज नहीं है, जैसे कि वैक्सीन या अन्य इलाज.'

Last Updated : Oct 27, 2020, 1:25 PM IST
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