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आयुर्वेद से भी संभव है कैंसर का इलाज

कैंसर वर्तमान समय की सबसे खतरनाक और जानलेवा बीमारियों में से एक है. दुनिया भर में लगभग 50 प्रतिशत मृत्यु का कारण कैंसर ही होता है. 'आयुर्वेद के इतिहास' विषय में पीएचडी तथा आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. पी.बी रंगनायकुलु बताते हैं कि दुनिया भर में कैंसर तथा उसके उपचार के क्षेत्र में चिकित्सकों तथा शोधकर्ताओं ने काफी प्रगति की है. जिसके फल स्वरूप कैंसर रोग की अधिकांश विधाओं में सही समय पर सही इलाज मिलने पर इस रोग से मुक्ति तक संभव है. हमारी पुरातन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में भी कैंसर का इलाज संभव है.

Cancer curable with Ayurveda
आयुर्वेद से कैंसर का इलाज
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Published : Feb 4, 2021, 9:16 PM IST

कैंसर के इलाज में कई लोग एलोपैथिक चिकित्सा के अलावा भी विभिन्न प्रकार की थेरेपी तथा अन्य चिकित्सा माध्यमों की मदद लेते है. कैंसर से छुटकारा पाने के लिए बहुत से लोग आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति भी अपनाते है. हमारी पुरातन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में भी विभिन्न उपचारों तथा पद्धतियों की मदद से कैंसर का इलाज संभव है. विश्व कैंसर दिवस के अवसर पर डॉ. पी.बी रंगनायकुलु ने ETV भारत सुखीभवा की टीम को जानकारी दी कि किस तरह से आयुर्वेद में कैंसर का उपचार सफलतापूर्वक किया जाता है.

आयुर्वेद और कैंसर

डॉ. रंगनायकुलु बताते हैं कि दुनिया भर में लगभग 3 हजार से अधिक पेड़ हैं, जिनका इस्तेमाल कैंसर विरोधी दवाइयां बनाने में किया जाता है. आयुर्वेद पर आधारित पुरानी पौराणिक पुस्तकों में कैंसर को एक ज्वलनशील तथा गैर ज्वलनशील सूजन के रूप में उल्लेखित किया गया है. आयुर्वेद के अनुसार हमारे शरीर में दो प्रकार की रसौली पाई जाती है, पहली 'ग्रंधि' जो कि एक छोटी रसौली होती है तथा दूसरी 'अर्बुद' जो आकार में बड़ी तथा ज्यादा कष्टदायक होती है.

आयुर्वेद के अनुसार इन रसौलियों तथा उनमें संक्रमण के कारण वात, पित्त और कफ दोषों की प्रवत्ति पर असर पड़ता है. तदोपरांत ये दोष रक्‍त और ममस धातु पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं, जिसके चलते कैंसर की उत्‍पत्ति होती है.

कैंसर का वर्गीकरण

Cancer curable with Ayurveda
वात, पित्त, कफ

प्रभावित धातु के आधार पर कैंसर के तीन प्रकार माने गए है, रक्‍तज अर्बुद (रक्‍त को प्रभावित), ममसाज अर्बुद (मांसपेशी और नरम ऊतकों का ट्यूमर) और मेदोज (वसा ऊतकों का कैंसर). आयुर्वेद के अनुसार कारक दोष और ऊतक के आधार पर कैंसर को वर्गीकृत किया जा सकता है. ये वर्गीकरण इस प्रकार है;

  1. वात, पित्त और कफ के असंतुलन के कारण वात, पित्त और कफ अर्बुद का होना.
  2. शरीर के किसी भी हिस्से में त्रिदोष यानी ट्यूमर का होना.
  3. कैंसर की जगह और अंग जैसे कि कान, आंख, नाक आदि के आधार पर भी इसे वर्गीकृत किया गया है.

रक्त, मांसपेशियों तथा तंतुओं पर आयुर्वेद के दोषों का असर

आयुर्वेद में कैंसर के कारणों को एक अलग नजरिए से देखा जाता है. आमतौर पर वात, कफ तथा पित जैसे दोषों के लिए भोजन, जीवन शैली तथा चोट में फैलने वाले संक्रमणों को जिम्मेदार माना जाता है. अलग-अलग दोषों की हानिकारक प्रवत्ति के लिए जिम्मेदार कुछ कारक इस प्रकार है;

  • वात

कड़वे, बदबूदार और कसैले खाद्य पदार्थों तथा अत्यधिक सूखे मेवों का सेवन तनाव से भरी मानसिक अवस्था के दौरान करने से वात की समस्या बढ़ती है.

  • पित्त

ज्यादा खट्टा, ज्यादा नमकीन तथा तले -भुने भोजन के साथ हद से ज्यादा गुस्सैल प्रवत्ति होने पर शरीर में पित्त की मात्रा बढ़ जाती है.

  • कफ

अत्यधिक मात्रा में मिठाई, तैलीय भोजन तथा आलस भरी जीवनशैली के कारण शरीर में कफ की प्रवृत्ति ज्यादा बढ़ती है.

  • रक्त विकार

तला-भुना तेज मसालेदार भोजन, बासी भोजन, खट्टे फलों का ज्यादा सेवन, तथा शराब जैसे नशीले पदार्थों के अधिक सेवन तथा तनाव, चिंता या ज्यादा परेशानी के कारण रक्त में विकार होने कि आशंका बढ़ जाती है.

  • मांसपेशियों में समस्या
    Cancer curable with Ayurveda
    मांसपेशियों में समस्या

अत्याधिक गरिष्ठ तथा जरूरत से ज्यादा प्रोटीनयुक्त भोजन जैसे मीट, मछली, दूध-दही का सेवन तथा दिन में ज्यादा सोने या जैसी आदतों के कारण मांसपेशियों में विकार उत्पन्न हो सकता है.

  • वसा
    Cancer curable with Ayurveda
    वसा

ज्यादा मात्रा में तैलीय भोजन, असमय भोजन, ज्यादा मीठा, नशीले पदार्थों का अत्यधिक सेवन तथा आलस पूर्ण जीवन शैली के कारण शरीर में वसा बढ़ जाती है, जो शरीर में मोटापे जैसी समस्या उत्पन्न करती है.

आयुर्वेदा में कैंसर थेरेपी

डॉक्टर रंगनायकुलु बताते हैं की आयुर्वेद में कैंसर का इलाज चार भागों में विभाजित है; पहला स्वास्थ्य की देखभाल, दूसरा रोग का उपचार, तीसरा शरीर की कार्यशैली को सामान्य करना तथा चौथा रोग को लेकर आध्यात्मिक दृष्टिकोण उत्पन्न करना है. इसके अलावा कैंसर जैसे रोग में आयुर्वेदिक शोधन चिकित्सा तथा रसायन चिकित्सा के लिए भी सलाह दी जाती है. जिनके तहत विभिन्न उपचारों तथा दवाइयों के माध्यम से शरीर में वात, कफ, और पित्त रोग को नियंत्रित करती है.

इन पद्धतियों के अतिरिक्त रसायन विधा में उपचार के लिए विभिन्न जड़ी- बूटियों की भी मदद ली जाती है. जिनमें से कुछ इस प्रकार है;

  1. हरी चिरायता (एन्डरोग्राफीक्स पैनीक्यूलाटा)
  2. सीता फल एननोना एटेमोया)
  3. लाल भुईआंवला (फिलेन्थस)
  4. पिप्पली (पीपर लॉनगुम)
  5. जंगली विषाख मूल (पोड़ोंफिल्म हेक्सड्रम)
  6. दिल पत्ती चाँदनी (टिनोस्पोरा कोरडीफोलिया)
  7. अखरोट चंदन (सेमकारपस एनकारडीमम)

इनके अतिरिक कुछ अन्य जड़ी- बूटियां तथा औषधियां भी है, जो कैंसर के उपचार में फायदा करती है. उनमें से कुछ प्रचलित औषधियों, उनके वैज्ञानिक नाम तथा कौन सी औषधि किस प्रकार के कैंसर में फायदेमंद है, इसकी जानकारी इस प्रकार है;

  • रोजेदार मटर (एबर्स मटर) - फाइब्रो सरकोमा कैंसर
  • शिरीष के फूल (अल्बिजिया लेब्बेक) - सरकोमा कैंसर
  • लहसुन (अलीवयुम सतीवयुम)- सरकोमा
  • ग्वार का पाठा (एलोवेरा)- लीवर कैंसर, न्यूरो एक्टोडर्मल ट्यूमर
  • दित्ता छाल का पेड़ या डेविल ट्री (अल्स्टोनीय स्कोलेरिस)- पेट का कैंसर
  • रोहितका (अमर रोहितका) - ल्यूकेमिया
  • काजू (एनाकार्डियम ऑक्सिडेलेल)- लिवर कैंसर
  • एस्पेरेगस (एस्पेरागस रेसमोसुस) - एपिडर्मोइड कारसिनोमा कैंसर
  • ब्राह्मी, जलनीम (बकोपा मोनेरी) - कार्सिनो सरकोमा
  • हरिद्रा (बर्बेरिस एरिस्टाटा) - नाक व गले का कैंसर
  • लोबान (बोसवेलिया सेराटा) - ल्यूकेमिया तथा ब्रेन ट्यूमर
  • मदार का पेड़ (कैलोट्रोपिस गिगेंटिया) - नाक व गले का कैंसर
  • हल्दी (करक्यूमा लोंगा) - फाइब्रो सरकोमा
  • धतूरा (धतूरा मेटेल) - नाक व गले का कैंसर
  • भारतीय मूंगे का पेड़, धौलढ़ाक - (एरीथ्रिना सुबरोसा)
  • बाद दूधी (यूफोरिया हिरता) - ल्यूकेमिया
  • जाखिया (ज्ञनन्दरॉप्सिस पेन्टाफायल) - लिवर कैंसर
  • हत्था जोड़ी (हेलिओट्रोपियम इण्डिकम) - लिंफेटिक ल्यूकेमिया
  • कोकिलक्षा, गोकुल कांटा (हाइग्रोफिला स्पाइनोसा) - डेलटन लिम्फोमा
  • रोहेड़ा (लक्षोंरा अंडुलता)- ल्यूकेमिया
  • जुनिपर इंडिका - नाक व गले का कैंसर
  • घीया (लफ्फा सीलिंड्रिका)- ल्यूकेमिया
  • नीम का पेड़ (मेलिया एजेडराच) - वॉकर कार्सिनो सरकोमा
  • सहजन (सिगरू) - लिम्फ तथा रक्त कैंसर
  • कनेर (नेरियम इन्डिकम, नेरियम उंडुलता) - हरलीच अस्साइट्स कैंसर
  • काला जीरा (निगेला सतीवा) - लंग एंड कोलन कैंसर
  • तुलसी (ओसिमम सैंक्टम) - त्वचा तथा लीवर कैंसर
  • गंध प्रसारणी (पेड़ेरिया फॉइटीडा) - नाक व गले का कैंसर
  • कुटकी (पिकुरसिजा कुरोआ) - लीवर कैंसर
  • सफेद चित्रक (प्लंबागो ज़ेलेनिका)- लीवर कैंसर
  • मंजिष्ठा (रुबिया कोर्डीफोलिया)- मेलानोमा, कोलन तथा स्तन कैंसर
  • तालीसपत्र ( टेक्सास बकाटा) - विभिन्न प्रकार के ट्यूमर
  • सदाबहार ( विनका रोसिया) - स्तन, सर्विकस, किड्नी, लंग तथा ओवेरी कैंसर
  • अश्वगंधा ( विथानिया सोमनीफेरा ) - विभिन्न प्रकार के ट्यूमर

इनके अतिरिक्त कचनार कि कलियां, विभिन्न जड़ी बूटियों से बना च्यवनप्राश, पिप्पली भी कैंसर के उपचार में काफी कारगर रहती है. आयुर्वेद पर आधारित साहित्य में कई पेड़ों और जड़ी बूटियों का उल्लेख किया गया है, जो कैंसर के इलाज में काफी उपयोगी रहते है. लेकिन फिर भी सामान्य चिकित्सा पद्घती यानी एलोपैथिक माध्यम से कैंसर रोगी की गहन जांच होनी जरूरी है. कैंसर का सही आयुर्वेदिक इलाज भी तभी कारगर है, जब मरीज की सही स्थिति के बारे में पूरी जानकारी हो. यहां यह जानना भी जरूरी है की कैंसर या किसी भी गंभीर जानलेवा बीमारी के लिए रोगी को स्वयं इधर-उधर से जानकारी लेकर अपना इलाज नहीं करना चाहिए. किसी भी आयुर्वेदिक औषधि के इस्तेमाल से पहले जांच तथा उसके आधार पर चिकित्सक द्वारा दी गई दवाइयों का ही रोगी को सेवन करना चाहिए अन्यथा रोगी की जान भी जा सकती है.

कैंसर के इलाज में कई लोग एलोपैथिक चिकित्सा के अलावा भी विभिन्न प्रकार की थेरेपी तथा अन्य चिकित्सा माध्यमों की मदद लेते है. कैंसर से छुटकारा पाने के लिए बहुत से लोग आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति भी अपनाते है. हमारी पुरातन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में भी विभिन्न उपचारों तथा पद्धतियों की मदद से कैंसर का इलाज संभव है. विश्व कैंसर दिवस के अवसर पर डॉ. पी.बी रंगनायकुलु ने ETV भारत सुखीभवा की टीम को जानकारी दी कि किस तरह से आयुर्वेद में कैंसर का उपचार सफलतापूर्वक किया जाता है.

आयुर्वेद और कैंसर

डॉ. रंगनायकुलु बताते हैं कि दुनिया भर में लगभग 3 हजार से अधिक पेड़ हैं, जिनका इस्तेमाल कैंसर विरोधी दवाइयां बनाने में किया जाता है. आयुर्वेद पर आधारित पुरानी पौराणिक पुस्तकों में कैंसर को एक ज्वलनशील तथा गैर ज्वलनशील सूजन के रूप में उल्लेखित किया गया है. आयुर्वेद के अनुसार हमारे शरीर में दो प्रकार की रसौली पाई जाती है, पहली 'ग्रंधि' जो कि एक छोटी रसौली होती है तथा दूसरी 'अर्बुद' जो आकार में बड़ी तथा ज्यादा कष्टदायक होती है.

आयुर्वेद के अनुसार इन रसौलियों तथा उनमें संक्रमण के कारण वात, पित्त और कफ दोषों की प्रवत्ति पर असर पड़ता है. तदोपरांत ये दोष रक्‍त और ममस धातु पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं, जिसके चलते कैंसर की उत्‍पत्ति होती है.

कैंसर का वर्गीकरण

Cancer curable with Ayurveda
वात, पित्त, कफ

प्रभावित धातु के आधार पर कैंसर के तीन प्रकार माने गए है, रक्‍तज अर्बुद (रक्‍त को प्रभावित), ममसाज अर्बुद (मांसपेशी और नरम ऊतकों का ट्यूमर) और मेदोज (वसा ऊतकों का कैंसर). आयुर्वेद के अनुसार कारक दोष और ऊतक के आधार पर कैंसर को वर्गीकृत किया जा सकता है. ये वर्गीकरण इस प्रकार है;

  1. वात, पित्त और कफ के असंतुलन के कारण वात, पित्त और कफ अर्बुद का होना.
  2. शरीर के किसी भी हिस्से में त्रिदोष यानी ट्यूमर का होना.
  3. कैंसर की जगह और अंग जैसे कि कान, आंख, नाक आदि के आधार पर भी इसे वर्गीकृत किया गया है.

रक्त, मांसपेशियों तथा तंतुओं पर आयुर्वेद के दोषों का असर

आयुर्वेद में कैंसर के कारणों को एक अलग नजरिए से देखा जाता है. आमतौर पर वात, कफ तथा पित जैसे दोषों के लिए भोजन, जीवन शैली तथा चोट में फैलने वाले संक्रमणों को जिम्मेदार माना जाता है. अलग-अलग दोषों की हानिकारक प्रवत्ति के लिए जिम्मेदार कुछ कारक इस प्रकार है;

  • वात

कड़वे, बदबूदार और कसैले खाद्य पदार्थों तथा अत्यधिक सूखे मेवों का सेवन तनाव से भरी मानसिक अवस्था के दौरान करने से वात की समस्या बढ़ती है.

  • पित्त

ज्यादा खट्टा, ज्यादा नमकीन तथा तले -भुने भोजन के साथ हद से ज्यादा गुस्सैल प्रवत्ति होने पर शरीर में पित्त की मात्रा बढ़ जाती है.

  • कफ

अत्यधिक मात्रा में मिठाई, तैलीय भोजन तथा आलस भरी जीवनशैली के कारण शरीर में कफ की प्रवृत्ति ज्यादा बढ़ती है.

  • रक्त विकार

तला-भुना तेज मसालेदार भोजन, बासी भोजन, खट्टे फलों का ज्यादा सेवन, तथा शराब जैसे नशीले पदार्थों के अधिक सेवन तथा तनाव, चिंता या ज्यादा परेशानी के कारण रक्त में विकार होने कि आशंका बढ़ जाती है.

  • मांसपेशियों में समस्या
    Cancer curable with Ayurveda
    मांसपेशियों में समस्या

अत्याधिक गरिष्ठ तथा जरूरत से ज्यादा प्रोटीनयुक्त भोजन जैसे मीट, मछली, दूध-दही का सेवन तथा दिन में ज्यादा सोने या जैसी आदतों के कारण मांसपेशियों में विकार उत्पन्न हो सकता है.

  • वसा
    Cancer curable with Ayurveda
    वसा

ज्यादा मात्रा में तैलीय भोजन, असमय भोजन, ज्यादा मीठा, नशीले पदार्थों का अत्यधिक सेवन तथा आलस पूर्ण जीवन शैली के कारण शरीर में वसा बढ़ जाती है, जो शरीर में मोटापे जैसी समस्या उत्पन्न करती है.

आयुर्वेदा में कैंसर थेरेपी

डॉक्टर रंगनायकुलु बताते हैं की आयुर्वेद में कैंसर का इलाज चार भागों में विभाजित है; पहला स्वास्थ्य की देखभाल, दूसरा रोग का उपचार, तीसरा शरीर की कार्यशैली को सामान्य करना तथा चौथा रोग को लेकर आध्यात्मिक दृष्टिकोण उत्पन्न करना है. इसके अलावा कैंसर जैसे रोग में आयुर्वेदिक शोधन चिकित्सा तथा रसायन चिकित्सा के लिए भी सलाह दी जाती है. जिनके तहत विभिन्न उपचारों तथा दवाइयों के माध्यम से शरीर में वात, कफ, और पित्त रोग को नियंत्रित करती है.

इन पद्धतियों के अतिरिक्त रसायन विधा में उपचार के लिए विभिन्न जड़ी- बूटियों की भी मदद ली जाती है. जिनमें से कुछ इस प्रकार है;

  1. हरी चिरायता (एन्डरोग्राफीक्स पैनीक्यूलाटा)
  2. सीता फल एननोना एटेमोया)
  3. लाल भुईआंवला (फिलेन्थस)
  4. पिप्पली (पीपर लॉनगुम)
  5. जंगली विषाख मूल (पोड़ोंफिल्म हेक्सड्रम)
  6. दिल पत्ती चाँदनी (टिनोस्पोरा कोरडीफोलिया)
  7. अखरोट चंदन (सेमकारपस एनकारडीमम)

इनके अतिरिक कुछ अन्य जड़ी- बूटियां तथा औषधियां भी है, जो कैंसर के उपचार में फायदा करती है. उनमें से कुछ प्रचलित औषधियों, उनके वैज्ञानिक नाम तथा कौन सी औषधि किस प्रकार के कैंसर में फायदेमंद है, इसकी जानकारी इस प्रकार है;

  • रोजेदार मटर (एबर्स मटर) - फाइब्रो सरकोमा कैंसर
  • शिरीष के फूल (अल्बिजिया लेब्बेक) - सरकोमा कैंसर
  • लहसुन (अलीवयुम सतीवयुम)- सरकोमा
  • ग्वार का पाठा (एलोवेरा)- लीवर कैंसर, न्यूरो एक्टोडर्मल ट्यूमर
  • दित्ता छाल का पेड़ या डेविल ट्री (अल्स्टोनीय स्कोलेरिस)- पेट का कैंसर
  • रोहितका (अमर रोहितका) - ल्यूकेमिया
  • काजू (एनाकार्डियम ऑक्सिडेलेल)- लिवर कैंसर
  • एस्पेरेगस (एस्पेरागस रेसमोसुस) - एपिडर्मोइड कारसिनोमा कैंसर
  • ब्राह्मी, जलनीम (बकोपा मोनेरी) - कार्सिनो सरकोमा
  • हरिद्रा (बर्बेरिस एरिस्टाटा) - नाक व गले का कैंसर
  • लोबान (बोसवेलिया सेराटा) - ल्यूकेमिया तथा ब्रेन ट्यूमर
  • मदार का पेड़ (कैलोट्रोपिस गिगेंटिया) - नाक व गले का कैंसर
  • हल्दी (करक्यूमा लोंगा) - फाइब्रो सरकोमा
  • धतूरा (धतूरा मेटेल) - नाक व गले का कैंसर
  • भारतीय मूंगे का पेड़, धौलढ़ाक - (एरीथ्रिना सुबरोसा)
  • बाद दूधी (यूफोरिया हिरता) - ल्यूकेमिया
  • जाखिया (ज्ञनन्दरॉप्सिस पेन्टाफायल) - लिवर कैंसर
  • हत्था जोड़ी (हेलिओट्रोपियम इण्डिकम) - लिंफेटिक ल्यूकेमिया
  • कोकिलक्षा, गोकुल कांटा (हाइग्रोफिला स्पाइनोसा) - डेलटन लिम्फोमा
  • रोहेड़ा (लक्षोंरा अंडुलता)- ल्यूकेमिया
  • जुनिपर इंडिका - नाक व गले का कैंसर
  • घीया (लफ्फा सीलिंड्रिका)- ल्यूकेमिया
  • नीम का पेड़ (मेलिया एजेडराच) - वॉकर कार्सिनो सरकोमा
  • सहजन (सिगरू) - लिम्फ तथा रक्त कैंसर
  • कनेर (नेरियम इन्डिकम, नेरियम उंडुलता) - हरलीच अस्साइट्स कैंसर
  • काला जीरा (निगेला सतीवा) - लंग एंड कोलन कैंसर
  • तुलसी (ओसिमम सैंक्टम) - त्वचा तथा लीवर कैंसर
  • गंध प्रसारणी (पेड़ेरिया फॉइटीडा) - नाक व गले का कैंसर
  • कुटकी (पिकुरसिजा कुरोआ) - लीवर कैंसर
  • सफेद चित्रक (प्लंबागो ज़ेलेनिका)- लीवर कैंसर
  • मंजिष्ठा (रुबिया कोर्डीफोलिया)- मेलानोमा, कोलन तथा स्तन कैंसर
  • तालीसपत्र ( टेक्सास बकाटा) - विभिन्न प्रकार के ट्यूमर
  • सदाबहार ( विनका रोसिया) - स्तन, सर्विकस, किड्नी, लंग तथा ओवेरी कैंसर
  • अश्वगंधा ( विथानिया सोमनीफेरा ) - विभिन्न प्रकार के ट्यूमर

इनके अतिरिक्त कचनार कि कलियां, विभिन्न जड़ी बूटियों से बना च्यवनप्राश, पिप्पली भी कैंसर के उपचार में काफी कारगर रहती है. आयुर्वेद पर आधारित साहित्य में कई पेड़ों और जड़ी बूटियों का उल्लेख किया गया है, जो कैंसर के इलाज में काफी उपयोगी रहते है. लेकिन फिर भी सामान्य चिकित्सा पद्घती यानी एलोपैथिक माध्यम से कैंसर रोगी की गहन जांच होनी जरूरी है. कैंसर का सही आयुर्वेदिक इलाज भी तभी कारगर है, जब मरीज की सही स्थिति के बारे में पूरी जानकारी हो. यहां यह जानना भी जरूरी है की कैंसर या किसी भी गंभीर जानलेवा बीमारी के लिए रोगी को स्वयं इधर-उधर से जानकारी लेकर अपना इलाज नहीं करना चाहिए. किसी भी आयुर्वेदिक औषधि के इस्तेमाल से पहले जांच तथा उसके आधार पर चिकित्सक द्वारा दी गई दवाइयों का ही रोगी को सेवन करना चाहिए अन्यथा रोगी की जान भी जा सकती है.

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