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दिल्ली: बंद होने की कगार पर है दीयों का कारोबार, कुम्हार परेशान

दीवाली के दिन लोगों के घर को रोशन करने के पीछे मिट्टी के दीये बनाने वाले कुम्हारों की बहुत बड़ी भूमिका होती है. ऐसे में ईटीवी भारत की टीम ने दिल्ली में दीए के कारोबार से जुड़े कुछ कुम्हारों से बातचीत की.

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Published : Oct 25, 2019, 7:16 PM IST

मिट्टी के दीयों का कारोबार खतरे में

नई दिल्ली: दिवाली पर मिट्टी के दीयों का बड़ा महत्व होता है. मिट्टी के दीये बनाने वाले कारोबारी कड़ी मशक्कत के बाद दीये तैयार करते हैं और बाजारों में बेचते हैं. इस दिवाली सीलिंग के चलते मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार परेशान हैं और उनके कारोबार पर भी काफी असर पड़ा है. कुम्हारों ने अपील की है कि सरकार उनकी तरफ भी ध्यान दें. ताकि वे अपनी रोजी-रोटी चला सके.

मिट्टी के दीयों का कारोबार खतरे में

ऐसे बनते हैं मिट्टी के दीये
दीवाली दीपों का त्योहार है बिना दीयों के दिवाली अधूरी है. खास कर मिट्टी के दीये, जिन्हें जलाकर घरों में पूजा की जाती है. ऐसे में इन दीयों को एक कुम्हार बनाने में काफी मेहनत करता है. कई सारी प्रक्रियाओ के बाद ये दीये बनते हैं. मिट्टी के बर्तन और दीये बनाने के लिए चिकनी मिट्टी को कुम्हार दूरदराज के इलाकों से मंगवाते हैं. दिल्ली में बर्तन बनाने वाली मिट्टी हर जगह नहीं मिलती. जिसके बाद इस मिट्टी को पूरी तरह सूखा कर तोड़ा जाता है. पाउडर की तरह पीस कर आंटे की तहत गूंधा जाता है और अंत मे इसे चाक पर चढ़ा कर इससे बर्तन बनाए जाते हैं.

दीवाली से कुछ महीने पहले से ही कुम्हार दीये बनाने शुरू कर देते हैं. कुम्हार अपने हाथों से इन दीयों को सजा-संवार कर तैयार करता है. मिट्टी के दीये तैयार होने के बाद इन्हें भट्ठी में पकाया जाता है और इनपर रंग भी चढ़ाए जाते है. जिससे कई रंगों के दिये बाजारों में देखने को मिलते हैं.

सीलिंग से परेशान हैं कुम्हार
पर्यावरण को देखते हुए दीवाली पर एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एमसीडी ने कुम्हारों की भट्ठियों को सील कर दिया है. इन कुम्हारों का पुश्तैनी कारोबार अब दिल्ली में बंद होने के कगार पर पहुंच गया है. अब सीलिंग की मार से यह संख्या सिमटकर कुछ हजारों में ही रह गई है. अधिकतर भट्टियों को सील किया जा चुका है.

नई दिल्ली: दिवाली पर मिट्टी के दीयों का बड़ा महत्व होता है. मिट्टी के दीये बनाने वाले कारोबारी कड़ी मशक्कत के बाद दीये तैयार करते हैं और बाजारों में बेचते हैं. इस दिवाली सीलिंग के चलते मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार परेशान हैं और उनके कारोबार पर भी काफी असर पड़ा है. कुम्हारों ने अपील की है कि सरकार उनकी तरफ भी ध्यान दें. ताकि वे अपनी रोजी-रोटी चला सके.

मिट्टी के दीयों का कारोबार खतरे में

ऐसे बनते हैं मिट्टी के दीये
दीवाली दीपों का त्योहार है बिना दीयों के दिवाली अधूरी है. खास कर मिट्टी के दीये, जिन्हें जलाकर घरों में पूजा की जाती है. ऐसे में इन दीयों को एक कुम्हार बनाने में काफी मेहनत करता है. कई सारी प्रक्रियाओ के बाद ये दीये बनते हैं. मिट्टी के बर्तन और दीये बनाने के लिए चिकनी मिट्टी को कुम्हार दूरदराज के इलाकों से मंगवाते हैं. दिल्ली में बर्तन बनाने वाली मिट्टी हर जगह नहीं मिलती. जिसके बाद इस मिट्टी को पूरी तरह सूखा कर तोड़ा जाता है. पाउडर की तरह पीस कर आंटे की तहत गूंधा जाता है और अंत मे इसे चाक पर चढ़ा कर इससे बर्तन बनाए जाते हैं.

दीवाली से कुछ महीने पहले से ही कुम्हार दीये बनाने शुरू कर देते हैं. कुम्हार अपने हाथों से इन दीयों को सजा-संवार कर तैयार करता है. मिट्टी के दीये तैयार होने के बाद इन्हें भट्ठी में पकाया जाता है और इनपर रंग भी चढ़ाए जाते है. जिससे कई रंगों के दिये बाजारों में देखने को मिलते हैं.

सीलिंग से परेशान हैं कुम्हार
पर्यावरण को देखते हुए दीवाली पर एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एमसीडी ने कुम्हारों की भट्ठियों को सील कर दिया है. इन कुम्हारों का पुश्तैनी कारोबार अब दिल्ली में बंद होने के कगार पर पहुंच गया है. अब सीलिंग की मार से यह संख्या सिमटकर कुछ हजारों में ही रह गई है. अधिकतर भट्टियों को सील किया जा चुका है.

Intro:लोकेशन--दिल्ली/विकास नगर
स्लग--दीवाली पर मंदा हुआ दिए का कारोबार
रिपोर्ट--ओपी शुक्ला

पश्चिमी दिल्ली:- दिवाली पर मिट्टी के दिए का बड़ा ही महत्व होता है जहां मिट्टी के दीए से जुड़े लोग कड़ी मशक्कत के बाद मिट्टी के दिए को तैयार करते हैं और बाजारों में बेचते हैं वही इस दिवाली पर सीलिंग के चलते मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार परेशान है और उनके कारोबार पर भी काफी असर पड़ा है वही कुंवारों की अपील है कि सरकार को कुम्हारों की तरफ भी ध्यान देना चाहिए जिससे इनकी भी रोजी रोटी चल सके ।
Body:दीवाली जगमगाती दीपो का त्योहार है बिन दीपक दिवाली अधूरी रहती है खास कर मिट्टी के दिये जो दीवाली के दिन जला कर घरो में पूजा की जाती है ऐसे इन दीयो को एक कुम्हार कैसे तैयार करता है और किन किन प्रक्रियाओ से होकर यह दिए बनाये जाते है आपको बता दें मिट्टी के बर्तन कुम्हार बनाता है जहां कुम्हार अकेला यह काम नही करता उसका पूरा परिवार इस काम को मिलकर करता है तब जा कर यह मिट्टी के दिये और बर्तन बनते है

ऐसे बनते है मिट्टी के दिये

मिट्टी के बर्तन और दिए बनाने के लिए चिकनी मिट्टी को कुम्हार दूरदराज के इलाकों से मंगवाते है चुकी दिल्ली में बर्तन बनाने वाली मिट्टी हर जगह नही मिलती । जिसके बाद इस मिट्टी को पूरी तरह सूखा कर तोड़ा जाता है और पाउडर की तरह पीस कर आंटे की तहत गूँधा जाता है और अंत मे इसे चाक पर चढ़ा कर इससे बर्तन बनाये जाते है । दीवाली से कुछ महीने पहले से ही कुम्हार दिए बनाने सुरु कर देते है ।और यह दिए लाखो में बनाये जाते है जहां हर एक दिए को कुम्हार अपने हाथों से सजा सवार कर तैयार करता है वही मिट्टी के बर्तन और दिए बनाने के लिए चाक पर दो लोगों द्वारा मिल कर काम किया जाता है मिट्टी के दिए तैयार होने के बाद इन्हें भट्ठी में पकाया जाता है और इनपर रंग भी चढ़ाए जाते है। जिससे कई रंगों के दिये बाजारों में देखने को मिलते है। ऐसे में कुम्हार का पूरा परिवार मिलजुल कर काम करता है तब जा कर लोगों के घरों में दिवाली पर मिट्टी के दिये पहुंचते है ।

बाईट--रामबिलास, स्थानीय कुम्हार
बाईट--आरती, स्थानीय कुम्हारConclusion:दिल्ली में बन्द होने के कगार पर है यह कारोबार

पर्यावरण को देखते हुए दीवाली पर एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एमसीडी द्वारा कुम्हारों की भट्ठियों को सील कर दिया गया है और इन कुम्हारो का पुश्तैनी कारोबार अब दिल्ली में बंद होने के कगार पर पहुंच गया है । जहां हर दिवाली पर कुम्हारों द्वारा लाखों मिट्टी के दिए बनाये जाते थे । वहीं अब सीलिंग की मार से यह संख्या सिमटकर कुछ हजारों में रह गई है । जहां अधिक टार भट्टियों पर सील लगा दी गई है और इसी सीलिंग की वजह से इस दीवाली पर इन कुम्हारों को अधिक ऑर्डर नही मील और जो मील भी थे वह भी वापस लेलिये गए । जिससे इन कुम्हारों का जीवन संकट में है और रोजगार खतरे में , ऐसे में यह दिवाली इनके लिए निराश लाई है और मिट्टी के बर्तनों के उत्पादन की कमी के कारण इस दीवाली में मिट्टी के दीए भी महंगे होंगे और उनकी भारी संख्या में कमी भी आएगी । वही अब इन मजबूर कुंवारों की अपील है कि सरकार को कुम्हारों की तरफ भी ध्यान देना चाहिए जिससे इनकी भी रोजी रोटी चल सके ।

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