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जीबी पंत हॉस्पिटल में दक्षिण भारतीय नर्सिंग स्टाफ के मलयालम बोलने पर पाबंदी, सर्कुलर जारी - जीबी पंत हॉस्पिटल

जीबी पंत हॉस्पिटल के कोविड केयर सेंटर में दक्षिण भारतीय नर्सिंग स्टाफ को नर्सिंग सुपरिन्टेन्डेन्ट ने नोटिस जारी कर ड्यूटी के दौरान उनके मलयालम बोलने पर रोक लगा दी है. नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी गयी है.

GB Pant Hospital
जीबी पंत हॉस्पिटल
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Published : Jun 6, 2021, 11:16 AM IST

नई दिल्ली: दिल्ली सरकार के अस्पताल में दक्षिण भारतीय नर्स के मलयालम भाषा बोलने पर पाबंदी लगा दी गई है. ऐसा कोरोना के मरीजों की शिकायत के बाद किया गया है. दरअसल दिल्ली सरकार के जीबी पंत हॉस्पिटल के कोविड केयर सेंटर में दक्षिण भारतीय नर्सों द्वारा मलयालम में बातचीत करने से नाराज कोरोना मरीजों की शिकायत पर कार्रवाई करते हुए नर्सिंग सुपरिंटेंडेंट ने एक नोटिस जारी कर वहां काम करने वाली नर्स को चेतावनी दी है कि हॉस्पिटल में केवल हिंदी या अंग्रेजी भाषा में ही बातचीत हो सकती है, किसी और भाषा में बात करने पर नियमों का उल्लंघन करने वाले नर्सिंग स्टाफ के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.

GB Pant Hospital
जीबी पंत हॉस्पिटल का सर्कुलर

अस्पताल प्रशासन ने यह नोटिस मरीजों की शिकायत पर जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि जीबी पंत हॉस्पिटल के कोविड केयर सेंटर में तैनात नर्स आपस में मलयालम भाषा में बातचीत करती है. यहां इलाज के लिए भर्ती मरीज और उनके अटेंडेंट मलयालम भाषा नहीं जानते हैं, जिसकी वजह से उन्हें परेशानी हो रही है.

अस्पताल प्रशासन पर भाषा और क्षेत्रीयता के आधार पर भेदभाव का आरोप

अस्पताल के नर्सिंग स्टाफ ने नर्सिंग सुपरिंटेंडेंट द्वारा जारी इस नोटिस को लेकर नाराजगी व्यक्त की है. उन्हें लगता है कि अस्पताल प्रशासन उनकी क्षेत्रीयता के आधार पर उनके साथ भेदभाव कर रहा है. उन्हें उनकी भाषा बोलने पर भी पाबंदी लगा दी है.

मलयालम बोलने वाली नर्सिंग स्टाफ का कहना है कि जबसे कोरोना महामारी का प्रकोप बढ़ा तब से लगभग पिछले 2 साल से उन्हें ही कोविड ड्यूटी में लगाया जा रहा है जबकि उत्तर भारतीय नर्सिंग स्टाफ को कोरोना ड्यूटी में नहीं लगाया जा रहा है.

अस्पताल के जितने भी जोखिम वाले काम होते हैं उन्हें दक्षिण भारतीय नर्सों को ही सौंपा जाता है. उत्तर भारतीय नर्सों की जिम्मेदारी छोटी और आसान काम की होती है.

अपनी भाषा में बात करना संवैधानिक अधिकार

दक्षिण भारतीय नर्सेज का कहना है कि मलयालम उनकी मातृभाषा है और उन्हें उनकी मातृभाषा बोलने से नहीं रोका जाना चाहिए. अपनी मातृभाषा में बात करना उनका संवैधानिक अधिकार है. वे मरीजों से हिंदी में बात करते हैं जबकि आपस में मलयालम भाषा में बात करते हैं. इससे अस्पताल प्रशासन को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए.

नई दिल्ली: दिल्ली सरकार के अस्पताल में दक्षिण भारतीय नर्स के मलयालम भाषा बोलने पर पाबंदी लगा दी गई है. ऐसा कोरोना के मरीजों की शिकायत के बाद किया गया है. दरअसल दिल्ली सरकार के जीबी पंत हॉस्पिटल के कोविड केयर सेंटर में दक्षिण भारतीय नर्सों द्वारा मलयालम में बातचीत करने से नाराज कोरोना मरीजों की शिकायत पर कार्रवाई करते हुए नर्सिंग सुपरिंटेंडेंट ने एक नोटिस जारी कर वहां काम करने वाली नर्स को चेतावनी दी है कि हॉस्पिटल में केवल हिंदी या अंग्रेजी भाषा में ही बातचीत हो सकती है, किसी और भाषा में बात करने पर नियमों का उल्लंघन करने वाले नर्सिंग स्टाफ के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.

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जीबी पंत हॉस्पिटल का सर्कुलर

अस्पताल प्रशासन ने यह नोटिस मरीजों की शिकायत पर जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि जीबी पंत हॉस्पिटल के कोविड केयर सेंटर में तैनात नर्स आपस में मलयालम भाषा में बातचीत करती है. यहां इलाज के लिए भर्ती मरीज और उनके अटेंडेंट मलयालम भाषा नहीं जानते हैं, जिसकी वजह से उन्हें परेशानी हो रही है.

अस्पताल प्रशासन पर भाषा और क्षेत्रीयता के आधार पर भेदभाव का आरोप

अस्पताल के नर्सिंग स्टाफ ने नर्सिंग सुपरिंटेंडेंट द्वारा जारी इस नोटिस को लेकर नाराजगी व्यक्त की है. उन्हें लगता है कि अस्पताल प्रशासन उनकी क्षेत्रीयता के आधार पर उनके साथ भेदभाव कर रहा है. उन्हें उनकी भाषा बोलने पर भी पाबंदी लगा दी है.

मलयालम बोलने वाली नर्सिंग स्टाफ का कहना है कि जबसे कोरोना महामारी का प्रकोप बढ़ा तब से लगभग पिछले 2 साल से उन्हें ही कोविड ड्यूटी में लगाया जा रहा है जबकि उत्तर भारतीय नर्सिंग स्टाफ को कोरोना ड्यूटी में नहीं लगाया जा रहा है.

अस्पताल के जितने भी जोखिम वाले काम होते हैं उन्हें दक्षिण भारतीय नर्सों को ही सौंपा जाता है. उत्तर भारतीय नर्सों की जिम्मेदारी छोटी और आसान काम की होती है.

अपनी भाषा में बात करना संवैधानिक अधिकार

दक्षिण भारतीय नर्सेज का कहना है कि मलयालम उनकी मातृभाषा है और उन्हें उनकी मातृभाषा बोलने से नहीं रोका जाना चाहिए. अपनी मातृभाषा में बात करना उनका संवैधानिक अधिकार है. वे मरीजों से हिंदी में बात करते हैं जबकि आपस में मलयालम भाषा में बात करते हैं. इससे अस्पताल प्रशासन को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए.

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