ETV Bharat / sukhibhava

जरूरी है परवरिश में संतुलन

हर अभिभावक के लिए परवरिश के अपने अलग नियम होते हैं. लेकिन बहुत जरूरी है कि परवरिश के हर चरण में संतुलन बना हुआ हो. क्योंकि हद से ज्यादा प्यार और हद से ज्यादा गुस्सा दोनों ही बच्चों के सही विकास को प्रभावित करते हैं और उनके व्यवहार पर असर डालती हैं. वहीं कई बार कुछ माता-पिता की कभी अनुशासन के नाम पर तो कभी बच्चे के बिगड़ने की आशंका को लेकर उसकी हर मांग पर ना कहने की आदत भी बच्चे तथा उसके माता-पिता के आपसी संबंधों पर असर डालती है साथ ही उनमें व्यवहार संबंधी समस्याओं का कारण बन जाती है.

Parenting, parenting tips, what is good parenting, how can parents teach their child good habits, upbringing, tips on good upbringing, kids, kids mental health, mental health, kids tantrums, how to handle kids tantrums, emotional health, kids emotional health, balanced upbringing is important
जरूरी है परवरिश में संतुलन
author img

By

Published : Nov 25, 2021, 5:20 PM IST

7 साल की आयु वाला ह्रदय हमेशा अपने माता-पिता को लेकर सबके सामने गुस्सा जाहिर करता था. हर बात में जिद करना तथा माता-पिता की बात ना मानना उसका व्यवहार बन गया है. जब उसका यह व्यवहार उसकी पढ़ाई लिखाई और अन्य आदतों को बहुत ज्यादा प्रभावित करने लगा तो उसकी अध्यापिका ने उसके माता-पिता को उसकी काउंसलिंग कराने का सुझाव दिया, जिसमें सामने आया कि माता-पिता का हद से ज्यादा अनुशासन, हृदय पर उनकी सभी बातों को मानने के लिए दबाव डालने की आदत तथा उसकी हर मांग को न कहने की आदत सहित और भी कई छोटी-बड़ी बातों ने बच्चे के व्यवहार को बहुत ज्यादा प्रभावित किया था.

यह सिर्फ ह्रदय की समस्या नहीं है, बहुत से माता-पिता बच्चों की हर मांग को न कहना जरूरी मानते हैं. जिसके पीछे उनका मानना यह होता है कि यदि बच्चों की मांगों को पूरा किया जाएगा तो वे बिगड़ जाएंगे और उनकी आदतें खराब हो जाएंगी. जबकि मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि बच्चों की हर मांग पर उन्हें न कहना उनके विकास को सीमित कर सकता है. हालांकि, हर अभिभावक के लिए परवरिश के नियम तथा उसकी तरीके अलग-अलग होते हैं, लेकिन जानकार मानते हैं कि बच्चों के साथ व्यवहार में संतुलन होना बहुत जरूरी है. बगैर सोचे समझे बच्चों की किसी भी मांग को लेकर ना कहना उनमें आत्मविश्वास की कमी और निर्णय लेने की क्षमता पर भी असर डाल सकता है.

अभिभावक और बच्चों के बीच आपसी समझ होना जरूरी
मनोवैज्ञानिक डॉक्टर रेणुका शर्मा का मानना है कि बच्चों के विकास के दौरान परिवार में इस तरह का माहौल होना चाहिए, जिसमें बच्चे अपने माता-पिता से किसी भी प्रकार की मांग करने में हिचकिचायें नहीं. लेकिन साथ ही उन्हें इस बात की भी जानकारी हो कि उनकी मांग का पूरा होना पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करता है कि उनकी मांग कितनी जायज है, और उनके माता-पिता उनकी गलत मांग को पूरा नहीं करेंगे.

डॉ रेणुका बताती हैं कि इस प्रकार की आपसी समझ सिर्फ कहने भर से उत्पन्न नहीं होती है. माता-पिता का बच्चों के प्रति तथा उनके साथ व्यवहार तथा माता व पिता का आपसी व्यवहार भी इस तरह की आदतों के विकास का कारण बनता है. क्योंकि बच्चे सुनकर नही देखकर सीखते हैं.

वह बताती है कि आमतौर पर छोटे बच्चों की मांगे भी बहुत छोटी-छोटी होती हैं, जैसे खाने में उनकी पसंद का खाना बनाने की मांग, थोड़ी देर और खेल लेने की छूट, थोड़ी सी ज्यादा देर टीवी देखने की मोहलत या किसी खिलौने की मांग. ऐसे में अनुशासन के नाम पर यदि माता-पिता उनकी हर मांग के लिए सिर्फ ना-ना कहते हैं तो बच्चों के मन में सिर्फ माता-पिता को लेकर ही नहीं बल्कि स्वयं को लेकर भी बहुत से नकारात्मक विचार उत्पन्न होने लगते हैं. इसके साथ ही उनका उनके माता-पिता के साथ बंधन भी कमजोर होता है और बच्चे अपनी मांग पूरी करवाने के लिए जायज-नाजायज तरीकों की मदद लेना शुरू कर देते हैं. इससे उनकी सही और गलत की पहचान करने की क्षमता पर भी असर पड़ता है.

टेक्टफुल परवरिश ज्यादा बेहतर
डॉ रेणुका बताती हैं कि यदि माता-पिता बच्चों की छोटी-छोटी मांगों को कभी-कभी कुछ शर्तों के साथ तो कभी बिना शर्तों के साथ पूरा कर देते हैं तो यह अपने माता-पिता के प्रति उनके प्रेम को और बढ़ा देता है, जिसकी खुशी उनके चेहरे के साथ-साथ उनकी आंखों में भी नजर आती है.

कभी-कभी थोड़ी देर ज्यादा टीवी देखने या खेलने की उनकी मांग पर यदि माता-पिता उनसे घर में किसी काम में मदद करने के लिए कहे तो बच्चा खुशी-खुशी राजी हो जाएगा. ऐसा करने से बच्चे को यह भी लगेगा कि उसके माता-पिता उसकी बात मानते हैं साथ ही उसमें जिम्मेदारी की भावना का भी विकास होगा.

डॉक्टर रेणुका बताती हैं कि जब भी कोई बच्चा यदि अपने माता-पिता से किसी चीज की मांग करता है, तो माता-पिता को भी चाहिए कि वह पहले उसकी बात सुने और उसके कारणों को समझे. कई बार बच्चे कुछ ऐसी मांग कर देते हैं जो माता-पिता के लिए पूरी करना संभव नहीं होता है. ऐसे में मां-बाप को उसे समझाना चाहिए कि किन कारणों के चलते वे उस समय उन मांगों को पूरा नहीं कर सकते हैं. ऐसी परिस्थितियों में यदि बच्चे का माता-पिता पर विश्वास हो कि यदि संभव होता तो वे उसकी मांग अवश्य पूरी करते, तो मांग का पूरा ना होना उसके लिए बहुत बड़ी बात नहीं होती है और वह सरलता से अपने माता-पिता की बात मान भी लेता है. वहीं यदि माता-पिता सामान्य जीवन में हर बात के लिए बच्चे को मना करते हैं या ना कहते हैं तो ऐसी परिस्थितियों में बच्चे का गुस्सा होना, चिल्लाना या चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है

यह कहने के लिए बहुत छोटी छोटी बातें हैं, लेकिन इनको अपने नियमित जीवन का हिस्सा बनाने का फायदा अभिभावक और बच्चों के आपसी संबंध और बच्चे के व्यक्तित्व विकास पर काफ़ी ज्यादा पड़ता है.

पढ़ें: आदर्श जीवन शैली का मूल होती है बचपन में दी गई नसीहतें

7 साल की आयु वाला ह्रदय हमेशा अपने माता-पिता को लेकर सबके सामने गुस्सा जाहिर करता था. हर बात में जिद करना तथा माता-पिता की बात ना मानना उसका व्यवहार बन गया है. जब उसका यह व्यवहार उसकी पढ़ाई लिखाई और अन्य आदतों को बहुत ज्यादा प्रभावित करने लगा तो उसकी अध्यापिका ने उसके माता-पिता को उसकी काउंसलिंग कराने का सुझाव दिया, जिसमें सामने आया कि माता-पिता का हद से ज्यादा अनुशासन, हृदय पर उनकी सभी बातों को मानने के लिए दबाव डालने की आदत तथा उसकी हर मांग को न कहने की आदत सहित और भी कई छोटी-बड़ी बातों ने बच्चे के व्यवहार को बहुत ज्यादा प्रभावित किया था.

यह सिर्फ ह्रदय की समस्या नहीं है, बहुत से माता-पिता बच्चों की हर मांग को न कहना जरूरी मानते हैं. जिसके पीछे उनका मानना यह होता है कि यदि बच्चों की मांगों को पूरा किया जाएगा तो वे बिगड़ जाएंगे और उनकी आदतें खराब हो जाएंगी. जबकि मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि बच्चों की हर मांग पर उन्हें न कहना उनके विकास को सीमित कर सकता है. हालांकि, हर अभिभावक के लिए परवरिश के नियम तथा उसकी तरीके अलग-अलग होते हैं, लेकिन जानकार मानते हैं कि बच्चों के साथ व्यवहार में संतुलन होना बहुत जरूरी है. बगैर सोचे समझे बच्चों की किसी भी मांग को लेकर ना कहना उनमें आत्मविश्वास की कमी और निर्णय लेने की क्षमता पर भी असर डाल सकता है.

अभिभावक और बच्चों के बीच आपसी समझ होना जरूरी
मनोवैज्ञानिक डॉक्टर रेणुका शर्मा का मानना है कि बच्चों के विकास के दौरान परिवार में इस तरह का माहौल होना चाहिए, जिसमें बच्चे अपने माता-पिता से किसी भी प्रकार की मांग करने में हिचकिचायें नहीं. लेकिन साथ ही उन्हें इस बात की भी जानकारी हो कि उनकी मांग का पूरा होना पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करता है कि उनकी मांग कितनी जायज है, और उनके माता-पिता उनकी गलत मांग को पूरा नहीं करेंगे.

डॉ रेणुका बताती हैं कि इस प्रकार की आपसी समझ सिर्फ कहने भर से उत्पन्न नहीं होती है. माता-पिता का बच्चों के प्रति तथा उनके साथ व्यवहार तथा माता व पिता का आपसी व्यवहार भी इस तरह की आदतों के विकास का कारण बनता है. क्योंकि बच्चे सुनकर नही देखकर सीखते हैं.

वह बताती है कि आमतौर पर छोटे बच्चों की मांगे भी बहुत छोटी-छोटी होती हैं, जैसे खाने में उनकी पसंद का खाना बनाने की मांग, थोड़ी देर और खेल लेने की छूट, थोड़ी सी ज्यादा देर टीवी देखने की मोहलत या किसी खिलौने की मांग. ऐसे में अनुशासन के नाम पर यदि माता-पिता उनकी हर मांग के लिए सिर्फ ना-ना कहते हैं तो बच्चों के मन में सिर्फ माता-पिता को लेकर ही नहीं बल्कि स्वयं को लेकर भी बहुत से नकारात्मक विचार उत्पन्न होने लगते हैं. इसके साथ ही उनका उनके माता-पिता के साथ बंधन भी कमजोर होता है और बच्चे अपनी मांग पूरी करवाने के लिए जायज-नाजायज तरीकों की मदद लेना शुरू कर देते हैं. इससे उनकी सही और गलत की पहचान करने की क्षमता पर भी असर पड़ता है.

टेक्टफुल परवरिश ज्यादा बेहतर
डॉ रेणुका बताती हैं कि यदि माता-पिता बच्चों की छोटी-छोटी मांगों को कभी-कभी कुछ शर्तों के साथ तो कभी बिना शर्तों के साथ पूरा कर देते हैं तो यह अपने माता-पिता के प्रति उनके प्रेम को और बढ़ा देता है, जिसकी खुशी उनके चेहरे के साथ-साथ उनकी आंखों में भी नजर आती है.

कभी-कभी थोड़ी देर ज्यादा टीवी देखने या खेलने की उनकी मांग पर यदि माता-पिता उनसे घर में किसी काम में मदद करने के लिए कहे तो बच्चा खुशी-खुशी राजी हो जाएगा. ऐसा करने से बच्चे को यह भी लगेगा कि उसके माता-पिता उसकी बात मानते हैं साथ ही उसमें जिम्मेदारी की भावना का भी विकास होगा.

डॉक्टर रेणुका बताती हैं कि जब भी कोई बच्चा यदि अपने माता-पिता से किसी चीज की मांग करता है, तो माता-पिता को भी चाहिए कि वह पहले उसकी बात सुने और उसके कारणों को समझे. कई बार बच्चे कुछ ऐसी मांग कर देते हैं जो माता-पिता के लिए पूरी करना संभव नहीं होता है. ऐसे में मां-बाप को उसे समझाना चाहिए कि किन कारणों के चलते वे उस समय उन मांगों को पूरा नहीं कर सकते हैं. ऐसी परिस्थितियों में यदि बच्चे का माता-पिता पर विश्वास हो कि यदि संभव होता तो वे उसकी मांग अवश्य पूरी करते, तो मांग का पूरा ना होना उसके लिए बहुत बड़ी बात नहीं होती है और वह सरलता से अपने माता-पिता की बात मान भी लेता है. वहीं यदि माता-पिता सामान्य जीवन में हर बात के लिए बच्चे को मना करते हैं या ना कहते हैं तो ऐसी परिस्थितियों में बच्चे का गुस्सा होना, चिल्लाना या चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है

यह कहने के लिए बहुत छोटी छोटी बातें हैं, लेकिन इनको अपने नियमित जीवन का हिस्सा बनाने का फायदा अभिभावक और बच्चों के आपसी संबंध और बच्चे के व्यक्तित्व विकास पर काफ़ी ज्यादा पड़ता है.

पढ़ें: आदर्श जीवन शैली का मूल होती है बचपन में दी गई नसीहतें

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.