नई दिल्लीः दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली के अस्पतालों में गंभीर मरीजों के इलाज के लिए संसाधनों की कमी पर चिंता जताई है. कार्यकारी चीफ जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली बेंच ने दिल्ली सरकार से पिछले पांच वर्षों के दौरान अस्पतालों की स्थिति में सुधार पर किए गए खर्चों का ब्यौरा मांगा है. मामले की अगली सुनवाई 29 जनवरी को होगी.
हाईकोर्ट ने सोमवार को यह आदेश हाल में चलती पुलिस वैन से कूदने वाले एक व्यक्ति की मौत के मामले पर सुनवाई करते हुए दिया. सुनवाई के दौरान एमिकस क्युरी अशोक अग्रवाल ने कहा कि व्यक्ति को चार सरकारी अस्पतालों ने इलाज देने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि अस्पतालों को फंड देने की बजाय दूसरे छोटे प्रोजेक्ट को फंड दिए जा रहे हैं. हम यह उम्मीद नहीं कर सकते हैं कि कोई व्यक्ति घायल हो और उसे इलाज नहीं मिले.
हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को सुझाव दिया कि दिल्ली के अस्पतालों में रियल टाइम बेडों की उपलब्धता की जानकारी के लिए एक पोर्टल स्थापित करें ताकि ऐसी स्थिति में पीड़ित उसी अस्पताल में पहुंचे जहां उसे बेड और दूसरी सुविधाएं मिल सके. इससे लोगों की जान बच सकती है. घटना 2 और 3 जनवरी की दरम्यानी रात की है. प्रमोद नामक व्यक्ति पुलिस वैन से कूद गया था, जिसके बाद वो बुरी तरह घायल हो गया.
अस्पतालों ने यह कह कर लौटायाः घायलावस्था में पुलिस सबसे पहले उसे जगप्रवेश चंद्र (जेपीसी) अस्पताल ले गई. जेपीसी अस्पताल ने उसे गुरु तेगबहादुर (जीटीबी) अस्पताल रेफर कर दिया. जीटीबी अस्पताल ने ये कहते हुए एडमिट नहीं किया कि उस अस्पताल में सीटी स्कैन मशीन उपलब्ध नहीं है. उसके बाद प्रमोद को लोकनायक जयप्रकाश (एलएनजेपी) अस्पताल ले जाया गया. एलएनजेपी ने भी उसे एडमिट करने से ये कहते हुए मना कर दिया कि आईसीयू और वेंटिलेटर उपलब्ध नहीं है. अंत में जब प्रमोद को जेपीसी अस्पताल दोबारा ले जाया गया तो उसे मृत घोषित कर दिया गया.
लापरवाही बरतने का आरोपः याचिका में चारों अस्पतालों पर आपराधिक लापरवाही बरतने का आरोप लगाया गया है. कहा गया है कि इन अस्पतालों में इलाज के लिए जरूरी सुविधाएं जैसे सीटी स्कैन, आईसीयू, वेंटिलेटर बेड इत्यादि उपलब्ध नहीं होना सरकार की घोर लापरवाही है. याचिका में कहा गया है कि दिल्ली के अस्पतालों में सुविधाओं को लेकर सूचना होने का भी घोर अभाव है.
चारों अस्पताल या तो केंद्र सरकार के अधीन हैं या दिल्ली सरकार के. अगर प्रमोद को किसी अस्पताल में भर्ती किया गया होता तो उसकी जान बचायी जा सकती थी. याचिका में मांग की गई है कि केंद्र और दिल्ली सरकार को इस मामले की जांच का आदेश दिया जाए और जांच की रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल हो ताकि इसके जिम्मेदार लोगों को सजा दी जा सके.