नई दिल्ली: राजधानी में लगातार 3 दिन से 5 हजार के पार कोरोना के नए मामले सामने आ रहे हैं, जो कोरोना की तीसरी लहर का एक संकेत है. दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने भी सर्दी के मौसम में कोरोना की तीसरी लहर के प्रकोप शुरू होने की आशंका जाहिर की है. ऐसे में बुजुर्गों की सुरक्षा बहुत अहम है, क्योंकि सर्दी के मौसम में बुजुर्गों की बीमारियों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है. ऐसे में एक नई उम्मीद के रूप में 100 साल पुरानी बीसीजी का टीका सामने आई है.
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने शोध में यह पाया है कि बीसीजी का टीका बुजुर्गों को कोरोना से फाइट करने में काफी हद तक मदद कर सकता है. शोध में पाया गया है कि बीसीजी की टीका की वजह से बुजुर्गों में एंटीबॉडी तेजी से बनता है, जो उनके बीमारियों से लड़ने की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाता है. साथ ही कोविड इंफेक्शन से भी सुरक्षा देता है.
बीसीजी का टीका बुजुर्गों के लिए बन सकता है वरदान
आईसीएमआर ने जुलाई से सितंबर महीने की दौरान बीसीजी के टीके के प्रभाव को बुजुर्ग मरीजों के ऊपर परीक्षण किया. इसके लिए 60 साल से ऊपर की उम्र वाले 54 बुजुर्गों पर स्टडी की गई. 54 मरीजों को बीसीजी का टीका लगाया गया और 32 को बिना टीके की स्टडी की गई.
कम्पेरेटिव स्टडी में पाया गया कि जिन बुजुर्गों को बीसीजी का टीका लगाया गया था, उनके शरीर की प्राकृतिक रूप से एंटीबॉडी तैयार हो गया था. इससे इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि बीसीजी का टीका बुजुर्गों को भी कुछ हद तक सुरक्षा प्रदान कर सकता है.
100 साल पहले की गई थी टीके की खोज
दिल्ली के स्वास्थ्य विभाग में वरिष्ठ अधिकारी और जाने-माने वैक्सीन एक्सपर्ट डॉ अनिल दुग्गल बताते हैं कि कोविड-19 से सबसे ज्यादा मरने वालों की संख्या बुजुर्गों की होती है. इसके कई कारणों में सबसे बड़ा कारण है उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता का प्राकृतिक रूप से कमजोर होना. इसकी वजह से कई बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं. अभी आईसीएमआर ने कुछ बुजुर्गों के ऊपर बीसीजी के टीके के प्रभाव का अध्ययन किया, जिसमें उन्होंने पाया कि बुजुर्गों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को प्राकृतिक रूप से बढ़ाने में बीसीजी का टीका मदद करता है. इस टीके की खोज आज से लगभग 100 साल पहले की गई थी, जो बुजुर्गों के लिए वरदान साबित होने वाला है.
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है जीवित बैक्टीरिया
डॉ. दुग्गल बताते हैं कि भारत में पिछले 50 वर्षों से बीसीजी टीके का इस्तेमाल हो रहा है. आमतौर पर लोगों को टीबी की बीमारी से बचाव के लिए बीसीजी के टीके लगाए जाते हैं. भारत में पैदा होने वाले बच्चे को अनिवार्य रूप से टीका लगाया जाता है.
इसका मतलब यह हुआ कि वैक्सीन में जीवित बैक्टीरिया होता है, जो बच्चों को इंजैक्ट किया जाता है. यह टीका बच्चों को टीबी बीमारी से सुरक्षा प्रदान करता है. लेकिन फेफड़े की टीबी से उतना बचाव नहीं कर पाता है. डॉ दुग्गल बताते हैं कि आईसीएमआर ने जो स्टडी की है, उसमें यह निकल कर सामने आया है कि बीसीजी टीका बीमारी से लड़ने की क्षमता को बढ़ाता है. इसमें न सिर्फ टीबी की बीमारी से बचाव होता है, बल्कि दूसरी संक्रामक बीमारियों से बचाव होता है.
कोरोना से लड़ेगा बीसीजी टीका
अप्रैल 2020 तक विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना के मरीजों के इलाज के लिए बीसीजी टीके के प्रयोग की अनुमति नहीं दी थी. लेकिन इसके बावजूद भारत समेत ऑस्ट्रेलिया और नीदरलैंड्स में बीसीजी टीके पर प्रयोग चल रहे थे. कई अफ्रीकन देशों में यह पाया गया है कि जितने लोगों को बीसीजी के टीके लगे हुए थे, उनमें कोविड-19 का इन्फेक्शन कम देखा गया. इसका मतलब यह हुआ कि जितनी ज्यादा संख्या में बीसीजी के टीके लगे हैं, उतने ही कोविड 19 इन्फेक्शन कम फैला है.
आईसीएमआर की स्टडी उत्साह वर्धक
डॉ. दुग्गल बताते हैं कि कई बुजुर्गों को गॉलब्लडर कैंसर के इलाज के तौर पर बीसीजी के टीके लगाए जाते हैं ताकि उनकी बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ सके. आईसीएमआर के रिसर्च से जो चीजें निकलकर सामने आई हैं, वो काफी उत्साहवर्धक हैं. बुजुर्गों को सबसे ज्यादा कोविड इंफैक्शन का डर था, लेकिन जिस तरह से बीसीजी टीके को लेकर जो परिणाम सामने आए हैं, उससे बुजुर्गों को काफी हद तक कोविड-19 से सुरक्षा मिलने की संभावना है. अगर यह शोध सही है तो बुजुर्गों के लिए बीसीजी का टीका एक वरदान साबित होगा.