नई दिल्ली: कला और कलाकारों का कोई ठिकाना नहीं होता है. जहां भी चार कलाकार बैठ जाएं, वही जगह उनके हुनर की खुशबू से महक उठती है. यह खुशबू आजकल साकेत के सैदुलाजाब गांव की चंपा गली में भी गुलजार है. कुछ साल पहले तक गौशाला और फर्नीचर के गोदाम के रूप में इस्तेमाल होने वाली यह जगह अब चंपा गली बन चुकी है. जहां एक से बढ़कर एक कैफे और शो रूम खुल चुके हैं. आइए जानते हैं आज इसकी खासियतें.
ओपन एरिया में बैठकर लीजिए चाय-कॉफी की चुस्की
कैफे के आंगन में नीम का पेड़. उसके नीचे लकड़ी की खूबसूरत बेंच पर बैठकर ब्लेंड कॉफी की चुस्की के साथ देश-दुनिया पर चर्चा हो या फिर गिटार के साथ पसंदीदा म्यूजिक. देश-विदेश के स्वादिष्ट खाने के साथ कोई पुस्तक पढ़ना हो या चुपचाप बैठकर लैपटॉप पर अपना काम करते या फिर शांत लाइब्रेरी में बैठकर मसाला चाय संग अपनी फेवरेट पुस्तक पढ़ते लोग दिख जाएं तो समझिए आप खसरा नंबर- 258, वेस्ट एंड मार्ग, सैदुलाजाब में हैं. हालांकि पिछले करीब सात आठ साल से कला और रचनात्मकता के कद्रदान इस पते को चंपा गली के नाम से पुकारते हैं. ये वही टिन शेड हैं, जिनके नीचे कुछ साल पहले गायें बंधी होती थीं. या फिर इनमें फर्नीचर बनाने के लिए लकड़ियां और अन्य कच्चा माल भरा होता था. लेकिन आज नाम के साथ ही इस जगह की तासीर भी बदल चुकी है. बदलते समय के साथ नई पहचान बनते हुए देखना हो तो यहां जरूर आएं.
चंपा के फूलों से पड़ा गली का नाम
चंपा गली में रेणु-रेखा आर्ट-क्राफ्ट स्टूडियो हो या जगमग ठेला, बेला डे कैफे हो या एंड ऑफ द डे कैफे. सबकी अपनी खूबियां हैं. पढ़ने के शौकीन लोगों के लिए जगमग ठेला का एयरकंडीशंड रीडिंग रूम भी है. इसमें कई तरह की पुस्तकें निशुल्क उपलब्ध हैं. अब गली के आसपास भी कई नए स्टूडियो और कैफे खुल रहे हैं. गांव की साधारण सी गली को चंपा गली बनाया है जितेन सचदे ने. वह पेशे से कारपेंटर हैं. करीब 10 साल पहले उन्होंने यहां पर अपना ऑफिस खोला था. आर्ट-क्राफ्ट व जिडाइनिंग के क्षेत्र से जुड़े उनके कई दोस्त यहां आते-जाते रहते थे. इन लोगों ने भी यहां अपने स्टूडियो खोलने में दिलचस्पी दिखाई. एड में जितेन ने यहां पर जगमग ठेला नाम से अपना कैफे खोला. अभी यहां कई डिजाइन स्टूडियो और करीब एक दर्जन कैफे खुल गए हैं. दरअसल, ब्लू टोकाई रेस्टोरेंट-कैफे वालों ने गली में चंपा के कई पौधे लगाए थे. तभी से इस गली का नाम चंपा गली पड़ गया.
ईको फ्रेंडली मटेरियल से बनी है हर चीज
एक डिजाइन स्टूडियो के मालिक ने बताया कि यह गली शाहपुर जाट, हौजखास विलेज और लाडो सराय की तरह कला के कद्रदानों की पसंद बनती जा रही है. यहां लोग पुराने कपड़े, गत्ते, पेपर, कांच, डिब्बे, कैनवस रोल आदि से ट्राइबल मास्क, वुडेन जूलरी, फोटो फ्रेम, शीशे, कठपुतली, गुडिया, हैंगिंग, पेपरवेट, बास्केट, बैग, ट्रे, टिश्यू, होल्डर आदि बनाया जाता है. इन हस्तनिर्मित वस्तुओं को लेने के लिए बड़ी संख्या में लोग आते हैं. दरअसल, शाहपुर जाट, हौजखास विलेज और लाडो सराय आदि में जगह मिलना बहुत मुश्किल है. मिल भी जाए तो किराया इतना ज्यादा है कि नए लोग उतना वहन नहीं कर पाते हैं. जबकि यहां पर्याप्त जगह के साथ ही अच्छा माहौल भी मिल रहा है. इसलिए यहां पर लोग आने स्टोर खोल रहे हैं.
कनेक्टिविटी के कारण भी मिली पहचान
एक स्टूडियो संचालक ने बताया कि आसपास कई चीजें होने के कारण यहां फुटफॉल भी खूब है. पास में ही स्थित गार्डन ऑफ फाइव सेंसेज में अक्सर फेस्टिवल आदि आयोजित होते हैं, जहां अधिक संख्या में लोग घूमने आते हैं. इसलिए चंपा गली में भी बड़ी संख्या में लोग आते हैं. गांव के मुख्य मार्ग पर दिल्ली हाट है जिसमें हैंडमेड चीजें मिलती हैं. यानि चंपा गली के आसपास माहौल भी ऐसा मिल रहा है, जहां आर्टिस्ट अपने हुनर को लोगों के सामने रख सकते हैं. साकेत मेट्रो स्टेशन से कनेक्टिविटी के कारण लोगों को आने-जाने में परेशानी भी नहीं होती है. इसलिए यज्ञ दिल्ली के अलावा एनसीआर से भी बड़ी संख्या में लोग घूमने आते हैं.
शांतिपूर्ण माहौल में मिलता है सुकून
एक कलाकार अपना काम बेहतर ढंग से कर सके, इसके लिए शांतिपूर्ण माहौल जरूरी होता है. मुख्य मार्ग से हटकर अंदर की तरफ होने के कारण इस गली में न तो वाहनों की शोर है और न ही डिस्टर्ब करने वालों की भीड़भाड़. इसलिए ज्यादातर स्टूडियो में कलाकार पूरी तल्लीनता से अपना काम कर पाते हैं. यहां पर पहले काऊ शेड और गोदाम थे. राजधानी में मवेशी पालने पर सख्ती होने लगी तो लोगों ने मवेशी पालना कम कर दिया. इसलिए मकान मालिकों को उनका किराया काफी कम मिलता था. इसलिए मकान मालिकों ने इन्हें खाली करवाकर दुकानों व ऑफिस के रूप में इन्हें किराए पर दे दिया.
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सजावट में भी दिखती है कला की झलक
चंपा गली में खुले स्टूडियो व यहां के रेस्टोरेंट की सजावट भी पूरी तरह से ईको फ्रेंडली और रीसाइकलेबल चीजों से की गई है. रेस्टोरेंट व स्टूडियो के पिछले हिस्से यानि आंगन में बुक रीडिंग लाउंज, म्यूजिक कंसर्ट, कविता पाठ, हैंडीक्राफ्ट आइटम्स या पेंटिंग की प्रदर्शनी जैसी तमाम ऐक्टिविटी होती रहती हैं. इन सबके लिए यहां जगह मिल जाती है लेकिन शर्त एक ही होती है, जो भी हो, यूनीक हो. यहां नियमित रूप से आने वाले अथर्व ने बताया कि उन्हें बारिश के दौरान नीम के पेड़ के नीचे बैठकर कॉफी पीना बहुत रोमांचक लगता है. इस शेड को ऐसा बनाया है कि आप भीगेंगे नहीं, लेकिन रोमांच से सराबोर हो उठेंगे. इन रेस्टोरेंट-कैफे में विदेशी मेहमान भी खूब आते हैं. ये विदेशी मेहमान हरे कपड़े की बनी कैनोपी के नीचे खड़े होकर चंपा के फूलों के साथ सेल्फी लेना तो बिल्कुल भी नहीं भूलते हैं. वहीं, जगमग ठेला पर मिलने वाली मसाला चाय, क्लासिक कोल्ड कॉफी और चॉकलेट वॉलनट ब्राउनी भी उनकी पसंद बन गया है.
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