नई दिल्ली: दक्षिणी पश्चिमी दिल्ली की आर के पुरम में स्थित चर्च में ईसाई धर्म के अलावा सभी धर्मों के लोगों ने बड़े ही धूमधाम के साथ क्रिसमस का त्यौहार मनाया. बता दें कि क्रिसमस का त्योहार लगभग 12 दिनों तक चलता है. 25 दिसंबर से लेकर 6 जनवरी के बीच 12 दिनों को क्रिसमस दिवस के रूप में माना जाता है. दुनिया के सभी हिस्सों की तरह भारत में भी क्रिसमस का त्योहार बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है. बाजारों को क्रिसमस ट्री और लाइटों से सजाया जाता है.
क्रिसमस डे का इतिहास
बाइबल में जीसस के जन्म का कोई उल्लेख नहीं किया गया है. लेकिन फिर भी 25 दिसंबर को क्रिसमस डे हर साल बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है और 25 दिसंबर की तारीख को लेकर कई बार विवाद खड़ा हो चुका है इससे जुड़ी कई मान्यताएं भी हैं.
'चुपके से मदद किया करते थे संत निकोलस'
बताया जाता है कि चौथी शताब्दी में एशिया माइनर के मायरा में सेंट निकोलस नाम का एक युवक रहता था जो काफी अमीर था. लेकिन उसके माता-पिता का देहांत हो चुका था. सेंट निकोलस ज्यादातर चुपके से गरीब लोगों की मदद किया करते थे. और उन्हें चुपके से गिफ्ट देकर खुश करने की कोशिश करते थे. 1 दिन निकोलस को पता चला कि एक गरीब आदमी की तीन बेटियां हैं जिसकी शादी के लिए उसके पास बिल्कुल पैसा नहीं है. जब यह बात निकोलस को पता चली तो वह शख्स की मदद करने पहुंचे और उन्होंने घर की छत में लगी चिमनी के पास सोने से भरा बैग डाल दिया उस दौरान इस गरीब शख्स ने अपना मौजा सुखाने के लिए चिमनी में लगा रखा था. अचानक सोने से भरा बैग उसके घर में गिरा ऐसा एक बार नहीं बल्कि 3 बार हुआ आखिरी बार गरीब आदमी ने निकोलस को देख लिया. निकोलस ने यह बात किसी को ना बताने के लिए कहा लेकिन ऐसी बातें छिपती कहां है जब भी किसी को गिफ्ट मिलता है तो उसे लगता है कि ये गिफ्ट उसे निकोलस ने दिया है. धीरे-धीरे निकोलस की ये कहानी पॉपुलर हुई. क्योंकि क्रिसमस के दिन बच्चों को तोहफे देने का प्रथा रही है.