ETV Bharat / sukhibhava

दुर्लभ रक्त विकार है हीमोफीलिया

कोविड-19 महामारी के चलते बहुत से सामान्य तथा गंभीर रोगियों के समक्ष अपने स्वास्थ्य को बनाए रखने के प्रयासों में विभिन्न प्रकार की समस्याएं आई है। कुछ ऐसी ही समस्याएं हीमोफीलिया विकार से पीड़ित लोगों को भी झेलनी पड़ी है। जोकि एक रक्त संबंधी विकार है।

Hemophilia
हीमोफीलिया
author img

By

Published : Apr 21, 2021, 1:43 PM IST

Updated : Apr 21, 2021, 2:08 PM IST

हीमोफीलिया एक ऐसा रक्त विकार है, जो दुर्लभ है, लेकिन ताउम्र साथ रहता है। इसका कोई स्थाई उपचार नहीं है। कोरोना काल में अन्य गंभीर बीमारियों के साथ-साथ हीमोफीलिया के रोगियों को भी चिकित्सकों और स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा है। विश्व हीमोफीलिया संगठन के अध्यक्ष सीजर गैरीडो बताते हैं कोरोना काल में अन्य रोगों की भांति हीमोफीलिया के मरीजों के समक्ष भी नियमित चिकित्सा जांच को लेकर समस्याएं उत्पन्न हुई, जिसका नतीजा रहा कि हीमोफीलिया के कुछ रोगियों को गंभीर परिणामों का भी सामना करना पड़ा। ETV भारत सुखीभवा अपने पाठकों के साथ कुछ विशेष जानकारियां सांझा कर रहा है।

क्या है हीमोफीलिया?

हीमोफीलिया एक रक्त संबंधी विकार है, जिसमें शरीर के अलग-अलग हिस्सों में लगातार रक्त स्राव होता रहता है। ऐसा नहीं है कि हीमोफीलिया के पीड़ितों में बहुत ज्यादा मात्रा में रक्तस्राव होता है, लेकिन रक्त स्राव की अवधि लंबी हो सकती है। दरअसल इस अवस्था में मरीज के रक्त में जरूरी मात्रा में थक्के नहीं बन पाते हैं। दरअसल फ्लोटिंग कलोट्स यानी खून के थक्के रक्त में प्रोटीन का कार्य करते हैं, जो कि रक्तस्राव को नियंत्रित करता है। वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ हीमोफीलिया (डब्ल्यूएचएफ) के अनुसार हीमोफीलिया एक आम रोग नहीं है, क्योंकि यह 10,000 में से एक व्यक्ति को होता है।

कैसे होता है हीमोफीलिया?

हीमोफीलिया से पीड़ित लोग आमतौर पर इस रोग के साथ ही जन्म लेते हैं। मूलतः यह एक अनुवांशिक रोग होता है, जो माता-पिता से बच्चों को मिलता है। लेकिन कई बार कुछ बिरले मामले ऐसे भी सामने आते हैं, जहां परिवार में हीमोफीलिया का इतिहास नहीं होता है। विश्व हीमोफीलिया संगठन के अनुसार ऐसे मामले जहां परिवार में हीमोफीलिया का इतिहास ना हो, स्पोरेडिक हीमोफीलिया कहलाते हैं। आमतौर पर लगभग 30 फीसदी लोग ऐसे होते हैं, जिनमें हीमोफीलिया का कारण अनुवांशिक नहीं होता है। ऐसा आमतौर पर व्यक्ति की जीन में बदलाव के कारण होता है। कुछ परिस्थितियों मे हीमोफीलिया विकार व्यक्ति में बाद में भी पनप सकता है। ऐसा आमतौर पर अधेड़ या बुजुर्ग लोगों तथा ऐसी महिलाओं में नजर आता है, जिन्होंने या तो हाल ही में बच्चे को जन्म दिया हो या फिर अपनी गर्भावस्था के अंतिम चरण में हो।

लक्षण

Symptoms of hemophilia
हीमोफीलिया के लक्षण

डब्लूएचएफ द्वारा बताई गए हीमोफीलिया 'ए' तथा 'बी' के कुछ खास लक्षण इस प्रकार हैं;

  1. मांसपेशियों या जोड़ों में रक्तस्राव ।
  2. शरीर में कहीं भी बिना किसी कारण के रक्त स्राव होना ।
  3. किसी तरह की चोट लगने पर, दांत निकले जाने या टूट जाने पर तथा सर्जरी होने के उपरांत लगातार रक्त स्राव होते रहना ।
  4. किसी दुर्घटना के उपरांत चोट लगने विशेषकर सिर में चोट लगने के बाद लंबे समय तक लगातार रक्त स्राव होते रहना ।

मांसपेशियों या जोड़ों में रक्तस्राव के लक्षण

  • एक अजीब सी संवेदना के साथ दर्द महसूस होना ।
  • सूजन ।
  • तीव्र दर्द तथा मांसपेशियों में कड़ापन ।
  • मांसपेशियां या जोड़ों में कार्य करते समय दर्द होना ।

जोड़ों या मांसपेशियों में रक्त स्राव की अवस्था में आमतौर पर रक्तस्राव शरीर के अंदर ही होता है। लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में यह शरीर के बाहर भी हो सकता है। शरीर के बाहरी हिस्से में आमतौर पर जिस जगह सबसे ज्यादा रक्त स्राव देखने में आता हैं, वह है हाथ का अग्रभाग यानी आगे का हिस्सा, जननांग के पास इलियोपसो मांसपेशी, जांघों तथा पिंडलियों की मांसपेशी।

यदि किसी एक विशेष मांसपेशी में लगातार या बार-बार रक्तस्राव हो रहा हो, तो यह उस क्षेत्र की मांसपेशी को क्षतिग्रस्त कर सकता है, जिससे दर्द की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इसके साथ ही इन परिस्थितियों में अर्थराइटिस जैसी समस्या उत्पन्न होने का भी खतरा रहता है।

पढ़े: आईवीएफ करवाने से पहले लें प्रक्रिया की पूरी जानकारी

जांच तथा उपचार

हीमोफीलिया की जांच, रक्त जांच में 8-9 घटकों के स्तर की जांच कर किया जा सकता है। हीमोफीलिया उम्र भर तक साथ रहने वाला विकार है। यदि गर्भावस्था के समय माता में हीमोफीलिया की समस्या हो, तो बच्चे के जन्म के उपरांत एक बार उसकी जांच अवश्य कराई जाती है। इसकी जांच बच्चे के जन्म के उपरांत 9 से 11 हफ्ते में क्रॉनिक वायरस सेंपलिंग (पीवीसी) या फिर गर्भावस्था के 18 या उससे ज्यादा हफ्ते में भ्रूण रक्त जांच के माध्यम से की जा सकती है।

गौरतलब है कि फिलहाल हीमोफीलिया का अभी तक कोई भी ऐसा उपचार संभव नहीं है, जिससे यह रोग पूरी तरह से ठीक हो जाए। लेकिन इस विकार को नियंत्रण में रखने के लिए बहुत जरूरी है कि सही समय पर जरूरी उपचार लिया जाता रहे। हीमोफीलिया के पीड़ितों को यदि सही इलाज नहीं मिलता है, तो उनकी अवस्था गंभीर हो सकती है। इसलिए बहुत जरूरी है कि पीड़ितों के स्वास्थ्य की नियमित तौर पर निगरानी की जाए तथा उनकी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को लेकर नियमित तौर पर चिकित्सक के संपर्क में रहा जाए तथा उनके निर्देशानुसार दवाइयों का सेवन किया जाए।

हीमोफीलिया एक ऐसा रक्त विकार है, जो दुर्लभ है, लेकिन ताउम्र साथ रहता है। इसका कोई स्थाई उपचार नहीं है। कोरोना काल में अन्य गंभीर बीमारियों के साथ-साथ हीमोफीलिया के रोगियों को भी चिकित्सकों और स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा है। विश्व हीमोफीलिया संगठन के अध्यक्ष सीजर गैरीडो बताते हैं कोरोना काल में अन्य रोगों की भांति हीमोफीलिया के मरीजों के समक्ष भी नियमित चिकित्सा जांच को लेकर समस्याएं उत्पन्न हुई, जिसका नतीजा रहा कि हीमोफीलिया के कुछ रोगियों को गंभीर परिणामों का भी सामना करना पड़ा। ETV भारत सुखीभवा अपने पाठकों के साथ कुछ विशेष जानकारियां सांझा कर रहा है।

क्या है हीमोफीलिया?

हीमोफीलिया एक रक्त संबंधी विकार है, जिसमें शरीर के अलग-अलग हिस्सों में लगातार रक्त स्राव होता रहता है। ऐसा नहीं है कि हीमोफीलिया के पीड़ितों में बहुत ज्यादा मात्रा में रक्तस्राव होता है, लेकिन रक्त स्राव की अवधि लंबी हो सकती है। दरअसल इस अवस्था में मरीज के रक्त में जरूरी मात्रा में थक्के नहीं बन पाते हैं। दरअसल फ्लोटिंग कलोट्स यानी खून के थक्के रक्त में प्रोटीन का कार्य करते हैं, जो कि रक्तस्राव को नियंत्रित करता है। वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ हीमोफीलिया (डब्ल्यूएचएफ) के अनुसार हीमोफीलिया एक आम रोग नहीं है, क्योंकि यह 10,000 में से एक व्यक्ति को होता है।

कैसे होता है हीमोफीलिया?

हीमोफीलिया से पीड़ित लोग आमतौर पर इस रोग के साथ ही जन्म लेते हैं। मूलतः यह एक अनुवांशिक रोग होता है, जो माता-पिता से बच्चों को मिलता है। लेकिन कई बार कुछ बिरले मामले ऐसे भी सामने आते हैं, जहां परिवार में हीमोफीलिया का इतिहास नहीं होता है। विश्व हीमोफीलिया संगठन के अनुसार ऐसे मामले जहां परिवार में हीमोफीलिया का इतिहास ना हो, स्पोरेडिक हीमोफीलिया कहलाते हैं। आमतौर पर लगभग 30 फीसदी लोग ऐसे होते हैं, जिनमें हीमोफीलिया का कारण अनुवांशिक नहीं होता है। ऐसा आमतौर पर व्यक्ति की जीन में बदलाव के कारण होता है। कुछ परिस्थितियों मे हीमोफीलिया विकार व्यक्ति में बाद में भी पनप सकता है। ऐसा आमतौर पर अधेड़ या बुजुर्ग लोगों तथा ऐसी महिलाओं में नजर आता है, जिन्होंने या तो हाल ही में बच्चे को जन्म दिया हो या फिर अपनी गर्भावस्था के अंतिम चरण में हो।

लक्षण

Symptoms of hemophilia
हीमोफीलिया के लक्षण

डब्लूएचएफ द्वारा बताई गए हीमोफीलिया 'ए' तथा 'बी' के कुछ खास लक्षण इस प्रकार हैं;

  1. मांसपेशियों या जोड़ों में रक्तस्राव ।
  2. शरीर में कहीं भी बिना किसी कारण के रक्त स्राव होना ।
  3. किसी तरह की चोट लगने पर, दांत निकले जाने या टूट जाने पर तथा सर्जरी होने के उपरांत लगातार रक्त स्राव होते रहना ।
  4. किसी दुर्घटना के उपरांत चोट लगने विशेषकर सिर में चोट लगने के बाद लंबे समय तक लगातार रक्त स्राव होते रहना ।

मांसपेशियों या जोड़ों में रक्तस्राव के लक्षण

  • एक अजीब सी संवेदना के साथ दर्द महसूस होना ।
  • सूजन ।
  • तीव्र दर्द तथा मांसपेशियों में कड़ापन ।
  • मांसपेशियां या जोड़ों में कार्य करते समय दर्द होना ।

जोड़ों या मांसपेशियों में रक्त स्राव की अवस्था में आमतौर पर रक्तस्राव शरीर के अंदर ही होता है। लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में यह शरीर के बाहर भी हो सकता है। शरीर के बाहरी हिस्से में आमतौर पर जिस जगह सबसे ज्यादा रक्त स्राव देखने में आता हैं, वह है हाथ का अग्रभाग यानी आगे का हिस्सा, जननांग के पास इलियोपसो मांसपेशी, जांघों तथा पिंडलियों की मांसपेशी।

यदि किसी एक विशेष मांसपेशी में लगातार या बार-बार रक्तस्राव हो रहा हो, तो यह उस क्षेत्र की मांसपेशी को क्षतिग्रस्त कर सकता है, जिससे दर्द की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इसके साथ ही इन परिस्थितियों में अर्थराइटिस जैसी समस्या उत्पन्न होने का भी खतरा रहता है।

पढ़े: आईवीएफ करवाने से पहले लें प्रक्रिया की पूरी जानकारी

जांच तथा उपचार

हीमोफीलिया की जांच, रक्त जांच में 8-9 घटकों के स्तर की जांच कर किया जा सकता है। हीमोफीलिया उम्र भर तक साथ रहने वाला विकार है। यदि गर्भावस्था के समय माता में हीमोफीलिया की समस्या हो, तो बच्चे के जन्म के उपरांत एक बार उसकी जांच अवश्य कराई जाती है। इसकी जांच बच्चे के जन्म के उपरांत 9 से 11 हफ्ते में क्रॉनिक वायरस सेंपलिंग (पीवीसी) या फिर गर्भावस्था के 18 या उससे ज्यादा हफ्ते में भ्रूण रक्त जांच के माध्यम से की जा सकती है।

गौरतलब है कि फिलहाल हीमोफीलिया का अभी तक कोई भी ऐसा उपचार संभव नहीं है, जिससे यह रोग पूरी तरह से ठीक हो जाए। लेकिन इस विकार को नियंत्रण में रखने के लिए बहुत जरूरी है कि सही समय पर जरूरी उपचार लिया जाता रहे। हीमोफीलिया के पीड़ितों को यदि सही इलाज नहीं मिलता है, तो उनकी अवस्था गंभीर हो सकती है। इसलिए बहुत जरूरी है कि पीड़ितों के स्वास्थ्य की नियमित तौर पर निगरानी की जाए तथा उनकी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को लेकर नियमित तौर पर चिकित्सक के संपर्क में रहा जाए तथा उनके निर्देशानुसार दवाइयों का सेवन किया जाए।

Last Updated : Apr 21, 2021, 2:08 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.