ETV Bharat / sukhibhava

बच्चों के स्वास्थ्य पर भारी रहा वर्ष 2020

साल 2020 सबके लिए भारी रहा. वहीं बात करें बच्चों के स्वास्थ्य के लिए इस आयु तथा अवस्था में उसका शरीर विभिन्न प्रकार की विकास प्रक्रियाओं से गुजर रहा होता है. वर्ष 2020 में बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर कौन-कौन सी समस्याओं ने डराया और किन मुद्दों ने लोगों का ध्यान अपनी और खींचा, पेश है ईटीवी भारत सुखीभवा की यह रिपोर्ट.

बच्चों का स्वास्थ्य
बच्चों का स्वास्थ्य
author img

By

Published : Dec 29, 2020, 9:00 AM IST

Updated : Oct 22, 2021, 4:13 PM IST

बच्चा चाहे किसी भी उम्र का हो उसे बड़ों के ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है क्योंकि इस आयु तथा अवस्था में उसका शरीर विभिन्न प्रकार की विकास प्रक्रियाओं से गुजर रहा होता है. बच्चे के शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक विकास के लिए पोषक भोजन के अलावा व्यायाम, खेलकुद और सामाजिक मेलजोल बहुत जरूरी होता है. लेकिन वर्ष 2020 में कोरोना महामारी का बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य तथा सामाजिक जीवन पर काफी असर पड़ाता है. महामारी के इस दौर में जहां कोरोना संक्रमण के डर ने माता -पिता को डराया, वहीं लॉकडाउन के कारण प्रभावित हुई दिनचर्या और उसके कारण बच्चों में बढी दृष्टिदोष और मोटापे के अलावा कई गंभीर शारीरिक और मानसिक अस्वस्थताओं ने माता-पिता के माथे पर चिंता की लकीरे खींच दी. वर्ष 2020 में बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर कौन-कौन सी समस्याओं ने डराया और किन मुद्दों ने लोगों का ध्यान अपनी और खींचा, पेश है ईटीवी भारत सुखीभवा की यह रिपोर्ट.

कोविड-19

शुरुआत में जब तक कोविड 19 के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी. लोगों मान रहे थे की कोरोना का असर बच्चों और बुजुर्गों पर ज्यादा पड़ सकता है. लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया और इस संक्रमण के बारे में लोगों में ज्यादा जानकारी सामने आने लगी, तब यह तथ्य सामने आया की बच्चों पर इस संक्रमण का असर कम होता है. हालांकि ऐसा नहीं है की बच्चों में कोविड-19 का असर हुआ ही नहीं. लेकिन उनका प्रत्तिशत दुसरीं उम्र के लोगों के अनुपात में कम रहा.

कोविड 19 का बच्चों के शारीरिक स्वास्थ्य से ज्यादा उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ा है. कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन के कारण स्कूल बंद हो गए, बच्चों का घर से बाहर निकालना बंद हो गया, दोस्तों से मिलना-बातें करना बंद हो गया. ऐसी अवस्था में उनमे आलस, बैचेनी, चिड़चिड़ापन तथा जैसी मानसिक अस्वस्थताओं के लक्षण नजर आने लगे.

सम्पूर्ण लॉकडाउन के बाद जब पढ़ाई शुरू भी हुई तो ऑनलाइन व्यवस्था के तहत जहां बच्चों को ज्यादातर समय एक स्थान पर कंप्यूटर के सामने बैठना पड़ा. इस व्यवस्था ने भी बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के साथ उनकी आंखों के स्वास्थ्य पर काफी असर डाला है. कुल मिलाकर यह कहना गलत नहीं होगा की कोरोना की इस समयावधि ने बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बहुत ही नकारात्मक असर डाला है.

मोटापा

महामारी के चलते सामाजिक जीवन और पढ़ाई से जुड़ी व्यवस्थाओं के बदलने से एक और समस्या ने बच्चों में प्रभावित किया वह है, ओबेसिटी यानि मोटापा. लॉकडाउन के कारण बच्चों की दिनचर्या पर काफी असर पड़ा है. सामान्यतः जहां बच्चें सुबह उठते ही नहा धो कर स्कूल के लिए जाते थे और शाम को दोस्तों के साथ खेलते कूदते थे, लेकिन महामारी के दौर में बच्चें चार दीवारों में कैद होकर रह गए. जिसका नतीजा यह रहा की उनकी दिनचर्या अनुशासनहीन हो गई. देर से सोना और देर से सोकर उठना, खाने का समय न होना, किसी भी प्रकार का व्यायाम या कोई भी ऐसी शारीरिक गतिविधि का ना होना उस पर लंबे समय पर कंप्यूटर या मोबाइल के सामने बैठ कर पढ़ना और खेलना उनकी दिनचर्या बन गई. ऐसे में बड़ी संख्या में बच्चों में मोटापा बढ़ने की समस्या संज्ञान में आई. चूंकि मोटापा कई बीमारियों के लिए ट्रिगर का काम करता है इसलिए बच्चों में नींद न आने, आंखों या सिर में दर्द होने, तनाव, चिड़चिड़ापन और बगैर कोई भी काम किया थकान जैसे समस्याए नजर आने लगी. कुछ बच्चों में मोटापे कारण मधुमेह, रक्तचाप और हृदय रोग जैसे गंभीर रोगों के मामले भी देखने सुनने में आए.

नवजात का स्वास्थ्य

हालांकि नवजात बच्चों के स्वास्थ्य पर कोरोना जैसे संक्रमण के ज्यादा प्रभाव की बात सामने नहीं आई. लेकिन महामारी के इस दौर में नवजात बच्चों को किस तरह से सुरक्षित रखा जा सकता है, इस बारे में लोगों ने विशेषकर नई माओं ने काफी ध्यान दिया. जिसके लिए परंपरागत तरीकों के साथ चिकित्सीय सलाह का भी सहारा लिया गया.

वर्ष 2020 में नवजात के स्वास्थ्य को लेकर जिन जानकारियों के बारे में नई माओं तथा नवजात के परिजनों ने ज्यादा रुचि दिखाई वह इस प्रकार है-

  • मालिश

हमारे यहां परंपरागत रूप से बच्चों के जन्म के उपरांत धूप में बच्चे की मालिश करने का चलन रहा है. अभ्यंगा यानि बच्चों को तेल से अच्छे से मालिश के करने के उपरांत नहलाने लायक गरम पानी स्नान कराने से न सिर्फ बच्चों की हड्डियों और उनके पाचन तंत्र बल्कि सम्पूर्ण शरीर का विकास होता है, साथ ही शरीर में रक्त का प्रवाह भी बढ़ता है. इसके अतिरिक्त यदि मालिश धूप सुबह 10 से बारह बजे की धूप के बीच हो या मालिश के बाद बच्चे को थोड़ी देर धूप में लिटा दिया जाए तो बच्चे को जरूरी मात्रा में विटामिन डी भी मिल जाता है.

  • नवजात के लिए मां के दूध की जरूरत

जन्म के उपरांत बच्चे को पोषण उसकी मां के दूध से ही मिलता है. इसलिए प्रथम 6 माह तक मां को शिशु को अपना ही दूध पिलाना चाहिए. विशेषकर बच्चे के जन्म के उपरांत माता के स्तनों से निकालने वाला पहला दूध जिसे कॉलेस्ट्रम कहा जाता है, अवश्य पिलाना चाहिए. कॉलेस्ट्रम के बारे में कहा जाता है की यह एक वैक्सीन की भांति बच्चे को बहुत सी बीमारियों से बचाता है.

  • 6 से 18 माह के बीच बच्चों का भोजन कैसा हो

बच्चे के जन्म के उपरांत प्रथम 6 महीने उससे सिर्फ माता का ही दूध दिया जाना चाहिए, लेकिन 6 महीने के उपरांत उसे अतिरिक पोषण की जरूरत पड़ने लगती है. इसलिए उसे ऊपरी आहार देना शुरू कर देना चाहिए. 6 माह के बाद पहले द्रव्य जैसे दाल तथा चावल का पानी, फल तथा सब्जियों का जूस, सातवें महीने के बाद से बच्चे को हल्का ठोस आहार जैसे सूप, कूट या पीस कर सब्जी रोटी, दाल चावल और पनीर जैसा आहार दिया जा सकता है. चिकित्सकों का कहना है की जन्म के उपरांत बारह महीने तक बच्चों के नमक तथा चीनी वाला भोजन देने से परहेज करना चाहिए या कम से कम मात्रा में ही देना चाहिए. इसके अतिरिक बारह महीने तक अंडा, मांसाहार (चिकन, मटन, मछली ) सूखे मेवे तथा शहद बिल्कुल भी नहीं देना चाहिए.

पेट में कीड़े

बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़ी एक और समस्या ने इस वर्ष लोगों का ध्यान आपने तरफ खींचा वह है पेट में कीड़ों की समस्या. हालांकि यह समस्या बड़ी उम्र में भी हो सकती है लेकिन आमतौर पर बच्चों में एक से चौदह साल तक यह समस्या ज्यादा देखने में आती है. इस रोग में अस्वच्छ भोजन के सेवन से बच्चों की आंतों में कीड़े पहुंच जाते है और उनके शरीर के पोषण पर जीना शुरू कर देते है. समय पर ध्यान न देने पर बच्चों में कुपोषण, एनीमिया तथा ज्यादा गंभीर अवस्था में आंतरिक रक्तस्राव भी हो सकता है. इस समस्या से बचने के लिए चिकित्सक नियमित अंतराल पर डीवार्मिंग की दवाई बच्चों को देने की सलाह देते हैं.

दृष्टि दोष

कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन तथा उसके कारण पढ़ाई तथा खेल के लिए मोबाइल और कंप्युटर पर बढ़ी निर्भरता के कारण इस वर्ष बच्चों में दृष्टि दोष यानि नजर कमजोर होने तथा आंखों संबंधी समस्याओं के मामलों में चौगुनी बढ़ोत्तरी हुई. बच्चों के नेत्र स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते है की ज्यादा समय तक मोबाइल और कंप्युटर के सामने बैठने से बच्चों में नजर के कमजोर होने, मायोपिया, आंखों में तनाव के कारण सरदर्द, तनाव, एलर्जी तथा नींद में समस्या होने जैसी परेशानीयां संज्ञान में आई.

इस समस्याओं को देखते हुए चिकित्सकों ने बच्चों को पढ़ाई तथा खेल के दौरान हर बीस मिनट के बाद अंतराल लेने, चश्मे पहनने, नियमित तौर पर आंखों का व्यायाम करने तथा मोबाइल और कंप्युटर के स्क्रीन से थोड़ी दूरी बनाने की सलाह दी. इसके अतिरिक चिकित्सों ने पोषक भोजन के सेवन के साथ बोर्ड गेम खेलने की भी सलाह दी.

बच्चा चाहे किसी भी उम्र का हो उसे बड़ों के ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है क्योंकि इस आयु तथा अवस्था में उसका शरीर विभिन्न प्रकार की विकास प्रक्रियाओं से गुजर रहा होता है. बच्चे के शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक विकास के लिए पोषक भोजन के अलावा व्यायाम, खेलकुद और सामाजिक मेलजोल बहुत जरूरी होता है. लेकिन वर्ष 2020 में कोरोना महामारी का बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य तथा सामाजिक जीवन पर काफी असर पड़ाता है. महामारी के इस दौर में जहां कोरोना संक्रमण के डर ने माता -पिता को डराया, वहीं लॉकडाउन के कारण प्रभावित हुई दिनचर्या और उसके कारण बच्चों में बढी दृष्टिदोष और मोटापे के अलावा कई गंभीर शारीरिक और मानसिक अस्वस्थताओं ने माता-पिता के माथे पर चिंता की लकीरे खींच दी. वर्ष 2020 में बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर कौन-कौन सी समस्याओं ने डराया और किन मुद्दों ने लोगों का ध्यान अपनी और खींचा, पेश है ईटीवी भारत सुखीभवा की यह रिपोर्ट.

कोविड-19

शुरुआत में जब तक कोविड 19 के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी. लोगों मान रहे थे की कोरोना का असर बच्चों और बुजुर्गों पर ज्यादा पड़ सकता है. लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया और इस संक्रमण के बारे में लोगों में ज्यादा जानकारी सामने आने लगी, तब यह तथ्य सामने आया की बच्चों पर इस संक्रमण का असर कम होता है. हालांकि ऐसा नहीं है की बच्चों में कोविड-19 का असर हुआ ही नहीं. लेकिन उनका प्रत्तिशत दुसरीं उम्र के लोगों के अनुपात में कम रहा.

कोविड 19 का बच्चों के शारीरिक स्वास्थ्य से ज्यादा उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ा है. कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन के कारण स्कूल बंद हो गए, बच्चों का घर से बाहर निकालना बंद हो गया, दोस्तों से मिलना-बातें करना बंद हो गया. ऐसी अवस्था में उनमे आलस, बैचेनी, चिड़चिड़ापन तथा जैसी मानसिक अस्वस्थताओं के लक्षण नजर आने लगे.

सम्पूर्ण लॉकडाउन के बाद जब पढ़ाई शुरू भी हुई तो ऑनलाइन व्यवस्था के तहत जहां बच्चों को ज्यादातर समय एक स्थान पर कंप्यूटर के सामने बैठना पड़ा. इस व्यवस्था ने भी बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के साथ उनकी आंखों के स्वास्थ्य पर काफी असर डाला है. कुल मिलाकर यह कहना गलत नहीं होगा की कोरोना की इस समयावधि ने बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बहुत ही नकारात्मक असर डाला है.

मोटापा

महामारी के चलते सामाजिक जीवन और पढ़ाई से जुड़ी व्यवस्थाओं के बदलने से एक और समस्या ने बच्चों में प्रभावित किया वह है, ओबेसिटी यानि मोटापा. लॉकडाउन के कारण बच्चों की दिनचर्या पर काफी असर पड़ा है. सामान्यतः जहां बच्चें सुबह उठते ही नहा धो कर स्कूल के लिए जाते थे और शाम को दोस्तों के साथ खेलते कूदते थे, लेकिन महामारी के दौर में बच्चें चार दीवारों में कैद होकर रह गए. जिसका नतीजा यह रहा की उनकी दिनचर्या अनुशासनहीन हो गई. देर से सोना और देर से सोकर उठना, खाने का समय न होना, किसी भी प्रकार का व्यायाम या कोई भी ऐसी शारीरिक गतिविधि का ना होना उस पर लंबे समय पर कंप्यूटर या मोबाइल के सामने बैठ कर पढ़ना और खेलना उनकी दिनचर्या बन गई. ऐसे में बड़ी संख्या में बच्चों में मोटापा बढ़ने की समस्या संज्ञान में आई. चूंकि मोटापा कई बीमारियों के लिए ट्रिगर का काम करता है इसलिए बच्चों में नींद न आने, आंखों या सिर में दर्द होने, तनाव, चिड़चिड़ापन और बगैर कोई भी काम किया थकान जैसे समस्याए नजर आने लगी. कुछ बच्चों में मोटापे कारण मधुमेह, रक्तचाप और हृदय रोग जैसे गंभीर रोगों के मामले भी देखने सुनने में आए.

नवजात का स्वास्थ्य

हालांकि नवजात बच्चों के स्वास्थ्य पर कोरोना जैसे संक्रमण के ज्यादा प्रभाव की बात सामने नहीं आई. लेकिन महामारी के इस दौर में नवजात बच्चों को किस तरह से सुरक्षित रखा जा सकता है, इस बारे में लोगों ने विशेषकर नई माओं ने काफी ध्यान दिया. जिसके लिए परंपरागत तरीकों के साथ चिकित्सीय सलाह का भी सहारा लिया गया.

वर्ष 2020 में नवजात के स्वास्थ्य को लेकर जिन जानकारियों के बारे में नई माओं तथा नवजात के परिजनों ने ज्यादा रुचि दिखाई वह इस प्रकार है-

  • मालिश

हमारे यहां परंपरागत रूप से बच्चों के जन्म के उपरांत धूप में बच्चे की मालिश करने का चलन रहा है. अभ्यंगा यानि बच्चों को तेल से अच्छे से मालिश के करने के उपरांत नहलाने लायक गरम पानी स्नान कराने से न सिर्फ बच्चों की हड्डियों और उनके पाचन तंत्र बल्कि सम्पूर्ण शरीर का विकास होता है, साथ ही शरीर में रक्त का प्रवाह भी बढ़ता है. इसके अतिरिक्त यदि मालिश धूप सुबह 10 से बारह बजे की धूप के बीच हो या मालिश के बाद बच्चे को थोड़ी देर धूप में लिटा दिया जाए तो बच्चे को जरूरी मात्रा में विटामिन डी भी मिल जाता है.

  • नवजात के लिए मां के दूध की जरूरत

जन्म के उपरांत बच्चे को पोषण उसकी मां के दूध से ही मिलता है. इसलिए प्रथम 6 माह तक मां को शिशु को अपना ही दूध पिलाना चाहिए. विशेषकर बच्चे के जन्म के उपरांत माता के स्तनों से निकालने वाला पहला दूध जिसे कॉलेस्ट्रम कहा जाता है, अवश्य पिलाना चाहिए. कॉलेस्ट्रम के बारे में कहा जाता है की यह एक वैक्सीन की भांति बच्चे को बहुत सी बीमारियों से बचाता है.

  • 6 से 18 माह के बीच बच्चों का भोजन कैसा हो

बच्चे के जन्म के उपरांत प्रथम 6 महीने उससे सिर्फ माता का ही दूध दिया जाना चाहिए, लेकिन 6 महीने के उपरांत उसे अतिरिक पोषण की जरूरत पड़ने लगती है. इसलिए उसे ऊपरी आहार देना शुरू कर देना चाहिए. 6 माह के बाद पहले द्रव्य जैसे दाल तथा चावल का पानी, फल तथा सब्जियों का जूस, सातवें महीने के बाद से बच्चे को हल्का ठोस आहार जैसे सूप, कूट या पीस कर सब्जी रोटी, दाल चावल और पनीर जैसा आहार दिया जा सकता है. चिकित्सकों का कहना है की जन्म के उपरांत बारह महीने तक बच्चों के नमक तथा चीनी वाला भोजन देने से परहेज करना चाहिए या कम से कम मात्रा में ही देना चाहिए. इसके अतिरिक बारह महीने तक अंडा, मांसाहार (चिकन, मटन, मछली ) सूखे मेवे तथा शहद बिल्कुल भी नहीं देना चाहिए.

पेट में कीड़े

बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़ी एक और समस्या ने इस वर्ष लोगों का ध्यान आपने तरफ खींचा वह है पेट में कीड़ों की समस्या. हालांकि यह समस्या बड़ी उम्र में भी हो सकती है लेकिन आमतौर पर बच्चों में एक से चौदह साल तक यह समस्या ज्यादा देखने में आती है. इस रोग में अस्वच्छ भोजन के सेवन से बच्चों की आंतों में कीड़े पहुंच जाते है और उनके शरीर के पोषण पर जीना शुरू कर देते है. समय पर ध्यान न देने पर बच्चों में कुपोषण, एनीमिया तथा ज्यादा गंभीर अवस्था में आंतरिक रक्तस्राव भी हो सकता है. इस समस्या से बचने के लिए चिकित्सक नियमित अंतराल पर डीवार्मिंग की दवाई बच्चों को देने की सलाह देते हैं.

दृष्टि दोष

कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन तथा उसके कारण पढ़ाई तथा खेल के लिए मोबाइल और कंप्युटर पर बढ़ी निर्भरता के कारण इस वर्ष बच्चों में दृष्टि दोष यानि नजर कमजोर होने तथा आंखों संबंधी समस्याओं के मामलों में चौगुनी बढ़ोत्तरी हुई. बच्चों के नेत्र स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते है की ज्यादा समय तक मोबाइल और कंप्युटर के सामने बैठने से बच्चों में नजर के कमजोर होने, मायोपिया, आंखों में तनाव के कारण सरदर्द, तनाव, एलर्जी तथा नींद में समस्या होने जैसी परेशानीयां संज्ञान में आई.

इस समस्याओं को देखते हुए चिकित्सकों ने बच्चों को पढ़ाई तथा खेल के दौरान हर बीस मिनट के बाद अंतराल लेने, चश्मे पहनने, नियमित तौर पर आंखों का व्यायाम करने तथा मोबाइल और कंप्युटर के स्क्रीन से थोड़ी दूरी बनाने की सलाह दी. इसके अतिरिक चिकित्सों ने पोषक भोजन के सेवन के साथ बोर्ड गेम खेलने की भी सलाह दी.

Last Updated : Oct 22, 2021, 4:13 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.