नई दिल्ली: सड़क के किनारे या फिर किसी चौक पर काम की आस में खड़े बेलदार, मिस्त्री या सफेदी करने वाले पेंटर एक बार फिर परेशानी झेलने पर मजबूर हैं. काम की तलाश में एक जगह इकट्ठा होने वाले इन कामगारों की 'निर्माण मजदूर पंजीकरण कैंप' से बहुत आस लगी हुई थी. लेकिन इनके सामने दिल्ली सरकार की इस योजना का लाभ उठाने के रास्ते में बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो गई है.
हम अपने आसपास कई बार सड़क के किनारे या फिर किसी चौक पर बेलदार, मिस्त्री या सफेदी करने वाले पेंटरों को खड़ा हुआ देखते हैं. जो काम की तलाश में एक जगह इकट्ठा होकर काम आने की आस लगाते हैं. इस प्रकार से कई मजदूर सालों से अपनी रोजी रोटी कमा रहे हैं, क्योंकि ना तो इनकी परमानेंट सैलरी होती है, और ना ही ये पता होता है कि अगले दिन कहीं काम मिलेगा या नहीं? ये रोज कमा कर खाते हैं. लेकिन इनके लिए उम्मीद तब जगी, जब दिल्ली सरकार की तरफ से 'निर्माण मजदूर पंजीकरण कैंप' दिल्ली की अलग-अलग विधानसभाओं में लगाए गए.
अलग-अलग मालिकों के पास काम करके कमाते हैं अपना रोजगार
निर्माण उद्योग से जुड़े तमाम अलग-अलग वर्ग के मजदूरों को सरकारी सहायता और उनके अधिकार दिए जाने को लेकर दिल्ली सरकार ने ये कैंप 24 अगस्त से 11 सितंबर तक लगवाए. लेकिन लेबर कार्ड बनवाने के लिए जरूरी कागजात में से एक अपने मालिक का पता, उसका फोन नंबर उसके द्वारा लिखित हस्ताक्षर किया हुआ पत्र अनिवार्य है. लेकिन रोजाना कमा कर खाने वाले मजदूरों के पास अपना रोजगार कमाने के लिए कोई परमानेंट मालिक नहीं है. रोजाना अलग-अलग जगहों पर दिहाड़ी मजदूरी कर ये अपना रोजगार कमाते हैं. ऐसे में लेबर कार्ड बनाने के लिए ये धक्के खा रहे हैं.
नहीं है परमानेंट ठेकेदार का पता
आखिरी दिन लेबर कार्ड के लिए पंजीकरण कैंप में पहुंचे, दिहाड़ी मजदूरों ने अपनी ये परेशानी ईटीवी भारत के जरिए जाहिर की. मजदूर विकास सिंह ने बताया कि वो बेलदार मिस्त्री का काम करते हैं, और अलग-अलग चौक पर जाकर अपना काम ढूंढते हैं. ऐसे में कोई परमानेंट ठेकेदार नहीं है. जिसके यहां वो काम कर रहे हो. लेकिन लेबर कार्ड के लिए 90 दिनों का लिखित ठेकेदार के हस्ताक्षर के साथ एक प्रमाण पत्र लेबर कार्ड के लिए मांगा जा रहा है.
लेबर कार्ड बनवाने के लिए धक्के खा रहे मजदूर
बाकी मजदूरों ने बताया कि बाकी सभी कागजात उनके पास है. आधार कार्ड, बैंक पासबुक की फोटो कॉपी. सभी दस्तावेज वो लेकर आए हैं, लेकिन ठेकेदार के हस्ताक्षर किया हुआ पत्र नहीं है. वो हम कहां से लेकर आएं.
मजदूरों ने कहा हम कई दिनों से धक्के खा रहे हैं. हमने सोचा था कि सरकार की ओर से बनाए जा रहे लेबर कार्ड से कुछ सहायता मिलेगी. हमें अपने बच्चों की पढ़ाई और घर चलाने के लिए कुछ मदद मिल जाएगी. लेकिन हम अब भी धक्के खाने को मजबूर है.