नई दिल्लीः बड़ी संख्या में डॉक्टर अपनी रेजीडेंसी पूरा कर या तो किसी अस्पताल में नौकरी ढूंढ़ते हैं या अपना कोई नर्सिंग होम खोलकर खुद का स्टार्टअप शुरू करते हैं. सरकारी अस्पतालों में नियमित पदों पर नौकरियां कम निकलती हैं और निजी अस्पतालों में असुरक्षा की भावना हमेशा घर किए रहती है. ऐसे में कुछ डॉक्टर किसी अस्पताल में सेवा देने की बजाय खुद की क्लिनिक या नर्सिंग होम खोलना बेहतर समझते हैं. लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती यह इंफ्रांस्ट्रक्चर को लेकर होती है. उन्हें लोकेशन से लेकर मैनपावर और मेडिकल इक्विपमेंट प्रबंधन का कोई अनुभव नहीं होता है, जिसके कारण अक्सर गलतियां करने की संभावना बढ़ जाती है.
ऐसे में उन्हें ऐसे कंसल्टेंट फर्म की तलाश होती है, जो उनकी सारी जरूरतों को ध्यान में रखकर उनके लिए अस्पताल तैयार कर दे दें. सफदरजंग अस्पताल से रेजीडेंसी पूरा करने वाले डॉ. गोपाल शरण ने इस समस्या को बहुत करीब से देखा और एक विजनरी के तौर पर खुद को तैयार किया. उन्होंने अस्पतालों के डिजाइन और इंफ्रास्ट्रक्चर में अपने करियर को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया. उन्होंने दिल्ली में टीआर लाइफ साइंसेज नाम से अपना एक स्टार्टअप शुरू कर दिया. यह एक हेल्थकेयर कंसल्टिंग फर्म है.
डॉ. शरण ने बताया कि सरकारी और निजी अस्पतालों में काम करने के दौरान उन्होंने कई परेशानियां महसूस की. उन समस्याओं के समाधान के तौर पर अपना एक कंसल्टिंग फर्म स्टार्ट करने का निर्णय लिया, जो डॉक्टर अपने क्लिीनिकल कामों में व्यस्त हैं. उन्हें अपना खुद का अस्पताल शुरू करने के लिए समय नहीं मिल पा रहा है तो हम उन्हें अपनी सेवा ऑफर करते हैं.
उन्होंने कहा कि हम हॉस्पिटल की डिजाइन और डेवलपमेंट से लेकर हॉस्पिटल मैनेजमेंट और हॉस्पिटल संचालन तक का सारा काम करते हैं. उन्हें केवल पैसे खर्च करने होते हैं. बाकी का टेंशन वह ले लेते हैं. एक्विपमेंट प्लानिंग, हॉस्पिटल डिजाइनिंग और फिजिकल इंफ्रास्ट्रक्चर ये सब सेवा देते हैं. हॉस्पिटल डिजाइन करने में उसमें लगने वाली लागत एक बड़ी चिंता होती है. हॉस्पिटल का संचालन एक बेहद खर्चीला काम है. उनके इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर उपकरणों के इंस्टॉलेशन और मैनेजमेंट काफी महंगा होता है.
छोटे शहरों में खुलने लगे हैं अच्छे अस्पताल
छोटे शहरों में अब अच्छे अस्पताल खुलने लगे हैं. वहां आमतौर पर बड़े शहरों में काम करने वाले डॉक्टर्स ही होते हैं, जो छोटे शहरों में लोगों को गुणवत्तापूर्ण इलाज उपलब्ध कराने के लिए आना चाहते हैं. लेकिन समय की कमी के कारण वे खुद ये काम नहीं कर पाते हैं. ऐसे डॉक्टरों को वह अपनी सेवा ऑफर करते हैं. छोटे शहरों में 50-60 लाख रुपये प्रति बेड के हिसाब से निवेश पर पूरी तरह से तैयार अस्पताल बनाकर संचालन के लिए सौंप दिया जाता है. वे अपने शोध से यह भी सुनिश्चित करते हैं कि अस्पताल अच्छे चलने की स्थिति में हो और लाभ देने वाला हो.