नई दिल्लीः अगर आप पुस्तकें पढ़ने के शौकीन हैं, तो आप बहुत से पुस्तकालयों में भी गए होंगे. वहां पर पुरानी और नई पुस्तकों को खोजा भी होगा. घंटों बैठकर किताबों से ज्ञान अर्जित किया होगा. दिल्ली में भी तमाम जगहों पर छोटे-बड़े पुस्तकालय हैं. सामाजिक संगठनों के सहयोग के अलावा सरकार भी लाइब्रेरी चलाती हैं. आज आपको एक ऐसे पुस्तकालय के बारे में बताएंगे, जो पुराने और समृद्ध पुस्तकालयों में से एक है.
यह पुस्तकालय ऐतिहासिक चांदनी चौक में मौजूद है. गुरुद्वारा शीशगंज साहिब के पास में 'मारवाड़ी सार्वजनिक पुस्तकालय' आज भी किताबों के शौकीन लोगों की पसंदीदा जगह है. 1916 में महात्मा गांधी खुद इस लाइब्रेरी में पधारे थे. ये दिल्ली के मारवाड़ी समाज का अहम केंद्र माना जाता है. इसके अलावा आजादी की लड़ाई से जुड़ी कई गुप्त सभाएं भी इस पुस्तकालय में हुई थीं. पुस्तकालय के भवन को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने 1994 में हैरिटेज भी घोषित किया था.
महात्मा गांधी और तिलक यहां पहुंचे थेः यहां की कई रोचक जानकारियों को जानने के लिए 'ETV भारत' ने पुस्तकालय के महामंत्री राज कुमार तुलस्यान से बातचीत की. उन्होंने बताया कि इस पुस्तकालय की स्थापना मारवाड़ी समाज के वरिष्ठ सदस्य राज नारायण सर्राफ ने सन 1915 में की थी. उस समय देश अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई की तैयारियों में था. लोगों का झुंड में खड़ा होना भी मना था. उस दौर में मारवाड़ी पुस्तकालय में कई बड़े स्वतंत्रता सेनानी आम सभाएं किया करते थे. 27 नवंबर 1916 को पुस्तकालय में महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक आए थे, जिन्होंने पुस्तकालय और इसमें मौजूद पुस्तकों की काफी सराहना की थी. इसके अलावा फिल्मी जगत में सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के पिता कवि हरिवंश राय बच्चन भी पुस्तकालय में आ चुके हैं.
108 साल पुराने इस पुस्तकालय में गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर छात्र विभिन्न प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करते हैं. ऐसे छात्रों के लिए यहां पर विशेष व्यवस्था की गई है. राजकुमार ने बताया कि वे मामूली शुल्क देकर यहां आकर परीक्षाओं की तैयारी कर सकते हैं. ये पुस्तकालय को मारवाड़ी चैरिटेबल ट्रस्ट चलाता है. इसके अलावा इस पुस्तकालय में रोजाना 8 अखबार आते हैं. अखबार पढ़ने के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता है. कोई भी, कभी भी यहां आकर अखबार पढ़ सकता है. लाइब्रेरी सोमवार को बंद रहती है.
किताबों का भंडार
अभी इस पुस्तकालय में 30,000 से ज्यादा किताबें हैं. यहां कई पुस्तकें अनोखी हैं, जो अन्य पुस्तकालयों में मिलना मुश्किल है. यहां नई और पुरानी दो हजार पत्र-पत्रिकाएं उपलब्ध हैं. पुस्तकालय में 700 संदर्भ ग्रंथ का बहुमूल्य संग्रह और 21 दुर्लभ पांडुलिपियां मौजूद हैं.
भारत छोड़ो आंदोलन' से जुड़ा पुस्तकालय
1994 में दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने पुस्तकालय के भवन को हैरिटेज घोषित किया था. यहां सुबह-शाम पढ़ने वालों की भीड़ लगी रहती है. यहां आकर यकीन हो जाता है कि छपे हुए शब्दों की सुगंध पुस्तक प्रेमियों को अपनी तरफ खींच ही लेती है. बता दें कि गांधीजी के आह्वान पर 1942 में शुरू किए गए 'भारत छोड़ो आंदोलन' की दिल्ली में शुरूआत चांदनी चौक में महिलाओं के जुलूस के साथ हुई थी. ये मारवाड़ी पुस्तकालय से आरंभ हुई, जिसका नेतृत्व स्वतंत्रता सेनानी पार्वती देवी डीडवानिया ने किया था. वो मारवाड़ी महिला थीं. मारवाड़ी समाज यहां पर कटरा और नई सड़क में दो स्कूल भी चला रहा है. इन्हें चालू हुए लगभग 90 वर्ष हो चुके हैं.