नई दिल्ली: यदि आपके शरीर के सामान्य कार्य करने की क्षमता प्रभावित हो रही है या अचानक एक ही चीज दो-दो दिखने लगती है. चलने में संतुलन बनाने में परेशानी होने लगे या शरीर में कहीं सुन्नपन महसूस होने लगे तो सतर्क हो जाएं. क्योंकि आपको मल्टीपल स्केलेरोसिस (एमएस) का हल्का अटैक आया है. कुछ समय बाद ये लक्षण दिखने बंद भी हो जाएं तो इसे नजरअंदाज करने की भूल न करें. इसका दूसरा अटैक बहुत जल्द और काफी खतरनाक हो सकता है.
वर्ल्ड एमएस डे पर दिल्ली एम्स में आयोजित एक पब्लिक लेक्चर में न्यूरोलॉजी विभाग की अध्यक्ष डॉ.एम पद्मा, विभाग के प्रोफेसर डॉ. रोहित भाटिया और असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. इला वारसी ने लोगों को एमएस के प्रति जागरूक किया. विशेषज्ञों ने एमएस को साइलेंट किलर बताते हुए कहा कि यह अचानक अटैक करता है, लेकिन अच्छी बात है कि लगभग 75 प्रतीशत एमएस अटैक हल्का होता है. इसे लोग अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन यह बड़े खतरे की ओर भी इशारा करता है.
पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक खतराः एम्स दिल्ली के न्यूरोलॉजी विभाग की हेड प्रो. एम पद्मा ने बताया कि पुरुषों के मुकाबले महिलाएं एमएस से अधिक पीडित होती हैं. धारणाओं के विपीरत यह न्यूरोलॉजिकल बीमारी युवाओं को अधिक प्रभावित करती है. पीड़ित का ब्रेन और स्पाइन कॉड को काफी नुकसान होता है, जिससे मरीज उम्रभर के लिए दिव्यांगता का जीवन जीने के लिए अभिशप्त हो सकता है. देश में प्रति लाख आबादी पर लगभग 20 लोग एमएस से पीड़ित हो रहे हैं. हालांकि, ये आंकड़े देखने में छोटे लगते हैं, लेकिन जितनी बड़ी भारत की आबादी है उसे देखते हुए कह सकते हैं कि एक बड़ी आबादी इस बीमारी से पीड़ित है. 1993 से पहले इस बीमारी का कोई इलाज नहीं हुआ करता था, लेकिन उसके बाद जबसे इलाज शुरू हुआ लोगों को बचाना संभव हुआ है.
डॉ. रोहित भाटिया ने नेशनल एमएस रजिस्ट्री की शुरुआत कीः न्यूरोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. रोहित भाटिया ने बताया कि उन्होंने नेशनल एमएस रजिस्ट्री की शुरुआत की है, जहां देशभर के आंकड़ें इकट्ठे किए जा रहे हैं. आने वाले समय में उनके पास स्टडी के लिए पर्याप्त डेटा होंगे. उन्होंने बताया कि जब एमएस का अटैक होता है तो सबसे पहले इसका असर आंखों पर दिखता है. एक आंख से या दोनों आंखों से देखने में समस्या होने लगती है. एक-दो हफ्ते के बाद मरीज को लगता है कि उसके एक आंख से कुछ दिखाई नहीं देता है. कई मरीजों में डबल विजन दिखाई देने लगता है यानी एक वस्तु उन्हें दो-दो दिखाई देती है. कमजोरी महसूस होना, चलने में संतुलन बनाने में परेशानी होना और सुन्नपन जैसे लक्षण भी दिखते हैं.
वैक्सीन से भी एमएस अटैक का खतराः असिस्टेंट प्रो. डॉ. इला वारसी ने बताया कि वैक्सीन भी एमएस का ट्रिगर होता है. चाहे बच्चों को लगाए जाने वाले कोई वैक्सीन हो या एंफ्लूएंजा या रेबीज के टीके. इनसे भी एमएस अटैक का खतरा रहता है. उन्होंने बताया कि एक समय था जब इसका कोई इलाज नहीं था, लेकिन अभी 17 दवाइयों का अप्रूवल है, जिसके उपयोग से मरीज ठीक हो जाते हैं.
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